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बड़ी आबादी वाले राज्यों में बेक़ाबू कोविड के उभरते ख़तरे 
उन राज्यों में कोविड-19 के संक्रमण के मामले ख़तरनाक तौर पर बढ़ते जा रहे हैं, जिन राज्यों में भारत की 60% की आबादी रहती है, लेकिन इससे निपटने के लिए कोई सुसंगत रणनीति नहीं दिखायी देती है।
सुबोध वर्मा
03 Aug 2020
बड़ी आबादी वाले राज्यों में बेक़ाबू कोविड के उभरते ख़तरे 

भारत के लोग लगातार रसातल के हवाले होते जा रहे हैं और जैसा कि किसी दूसरे सिलसिले में कहा जाता है- जितना ही आप रसातल में जा रहे होते हैं, उतना ही वह आपको नीचे ले जा रहा होता है। देश भर में पहले से ही इस महामारी के संक्रमण के क़रीब 17 लाख मामले हैं (3 अगस्त अपडेट: संक्रमण के कुल 18,03,695 मामले ) और हर दिन इन मामलों में तक़रीबन 50,000 नये मामले और जुड़ जा रहे हैं। महामारी से हो रही मौत ने 36,000 का आंकड़ा पार कर लिया है। लेकिन,उस गंभीर स्थिति का आना अभी बाक़ी है,जिस स्थिति तक इस घातक वायरस के जाने की आशंका है।

पिछले दो महीनों में कोविड-19 मामलों को लेकर राज्य-दर-राज्य विश्लेषण से पता चलता है कि यह महामारी साफ़ तौर पर उनमें से कई राज्यों में बढ़ रही है, और संभावित रूप से कई अन्य राज्यों में तो यह बढ़ोतरी उछाल ले सकती है। कुल मिलाकर, देश की आबादी का लगभग 60% हिस्सा इन राज्यों में रहता है, जहां के रहने वालों में ज़्यादातर ग़रीब हैं, जहां बहुत कम शहरीकरण हो पाया है, जहां स्वास्थ्य सुविधायें ख़स्ताहाल हैं। इस विशाल अंदरूनी इलाक़ों में कोविड-19 के प्रवेश करने की ख़ास तौर पर आशंका है।

वे राज्य, जहां इस समय संक्रमण के दो-तिहाई मामले हैं

ऐसा क्यों है, इसे समझने के लिए आइए उन छह राज्यों से शुरू करें, जहां भारत में कुल कोविड मामलों के दो-तिहाई से अधिक मामले हैं। ये राज्य हैं- महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और दिल्ली। नीचे दिया गया चार्ट (स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े) पिछले दो महीनों, यानी जून और जुलाई के नये मामलों (साप्ताहिक रूप से जोड़ा गये मामलों) की बढ़ोतरी को दिखाता है। चूंकि ये वे राज्य हैं,जहां बहुत सारे मामले हैं, इसलिए यह आकलन करना ज़रूरी है कि इनमें महामारी के मामले कहां बढ़ रहे हैं।

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सबसे अजीब बात यह है कि अगर आप आंध्र प्रदेश पर नज़र डालें, तो यहां मामले बहुत तेज़ी से बढ़े हैं। दो महीने पहले, यह राज्य इस लिहाज से निशाने पर नहीं था, लेकिन अब यह एक हॉटस्पॉट बन चुका है। इससे पहले, संभव है कि निवारक उपायों का कुछ असर रहा होगा या फिर बाद मे ख़रीफ़ फ़सलों की बुआई के दरम्यान काम करने के लिए लोग एक साथ आये होंगे, और जिससे संक्रमण के मामले बढ़ गये होंगे। यह सब तो साफ़ नहीं है, लेकिन संक्रमण के मामले में जिस तरह से वहां बढ़ोतरी हुई है,वह चौंकाने वाली है।

तमिलनाडु में ऐसा लगा था कि इस राज्य ने इस बीमारी को नियंत्रित कर लिया है, क्योंकि जुलाई के पहले पखवाड़े में महामारी के ग्राफ़ को सपाट होते देखा गया है। लेकिन, इसके बाद संक्रमण के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। महाराष्ट्र लंबे समय से मामलों की संख्या के लिहाज से सभी राज्यों में सबसे आगे रहा है, ऐसा लगता है कि जुलाई के आख़िरी सप्ताह में यहां मामले अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। यह इस सच्चाई को छिपा लेता है कि भले ही मुंबई और पुणे में पहले के हॉटस्पॉट्स में गिरावट आयी हो, लेकिन वायरस के संक्रमण छोटे शहरों और कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहा है।

वहीं यूपी और कर्नाटक में कोविड-19 के मामलों में हो रही बढ़ोतरी जारी है। दिल्ली ही अकेली ऐसी जगह है, जहां साप्ताहिक नये मामलों में उल्लेखनीय कमी आयी है। बेशक, दिल्ली ने इस पर बहुत हद तक क़ाबू पा लिया है, ऐसा शायद इसलिए कि महामारी से निपटने के लिए उसके पास बेहतर संसाधन हैं। इसलिए, यह बहुत ही प्रत्याशित है कि एक सीमा तक बढ़ने के बाद संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी सीमित हो गयी है।

लेकिन, यूपी की स्थिति ख़तरनाक है, क्योंकि क़रीब 23 करोड़ की आबादी के साथ यह भारत का सबसे ज़्यादा आबादी वाला राज्य है, और यहां व्यापक संक्रमण का ख़तरा स्पष्ट तौर पर है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार, जो पहले संक्रमण के मामलों की कम संख्या को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही थी, अब महामारी से लड़ने की इसकी घोषित तैयारियों का इम्तिहान हो रहा है।

कगार पर खड़े राज्य

अब उन राज्यों के अगले समूह पर एक नज़र डालते हैं, जहां इस समय भारत के कुल संक्रमण के मामलों का लगभग 20% हिस्सा है। जैसा कि नीचे दिये गये चार्ट में दिखाया गया है, बिहार जुलाई से संक्रमण के मामलों की विस्फोटक बढ़ोतरी के मुहाने पर खड़ा है। इसके लिए सिर्फ़ लौटने वाले प्रवासियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। यह कम परीक्षण और मरीज़ों का पता लगाने, आइसोलेशन/क्वारांटाइन उपायों की कमियों का भी नतीजा है। अस्पतालों के बारे में जो कहानियां आ रही हैं, वे बहुत डराने वाली हैं। और इस सब के बीच, बिहार के कुछ हिस्सों में भारी बारिश से बाढ़ आ गयी है। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की तरफ़ से जबतक किसी तरह का प्रभावी हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा, तबतक 12 करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले इस राज्य में संक्रमण की लहर देखने को मिलती रहेगी।

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जुलाई की शुरुआत में तेलंगाना में संक्रमण के मामलों में भारी बढ़ोतरी दिखायी दी थी, लेकिन तब से महामारी में ठहराव देखा गया है,इसके पीछे कारण यह माना गया कि जो संख्यायें सामने आयी हैं, वह सही हैं। पश्चिम बंगाल और असम भी संक्रमण के मामले में अपने चरम पर पहुंच गये हैं और जुलाई के आख़िरी सप्ताह में संक्रमण के ग्राफ़ यहां भी सपाट दिखायी दे रहे हैं।

लेकिन, जैसा कि हमने अन्य राज्यों में देखा है, यह सब कुछ दिनों के भीतर ग़ायब हो सकते हैं। अन्य राज्यों के रिकॉर्ड को देखते हुए नये क्षेत्रों के विकसित होने और इन राज्यों में फिर से मामलों के बढ़ने का जोखिम बहुत ज़्यादा है। लेकिन, चाहे राज्य या केंद्र हो,सरकारों के सामने कोई रणनीतिक विकल्प नहीं दिखता है। जिस एकमात्र विकल्प को उन्होंने चुना है, वह लॉकडाउन (अलग-अलग स्तर का) है।

वे राज्य, जहां ज़बरदस्त उछाल की आशंका है

ऊपर जिन राज्यों की चर्चा की गयी है, उन्हें छोड़कर बाक़ी बचे सभी राज्यों में भारत के कुल संक्रमण के मामलों का लगभग 12% है। इनमें से ज़्यादातर राज्य इतने छोटे हैं कि कुल संख्या पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला है, लेकिन इन राज्यों के लोगों के लिए यह ज़िंदगी और मौत का मामला है। उत्तर-पूर्व सहित इन ज़्यादातर राज्यों में मामले बढ़ रहे हैं।

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लेकिन, राज्यों के इस अंतिम समूह में मध्य प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे अपेक्षाकृत बड़े राज्यों का समूह भी शामिल है। (नीचे चार्ट देखें) इन सभी राज्यों में आदिवासी आबादी की अच्छी-ख़ासी संख्या है और यहां बड़े-बड़े वन क्षेत्र हैं। वे सभी बहुत पिछड़े हुए हैं। वे अब तक इस महामारी की तबाही के दंश को झेल चुके हैं, लेकिन ऐसा इसलिए है,क्योंकि दूसरे इलाक़ों की तरह यहां आइसोलेशन का पालन नहीं किया गया और इन इलाक़ों में सरकारी नीति की पहुंच बहुत ज़्यादा नहीं रही।

ओडिशा ने पिछले कई महीनों से इस महामारी के फ़ैलने पर कामयाबी के साथ अंकुश लगाये रखा,लेकिन हाल के हफ़्तों में यहां संक्रमण के मामलों में अचानक उछाल देखी गयी है। इस तरह, यह तटीय राज्य साफ़ तौर पर ख़तरे के नज़दीक है, इसी तरह के ख़तरे छत्तीसगढ़ और झारखंड के सामने भी हैं।

मध्य प्रदेश भी कम संक्रमण वाले राज्यों में से एक बना रहा है, लेकिन हाल के हफ़्तों में यहां भी मामलों में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है। यह बहुत बड़ी आबादी वाला राज्य है और खराब स्वास्थ्य ढांचे के चलते महामारी को नियंत्रित करने की नीति यहां बेहद कमज़ोर है। इन क्षेत्रों में महामारी में बढ़ोतरी के अनुमान के लिहाज से आने वाले हफ़्ते अहम होंगे।

केंद्र सरकार: कथनी और करनी में फ़र्क़

संक्षेप में कोविड भारत के सबसे ज़्यादा आबादी वाले कुछ इलाक़ों में फैलने के संकेत दे रहा है और अगर जल्दी से उपाय नहीं किये जाते हैं, तो यह विनाशकारी शक्ल अख़्तियार कर सकता है, क्योंकि इनमें से ज़्यादातर राज्य नक़दी की कमी से ख़स्ताहाल हैं, यहां स्वास्थ्य की हालात बदहाल है और दुर्भाग्य से इस महामारी की रोकथाम या इस पर अंकुश लगाने के सिलसिले में इनके भीतर किसी तरह का कोई उत्साह नहीं रह गया है।

इस स्थिति में केंद्र सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, लेकिन एक बार फिर केन्द्र सरकार इस मामले के साथ बहुत ही ख़राब तरीक़े से पेश आ रही है। हालांकि इसने आपदा प्रबंधन अधिनियम के ज़रिये सत्ता पर अपनी पकड़ बानाने के लिए इस मौक़े का फ़ायदा उठाया है और मार्च में बेतरतीब तरीक़े से और वक़्त से पहले ही देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया था, लेकिन मौजूदा स्तर पर इसने लड़ाई को तक़रीबन पूरी तरह से राज्य सरकारों के हाल पर छोड़ दिया है और खुद की भूमिका को प्रतिबंध हटाने के आसपास केंद्रित विभिन्न दिशानिर्देश को जारी करने तक सीमित कर लिया है।

केंद्र ने ज़मीन पर लड़ाई को अंजाम देने को लेकर पर्याप्त पैसों के साथ राज्यों की मदद नहीं की है। सच्चाई तो यह है कि इस सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर या जीएसटी जैसे वैधानिक रूप से राज्यों को दिये जाने वाले बाध्यकारी रक़म भी राज्यों को नहीं दी है। वास्तव में, जिस समय ज़्यादा मिले-जुले प्रयासों की ज़रूरत है और ज़्यादा वित्तीय मदद की आवश्यकता है, उस समय केंद्र परिदृश्य से अचानक ग़ायब हो गया है। अगर बहुत ज़्यादा आबादी वाले और ग़रीब राज्यों में इस बीमारी के बढ़ने का ख़तरा बना रहता है,तो आने वाले हफ़्ते भी अच्छे नहीं होंगे।

 [पीयूष शर्मा और न्यूज़क्लिक डेटा विश्लेषक टीम ने इस डेटा का संग्रह करके उसे क्रमवार तरीक़े से रखा है]

 मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस आलेख को पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं

Looming Danger: Uncontrolled COVID Spread in High Population States

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