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विश्लेषण : भारत में कोविड-19 की कम मृत्यु दर का सच क्या है
देश में कम मृत्यु दर किसी सरकारी रणनीति की वजह से नहीं है बल्कि यह देश की युवा आबादी और कुछ आंकड़ों (सांख्यिकीय) की बाज़ीगरी की वजह से है।
सुबोध वर्मा
21 Aug 2020
Translated by महेश कुमार
विश्लेषण

भारत में कोविड-19 महामारी का घेरा लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसमें 19 अगस्त तक संक्रमण के कुल मामले 28 लाख (2.8 मिलियन) पहुँच चुके हैं और 53,000 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। इन हालत में भी सरकार सिल्वर लाइनिंग ढूँढने का अनोखा प्रयास कर रही है, या ऐसा शायाद वह अपनी गंभीर जिम्मेदारी से बचने के लिए कह रही है कि 20 लाख से अधिक लोग बीमारी से उबर गए है, जांच की  संख्या बढ़ गई है और करीब 3.2 करोड़ पहुँच गई है और मृत्यु दर काफी कम है। प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार कहा है कि भारत में कई अन्य देशों की तुलना में कोविड-19 की मृत्यु दर के मामले में काफी कम है, जिसका अर्थ है कि सरकार ने अपना काम अच्छा किया है।

हालांकि यह दावा सही है: कि 19 अगस्त तक, मृत्यु दर केवल 1.91 प्रतिशत रह गई थी। जबकि विश्व की औसत दर 3.5 प्रतिशत के आसपास है, लेकिन कई उन्नत देशों में मृत्यु दर बहुत अधिक है, जैसे इटली में (13.5 प्रतिशत), यूके (13 प्रतिशत), यूएस (3.1 प्रतिशत), चीन (5.3 प्रतिशत)। तो, हो क्या रहा है? भारत में मौतों का इतना कम स्तर क्यों है?

मृत्यु दर, या अधिक सही ढंग से कहा जाए तो ‘मामले की मृत्यु दर’ या सीएफआर (CFR) सभी पुष्ट मामलों या संक्रमित केसों से होने वाली मौतों का हिस्सा होता है। तो, भारत के सीएफआर का मतलब है कि मोटे तौर पर, सौ संक्रमित लोगों में से प्रत्येक में दो व्यक्ति मर जाते हैं।

अमेरिका में मौजूद नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च (NBER) ने पिछले सप्ताह एक अध्ययन को प्रकाशित किया था जिसमें शामिल शोधकर्ताओं ने कम मृत्यु दर का विश्लेषण किया है और पाया है कि भारत औसत सीएफआर (CFR) को व्यापक रूप से अलग-अलग उम्र के विशिष्ट सीएफआर में छुपाता है –यानि कम आयु के समूहों में मौत कम है, और बूढ़े समूह में मृत्यु बहुत अधिक हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने सीएफआर को एक दिन के मामलों (प्रतिशत के रूप में लिया) से विभाजित करके जिस तरह से गणना की है, उसके बारे में गंभीर संदेह व्यक्त किया है। वे प्रभावी रूप से तर्क देते हैं कि संक्रमण और मृत्यु के बीच औसत समय पर किए गए अलग-अलग अध्ययनों के अनुसार 10-18 दिन शामिल होते हैं, इसलिए सीएफआर की गणना करने के लिए 10 से 18 दिन पहले नए संक्रमणों के कारण हुई मौतों को भी इसमें जोड़ना चाहिए, न कि उस दिन के केस जिस दिन मृत्यु हुई है। बहुत तेजी से बढ़ते मामलों के कारण, जैसा कि शोधकर्ता बताते हैं कि वर्तमान में घोषित सीएफआर की तुलना में वह बहुत अधिक हो जाएगा।

विभिन्न उम्र समूहों में केस और मौतें

यह तथ्य सबको मालूम है कि नोवेल कोरोनवायरस के कारण कोविड-19 बनता है और वह बूढ़े लोगों को अधिक गंभीर रूप से प्रभावित करता है, क्योंकि बूढ़े लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है और वे अक्सर अन्य पुरानी बीमारियों से पीड़ित होते हैं या हो सकते हैं। भारत में युवा आबादी बहुतायत में है, जिसमें 41 प्रतशत लोग 19 वर्ष या उससे कम आयु के हैं, और 39 वर्ष से कम आयु के लगभग दो तिहाई लोग हैं। जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, अधिकांश संक्रमित मामले 20-39 या 40-59 वर्ष आयु वर्ग के लोगों के बीच पाए गए हैं। वास्तव में, 55 प्रतिशत मामले 39 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों में पाए गए हैं। जाहिर है, बीमारी अपेक्षाकृत युवा आबादी में काफी अधिक फैल गई है, आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि वे आबादी का बड़ा हिस्सा भी हैं और यह भी, क्योंकि वे वे लोग हैं जो काम के लिए सबसे अधिक बाहर जाते हैं इसलिए उन्हे संक्रमण होने की संभावना अधिक हैं।

COVID_19 graph1.jpg

ऊपर दिए गए चार्ट के दाईं ओर पैनल में, आयु-समूहों में मृत्यु को दिखाया गया है। यहाँ कोई भी देख सकता है कि मृत्यु दर को वृद्धावस्था में केंद्रित किया गया हैं। जवान जनसंख्या का 74 प्रतिशत  (39 वर्ष की आयु तक) में कोविड-19 की वजह से होने वाली सभी मौतों में केवल 10 प्रतिशत की मृत्यु दर है, जबकि 60+ वर्ष की आयु समूह की आबादी में यह सिर्फ 9 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें सबसे अधिक यानि 53 प्रतिशत सभी मौतों का हिस्सा है। 

नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च (NBER) अध्यन के शोधकर्ताओं ने 8 जुलाई को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई आयु वार मामलों और मौतों के आधिकारिक आंकड़ों का इस्तेमाल किया है, और इसे 10 वर्ष के आयु समूह को हासिल करने के लिए पहले के अध्ययन के साथ प्रक्षेपित किया है। अधिक स्पष्टता के लिए, इन्हे 20 साल के आयु वर्ग के चार्ट में दिखाया गया हैं। अजीब ढंग से स्वास्थ्य मंत्रालय केवल विशिष्ट रूप से और यादृच्छिक रूप से उम्र के विशिष्ट डेटा को दिखाता है, जोकि मजबूत विच्छेदन या सूक्ष्म परीक्षण के लिए किसी तरह का स्कोप नहीं छोड़ता है जिससे देश में महामारी से लड़ने के बेहतर तरीके ईज़ाद किए जा सके।

केस और मौतें: दोनों ही सरकार की विफल रणनीति का नतीजा हैं 

उम्र के साथ इसका संबंध स्पष्ट है- कम उम्र के समूह में अधिक मामले (क्योंकि वे संख्या में अधिक हैं इसलिए वे वायरस के संपर्क में अधिक आते हैं) लेकिन वृद्धावस्था में वायरस अधिक घातक हो जाता है (क्योंकि वे शारीरिक रूप से अधिक कमजोर होते हैं)।

इसे स्पष्ट करने के लिए, हम कुछ अतिरिक्त आयामों को सामने लाते हैं, नीचे दिए गए चार्ट को देखें, जो आयु-समूहों में होने वाली मौतों के मामलों की तुलना करते हैं। 60+ वर्ष आयु वर्ग में, भारत के पुष्ट मामलों में उनकी संख्या सिर्फ 15 प्रतिशत हैं लेकिन कोविड-19 के कारण 53 प्रतिशत मौतें हुई हैं। अगले कम आयु-वर्ग (40-59 वर्ष) में दोनों पहलू अधिक संतुलित हैं- यहाँ सभी मामलों की संख्या 31 प्रतिशत है और सभी मौतों की संख्या 37.5 प्रतिशत है। अब 20-39 वर्ष की आयु समूह में जाते हैं तो मामला थोड़ा उल्टा या तिरछा हो जाता है। इस समूह में सभी मामलों की संख्या 43 प्रतिशत हैं, लेकिन सभी मौतों की सख्या केवल 8 प्रतिशत हैं। 0-19 वर्ष के सबसे कम उम्र के आयु वर्ग में भी मामला समान रूप से तिरछा या उल्टा है- यहाँ सभी मामलों की संख्या 12 प्रतिशत है जबकि सभी मौतों की संख्या मात्र 2 प्रतिशत से भी कम है।

COVID_19 graph2.jpg

क्या कोविड के मामलों और मौतों के इस वितरण में सरकार किसी भी तरह की खुद की उपलब्धि का दावा कर सकती है? मामलों की संख्या वायरस से लड़ने में सरकारी रणनीति की निवारक या रोकथाम नीति के परिणाम का प्रतिनिधित्व करती है। स्पष्ट रूप से, मोदी सरकार इसके रोकथाम में विफल रही  है क्योंकि पिछले छह महीनों में कोविड के सभी मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, हाल के हफ्तों में तो यह और अधिक तेजी से बढ़ी है। और, इस वाइरस ने उन लोगों को अधिक प्रभावित किया है, जिन्हें घर से अधिक बाहर निकलना पड़ता है क्योंकि सरकार ने उन गरीबों को आर्थिक सहायता देने से इंकार कर दिया है जो बिना काम के घर पर नहीं बैठ सकते हैं– यानि गरीब और लाचार तबका।

मौतों की संख्या सरकार की रणनीति की दूसरी व्यवस्था की विफलता का परिणाम है- यानि महत्वपूर्ण देखभाल के लिए पर्याप्त, सस्ती, सुलभ चिकित्सा व्यवस्था। जाहिर है, इसमें भी सरकार की रणनीति विफल रही है। या तो इसलिए कि चिकित्सा सुविधाएं सुलभ या सस्ती नहीं थी, इसलिए वृद्धावस्था में मरने वाले लोगों की संख्या अपेक्षा से कहीं अधिक है। ऐसा नहीं होना चाहिए था: तुरंत और प्रभावी चिकित्सा देखभाल से अधिक लोगों के जीवन को बचाया जा सकता था, विशेष रूप से उम्र-दराज़ लोगों को जिनकी जरूरत समाज के हर तबके को होती है। 

केस मृत्यु दर का इस्तेमाल कर यह दावा करना कि भारत कोविड-19 की लड़ाई में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और इसके लिए मोदी सरकार ने इस तरह की पूरी योजना बनाई थी, यह उनकी सोच का एक तमाशा है और कल्पना की छलांग भी है जिसका जमीनी हक़ीक़त से कुछ भी लेना-देना नहीं है। जैसा कि ऊपर दिखाया गया है, कम मृत्यु दर जनसंख्या की युवा आबादी का संयोजन है और देशव्यापी औसत बूढ़ी आबादी के बीच उच्च मृत्यु दर को छुपाता है। यह केवल मामले की इन चालों का सवाल नहीं है- बल्कि नीतिगत हस्तक्षेप इस बात पर निर्भर करता हैं कि आप डेटा कैसे एकत्र करते हैं, उसका विश्लेषण कैसे करते हैं और उसकी व्याख्या कैसे करते हैं। डेटा के भ्रामक इस्तेमाल से आम लोगों के प्रति बहुत गंभीर और हानिकारक परिणाम हो सकते हैं- क्योंकि कोविड-19 महामारी भारत को यही दिखा रही है।

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