NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
यूपी में और तेज़ हो सकती है ध्रुवीकरण की राजनीति
फ़िलहाल ज़मीनी स्तर पर जो स्थिति नज़र आ रही है, उसमें भाजपा के पास वर्ष 2017 के विधानसभा व 2019 के लोकसभा वाले आक्रामक तेवर में लौटने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
 अफ़ज़ल इमाम
20 Feb 2022
यूपी में और तेज़ हो सकती है ध्रुवीकरण की राजनीति

यूपी में दो चरणों की 113 सीटों पर हुई वोटिंग में लोगों का जो मूड दिखाई पड़ा है, उससे सत्ताधारी भाजपा का हाथ-पाँव फूलना स्वाभाविक है। यही कारण है कि तीसरे चरण की वोटिंग से पहले मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से लेकर कुछ विधायक व सांसद भड़काऊ बयानबाजी पर उतर आए हैं। स्वयं मुख्यमंत्री ने 10 मार्च के बाद बुलडोजर चलाने और गर्मी उतारने की धमकी फिर से दी है। दूसरी तरफ उनका एक विधायक दाढ़ी नोच कर चुटिया बनने की बात कह रहा है तो गोंडा का एक बाहुबली सांसद तो चुनावी सभा में खुल्लम-खुल्ला लोगों को धमका रहा है- ‘सोच लो, यूपी में ठोको बाबा- बुल्डोजर बाबा की सरकार है...।’ इसी तरह कोई पाकिस्तान भेजने तो कोई लाउडस्पीकर उतारने की बात कह रहा है। इन नेताओं के वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं। जिस मकसद से उन्होंने यह बयान दिया था, वह तो पूरा ही हो रहा है। दूसरी तरफ वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए गोदी मीडिया पर हिजाब मुद्दे को लेकर बहस तेज कर दी गई है। इस मामले को कभी अफगानिस्तान से जोड़ा जा रहा है तो कभी संविधान विरोधी बताने की कोशिश की जा रही है। गोदी के एंकर तो कई बार धमकी भरी भाषा का भी इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे हैं। टीवी पर हर दो घंटे पर हिजाब को लेकर जो कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं, उससे साफ पता चलता है कि यह सब कुछ एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है। ऐसा लगता है कि जल्द ही समान नागरिक संहिता, लव जिहाद, धर्मांतरण, मंदिर, धारा 370 व रोहिंग्या समेत कुछ और मुद्दे भी सामने आ सकते हैं।

संभव है कि पांचवें से अंतिम चरण तक हिंदुत्व का मुद्दा अपने चरम पर पहुंच जाए, क्योंकि इसी में पूर्वांचल में वोटिंग होनी है, जहां प्रदेश की करीब एक तिहाई यानी 164 सीटें हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां की 115 सीटों पर कब्जा किया था। तब सपा महज 17, बसपा 14 और कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई थी, जबकि अन्य को 16 सीटें मिली थीं। इनमें भाजपा की सहयोगी अनुप्रिया पटेल के अपना दल को 9 और ओम प्रकाश राजभर की एसबीएसपी को 4 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार राजभर सपा गठबंधन का हिस्सा हैं। सूत्रों का मानना है कि भाजपा पूर्वांचल में अपनी पिछली बार वाली स्थिति फिर से हासिल करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ेगी। अगले हफ्ते जो कुछ होने वाला है, उसका ट्रेलर अभी से दिखने लगा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी दो चरणों की वोटिंग के बाद ही फतेहपुर की रैली में श्मशान-कब्रिस्तान और रमजान की बिजली व दीपावली बिजली जैसे मुद्दे उछाले गए थे। इस बार भी तीसरे चरण का प्रचार खत्म होने से ठीक पहले योगी ने उन्नाव की रैली में ईद की बिजली और दीपावली की बिजली वाला बयान दिया है। इसके पहले वे 80 बनाम 20 फीसदी, ग़ज़वा ए हिन्द और तालिबान आदि की बात जोर-शोर कर चुके हैं। बीच-बीच में टीवी पर उनका इंटरव्यू होता है, जिसमें वे इस तरह की बातों का जिक्र जरूर करते हैं। वे 20 फीसदी वालों के लिए दंगाई, आतंकी और गुंडे आदि शब्दों का इस्तेमाल कर रहे है। साथ ही वे कानून-व्यवस्था व ‘सुरक्षा’ की बात करना नहीं भूलते हैं। सवाल उठता है कि 20 फीसदी किन लोगों के बारे में कहा जा रहा है और किन लोगों से सुरक्षा देने की बात कही जा रही है? इसे लोग अच्छी चरह समझ रहे हैं। कुछ नेताओं और गोदी मीडिय़ा की भाषा और लहजे से साफ संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में ध्रुवीकरण की राजनीति और तेज होने वाली है।

वैसे दिलचस्प बात यह है कि अब तक हुए चुनाव में कैराना पलायन, मथुरा, मुजफ्फरनगर दंगा, 80 बनाम 20 और हिजाब आदि को गरमाने की भरसक कोशिशें की गईं, लेकिन उनका जनता पर कोई असर नहीं दिखा। इसकी बड़ी वजह यह है कि पिछले 5 वर्षों में यूपी की राजनीति में इसी तरह के गैरजरूरी मुद्दे छाए रहे हैं, जिससे लोग ऊब चुके हैं। आम जनता अमन-चैन और रोजगार चाहती है, क्योंकि महंगाई, बेरोजगारी और कोरोना से हुए जानमाल के नुकसान से सभी की हालत खस्ता हो चुकी है। भाजपा डबल इंजन की बात तो जोरशोर से जरूर कर रही है, लेकिन वह आम जनता और विशेष रूप युवाओं में अच्छे भविष्य़ की कोई उम्मीद नहीं जगा पा रही है। पिछले 2 वर्षों से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई अस्त-व्यस्त हैं और नौकरियां भी नहीं निकल रही हैं। हाल के दिनों भर्ती के जो इम्तेहान हुए भी तो उनके पर्चे लीक हो गए।

दूसरे सार्वजनिक क्षेत्र की उपक्रमों के अंधाधुंध निजीकरण से लोगों में यह संदेश जा रहा है कि इससे नौकरियों के अवसर और कम हो जाएंगे। विशेष रूप से दलित और पिछड़े वर्ग के युवा चिंतित हैं कि रेलवे व पीएसयू आदि का निजीकरण होने से उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा। जिस राशन योजना का ढिंढोरा भाजपा जोरशोर से पीट रही है, उसके बारे में सभी को पता है कि इसकी मियाद मार्च तक ही है। मुफ्त कोरोना वैक्सीन, शौचालय, एक्सप्रेस वे और एयरपोर्ट आदि का प्रचार भी वोटरों पर कोई खास असर नहीं डाल पा रहा है। अनाज और वैक्सीन आदि के मुफ्त होने का दावा तो भाजपा के प्रवक्ता ही टीवी पर बैठ कर खारिज कर दे रहे हैं। जब उनसे तेल के दाम और महंगाई पर प्रश्न पूछा जाता है तो उनका जवाब होता है कि सरकार टैक्स नहीं लेगी तो अनाज व वैक्सीन जैसी योजनाएं कैसे चलेंगी? यानी वे सीधे तौर पर स्वीकार कर रहे हैं कि सरकार इन योजनाओं के लिए जनता से ही पैसे ले रही है। 

वहीं दूसरी तरफ़ सपा नीत गठबंधन और कांग्रेस जैसी पार्टियां जनता से सिर्फ ऐसे वादे कर रही हैं, जो व्यवहारिक लग रहे हैं। साथ ही विपक्षी नेताओं ने महंगाई, बेरोजगारी व आम जनता से जुड़े अन्य जरूरी मुद्दों को मजबूती से पकड़ रखा है और वे सांप्रदायिक एजेंडे या अन्य शगूफों के जाल में नहीं फंस रहे हैं। सपा नेता अखिलेश यादव ने तो युवाओं को नौकरी देने, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने और गरीबों के लिए अनाज योजना को पूरे 5 साल चलाने समेत कई आकर्षक घोषणाएं की हैं। इन्हें लेकर लोगों के बीच चर्चा भी हो रही है। 

फिलहाल जमीनी स्तर पर जो स्थिति नजर आ रही है, उसमें भाजपा के पास वर्ष 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा वाले आक्रामक तेवर में लौटने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने बचे हुए चुनावों के लिए नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार की है। भाजपा के तरकश में कौन-कौन से तीर हैं! इसका अंदाजा विपक्ष को अच्छी तरह है। अब यह देखना होगा कि वह उसका मुकाबला किस तरह करता है?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Uttar Pradesh elections
BJP
Yogi Adityanath
mayankeshwar singh
bjp leaders statements
Hate politics
bjp hindutva politics

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • North Bengal
    डॉ सुखबिलास बर्मा
    उत्तर बंगाल के राजबंशियों पर खेली गई गंदी राजनीति
    14 Jan 2022
    भाजपा और टीएमसी दोनों ही राजबंशी के उच्च मध्यम वर्ग के एक तबके की भावनाओं को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो अक्सर राजनीतिक नेताओं द्वारा निभाए गए झांसों में विश्वास करते हैं। 
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    नफरती धर्म संसद पर कार्रवाई क्यों नहीं ?
    14 Jan 2022
    आज के एपिसोड में अभिसार बात कर रहे हैं कि जिस तरह धर्म संसद में नफरती बयान दिए गए और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया, सरकार ने अब तक इस मुद्दे पर चुप्पी क्यों साध रखी है ?
  • Michael Lobo Resignation
    राज कुमार
    गोवा चुनावः डेढ़ महीने में एक चौथाई विधायकों का इस्तीफ़ा
    14 Jan 2022
    गोवा में दिसंबर 2021 से लेकर अब तक 10 विधायक इस्तीफा देकर दल बदल कर चुके हैं। इस समय गोवा में क्या चुनावी हलचल है? क्या घटनाक्रम चल रहा है? आइये! नज़र डालते हैं।
  • south africa
    पवन कुलकर्णी
    श्रमिक संघों ने दक्षिण अफ्रीकी डेयरी दिग्गज पर पेट्रोल बम हमले करवाने और धमकाने के आरोप लगाये
    14 Jan 2022
    इन धमकियों और खतरों के बीच, क्लोवर में श्रमिकों की कार्यवाई को कर्मचारी एकजुटता के साथ-साथ नागरिक समाज की ओर से इसके बहिष्कार अभियान को मिलते बढ़ते समर्थन से और अधिक मजबूती प्राप्त हुई है। 
  • India State of Forest Report 2021
    सत्यम श्रीवास्तव
    भारत में वनों की स्थिति पर भारतीय वन सर्वेक्षण की 2021 की रिपोर्ट: आंकड़ों पर एक नज़र 
    14 Jan 2022
    देश के प्राकृतिक जंगलों का घनत्व और दायरा सिमटा जबकि प्लांटेशन और कृत्रिम हरियाली का मामूली विस्तार हुआ 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License