NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
विधानसभा चुनाव
भारत
राजनीति
उप्र चुनाव: उर्वरकों की कमी, एमएसपी पर 'खोखला' वादा घटा सकता है भाजपा का जनाधार
राज्य के कई जिलों के किसानों ने आरोप लगाया है कि सरकार द्वारा संचालित केंद्रों पर डीएपी और उर्वरकों की "बनावटी" की कमी की वजह से इन्हें कालाबाजार से उच्च दरों पर खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
तारिक अनवर
04 Feb 2022
fertilizer
चित्र केवल प्रतीकात्मक उपयोग के लिए। फोटो सौजन्य: दि फिनाशियल एक्सप्रेस

मथुरा, आगरा, फर्रुखाबाद, एटा, इटावा, कन्नौज (उत्तर प्रदेश): केंद्र सरकार भले यह दावा ठोके कि चुनावी प्रदेश में उर्वरकों की कोई कमी नहीं है और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खाद्यान्न की रिकॉर्ड खरीद की गई है पर  डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट), एनकेपी (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) और यूरिया का चल रहा गंभीर संकट और एमएसपी दिए जाने का "खोखला" वादा राज्य के इन कृषि क्षेत्रों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जनाधार में कटाव का खतरा पैदा कर रहे हैं।

किसान सेवा केंद्रों (सरकार द्वारा संचालित उर्वरक केंद्र) पर लंबी-लंबी कतारों में खड़े किसान, आधार कार्ड दिखा कर उर्वरक प्राप्त करने की अपनी बारी का इंतजार करना, यह लगभग पूरे उत्तर प्रदेश में आम दृश्य है। आप राज्य के भीतरी इलाकों में किसी भी गांव का दौरा करें,वहां के किसान उर्वरक संकट और एमएसपी पर खाद्यान्न की खरीद नहीं होने का रोना रोते हुए मिलेंगे। वे यह दावा करते हैं कि उन्हें डीएपी और यूरिया की एक-एक बोरी के लिए कई-कई घंटों, यहां तक कि कई-कई दिनों तक इंतजार करना पड़ा है। ये उर्वरक खेतों में खड़ी उनकी रबी फसलों (गेहूं, सरसों, आलू, गुलाबी मसूर (मसूर दाल) आदि के लिए अत्यंत आवश्यक है।

किसान शिकायत करेंगे कि यही डीएपी और यूरिया सरकारी केंद्रों पर नदारद हैं जबकि काला बाजारी में उन्हें महंगे दामों पर मिल रहे हैं। उनके अनुसार, डीएपी, जिसकी कीमत 1,250 रुपये प्रति बैग होनी चाहिए, उसे 1,500 रुपये प्रति बैग बेचा जा रहा है। एनकेपी, जिसकी कीमत 1,800 रुपये प्रति बैग है, वह 2,000 रुपये में बेचा जा रहा है, और यूरिया 270 रुपये प्रति बैग के नियंत्रित मूल्य के मुकाबले 330 रुपये प्रति बैग पर उपलब्ध है।

राजेंद्र सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एटा जिले के राजकोट गांव के निवासी हैं, उनके पास तीन बीघा (करीब 1.85 एकड़) जमीन है। वे रबी फसल के मौसम की शुरुआत में डीएपी और यूरिया खरीदने के लिए दो दिनों तक अपने निकटतम उर्वरक केंद्र पर लंबी कतार में खड़े रहे थे, इसके बावजूद उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा था। इसके बाद, डीपीए की सरकारी कीमत 1,250 रुपये प्रति बोरी की बजाए कालाबाजार से 1,500 रुपये बोरी और यूरिया के लिए 270 रुपये की बजाय 330 रुपये चुकाने में उन्हें अपनी जेब ढ़ीली करनी पड़ी।

राजेंद्र सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया, "उर्वरक की भारी कमी के कारण, मैंने दो महीने की देरी से गेहूं की बुवाई की। मुझे तो इन उर्वरकों की कमी बनावटी लगती है। सरकार द्वारा संचालित उर्वरक केंद्रों में उर्वरकों की आपूर्ति कम होती है, जबकि वे खुले बाजार में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।"

रबी फसलों की खेती के लिए डीएपी और एनपीके उर्वरकों की जरूरत होती है। विशेष रूप से, बुवाई के लिए भूमि तैयार करने के लिए डीएपी सबसे महत्त्वपूर्ण है।

40 वर्षीय किसान हिम्मत सिंह कठेरिया ने कहा कि वे कुछ किलोमीटर दूर स्थित एक गांव गए और वहां पांच दिनों तक कतार में खड़े रहे तब जा कर डीएपी खरीद पाए।

मैनपुरी जिले के कुरौली ब्लाक के अकबरपुर औंछा गांव के निवासी हिम्मत सिंह ने बताया कि “डीएपी और यूरिया के लिए लाइन में लगने पड़ते हैं, फिर भी खाद नहीं मिलता है। पांच दिन बाद मुझे खाद मिल पाया, वो भी दूसरे सेंटर जाने से मिला।"

हिम्मत सिंह ने बताया कि कई छोटे किसानों ने बिना खाद दिए ही गेहूं बो दिए हैं। उन्होंने शिकायती लहजे में कहा,"हम उर्वरकों की आपूर्ति के लिए सरकारी केंद्रों का बेमियादी काल तक इंतजार नहीं कर सकते। खुले बाजार से इसे खरीदना भी आसान नहीं है, क्योंकि ये वहां महंगे होते हैं। खुले बाजार में डीएपी हमें 1,500 रुपये प्रति बोरी और यूरिया 330 रुपये में बेचा जा रहा है।"

मैनपुरी के ही महुती गांव के एक किसान चरण सिंह, जिनके पास पांच एकड़ जमीन है, अभी-अभी डीएपी के दो बैग लेकर लौटे थे। उन्होंने कहा कि वे तड़के 5 बजे से ही निकटतम किसान सेवा केंद्र पर जा कर कतार में खड़े हो गए थे, तब कहीं देर शाम में उन्हें खाद मिल पाया।
किसान चरण सिंह को दूसरे प्रयास में ही खाद मिल पाया था। हाल ही में इन्हें दिल का दौरा पड़ा था। एक दिन पहले जब वे कतार में खड़े हुए थे लेकिन सीने में तेज दर्द होने के बाद वे वहीं गिर पड़े थे। उनके गिरते ही वहां भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। बाद में, कथित तौर पर पुलिस ने उनके बेटे को पकड़ लिया और वहां हंगामा करने के आरोप में उनकी पिटाई कर दी। इस वजह से दोनों बाप-बेटे उस दिन खाली हाथ ही लौट आए थे।

उन्होंने बताया, "हम अगले दिन सुबह करशाल के एक अन्य केंद्र में गए और शाम को डीएपी की दो बोरी लेने में किसी तरह कामयाब हो गए।"

मैनपुरी के करहल ब्लॉक के कुटुकपुर नसीरपुर गांव के मिलाप सिंह 14 एकड़ जमीन के जोत वाले एक किसान हैं। वे सरकार द्वारा संचालित केंद्र से उर्वरक पाने में विफल हो गए। आखिरकार उन्हें कालाबाजार से 1,700 रुपये प्रति बोरी की दर से डीएपी की 20 बोरी खरीदनी पड़ी। उन्होंने कहा, "उर्वरक न उपलब्ध न होने के कारण, गेहूं की फसल की बुवाई 17 दिनों की देरी से हुई।"

मैनपुरी जिले के घिरोर ब्लॉक के बलमपुर गांव के सतेंद्र सिंह ने कहा कि उन्होंने 2.1 एकड़ में धान उगाया था, लेकिन समय पर खाद नहीं मिलने से इसकी पैदावार 20 क्विंटल घट गई। सतेंद्र सिंह पर 50,000 रुपये का कर्ज है, जो उन्होंने पिछले साल मई में लिया था। इसका भुगतान वे इसलिए नहीं कर सके थे क्योंकि उन्हें अपनी पैदावार को 1,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बेचना पड़ा था, जिससे उन्हें भारी नुकसान हुआ था।

कई किसानों ने तंग आ कर कथित तौर पर आत्महत्या कर ली क्योंकि उन्हें अपनी जमीन के लिए समय पर खाद नहीं मिला। गांवों में घोर निराशा है। डीएपी, एनपीके और यूरिया की कमी के कारण किसानों ने आंदोलन भी किया और पुलिस की लाठियां भी खाईं।

सरकार का इनकार

किसानों के इन दारुण अनुभवों के विपरीत, सरकार का दावा है कि उत्तर प्रदेश में उर्वरकों की कोई कमी नहीं है। केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण एवं रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने न्यूज़क्लिक को बताया, “डीएपी की छह लाख मीट्रिक टन की मांग के मुकाबले 11 दिनों में तीन लाख मीट्रिक टन डीएपी की आपूर्ति की गई। बाकी की आपूर्ति बाद में की गई। इसलिए राज्य में खाद की कोई कमी नहीं है। किसानों को अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और इसकी जमाखोरी से बचना चाहिए।" उन्होंने कहा कि पिछले साल नवम्बर और दिसम्बर में लगातार और अप्रत्याशित बारिश ने कुछ समय के लिए किल्लत पैदा कर दी थी, लेकिन जल्द ही इस कमी को दूर कर दिया गया।

केंद्रीय मंत्री ने कहा,” राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित बारिश ने रबी सीजन की शुरुआत के साथ बोए गए गेहूं को नष्ट कर दिया, जिससे किसान फिर से फसल के लिए मजबूर हो गए। इससे डीएपी की मांग में अचानक वृद्धि हुई क्योंकि किसानों को दूसरी बार इसकी आवश्यकता थी। डीएपी की मांग में अचानक हुई वृद्धि से निपटने के लिए आपूर्ति भेजने में थोड़ा समय लगा। हमने स्थिति से निबटने के लिए प्रभावी कदम उठाए और उर्वरकों की अस्थायी कमी को दूर किया।"

डीएपी स्टॉक में कमी

निवेश सूचना और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (आईसीआरए) से प्राप्त आंकड़े सरकार के दावे के विपरीत जाते हैं। इनसे पता चलता है कि देश के डीएपी शेयरों में हर साल कमी देखी जा रही है, जो कि इसके उत्पादन के स्तर में कमी की वजह से हो सकती है।

देश में, सितम्बर 2018 में 4.8 मिलियन मीट्रिक टन डीएपी का भंडार था। 2019 में यह बढ़कर 6.6 मिलियन मीट्रिक टन हो गया। 2020 में स्टॉक घटकर 5 मिलियन मीट्रिक टन पर आ गया और सितंबर 2021 में यह केवल 2.1 मिलियन मीट्रिक टन तक रह गया।

उर्वरक और रसायन मंत्रालय के अनुसार, डीएपी और अन्य उर्वरकों का कम से कम 50 फीसदी देश में उत्पादित किया जाता है। लेकिन इनके निर्माण के लिए आवश्यक पुर्जे विदेशों से आयात किए जाते हैं।

इन उर्वरकों की कीमत में भी वृद्धि देखी गई है। उर्वरक और रसायन मंत्रालय के एक अगस्त बुलेटिन के मुताबिक एक मीट्रिक टन डीएपी की कीमत 2020 में $ 336 (25,155 रुपये) थी। यह कीमत बढ़कर 641 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन (47,990 रुपये) हो गई।

इसी तरह, यूरिया की कीमत पिछले साल के 261 अमेरिकी डॉलर (19,543 रुपये) से बढ़कर पिछले साल 513 अमेरिकी डॉलर/मीट्रिक टन (38,407 रुपये) हो गई।

एमएसपी दूर का सपना

चुनावी प्रदेश के कई जिलों में दौरे के दौरान किसानों ने इस न्यूजक्लिक संवाददाता को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो आश्वासन (8 फरवरी, 2021 को राज्यसभा में दिया गया) दिया था कि "एमएसपी था, एमएसपी है और एमएसपी रहेगा" वह बिल्कुल "खोखला" साबित हुआ है और केवल एक "जुमलेबाजी" है।

किसानों का कहना था कि उन्हें धान को 1,100 रुपये से 1,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचना पड़ा, जबकि 2021-22 फसल वर्ष (जुलाई-जून) के लिए इसकी सामान्य किस्म के लिए एमएसपी 1,940 रुपये प्रति क्विंटल था।

एटा जिले के रामनगर गांव के एक किसान गोरे लाल ने कहा कि उन्होंने चार एकड़ जमीन पर धान उगाया था और 60 क्विंटल पैदावार हुई थी। उन्होंने 30 क्विंटल धान 1,650 रुपये प्रति क्विंटल में बेचा और इस तरह उन्हें 10,000 रुपये का नुकसान हुआ था।

गोरे लाल ने कहा, "एमएसपी हमारे लिए दूर का सपना है क्योंकि कृषि उत्पाद और पशुधन बाजार समिति (एपीएमसी) बहुत कम खरीद करती है, और हम जैसे छोटे किसान वहां अपनी कृषि उपज बेचने में असमर्थ हैं।"

एमएसपी के प्रधानमंत्री के आश्वासन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "यह एक जुमलेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं था।"

किसान गोरे लाल ने किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) से 1.25 लाख रुपये उधार लिए हैं और नुकसान के कारण यह कर्जा लौटाने में विफल रहे हैं। उन्होंने अब सरसों की बुआई कर दी है। उन्होंने अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा "अगर आवारा मवेशी फसल को नष्ट नहीं करते हैं और मुझे अच्छे दाम मिलते हैं, तो ही मैं कर्ज चुका पाऊंगा। अगर ऐसा नहीं होता, तो मेरे पास जमीन बेचने के अलावा कोई चारा नहीं है क्योंकि उधार ली गई राशि पर चक्रवृद्धि ब्याज बढ़ रहा है।"

कई अन्य किसानों के पास भी कहने के लिए इसी तरह की कहानियां हैं।

मैनपुरी के बरनहाल प्रखंड के नगला नया गांव के राजकुमार गुप्ता ने दो एकड़ जमीन पर धान की खेती की, जिसमें उपज 15 क्विंटल रही। उन्होंने निजी मंडी में 1,620 रुपये प्रति क्विंटल पर धान बेच दिया। उन्होंने कहा इससे न तो कोई लाभ हुआ, न हानि।

इस किसान पर 2.5 लाख रुपये का केसीसी ऋण बकाया है, जिसके चलते उन्हें डिफॉल्टर घोषित कर दिया गया है क्योंकि वे किसान पिछले 10 वर्षों से इस राशि को चुकाने में असमर्थ रहे हैं। गुप्त ने बताया कि उन्हें पीएम किसान सम्मान निधि की एक भी किस्त नहीं मिली है, जिसके तहत किसानों को एक साल में तीन किस्तों में 6,000 रुपये दिए जाते हैं।

पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा को वोट देने वाले गरीब किसान गुप्ता अब कपड़े की दुकान में सेल्समैन का काम करते हैं, जहां उन्हें रोजाना 300 रुपये मिलते हैं। उन्होंने इस सीजन में गेहूं और सरसों की बुवाई की है, जिसमें से 50 फीसदी फसल चालू रबी सीजन की शुरुआत में हुई ओलावृष्टि से नष्ट हो गई है।

सतेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले साल सरसों का एमएसपी 5,500 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन उनके गांव के किसान इसे 3,700 रुपये प्रति क्विंटल पर ही बेचना पड़ा था।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

UP Elections: Fertiliser Shortage, ‘Hollow’ Promise on MSP Likely to Erode BJP’s Support Base

BJP
UP
UP elections
Poll-Bound
Assembly elections
farmers
agrarian crisis
DAP shortage
DAP
Urea
MSP
UP Farmers
Agricultural Produce
Modi government

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

अगर फ़्लाइट, कैब और ट्रेन का किराया डायनामिक हो सकता है, तो फिर खेती की एमएसपी डायनामिक क्यों नहीं हो सकती?

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

MSP पर लड़ने के सिवा किसानों के पास रास्ता ही क्या है?

मेरठ: वेटरनरी छात्रों को इंटर्नशिप के मिलते हैं मात्र 1000 रुपए, बढ़ाने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे

किसान आंदोलन: मुस्तैदी से करनी होगी अपनी 'जीत' की रक्षा

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License