NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
उत्तराखंड में भाजपा की जीत के बाद सांप्रदायिक अभियान जारी
प्रदेश के चुनावी नतीजों ने न सिर्फ प्रचार अभियान, बल्कि पहाड़ी राज्य को भी सांप्रदायिक ज़हर में डुबो दिया है। यहां मुसलमान पीड़ा और भय में जी रहे हैं।
रश्मि सहगल
24 Mar 2022
Translated by महेश कुमार
bjp

देहरादून की रहने वाली वकील रजिया बेग, जो उत्तराखंड अल्पसंख्यक पैनल की पूर्व सदस्या हैं,  तब वह डाक पत्थर के एक हॉलिडे रिसॉर्ट में फंस गई थीं, जब भारतीय जनता पार्टी के विधायक मुन्ना सिंह चौहान की "विजय परेड" निकाल रही थी। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी की सत्ता में वापसी का जश्न मनाते हुए, भगवान राम के नारों के बीच, बड़ी भीड़ खुले तौर पर मुस्लिम विरोधी नारे लगा रही थी। वे कहती हैं, ''भाजपा के बारे में हमने अभी तक जो भी सुना था, यह उससे कहीं अधिक डराने वाला है।''

संविधान का जो भी औचित्य आज भी मौजूद हैं, वह इस परेड से गायब था। उत्तराखंड पुलिस ने नारेबाजी रोकने का प्रयास तक नहीं किया। वर्तमान में देहरादून में एक कानूनी फर्म चलाने वाले उत्तराखंड बार काउंसिल की पूर्व अध्यक्ष बेग याद करती हैं और कहती हैं कि, "यह एक बहुत ही भयावह अनुभव है।"

जैसे-जैसे सांप्रदायिक विभाजन दिन-प्रति-दिन गहराता जा रहा है, उत्तराखंड नफ़रत भरे बयानों में डूबता जा रहा है। यह मुस्लिम समुदायों की निराशा का सबब है, जिनकी राज्य की आबादी में  14 प्रतिशत से भी कम हिस्सा है। पहली बार, समुदाय को खुले सांप्रदायिक अभियान के तहत हमलों का निशाना बनाया जा रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इसकी अगुवाई कर रहे थे। उन्होंने चुनाव अभियान के दौरान मतदाताओं को चेतावनी दी थी कि उनकी पार्टी, कांग्रेस पार्टी को चुनौती है जिसने रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने की योजना के तहत उनकी "देवभूमि" उनकी संस्कृति और धार्मिक परंपराओं को नष्ट करने की योजना बनाई थी। 

“हालांकि उत्तर प्रदेश से सटे उत्तराखंड के मुसलमानों को [उस तरह] अब तक नफरत फैलाने वाले प्रचार का निशाना नहीं बनाया गया था। बेग ने कहा, लेकिन इस बार यह बिना रोक-टोक वाला अभियान था। कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी कलह ने उनके लिए हालात और खराब कर दिए थे।”

नफ़रत का ज़हर अब प्रदेश की राजनीति के शरीर की नसों में बह रहा है। बेग कहते हैं, ''भाजपा को चुनाव जीतने के लिए हमारी जरूरत है। हम नफ़रत की वस्तुएं हैं जिन्हें उन्हें अपने प्रचार तंत्र और नफ़रत के अभियान को जीवित रखने की जरूरी है। वे कहती हैं, अगर हम यहां नहीं होते, तो उनके द्वारा एक भी चुनाव जीतने की संभावना कम हो जाती।”

उत्तराखंड के सांप्रदायिकरण की वर्तमान प्रक्रिया 2017 में तब शुरू हुई जब त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री थे। उस वर्ष, ऋषिकेश के पास रायवाला शहर में, एक स्थानीय हिंदू व्यक्ति की हत्या के बाद, ऋषिकेश और हरिद्वार के बीच मुख्य सड़क पर मुस्लिम दुकानों को कथित विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की भीड़ ने निशाना बनाया और जला दिया था। जैसे-जैसे इस अभियान ने गति पकड़ी, यह अक्सर अफवाहों के रूप में सामने आया। चूंकि हिंसा और नफ़रत को नियंत्रित करने के लिए अधिकारियों के पास कोई जुदा कहानी नहीं थी, इसलिए भीड़ ने मुसलमानों के स्वामित्व वाले छोटे व्यवसायों पर हमला करने के लिए खुद को उत्साहित महसूस किया।

राजनीतिक विश्लेषक एसएमए काजमी का कहना है कि फेसबुक पोस्ट के जरिए मुस्लिम विरोधी अफवाहें फैलाई जा रही हैं। “एक मोबाइल फोन स्टोर को निशाना बनाया गया क्योंकि लुटेरों ने दावा किया कि उसने अपने सेलफोन पर हिंदू लड़कियों के नंबर सहेजे हुए थे। एक मुस्लिम नाई की दुकान पर हमला किया गया क्योंकि उसके बाहर 'जय श्री राम' का नारा नहीं लिखा था। 2020 में, घंसाली शहर में एक हिंदू लड़की के मुस्लिम लड़के के साथ भाग जाने की अफवाह के बाद हिंसा भड़क उठीथी। “उस शहर में रहने वाले सभी मुसलमानों को शहर छोड़ने के लिए कहा गया था। बलात्कार की एक और अफवाह के बाद रुद्रप्रयाग के पास अगस्तमुनि में मुस्लिमों की दुकानें जला दी गईं थी। 

अगस्तमुनि में स्थिति तभी नियंत्रण में आई जब जिला मजिस्ट्रेट ने अफवाहों को "निराधार" घोषित करते हुए हस्तक्षेप किया था। ये कुछ उदाहरण हैं जहां हाल के वर्षों में अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले हुए हैं। राजनेताओं ने इस नफ़रत फैलाने वाले विमर्श को राज्य में खुलेआम फैलाया है। उदाहरण के लिए, बद्रीनाथ से भाजपा के विधायक महेंद्र भट्ट ने एक फेसबुक पोस्ट में लोगों से मुसलमानों से नहीं बल्कि हिंदू व्यापारियों से सब्जियां खरीदने के लिए कहा था। इस घृणा अभियान की परिणति पिछले साल हरिद्वार में आयोजित तथाकथित धर्म संसद में हुई थी, जहां नरसिंहानंद सरस्वती के नेतृत्व में हिंदू संतों ने "20 मिलियन मुस्लिम आबादी को खत्म करने" का आह्वान किया था।

देहरादून की रहने वाली नसरीन जहां बेगम, एक गृहिणी, स्वीकार करती है कि वह नफ़रत की बढ़ती आग से डरती है। वह पुछती हैं कि, "इस नफ़रत फैलाने वाले अभियान का अंतिम उद्देश्य क्या है? सरकार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के अपने लक्ष्य को पहले ही हासिल कर चुकी है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि टिहरी जिले के गढ़वाल और नंदप्रयाग के गांवों में, जहां मुसलमान पीढ़ियों से रह रहे हैं, उन्हे इस तरह की नफरत का सामना करना पड़ेगा।”

नसरीन का कहना है कि देहरादून में वह ऐसे लोगों को जानती हैं जो मुस्लिम किरायेदार नहीं चाहते हैं, और ऊपर से “संस्थागत भेदभाव भी बढ़ रहा है।" वे बढ़ती बेरोजगारी के बारे में ज्यादा चिंतित हैं, खासकर शिक्षित युवाओं के बीच, लेकिन सत्ताधारी पार्टी की प्राथमिकताएं वास्तविक मुद्दों के विपरीत हैं। वे पुछती हैं कि, “एम-टेक की डिग्री प्राप्त करने वाले युवाओं के सामने केवल सब्जियां बेचने का एकमात्र अवसर खुला है। क्या यह एक व्यवहार्य विकल्प है?" 

उत्तराखंड में कई लोगों को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद स्थिति शांत हो जाएगी। “लेकिन मुस्लिम विरोधी उन्माद जिसे कश्मीर फाइल्स [फिल्म] द्वारा जानबूझकर बढ़ाया गया है, ने ऐसी उम्मीद पर पानी फेर दिया है। वे पुछती हैं कि, क्या हाशिमपुरा दंगों या गोधरा दंगों पर ऐसी फिल्म बनने दी जाएगी? 

रुड़की शहर के पास मंगलौर के रहने वाले शिक्षाविद् और कृषि विज्ञानी फाजी-उर-रहमान एक कट्टर कांग्रेसी हैं। आज, उन्हें डर है कि नफ़रत का प्रचार बढ़ेगा क्योंकि भाजपा सभी बाधाओं को पार करते हुए सत्ता में लौट आई है। वे कहते हैं, ''उत्तराखंड में सत्ता विरोधी लहर थी, फिर भी चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में बीजेपी लोगों को अपने पक्ष में कर लिया था।' उनका मानना है कि यह तब हुआ जब कांग्रेस नेता हरीश रावत ने मुसलमानों के लिए जुम्मे की छुट्टी देने से इनकार कर किया था। 

भाजपा ने रावत की टिप्पणी को हथियार बना लिया, क्योंकि अपने आलोचकों और प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए केवल "मुस्लिम" शब्द ही काफी था। इसके नेताओं ने रावत और अन्य कांग्रेस पार्टी के नेताओं को हिंदुओं की कीमत पर मुस्लिम हितों को बढ़ावा देने के लिए देशद्रोही के रूप में चित्रित किया। भाजपा ने मुख्यमंत्री के रूप में रावत के कार्यकाल के दौरान कथित तौर पर भेजे गए एक पत्र को भी जारी किया। इस पत्र में एक मुस्लिम युवक ने जाहिर तौर पर रावत से उत्तराखंड में मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थापित करने का अनुरोध किया था। फाजी उर-रहमान ने कहा, "कांग्रेस को इस अभियान का जोरदार खंडन करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।" उन्होंने कहा, "एक अंधकारमय भविष्य हमारा और हमारे परिवारों का इंतजार कर रहा है।"

रानीखेत के एक मुस्लिम प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'हमें दूसरी श्रेणी का नागरिक बना दिया गया है। अगला कदम हमें सबसे नीच बनाना और हमारी नागरिकता छीनना होगा।" उनकी टिप्पणी उस भय का स्पष्ट प्रतिबिंब है जिसका समुदाय आज सामना कर रहा है।

फल-विक्रेता, बिलाल कुरैशी, जो राजनीतिक घटनाक्रमों को बारीकी से देखते हैं, ने कहा, “यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के प्रमुख ने भी भारत में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने और उत्पीड़न के बारे में चिंता जताई है। जाहिर है, हम डरे और सहमे हुए हैं। समस्या यह है कि हम अपने उत्पीड़कों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की स्थिति में भी नहीं हैं क्योंकि प्रशासनिक तंत्र हमारे प्रति बिल्कुल भी सहानुभूति नहीं रखता है।”

बड़े स्तर पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के बावजूद, सत्तारूढ़ सरकार दबाव बनाए रखना चाहती है। बहुसंख्यकवादी हिंसा के बारे में सबसे बुरी बात यह है कि यह मुस्लिम समुदाय को कलंकित करती है, जो सामूहिक लक्ष्यीकरण और सजा के बराबर है। बदले में, यह सभी प्रकार की हिंसा को भड़काता है। और जब इस किस्म का लक्ष्यीकरण दंडरहित या बिना डर के हो जाता है, तो यह कानून के शासन को नष्ट कर देता है, जो सभी नागरिकों का अधिकार है।

लेखिका एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

In Uttarakhand, Communal Campaign Marches on After BJP’s Win

Communal Campaign
BJP Uttarakhand
Muslims in Uttarakhand
HARISH RAWAT
Kashmir Files
Dharam Sansad
majoritarian violence

Related Stories

RTI क़ानून, हिंदू-राष्ट्र और मनरेगा पर क्या कहती हैं अरुणा रॉय? 

केजरीवाल का पाखंड: अनुच्छेद 370 हटाए जाने का समर्थन किया, अब एमसीडी चुनाव पर हायतौबा मचा रहे हैं

2024 में बढ़त हासिल करने के लिए अखिलेश यादव को खड़ा करना होगा ओबीसी आंदोलन

नफ़रती सिनेमाई इतिहास की याद दिलाती कश्मीर फ़ाइल्स

उत्तराखंड में भाजपा को पूर्ण बहुमत के बीच कुछ ज़रूरी सवाल

उत्तराखंड चुनाव: कांग्रेस ने Deliver किया है भाजपा ने नहीं : हरीश रावत

तबाही का साल 2021: भारत के हिस्से में निराशा, मगर लड़ाई तब भी जारी रहनी चाहिए

असल सवाल इन धर्म संसदों के औचित्य का है

नगालैंड में AFSPA 6 महीने बढ़ा, नफ़रती कालीचरण गिरफ़्तार और अन्य ख़बरें

उत्तराखंड की पॉलिटिकल कॉमेडी/ट्रेजडी!: खूब हंसे हरक और धामी और ‘समंदर में तैरने’ निकले हरीश रावत


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License