NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
शिक्षा
भारत
वॉल मैगजीन कैम्पेन: दीवारों पर अभिव्यक्ति के सहारे कोरोना से आई दूरियां पाट रहे बाल-पत्रकार 
सरकारी स्कूल और कॉलेजों में शिक्षक और बच्चों द्वारा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के कुंजनपुर प्राथमिक स्कूल से वर्ष 2000 में शुरू किया गया यह कैंपेन आज उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान से होते हुए हिमाचल-प्रदेश के बारह सौ से अधिक स्कूलों में पहुंच गया है।
शिरीष खरे
30 May 2021
कोरोना की दूसरी लहर आने से पहले जब कुछ दिनों के लिए उत्तराखंड में स्कूल खोले गए तब बच्चों ने महामारी के दिनों पर अपने अनुभवों पर पत्रिका विशेषांक निकाला। फोटो साभार: सबीना खान।
कोरोना की दूसरी लहर आने से पहले जब कुछ दिनों के लिए उत्तराखंड में स्कूल खोले गए तब बच्चों ने महामारी के दिनों पर अपने अनुभवों पर पत्रिका विशेषांक निकाला। फोटो साभार: सबीना खान।

कोरोना का अदृश्य रोग हमें समाज में जीने का सलीका और दुनिया में जिंदा रहने का तरीका सिखा रहा है। सांसों का चलते रहना ही जब जिंदगी के लग्जरी होने का सबूत बन गया है तब कोरोना महामारी बता रही है कि जिंदा रहने के लिए आबो-हवा के साथ हैंडवॉश, मास्क और उचित दूरी की समझ जरूरी है। इनसे जुड़े सारे दृश्यों को बच्चों की नन्ही निगाहों और मासूम दिलों ने किस तरह देखा और दीवारों पर अभिव्यक्त किया, इसकी एक बानगी है- वॉल मैगजीन कैंपेन।

सरकारी स्कूल और कॉलेजों में शिक्षक और बच्चों द्वारा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के कुंजनपुर प्राथमिक स्कूल से वर्ष 2000 में शुरू किया गया यह कैंपेन आज उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान से होते हुए हिमाचल-प्रदेश के बारह सौ से अधिक स्कूलों में पहुंच गया है। इसके तहत छोटे बच्चे बतौर पत्रकार और लेखक पढ़ने-लिखने की आदत के अलावा सामूहिकता के मूल्य का विकास कर रहे हैं। इससे बच्चों में रटने की लत की बजाय वैज्ञानिक प्रवृति विकसित हो रही है। इस पूरी प्रक्रिया में बच्चे ज्ञान-सृजन के लिए तीन सबसे जरूरी समझी जाने वाले गुण अवलोकन, चिंतन और कल्पना का मौका मिल रहा है।

इस अभियान के शुरुआत से जुड़े शिक्षक महेश पुनेठा बताते हैं कि पिछले एक दशक में दीवार पत्रिका अभियान से जुड़े कई स्कूलों के बच्चों ने अपने-अपने गांवों में पुस्तकालय भी तैयार किए हैं। ऐसे बच्चों के लिए कोरोना लॉकडाउन में दीवार पत्रिकाएं पढ़ाई की संस्कृति को बनाए रखने का साधन बन रहीं हैं। जब कोरोना लॉकडाउन का असर हर जगह देखने को मिल रहा है तब दीवार पत्रिकाएं कम लागत में बच्चों के बीच, बच्चों द्वारा और बच्चों के लिए रचनात्मक पहल बन गई हैं। दीवार पत्रिकाएं 'घुघूती', 'एक्सप्लोरर', 'पंख', 'बाल-उद्यान', 'इतिहास-बोध', 'यादें', 'धरोहर' और 'नवांकुर' जैसे कई नामों से निरंतर निकल रही हैं।

वह कहते हैं, "एक अच्छी बात यह है कि बच्चे अपनी-अपनी दीवार पत्रिकाओं के पिछले कई विशेषांक कोरोना-काल के अनुभव दर्ज कराने के लिए निकाल रहे हैं। इसके लिए बच्चे एक योजना के तहत विषय चुनने से लेकर संदर्भ सामग्री ढूंढ़ने, उनका संकलन, लिखने, संपादन, प्रकाशन, प्रदर्शन, अवलोकन, चर्चा और सुझावों तक की एक पूरी प्रक्रिया से गुजरते हैं। दीवार पत्रिकाओं के प्रकाशन से ज्यादा महत्वपूर्ण है बच्चों द्वारा इसकी पूरी प्रक्रिया से गुजरना। यदि परीक्षा में अंकों के आधार पर भी विचार करें तो इस प्रक्रिया से गुजरने का लाभ यह हुआ है की भाषा से लेकर सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में बच्चों ने बहुत अधिक अंक हासिल किए हैं, क्योंकि कई स्कूलों के बच्चे अपनी कक्षा के पाठ्यक्रम से जोड़कर दीवार पत्रिकाएं निकाल रहे हैं।"

लॉकडाउन में डिजिटल एडिशन लॉन्च

कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन का असर जब जीवन के हर क्षेत्र में देखने को मिल रहा है तो दीवार पत्रिका अभियान भी इससे बाधित होना ही था। लेकिन, कहते हैं कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है, ऐसी स्थिति में कई बच्चे अपनी-अपनी दीवार पत्रिकाओं को डिजिटल एडिशन लाने में सफल रहे हैं।

इस बारे में नानकमत्ता पब्लिक स्कूल के शिक्षक कमलेश जोशी कहते हैं, "डिजिटल प्लेटफार्म पर काम करना आसान नहीं होता है, फिर भी कई बच्चे न सिर्फ यह सब सीख रहे हैं, बल्कि किसी प्रोफेशनल व्यक्ति की तरह काम को अंजाम भी दे रहे हैं। इस दौरान संपादक-मंडल वाट्सऐप और ईमेल के जरिए बच्चों से लेख मंगवा रहे हैं तथा यू-ट्यूब के माध्यम से पत्रिका को पाठकों तक पहुंचा रहे हैं। वॉल मैगजीन के डिजिटलकरण का ही नतीजा है कि बच्चे अपने गांव से लेकर देश-विदेश तक के समाचार-बुलेटिन डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रसारित कर रहे हैं।"

वहीं, राजकीय इंटर कॉलेज पौड़ी गढ़वाल के अध्यापक मनोहर चमोली मनु अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, "जो काम ब्लैकबोर्ड और कोर्स की किताबें नहीं कर पातीं वह काम दीवार पत्रिकाएं कर रही हैं, क्योंकि बच्चे मुद्दों के चयन से लेकर लेखों को एक फ्रेम में अच्छी तरह से प्रस्तुत करने तक की कलाओं को सीख रहे हैं। कई बच्चों में पेज डिजाइनिंग की समझ बन रही है तो कई बच्चे अच्छे पाठक के तौर पर भी इस पूरे अभियान से जुड़ रहे हैं। इससे मौलिक लेखन को ही बढ़ावा नहीं मिल रहा है, बल्कि इस प्रक्रिया में बच्चे प्रतिक्रियावादी और सहयोगी भी बन रहे हैं।"

बतौर अध्यापक उन्हें इस अभियान में सबसे अच्छी बात यह लग रही है कि इससे ऐसे बच्चे भी जुड़ रहे हैं जिनके घरों में किताबें नहीं होतीं और न ही आसपास के क्षेत्र में पढ़ाई का माहौल ही होता है। ऐसे बच्चे भी यहां पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं और दीवार पर चिपकी सामग्री को पढ़ते हुए अपनी भाषाई दक्षता का विकास कर रहे हैं।"

इसी तरह, राजकीय इंटर कॉलेज के अध्यापक चिंतामणि जोशी के मुताबिक किसी स्कूल या कॉलेज के बच्चों को यदि दीवार पत्रिका निकालनी है तो उसे इस प्रक्रिया से होकर गुजरना होता है: संपादन-मंडल का निर्माण, पत्रिका का नाम, बच्चों के लिए रचनात्मक लेखन के लिए प्रारंभिक सुझाव, उनके अनुभव, उनके मन की बातें, कविता, कहानी, पहेली, चित्र, कार्टून, चुटकुले, यात्रा-वृत्तांत, संस्मरण, साक्षात्कार, कल्पना आधारित संवाद, चार्ट पर रचनाओं को चिपकाना, हस्तलिखित लेखन, सजावट और प्रस्तुतिकरण।

वहीं, राजकीय इंटर कॉलेज, मुक्तेश्वर के प्रभारी प्राचार्य दिनेश कर्नाटक बताते हैं कि दीवार पत्रिकाओं में बच्चों के लिए गणित के सूत्र, आकृतियों का ज्ञान, लोक-गीत, दादी-नानी की कथाएं, पर्वों, पर्यावरण की जानकारियों और स्थानीय कलाकृतियों के अलावा श्रम-शक्ति जैसे विषयों से जुड़ी सामग्री प्रमुखता से कवर की जा रही है। साथ ही इस अभियान के इर्द-गिर्द कई तरह की शैक्षिक गतिविधियां भी आयोजित हो रही हैं।

राजकीय इंटर कॉलेज देवलथल की दीवार पत्रिका 'मनोभाव' का विमोचन। फोटो साभार: दीवार पत्रिका अभियान

तैयार हो रही साहित्यकारों की नई पौध 

दीवार पत्रिकाओं का प्रकाशन वयस्कों को भी प्रभावित कर रहा है। एक प्रबुद्ध अभिभावक शंकर सिंह बसेड़ा बताते हैं, "बेबाकी से हमारे बाल-कलाकार समाज की घटनाओं को महसूस करते हुए ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं। इसी कड़ी में स्कूली बच्ची ज्योति कुमारी का लेख 'कड़कड़ाती ठंड और कूड़ा बीनते बच्चे' पाठकों को भीतर तक झकझोरता है। वह सवाल करती हुई पूछती है कि जिन बच्चों के मासूम चेहरे बचपन की शरारतों से खिलखिलाते होने चाहिए, उन पर अपने परिवार को पालने की परेशानियों क्यों झलकती हैं।

इसी तरह, बाल-साहित्यकार हीरा सिंह कौशल कहते हैं, "स्कूल की ज्यादातर किताबें अलमारियों में ही कैद रहती हैं, इसलिए बच्चों का बाल-साहित्य के प्रति रुझान कम ही होता है, लेकिन कई शिक्षकों ने बच्चों में साहित्यिक रुझान पैदा करने के लिए दीवार पत्रिका अभियान की शुरुआत की है जिससे साहित्यकारों की नई पौध तैयार होगी।"

इसी तरह, नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में ग्यारहवीं की छात्रा रिया चंद बताती हैं, "इन दिनों वैश्विक महामारी के कारण कुछ जगह दीवार पत्रिकाओं का प्रकाशन रुक गया है। माना कोरोना वायरस ने हमारे इस प्रयास को ठहरा दिया है, लेकिन उम्मीद है हम जल्द ही लौटेंगे, नई ताज़गी के साथ, नए विचारों के साथ।" वह अपनी कविता के माध्यम से अपने को अभिव्यक्त करती हुई कहती हैं:

लौटेंगे वे दिन 

वे दोपहरें लौटेंगी 

जब बैठा करते थे

गोल घेरे में। 

 

नहीं था कोई केंद्र में 

सब हिस्सा थे 

उस गोल घेरे का

सीखने के पहिए की तरह।

 

कोई छोर नहीं था जिसका

न अंत था कोई

अनंत बिंदुओं से बने गोले में

कुछ अलग ही बात थी! 

 

दीवारें भी हैं इंतज़ार में 

दरियां स्वागत के लिए आतुर

हैं इंतज़ार में वे दोपहरें 

कि कब लौटेंगे वे दिन, वे बातें!

(शिरीष खरे स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Coronavirus
COVID-19
Government schools
Lockdown
Wall magazine
दीवार पत्रिका

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License