NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
यूपी चुनावी चक्रम: जाति का चश्मा, जाति का चक्रव्यू, एक को मनाया तो दूसरा नाराज़
यूपी चुनाव को देखते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में ग़ैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ग़ैर-जाटव दलितों को जगह मिली, लेकिन ब्राह्मणों और निषादों को नज़रअंदाज़ करने पर नाराज़गी बढ़ी।
असद रिज़वी
16 Jul 2021
यूपी से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए नेता।
यूपी से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए नेता। फोटो साभार: अमर उजाला

केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले ग़ैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ग़ैर-जाटव दलितों में अपना आधार मज़बूत करने की प्रयास किया हैं। जबकि नरेंद्र मोदी सरकार में प्रदेश से केवल एक ब्राह्मण चेहरा शामिल करने और निषादों को पूर्ण रूप से नज़रंदाज़ करने से राजनीति में अहम भूमिका रखने वाले इस दोनो समाजो में भाजपा के विरुद्ध नाराज़गी है।

ओबीसी व दलित समाज से 3-3 मंत्री

विधानसभा चुनाव 2022 को देखते हुए, भगवा पार्टी ने राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश से, 3 ओबीसी और 3 दलित नेताओं को केंद्रीय मंत्रीमंडल में शामिल करके गैर-यादव ओबीसी ख़ासकर कुर्मी और गैर-जाटव दलितों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है।

हालाँकि प्रदेश की आबादी का लगभग 11 प्रतिशत हिस्सा बनाने वाले ब्राह्मणों में से केवल एक मंत्री बनाये जाने से इस समुदाय में नाराज़गी है।

ब्राह्मणों की नाराज़गी

विधानसभा चुनाव 2017 में ब्राह्मणों ने भगवा पार्टी को भारी वोट दिया था। कहा जाता है कि चुनावों बाद, गोरखपुर के 'ठाकुर' नेता योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से, ब्राह्मण लगातार सत्ता के बंटवारे और ठाकुरों को दिए जाने वाले तरजीही व्यवहार में ख़ुद दरकिनार किए जाने के कारण भाजपा से नाराज़ हैं।

ब्राह्मण 80 के दशक के आख़िर से, जब हिंदू संगठनों और भगवा पार्टी ने अयोध्या आंदोलन शुरू किया था, भाजपा के समर्थक रहे हैं। हालाँकि विधानसभा चुनाव 2007 में भाजपा को मुक़ाबले से बाहर देखकर ब्राह्मण समुदाय बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पक्ष में चला गया। जिसने प्रदेश में बीएसपी की पहली पूर्ण बहुमत (206 सीटों) की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

लेकिन काफ़ी समय से चर्चा है कि ब्राह्मण समाज प्रदेश की भाजपा सरकार से नाराज़ चल रहा हैं। ब्राह्मण समाज का कहना है की वह वर्तमान परिदृश्य में स्वयं को नज़रअंदाज़ महसूस कर रहा है।

फेरबदल के पीछे की मंशा

जैसा कि कई लोगों का मानना है कि सरकार में फेरबदल के पीछे की मंशा उत्तर प्रदेश में आगामी चुनावों से पहले जाति समीकरण संतुलित करना है। इसी कारण से भाजपा ने प्रदेश गैर-ओबीसी यादवों और गैर-जाटवों के नए चेहरों को मोदी मंत्रिमंडल वरीयता दी है।

केंद्र सरकार में हाल में हुए फेरबदल में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल भी मंत्री के रूप में दो साल के अंतराल के बाद सरकार में वापस लिया गया है। सत्ता में लौटने पर 2019 में उन्हें मोदी सरकार में शामिल नहीं किया गया था। 

मंत्रिपरिषद में शामिल होने वाले अन्य लोगों में आगरा के सांसद एसपी सिंह बघेल, मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर, महाराजगंज के सांसद पंकज चौधरी, लखीमपुर खीरी के सांसद अजय मिश्रा, जालौन के सांसद भानु प्रताप वर्मा और राज्यसभा सांसद बी.एल. वर्मा हैं।

सात नए मंत्रियों में अनुप्रिया पटेल और पंकज चौधरी ओबीसी के “कुर्मी” जाति से हैं, जो प्रदेश की आबादी का 10 कुल  फीसदी हिस्सा है। कुर्मी प्रदेश में यादवों के बाद दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी आबादी हैं। इसी लिए भाजपा ने ग़ैर यादव ओबीसी पर दाँव लगाया है। राज्यसभा सांसद बी.एल. वर्मा, यूपी से तीसरे ओबीसी चेहरा हैं जो “लोधी” जाति से हैं। यादव समाज समाजवादी पार्टी के पारंपरिक मतदाता माना जाता है।

इसी तरह भाजपा ने चुनाव से पहले गैर जाटव दलितों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है। दलित यूपी की आबादी का 20 प्रतिशत हैं और उनमें से लगभग 8 प्रतिशत गैर-जाटव हैं। ऐसा देखा गया है कि “जाटव” आमतौर पर अन्य पार्टियों पर बसपा को प्राथमिकता देते हैं।

मंत्रीमंडल में कौशल किशोर “पासी” जाति (गैर-जाटव दलित समाज) के सदस्य हैं। जबकि भानु प्रताप वर्मा दलित समाज की “कोरी” जाति से हैं। केंद्र की सरकार में शामिल होने वाले आगरा के सांसद एसपी सिंह बघेल भी दलित समुदाय से हैं।

लेकिन चुनाव से पहले ब्राह्मण समाज के  केवल एक ही चेहरे लखीमपुर खीरी के सांसद अजय कुमार मिश्रा को सरकार में शामिल कर लिया गया है।

ब्राह्मणों का कहना है कि सत्ता के बंटवारे और अधिकारियों की प्रमुख पोस्टिंग में भाजपा ने ठाकुर, ओबीसी और दलितों को प्राथमिकता दे रही है। बता दें कि 2017 विधानसभा चुनाव में 56 ब्राह्मण जीते, और इनमें से 46 बीजेपी के टिकट पर जीते थे।

लेकिन फिर भी मुख्यमंत्री का पद किसी ब्राह्मण को नहीं मिला, जिसके बाद से समय-समय पर यह समाज भाजपा को अपनी नाराज़गी का अहसास करता रहता है। विपक्षी पार्टियाँ भी ब्राह्मण समाज को अपनी तरफ़ ख़ींचने कि कोशिश करती रहती हैं।

बसपा फिर दोहरना चाहती है 2007

विपक्ष को भी सत्तारूढ़ दल से ब्राह्मण समाज के मोहभंग का अंदाज़ा हो रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती, ब्राह्मण वोट बैंक को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। गैंगस्टर विकास दुबे के 10 जुलाई 2020, को हुए कथित एनकाउंटर के बाद, मायावती ने योगी सरकार पर ब्राह्मणों को परेशान करने का आरोप लगाया था। बीएसपी सुप्रीमो ने योगी सरकार को नाशना बनाते हुए कहा था कि ब्राह्मण समाज में भय का मौहल है और एक व्यक्ति के जुर्म के कारण पूरे समाज को कठघरे में खड़ा नहीं करना चाहिए।

बहुराष्ट्रीय कंपनी के कर्मचारी विवेक तिवारी की 2018 में दो पुलिसकर्मियों द्वारा लखनऊ के गोमतीनगर इलाक़े में, हत्या के बाद भी बीएसपी प्रमुख ने ऐसा ही बयान दिया था। उन्होंने कहा था "भाजपा शासन में ब्राह्मणों के खिलाफ अत्याचार बढ़े हैं।"

बसपा 2007 के अपने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को दोहराने की कोशिश कर रही है। जब वह ब्राह्मणों को लुभाने के सफ़ल हुई थी और उसे 403 सीटों वाली विधानसभा में 206 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल हुई थी।

मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी ब्राह्मणों पर नजरें गड़ा दी हैं। सपा भी पिछले एक साल से ब्राह्मण समाज को लुभाने की कोशिश कर रही है।

भगवान परशुराम की मूर्ति

पूर्व मंत्री और सपा नेता डॉ. अभिषेक मिश्रा ने पिछले साल परशुराम जयंती पर छुट्टी खत्म करने को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधा था। डॉ. मिश्रा ने 2022 में पार्टी के सत्ता में आने पर राज्य के सभी 75 जिलों में भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापित करने का वादा किया।

डॉ अभिषेक मिश्रा ने न्यूज़क्लिक से कहा कि वर्तमान समय में प्रदेश में ब्राह्मण बहुत दयनीय स्थिति में है। भाजपा शासित राज्य में ब्राह्मण उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। पूर्व मंत्री डॉ मिश्रा ने कहा कि हाल ही में “ब्लॉक प्रमुख चुनाव के नामांकन के दौरान, सिद्धार्थनगर में पूर्व विधानभवन सभापति माता प्रसाद पांडे के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं ने मारपीट की थी। लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा के किसी नेता ने क़द्दावर ब्राह्मण नेता के साथ हुई अभद्रता ख़िलाफ़ आवाज नहीं उठाई।”

सपा के ब्राह्मण नेता ने कहा कि थाना (थाना)-तहसील स्तर से लेकर सत्ता के शीर्ष तक ठाकुर समाज का क़ब्ज़ा है। पुलिस,नौकरशाह और मंत्री कोई भी ब्राह्मणों की शिकायतें नहीं सुन रहे हैं। डॉ. मिश्रा ने सवाल किया कि “मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि उसने केवल ब्राह्मणों के हथियार लाइसेंस की रिपोर्ट क्यों मांगी थी, अन्य समुदायों की क्यों नहीं? 

स्वयं को ब्राह्मण नेता बताने वाले कहते हैं कि उनके समाज ने 2017 विधानसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर भाजपा का समर्थन किया था। लेकिन योगी आदित्यनाथ के हाथों में सत्ता की बागडोर जाने के बाद उनकी सभी उम्मीदें ख़त्म हो गईं।

ब्राह्मणों को बनाया निशाना

ब्राह्मण समाज का नेतृत्व का दावा करने वाली संस्था, अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा (आरए) के अध्यक्ष राजेंद्र नाथ त्रिपाठी ने कहा कि राज्य सरकार ब्राह्मण समाज के सजनितिक क़द को कम करने की कोशिश कर रही है। त्रिपाठी ने कहा कि ब्राह्मणों को हर मोर्चे पर निशाना बनाया गया है, उन्हें मुठभेड़ों में मारा जा रहा है और सत्ता के गलियारों में दरकिनार किया जा रहा है।

हालांकि बता दें कि प्रदेश में, उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, क़ानून मंत्री बृजेश पाठक और डॉ. रीता बहुगुणा जोशी सहित कुछ शीर्ष मंत्री भी ब्राह्मण समुदाय से आते हैं।

लेकिन डॉ. दिनेश शर्मा और डॉ. रीता बहुगुणा जोशी दोनों ने कभी भी स्वयं को ब्राह्मण समाज का नेता नहीं बताया। जबकि बसपा से भाजपा में आये, प्रदेश के कानून मंत्री बृजेश पाठक, ब्राह्मण समाज का नेता होने का दावा करते हैं।

निषाद समाज की नाराज़गी

उधर, मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में जगह न मिलने पर निषाद समुदाय ने भी नाराज़गी दिखाई है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने अपने बेटे और सांसद प्रवीण निषाद को सरकार में शामिल नहीं किए जाने पर निराशा व्यक्त की है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने कहा कि “अगर अपना दल (सोनेलाल) की अनुप्रिया पटेल को मंत्री पद मिल सकता है, तो निषाद पार्टी के सांसद प्रवीण निषाद को क्यों नहीं?

'मछुआरों के राजनीतिक गॉडफादर' होने का दावा करने वाले निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने आक्रामक लहजे में कहा कि भाजपा निषाद समाज के साथ सौतेला व्यवहार करने का ख़ामियाज़ा, भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतेगी। 

उल्लेखनीय है कि प्रवीण निषाद संत कबीर नगर से सांसद हैं। प्रवीण निषाद ने 2018 के उपचुनाव में सपा उम्मीदवार के रूप में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ग्रह जनपद गोरखपुर से भाजपा को हराया था। बाद में, उनकी पार्टी ने 2019 के आम चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन किया।

वर्तमान विधानसभा में,निषाद पार्टी का यूपी विधान सभा में एक विधायक है। यूपी में, "निषाद" शब्द 17 ओबीसी समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है, जिनके पारंपरिक व्यवसाय नदियों पर केंद्रित हैं, जैसे मल्लाह (नाविक) और मछुआरे आदि। संजय निषाद ने दावा है कि निषाद समाज की प्रदेश में आबादी लगभग 14 से 17 प्रतिशत है, जो क़रीब 152 विधानसभा सीटों पर महत्वपूर्ण असर रखती है।

क्या कहती है भाजपा

हालांकि भाजपा ब्राह्मण और निषाद दोनों समुदायों की शिकायतों को ख़ारिज करती है। पार्टी नेता नरेंद्र राणा कहते हैं कि बीजेपी जाति आधारित पार्टी नहीं है, हम सभी जातियों के साथ समान व्यवहार करते हैं। राणा ने कहा कि भाजपा पार्टी सभी समुदाय को सुरक्षा प्रदान कर रही है। भाजपा ने प्रदेश कि सभी जातियों और समुदायों को सरकार में  समान हिस्सेदारी दी है।

राज्य की भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ ब्राह्मणों में निषादों का बढ़ता गुस्सा 2002 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा राज्य के लोगों को भी राज्य में कोविड -19 की दूसरी लहर और "कुप्रबंधन" को देखते हुए मतदान करते है, तो भाजपा को बड़ा नुक़सान हो सकता है।

इसके अलावा अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण लिए ख़रीदी गई ज़मीनों में हुए कथित घोटाला से जन्मी नाराज़गी और पार्टी की अंदरूनी कलह भी भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है। कहा यह भी जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के क़रीबी अरविंद कुमार शर्मा को प्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किये जाने से भूमिहार समाज में भी प्रदेश में भाजपा से नाराज़गी है।

UttarPradesh
UP ELections 2022
Yogi Adityanath
yogi government
BJP
Religion Politics
caste politics
communal politics

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License