NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
भारत
राजनीति
क्या योगी सरकार NSA जैसे क़ानून का बेज़ा इस्तेमाल कर रही है?
एक मीडिया इन्वेस्टिगेशन में खुलासा हुआ है कि रासुका यानी एनएसए लगाने के लिए प्रदेश भर में एक ही तरह के आधारों का इस्तेमाल किया गया है। खुद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के दुरुपयोग का हवाला देते हुए 120 में 94 आदेशों को रद्द कर दिया है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
07 Apr 2021
क्या योगी सरकार NSA जैसे क़ानून का बेज़ा इस्तेमाल कर रही है?
Image Courtesy: The Indian Express

कॉपी-पेस्ट तो आपने डिजिटल दुनिया में खूब सुना होगा। लेकिन क्या कभी पुलिस की अलग-अलग एफआईआर में डिटेल्स हूबहू कट-पेस्ट होते हुए भी देखा है। बहरहाल, योगी सरकार के ‘रामराज’ में प्रशासन ने ये कारनामा भी कर दिखाया है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के कई मामलों में न सिर्फ एफआईआर का कंटेंट बल्कि डीएम ने इसे लगाने के जो आधार बताए हैं वो भी सब कुछ सेम-सेम ही हो गया है।

उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) यानी एनएसए को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज़ है। योगी सरकार द्वारा इस कानून को लगाए जाने के तरीके पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं, लेकिन अब एक मीडिया इन्वेस्टिगेशन (जांच) से खुलासा हुआ है कि रासुका लगाने के लिए प्रदेश भर में एक ही तरह के आधारों का इस्तेमाल किया गया है। खुद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रासुका के दुरुपयोग का हवाला देते हुए 120 में 94 आदेशों को रद्द कर दिया है। जिसके चलते अब योगी सरकार चौरतफा आलोचना का शिकार हो रही है।

आपको बता दें कि रासुका एक कठोर कानून है, जो सरकार को यह ताकत देता है कि वह किसी को भी बिना औपचारिक आरोपों और ट्रायल के अरेस्ट कर सकती है। हाईकोर्ट में भी इस कानून के इस्तेमाल को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं।

क्या है पूरा मामला?

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने कोर्ट में दर्ज राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के मामलों का अध्ययन किया। जिसमें ये देखा गया कि इन मामलों में एक खास तरह का पैटर्न (स्वरूप) है। इंडियन एक्सप्रेस की इनवेस्टिगेशन के अनुसार, पुलिस और अदालत के रिकॉर्ड्स दिखाते हैं कि ऐसे मामलों में एक ढर्रे का पालन किया जा रहा था, जिसमें पुलिस द्वारा अलग-अलग एफआईआर में महत्वपूर्ण जानकारियां कट-पेस्ट करना, मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित डिटेंशन ऑर्डर में विवेक का इस्तेमाल न करना, आरोपी को निर्धारित प्रक्रिया मुहैया कराने से इनकार करना और जमानत से रोकने के लिए कानून का लगातार गलत इस्तेमाल शामिल है।

जनवरी 2018 और दिसंबर 2020 के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत निरोधात्मक डिटेंशन को चुनौती देने वाली 120 बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिकाओं में फैसला सुनाया। इनमें आरोपियों पर रासुका लगाया गया था और इसके खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी। कोर्ट ने 120 में से 94 मामलों में जिलाधिकारी के आदेश को रद्द कर दिया और आरोपियों को बरी कर दिया। ये मामले प्रदेश के 32 अलग-अलग जिलों से आए थे।

गौहत्या के आरोप सबसे ज्यादा

रिकॉर्ड्स के अनुसार एनएसए लगाने के मामले में गौहत्या का मामला पहले नंबर पर है, जिसमें 41 मामले दर्ज किए गए जो कि हाईकोर्ट में पहुंचने वाले मामलों का एक तिहाई था। इस मामले में सभी आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय के थे और गौहत्या का आरोप लगाने वाली एफआईआर के आधार पर जिलाधिकारियों ने उन्हें हिरासत में रखा था।

इसमें से 30 मामलों (70 फीसदी से अधिक) में हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई और एनएसए आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता की रिहाई का आदेश दिया। वहीं, गौहत्या के 11 अन्य मामलों में, जहां उनसे एक मामले को छोड़कर बाकी में हिरासत को सही ठहराया उनमें निचली अदालतों और हाईकोर्ट ने आरोपी को यह स्पष्ट करते हुए जमानत दी कि न्यायिक हिरासत आवश्यक नहीं थी।

एनएसए लगाने के लिए एक जैसे कारणों का हवाला

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी इन्वेस्टिगेशन में पाया कि गौहत्या के प्रत्येक मामले में जिलाधिकारियों ने एनएसए लगाने के लिए लगभग एक जैसे कारणों का हवाला दिया कि आरोपियों ने जमानत के लिए अपील की थी और उनकी रिहाई हो जाती. और अगर आरोपी जेल से बाहर आ जाते तो वे दोबारा ऐसे मामलों में लिप्त हो सकते थे, जिससे कानून-व्यवस्था को खतरा पैदा हो जाता।

रिपोर्ट के अनुसार, हिरासत के 11 से अधिक मामलों अदालत ने कहा कि आदेश पारित करते समय डीएम द्वारा विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया। 13 मामलों में कोर्ट ने कहा कि एनएसए को चुनौती देने के दौरान हिरासत में रखे गए व्यक्ति को प्रभावी ढंग से खुद का प्रतिनिधित्व करने का अवसर नहीं दिया गया। इसके अलावा सात मामलों में अदालत ने पाया कि ये मामले कानून और व्यवस्था के आते हैं और इनमें एनएसए लगाने की कोई जरूरत नहीं है।

कई मामलों में गुमनाम ख़बरी की बात

कोर्ट ने कई मामलों में आरोपी को आपराधिक पृष्ठभूमि वाला भी नहीं पाया। हिरासत में लिए गए 6 मामलों को कोर्ट ने इस तरह का पाया। मामलों में कई तरह की समानता भी पाई गई है। मिसाल के तौर पर 9 मामलों में एफआईआर में दर्ज किया गया है कि पुलिस को एक गुमनाम खबरी ने बताया कि गायों को हत्या के लिए ले जाया जा रहा है।

13 मामलों में एफआईआर में इस तरह का दावा किया गया था कि गौहत्या हो चुकी है और यह खुले खेती के मैदान या जंगल में की गई है। हिरासत में लेने के 9 मामलों में जिलाधिकारी ने उस एफआईआर के आधार पर आदेश जारी कर दिया जिसमें बताया गया था कि गौहत्या किसी घर की चारदीवारी के भीतर की गई है।

5 ऐसे मामले हैं जिसमें जिलाधिकारी ने उस एफआईआर का सहारा लिया था, जिसमें कहा गया था कि गौहत्या दुकान के बाहर की गई है। गौहत्या से जुड़े 42 मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो-दो जजों की 10 बेंचों ने फैसला दिया। इसमें कुल 16 जज शामिल थे।

यूपी सरकार ने क्या कहा?

इंडियन एक्सप्रेस ने इस पूरे मामले पर उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल किया लेकिन सवालों का अखबार को कोई जवाब नहीं मिला है। अखबार ने इस बाबत विस्तृत सवाल उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव आर.के. तिवारी को भेजे। इनमें पूछा गया है कि जिलाधिकारियों द्वारा जारी किए गए आदेशों को हाईकोर्ट में रद्द किए जाने के बाद क्या कुछ सुधार किया गया है? मुख्य सचिव से यह भी पूछा गया है कि, कोर्ट के आदेश से यह नहीं लगता कि जिलाधिकारियों के रासुका लगाने के अधिकारों पर सख्त नजर रखी जाए? उनसे मामलों में सरकार द्वारा दोबारा अपील किए जाने के बारे में भी पूछा गया है।

एफआईआर के कंटेंट से लेकर डीएम के आधार तक सब सेम टू सेम

इंडियन एक्सप्रेस के अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि न सिर्फ एफआईआर का कंटेंट बल्कि डीएम ने रासुका लगाने के जो आधार बताए हैं वो भी कई मामलों में आश्चर्यजनक तरीके से एक-दूसरे से मिलते-जुलते नज़र आते हैं। उदाहरण के तौर पर रासुका के तहत हिरासत में लेने के 7 मामलों में कहा गया है कि “इलाके में डर और भय का माहौल पसर गया है।”

रासुका के तहत हिरासत में लेने के 6 मामलों में एक तरह के आधार दिए गए हैं,  “अनजान लोग जगह से भाग गए, घटना के कुछ देर बाद पुलिस पर हमला हुआ, पुलिस पर हमला होने के कारण लोग हड़बड़ा कर भागे लगे और हालात तनावपूर्ण हो गए, लोग सुरक्षित जगहों की तरफ भागने लगे, माहौल खराब होने की वजह से लोग अपने कामकाज पर नहीं जा पा रहे हैं, आरोपी की हरकत की वजह से इलाके में अमन और चैन की स्थिति पूरी तरह से खराब हो गई है।”

हिरासत के दो मामलों में रासुका का आधार “महिलाओं के घर से बाहर जाकर काम न कर पाना” और “जिंदगी की रफ्तार का कम हो जाने और जनजीवन के अस्त-व्यस्त” होने को बताया गया। इसके अलावा दो मामलों में बताया गया है कि “एक भय का माहौल बन गया, आसपास में लड़कियों के स्कूल और आस पड़ोस के घर के दरवाजे बंद हो गए।”

गौरतलब है कि बीते चार सालों में उत्तर प्रदेश में इस कानून का इस्तेमाल अक्सर सुर्खियों में रहा है। योगी सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं और लोगों पर रासुका लगाकर उन्हें कई महीनों तक जेल में रखे जाने का आरोप भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर विपक्षी दल लगा चुके हैं। रासुका के मामलों को लेकर कोर्ट लगातार सख्त टिप्पणी करता रहा है। पहले भी इस तरह की रिपोर्ट आ चुकी हैं कि रासुका जैसे कानून का बेजा इस्तेमाल होता रहा है।

UttarPradesh
Yogi Adityanath
National Security Act
Allahabad court

Related Stories

चंदौली पहुंचे अखिलेश, बोले- निशा यादव का क़त्ल करने वाले ख़ाकी वालों पर कब चलेगा बुलडोज़र?

2023 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र तेज़ हुए सांप्रदायिक हमले, लाउडस्पीकर विवाद पर दिल्ली सरकार ने किए हाथ खड़े

चंदौली: कोतवाल पर युवती का क़त्ल कर सुसाइड केस बनाने का आरोप

प्रयागराज में फिर एक ही परिवार के पांच लोगों की नृशंस हत्या, दो साल की बच्ची को भी मौत के घाट उतारा

प्रयागराज: घर में सोते समय माता-पिता के साथ तीन बेटियों की निर्मम हत्या!

उत्तर प्रदेश: योगी के "रामराज्य" में पुलिस पर थाने में दलित औरतों और बच्चियों को निर्वस्त्र कर पीटेने का आरोप

कौन हैं ओवैसी पर गोली चलाने वाले दोनों युवक?, भाजपा के कई नेताओं संग तस्वीर वायरल

यूपी: बुलंदशहर मामले में फिर पुलिस पर उठे सवाल, मामला दबाने का लगा आरोप!

भारत में हर दिन क्यों बढ़ रही हैं ‘मॉब लिंचिंग’ की घटनाएं, इसके पीछे क्या है कारण?

पीएम को काले झंडे दिखाने वाली महिला पर फ़ायरिंग- किसने भेजे थे बदमाश?


बाकी खबरें

  • modi
    अनिल जैन
    खरी-खरी: मोदी बोलते वक्त भूल जाते हैं कि वे प्रधानमंत्री भी हैं!
    22 Feb 2022
    दरअसल प्रधानमंत्री के ये निम्न स्तरीय बयान एक तरह से उनकी बौखलाहट की झलक दिखा रहे हैं। उन्हें एहसास हो गया है कि पांचों राज्यों में जनता उनकी पार्टी को बुरी तरह नकार रही है।
  • Rajasthan
    सोनिया यादव
    राजस्थान: अलग कृषि बजट किसानों के संघर्ष की जीत है या फिर चुनावी हथियार?
    22 Feb 2022
    किसानों पर कर्ज़ का बढ़ता बोझ और उसकी वसूली के लिए बैंकों का नोटिस, जमीनों की नीलामी इस वक्त राज्य में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में गहलोत सरकार 2023 केे विधानसभा चुनावों को देखते हुए कोई जोखिम…
  • up elections
    रवि शंकर दुबे
    यूपी चुनाव, चौथा चरण: केंद्रीय मंत्री समेत दांव पर कई नेताओं की प्रतिष्ठा
    22 Feb 2022
    उत्तर प्रदेश चुनाव के चौथे चरण में 624 प्रत्याशियों का भाग्य तय होगा, साथ ही भारतीय जनता पार्टी समेत समाजवादी पार्टी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। एक ओर जहां भाजपा अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना चाहेगी,…
  • uttar pradesh
    एम.ओबैद
    यूपी चुनाव : योगी काल में नहीं थमा 'इलाज के अभाव में मौत' का सिलसिला
    22 Feb 2022
    पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि "वर्तमान में प्रदेश में चिकित्सा सुविधा बेहद नाज़ुक और कमज़ोर है। यह आम दिनों में भी जनता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त…
  • covid
    टी ललिता
    महामारी के मद्देनजर कामगार वर्ग की ज़रूरतों के अनुरूप शहरों की योजना में बदलाव की आवश्यकता  
    22 Feb 2022
    दूसरे कोविड-19 लहर के दौरान सरकार के कुप्रबंधन ने शहरी नियोजन की खामियों को उजागर करके रख दिया है, जिसने हमेशा ही श्रमिकों की जरूरतों की अनदेखी की है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License