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आंदोलन
अमेरिका
अमेरिका में नस्लवाद-विरोध तेज़ होने के साथ प्रदर्शनकारियों पर हिंसा बढ़ी
प्रदर्शनकारियों को नुकसान पहुंचाने के इरादे से उनके बीच कार घुसाने की कम से कम दो घटनाओं में एक व्यक्ति की मौत हो गई। इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई जारी है।
पीपल्स डिस्पैच
27 Jul 2020
अमेरिका में नस्लवाद-विरोध तेज़

जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के दो महीने बाद पुलिस और क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों की हिंसा ने पूरे अमेरिका में विरोध प्रदर्शन को तेज़ कर दिया है। शनिवार 25 जुलाई को अमेरिका में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन हुआ। ऑस्टिन शहर में निकाले गए ब्लैक लाइव मैटर मार्च में शामिल एक प्रदर्शनकारी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा है कि शूटर ने अपनी कार को इस रैली में घुसा दिया और फिर प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई। इसी तरह का एक हमला औरोरा में प्रदर्शन पर हुआ था जहां एक कार को रैली में घुसा दिया गया था।

दूसरी ओर सिएटल शहर में एक प्रदर्शन पर पुलिस ने बर्बर कार्रवाई करते हुए 45 प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया। प्रदर्शनकारियों पर इसी तरह की कार्रवाई ओमाहा शहर में हुई जहां 75 प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया गया और लॉस एंजिल्स में जहां पुलिस ने "रिफ्यूज फासिज्म" के बैनर तले एक रैली के खिलाफ "सुनियोजित चेतावनी" घोषित की और चार प्रदर्शनकारी को गिरफ़्तार किया।

प्रदर्शनकारियों पर ये हिंसा पोर्टलैंड में प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता दिखाने के राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन के दिन हुई जो शहर में संघीय क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों की हिंसा के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं।

सिएटल में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव तेज़ था क्योंकि पुलिस ने दंगा घोषित कर दिया और भीड़ को तितर-बितर करने के लिए स्टन-ग्रेनेड और काली मिर्च स्प्रे का इस्तेमाल किया। ये प्रदर्शन काफी शांतिपूर्ण थे लेकिन प्रदर्शनकारियों के एक समूह द्वारा किशोरों के लिए एक निर्माणाधीन हिरासत केंद्र में आग लगा देने और फिर आसपास के अदालत परिसर में तोड़फोड़ करने के बाद स्थिति बदल गई।

जून के बाद से व्यक्तिगत हमलावरों द्वारा नस्लवाद-विरोधी प्रदर्शनकारियों को नुकसान पहुंचाने के प्रयास बहुत बढ़ गए हैं। इसके चलते कई लोगों के घायल होने और यहां तक कि कुछ मौत के मामले सामने आए हैं। इस बीच, डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन द्वारा तैनात संघीय क़ानून प्रवर्तन द्वारा ओरेगन के पोर्टलैंड में प्रदर्शनकारियों की हिंसा और धरना ने राष्ट्रव्यापी आक्रोश को बढ़ावा दिया है।

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