NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
आर्थिक मंदी को भी समझिए नहीं तो लाखों नौकरियों का वादा चुनावी जुमला बनकर रह जाएगा!
अर्थव्यवस्था के आंकड़े और चुनावी जीत में विपरीत संबंध दिख रहा है। भाजपा शासित केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे कुएं में चली गई है और चुनावी राजनीति में भाजपा चौके छक्के लगा रही है।
अजय कुमार
12 Nov 2020
आर्थिक मंदी
Image courtesy: SocialCops

किताबों में लिखा रहता है कि राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज तीनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। इन तीनों के बीच जब परस्पर संतुलन की खींचतान होती है तो सबका भला होता है। लेकिन अब ऐसा नहीं है। राजनीति में चुनावी राजनीति बहुत अधिक हावी हो चुकी है। चुनावी राजनीति में जिसकी जीत है वही सब कुछ है। भले अर्थव्यवस्था और समाज रसातल में क्यों ना चला जाए?

ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि हाल फिलहाल आए अर्थव्यवस्था के आंकड़े और चुनावी जीत में इसी तरह का संबंध दिख रहा है। भाजपा शासित केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे कुएं में चली गई है और चुनावी राजनीति में भाजपा चौके छक्के लगा रही है।

आरबीआई की मासिक रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट कहती है कि भारत की अर्थव्यवस्था तकनीकी तौर पर रिसेशन यानी मंदी के हालात से गुजर रही है। भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर मौजूदा समय में 0 से तकरीबन 8.6 फ़ीसदी नीचे है। जीरो से कम की विकास दर तकनीकी तौर पर कांट्रेक्शन यानी अर्थव्यवस्था के सिकुड़ने की स्थिति कही जाती है। वित्त वर्ष साल 2020-21 में लगातार दो तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था शून्य से नीचे रही है।

आरबीआई का कहना है कि भारत के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाही में शून्य से नीचे की दर से बढ़ रही है। अब आरबीआई का साफ-साफ कहना है कि लगातार दो तिमाही में शून्य से नीचे की भारतीय अर्थव्यवस्था तकनीकी तौर पर मंदी यानी रिसेशन के दौर में पहुंच चुकी है।

इससे पहले नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस के द्वारा 31 अगस्त को अप्रैल से लेकर जून तक के अर्थव्यवस्था के हालात पर आंकड़े जारी किए गए थे। इन आंकड़ों के मुताबिक भारत के अर्थव्यवस्था की रफ्तार - 23.9 फ़ीसदी आंकी गई थी। इसके बाद अब जाकर आरबीआई द्वारा जुलाई से लेकर सितंबर तक के अर्थव्यवस्था के हालात पर आंकड़े जारी किए गए हैं।

जिसके मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था टेक्निकली मंदी के दौर से गुजर रही है। अर्थव्यवस्था की भाषा में जब लगातार दो तिमाही तक अर्थव्यवस्था की रफ्तार जीरो से कम यानी कॉन्ट्रक्शन के दौर से गुजरती है तो अर्थव्यवस्था को तकनीकी तौर पर मंदी से गुजर रही अर्थव्यवस्था मान लिया जाता है।

हालांकि आरबीआई का कहना है कि अक्टूबर से दिसंबर महीने में भारत की अर्थव्यवस्था 0 से ऊपर चले जाने की संभावना बनती दिख रही है। कोरोना की वजह से दुनिया और भारत की अर्थव्यवस्था में आई खतरनाक किस्म की उथल-पुथल धीरे-धीरे ठीक हो रही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अर्थव्यवस्था को अपने हाल पर छोड़ दिया जाए। अभी भी ऐसे बहुत सारे कारक हैं जो अर्थव्यवस्था को शून्य से नीचे की विकास दर वाली स्थिति में रख सकते हैं।

अर्थव्यवस्था से जुड़े इन खबरों को पढ़कर लोगों की पहली प्रतिक्रिया होती है कि अर्थव्यवस्था का बुरा हाल कारोना की वजह से हुआ है और सरकारी संस्थाएं जैसे कि आरबीआई कह रही है कि धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा। ज्यादा चिंता की बात नहीं है लेकिन ऐसा नहीं है।

चिंता की बात जरूरी है। इसलिए जरूरी है ताकि हम जान सके कि चुनावी माहौल में 10 लाख और 19 लाख नौकरियां देने का जो जुमला पक्ष और विपक्ष की तरफ से बोला जाता है, वह कभी पूरा क्यों नहीं हो पाता? या ऐसे जुमलो की पूरे होने की संभावना बहुत कम क्यों लगती है?

याद कीजिए कोरोना के पहले की खबर कि कार से बाज़ार भरे हैं लेकिन उन्हें कोई खरीदने वाला नहीं है। पारले जी के बिस्कुट दिख नहीं रहे हैं। लेकिन सरकार यह मानने से साफ इंकार कर रही थी कि अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है। बेकारी की दर 45 साल में सबसे अधिक होकर 6.1 फ़ीसदी हो चुकी है और यह रुकने का नाम नहीं ले रही। फरवरी 2019 में यह 8.75 फ़ीसदी के रिकॉर्ड पर पहुंच गई।

साल 2013 से लेकर 2020 के बीच प्रति व्यक्ति खर्च बढ़ोतरी दर 7 फ़ीसदी सालाना रही और प्रति व्यक्ति आय बढ़ोतरी दर 5.5 फ़ीसदी रही। यानी खर्चा कमाई से ज्यादा हो रहा था। बचत कम हो रही थी। कर्ज का बोझ बढ़ रहा था। बैंक टूट रहे थे। एक दशक पहले जो कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त बचत हुआ करती थी वही बचत पिछले 10 सालों में कम पड़ लगी और कर्ज का आकार दोगुना हो गया।

यानी अर्थव्यवस्था पहले से ही डूबी हुई थी और इस डूबी हुई अर्थव्यवस्था में कोरोना महामारी आई और अर्थव्यवस्था को वहां ले गई जहां वह साल 1980 के बाद से अब तक नहीं थी।

अर्थव्यवस्था के जानकारों का कहना है कि आर्थिक शब्दावली में कहा जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था रिसेशन के दौर में पहुंच चुकी है। आसान शब्दों में समझा जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से सिकुड़ चुकी है और जहां से इसकी शुरुआत होती है उससे भी गहरी खाई में गिर चुकी है। यानी नकारात्मक स्थिति में पहुंच चुकी है। दुनिया की किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए लगातार दो तिमाही तक कॉन्ट्रक्शन की यह स्थिति बहुत खराब होती है।

तकरीबन 8 फ़ीसदी के गिरावट का साफ मतलब है कि पहले अगर भारत में 100 रुपये का सामान उत्पादित होता था तो अब केवल 92 रुपये का सामान उत्पादित हो रहा है। इसलिए सबसे पहले तो 100 रुपये के उत्पादन पर आना होगा उसके बाद आगे बढ़ने की बात होगी। इसलिए यह स्थिति बहुत खराब है।

अर्थव्यवस्था में 1 से 2 फ़ीसदी की बढ़ोतरी लाने के लिए निवेश की कितनी योजनाएं सामने आती हैं, निवेश को लेकर कितनी चर्चाएं होती हैं तो जरा सोचिए कि अगर अर्थव्यवस्था अपनी शुरुआती बिंदु से 8 फ़ीसदी नीचे गिर चुकी हो तब कितने निवेश की जरूरत होगी। यह ज़मीन में धंस जाने की तरह है।

कोविड-19 से पहले भारत की विकास दर तकरीबन 3 फ़ीसदी के आसपास थी। यहां तक पहुंचने के लिए इस साल की हर तिमाही में तकरीबन 29 से 30 फ़ीसदी के विकास दर की जरूरत होगी। जोकि पूरी तरह से असंभव दिख रहा है।

अब सवाल यह भी उठता है कि 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का अर्थव्यवस्था को कुछ फायदा हुआ या नहीं। आंकड़ों से साफ है कि 20 लाख करोड़ के नाम पर लोगों को देने के लिए प्रावधान किए गए दो से तीन लाख करोड़ रुपए का भारतीय अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं पहुंचा है। एमएसएमई, लोन मेला और कॉर्पोरेट छूट देकर अर्थव्यवस्था के इंजन को चलाने में कोई कामयाबी नहीं मिली है।

उल्टे बड़े जटिल सवाल पैदा हो गया है कि आखिर भारत की अर्थव्यवस्था उबरेगी कैसे? उबरने का एक तरीका है कि खूब निवेश हो, खूब मांग हो, खर्च हो और उत्पादन कर्ता को मुनाफा दिखे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है। लोगों को अपनी नौकरियां जाने का डर है। खर्चे पहले से भी कम किए जा रहे हैं। पैसे नहीं हैं तो निवेश भी नहीं हो रहा है। और इस तरह की स्थिति में उत्पादक को अपना मुनाफा भी नहीं दिख रहा है। इसलिए सब कुछ गड़बड़ दिख रहा है।

अर्थव्यवस्था के जानकारों का कहना है कि सरकार वहां पैसा डाले जहां पैसा मिलते ही वह बाजार में जाकर खर्च में तब्दील हो जाता है। ऐसे जगहों में सरकार को पैसे डालने चाहिए। सबसे आम आदमी की जेब में जब पैसा पहुंचेगा। वही पैसा बाजार को चलाएगा।

मौजूदा समय में सरकार के बजट की हालत यह है कि केंद्र के सकल राजस्व में इस साल 4.32 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होना है जो इस साल सार्वजनिक उपक्रम वि‍निवेश लक्ष्य (2.10 लाख करोड़ रु.) का दोगुना है। इस वित्त वर्ष में केंद्र और राज्यों का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 10-12 फीसद होगा। यानी कि 8 फीसद की न‍कारात्मक विकास दर पर दस फीसद से ज्यादा का घाटा।

बकौल सीएजी, केंद्र सरकार ने अपना कर्ज छिपाया है, इसके बावजूद सकल कर्ज (केंद्र और राज्य) जीडीपी का 85 फीसद होगा। केंद्र इस साल 12 लाख करोड़ रु. का कर्ज (बीते साल से दोगुना) उठाएगा। अर्थव्यवस्था और घाटों की जो हालत है उसमें न तो बैंक सरकारों को एक सीमा से ज्यादा कर्ज दे सकते हैं और न ही सरकारें कर्ज का बोझ उठा सकती हैं।

ऐसे में जरा सोच कर देखिए सरकार खर्चे कहां से पूरा करेगी। सरकारी नौकरियां कैसे देगी? राजनीति से जब अर्थव्यवस्था गायब हो जाएगी तो अर्थव्यवस्था को सही तरीके से चलाने के लिए दबाव कौन डालेगा? और अगर अर्थव्यवस्था लगातार पिछड़ी हुई रहेगी तो बेरोजगारी की समस्या हल करने के लिए छोड़े गए जुमले हकीकत में कैसे बदलेंगे?

Economic Recession
economic crises
Economy of India
poverty
Inflation
Rising inflation
BJP
Narendra modi
Nirmala Sitharaman

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है


बाकी खबरें

  • musahar
    तारिक़ अनवर
    यूपी चुनाव: पूर्वी क्षेत्र में विकल्पों की तलाश में दलित
    02 Mar 2022
    दलित आम तौर पर ऐसे मूक मतदाता माने जाते हैं, जो अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं का आसानी से इज़हार नहीं करते। हालांकि, इस चुनाव को नज़दीक से देखने पर इस बात के साफ़ संकेत मिल जाते हैं कि उनका झुकाव बसपा…
  • कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 7,554 नए मामले, 223 मरीज़ों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 7,554 नए मामले, 223 मरीज़ों की मौत
    02 Mar 2022
    देश में एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 0.20 फ़ीसदी यानी 85 हज़ार 680 हो गयी है।
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन युद्ध ने यूरोपियन यूनियन और अमेरिका को ईरान सौदे पर सोचने को मजबूर किया
    02 Mar 2022
    क्या नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) के विस्तार पर अमेरिका-रूस टकराव और यूक्रेन के आसपास बने हालात वियना में चल रही ईरान परमाणु वार्ता को पटरी से उतार देगी?
  • ukraine
    एपी/भाषा
    रूस-यूक्रेन युद्ध अपडेट: कीव के मुख्य टीवी टावर पर बमबारी; सोवियत संघ का हिस्सा रहे राष्ट्रों से दूर रहे पश्चिम, रूस की चेतावनी
    02 Mar 2022
    रूसी बलों ने मंगलवार को यूक्रेन के घनी आबादी वाले शहरी इलाकों पर हमले तेज करते हुए यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर के मध्य स्थित एक मुख्य चौराहे और कीव के मुख्य टीवी टावर पर बमबारी की। वहीं भारत ने…
  • बिहार : सीटेट-बीटेट पास अभ्यर्थी सातवें चरण की बहाली को लेकर करेंगे आंदोलन
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : सीटेट-बीटेट पास अभ्यर्थी सातवें चरण की बहाली को लेकर करेंगे आंदोलन
    02 Mar 2022
    पालीगंज विधानसभा क्षेत्र से सीपीआई माले विधायक संदीप सौरभ ने कहा कि वह सीटेट और बीटेटट उत्तीर्ण सभी अभ्यर्तियों के लिए सातवें चरण की बहाली के लिए 2014-21 तक सभी रिक्तियों को जोड़कर मार्च महीने में…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License