NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पश्चिम बंगाल: भाजपा और तृणमूल का टकराव तेज़, हत्या और हिंसा का दौर जारी
राजनीति के जानकार मानते हैं कि यूं तो हिंसात्मक राजनीति का दौर बंगाल में कभी थमा ही नहीं, लेकिन अब इसका और विकराल रूप देखने को मिल सकता है क्योंकि राज्य का चुनाव नज़दीक है।
सरोजिनी बिष्ट
21 Oct 2020
Modi and Mamta
(फाइल फोटो) केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार : जनसत्ता

इन दिनों पश्चिम बंगाल की राजनीति में खासा उबाल है। राजनीतिक हिंसा,  हत्याएं और आरोप प्रत्यारोपों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा। एक तरफ सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस है तो दूसरी तरफ राज्य में तेजी से पैर फैला रही भाजपा। यूं तो सियासी हिंसा हमेशा से बंगाल की राजनीति का एक अहम हिस्सा रही है लेकिन इसमें दो राय नहीं कि जब से ममता सरकार सत्तासीन हुई है तब से इस सियासी हिंसा ने और विकराल रूप ले लिया है। हालांकि मुख्यमंत्री के रूप में ममता बनर्जी ने एक जुझारू, कर्मठ और हमेशा जनता के मध्य रहने वाली नेता के तौर पर अपनी छवि गढ़ी, इसमें अतिशयोक्ति नहीं लेकिन इसमें भी दो मत नहीं हैं कि  जिद्दी और हठी स्वभाव के चलते कई मौकों पर उन्हें तानाशाह होते हुए भी देखा गया है।

पिछले पांच छह वर्षों के राजनीति सफर में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा को पश्चिम बंगाल में एक कट्टर प्रतिद्वंदी के रूप में देखा जा सकता है और यही कारण है कि न तो तृणमूल भाजपा पर आरोप मढ़ने का कोई मौका गंवाना चाहती है और न ही भाजपा किसी मौके से चूकना चाहती है। ये आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला तब और बढ़ गया जब हाल ही में चौबीस परगना जिले के टीटागढ़ के पास बी टी रोड में दो बाइक सवार हमलावरों ने भाजपा नेता मनीष शुक्ला कि गोली मारकर हत्या कर दी गई। मृतक स्थानीय पार्षद भी थे। इधर हत्या की घटना हुई की उधर तृणमूल और भाजपा में जबानी जंग शुरू हो गई ।

भाजपा का आरोप है कि तृणमूल के लोगों ने ही उनके नेता की हत्या की है और इससे पहले भी होने वाली हत्याओं में तृणमूल की ही भूमिका है जबकि तृणमूल, भाजपा के इन आरोपों पर हमेशा तीखी प्रतिक्रिया देती रही है और भाजपा द्वारा ही उनके कार्यकर्ताओं पर हमले का दोष मड़ती रही है। इन्हीं हत्याओं और आरोप प्रत्यारोपों के बीच बंगाल की राजनीति में हमेशा एक उथल पुथल देखी गई।

भाजपा नेता की हत्या के विरोध में पिछले दिनों करीब एक लाख भाजपा कार्यकर्ता "नाबन्ना चलो" आंदोलन के तहत सचिवालय घेरने के लिए कोलकाता की सड़कों पर इकट्ठा हुए। फिर आखि़र भाजपा के इस प्रदर्शन को ममता बनर्जी कैसे पचा पाती, प्रदर्शनकारियों पर ममता की पुलिस ने जमकर लाठीचार्ज किया और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तो यहां तक कह डाला कि पानी में कुछ रसायन का इस्तेमाल किया गया था जिसके कारण लोगों को उल्टी हो रही थी।

बीजेपी का दावा है कि अब तक उनके 115 कार्यकर्ता राजनीतिक हिंसा का शिकार हुए हैं तो वहीं बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि तृणमूल द्वारा उनके कार्यकर्ताओं की हत्या कर पेड़ पर लटकाने का भी एक नया चलन शुरू हो गया है ताकि भाजपा के दूसरे कार्यकर्ताओं को डराया का सके। पिछले समय कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई थीं जब बीजेपी कार्यकर्ताओं का शव पेड़ से लटका मिला था। पिछले महीने हुगली जिले के गणेश रॉय और पिछले साल पुरुलिया जिले का 18 वर्षीय त्रिलोचन महतो का शव पेड़ से लटका मिला था। इन दोनों घटनाओं के लिए भाजपा ने तृणमूल पर आरोप लगाया था जबकि तृणमूल बीजेपी द्वारा उनके कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने का आरोप लगती रही है। 

अगले साल बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि यूं तो हिंसात्मक राजनीति का दौर बंगाल में कभी थमा ही नहीं लेकिन अब इसका और विकराल रूप देखने को मिल सकता है क्योंकि राज्य का चुनाव नजदीक है। यदि हम पिछले कुछ सालों में हुए विधानसभा चुनाव ( 2011, 2016) पंचायत चुनाव (2015)  और लोकसभा चुनाव   (2014, 2019) पर एक नजर डालें तो हम साफ देख सकते हैं कि इन सब चुनावों में इस कदर राजनीतिक हिंसाएं और हत्याएं हुई हैं कि दिल दहल उठता है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ें बताते हैं कि 2016 में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की 91 घटनाएं हुई और 205 लोग इसका शिकार बने। 2015 में कुल 131 घटनाएं हुईं जिनमें 184 लोग प्रभावित हुए, 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी  1100 से ज्यादा राजनीतिक हिंसा की घटनाएं दर्ज की गई  और 14 से ज्यादा लोगों की मौत हुई तो वहीं 2013 में राजनीतिक झड़पों में कुल 26 लोगों की जानें गईं।

हालांकि सियासी हिंसा और राजनीतिक हत्याएं दशकों से बंगाल की पॉलिटिक्स का हिस्सा रही हैं और इन हिंसाओं में सभी दलों ने अपने सैकड़ों कार्यकर्ताओं को खोया है। तृणमूल से पहले शासन करने वाली सीपीएम के साढ़े तीन दशकों के दौर में भी हिंसा और हत्याएं हुई इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन पिछले सात आठ सालों से जिस कदर राजनीतिक हिंसा और हत्याएं लगातार राज्य में घटित हो रहीं हैं उसने पिछले कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया और इस सच्चाई को न केवल बंगाल के विपक्षी दल मानते हैं बल्कि बंगाल की जनता भी अब खुले दिल से इस बात को स्वीकार करती है। 

सिलीगुड़ी के वरिष्ठ पत्रकार और बंगाल की राजनीति के जानकार मनोरंजन पांडेय जी कहते हैं "हमने वो दौर भी देखा जब सत्तर के दशक में कांग्रेस के शासनकाल में बंगाल में हिंसा और राजनीतिक हत्याओं का सिलसिला शुरू हुआ।" वे कहते हैं कि कांग्रेस के सिद्धार्थ शंकर रे जब 1971 में मुख्यमंत्री बने तो राजनीतिक हिंसा और हत्याएं पश्चिम बंगाल की सियासत का हिस्सा बन चुकी थी जो कांग्रेस की हार का कारण भी बनी। उनके मुताबिक इतनी हिंसा और हत्याएं देख आखिरकार बंगाल की जनता ने 1977 के विधानसभा चुनाव में सत्ता की बागडोर कांग्रेस से छीनकर लेफ़्ट फ्रंट को सौंप दी। उनके मुताबिक लेफ़्ट के आने के बाद कम से कम राजनीतिक हिंसा का दौर खत्म हुआ और राज्य में शांति स्थापित हुई जिसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की बाबरी मसजिद विध्वंस (1992) के बाद जब पूरा देश सांप्रदायिक हिंसा झेल रहा था तब भी बंगाल में शांति थी।  लेकिन सिंगूर और नंदीग्राम की घटनाओं ने लोगों के मध्य पार्टी के प्रति अविश्वास पैदा कर दिया जिसका ख़ामियाजा सीपीएम को वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में चुकाना पड़ा।

वे कहते हैं अब राज्य में जब भी कोई चुनाव आते हैं तो राजनीतिक हिंसा और हत्याओं का सिलसिला शुरू हो जाता है। अब विधानसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं और हम देख रहे हैं कि पिछले दो तीन महीनों से एकाएक बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्याओं की खबरें सामने आने लगीं। उनके मुताबिक इस समय राज्य में तृणमूल और बीजेपी की तनातनी चरम पर है, क्यूंकि बीजेपी जिस तेजी से बंगाल में फैल रही है उसने ममता को विचलित कर दिया है लेकिन बंगाल की राजनीति का अब दूसरा पहलू यह भी देखने को मिल रहा है कि सीपीएम ने भी अब अपनी राजनीतिक जमीन पुनः हासिल करने के लिए जद्दोजहद शुरू कर दी है। 

बंगाल में भाजपा के तेजी से बढ़ते प्रभाव ने तृणमूल कांग्रेस के सामने अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए एक कड़ी चुनौती तो पैदा कर ही दी है जिसका नतीजा राजनीतिक हिंसा के रूप में सामने आ रहा है। राजनीतिक के जानकार मानते हैं कि वर्ष 2011 में जब तृणमूल,  सीपीएम को परास्त कर भारी बहुमत से बंगाल की सत्ता पर काबिज हुई तो कुछ साल राज्य में शांति का दौर रहा, इसमें दो मत नहीं क्योंकि तृणमूल यह मान चुकी थी कि जब उसने सीपीएम जैसी मजबूत और भारी जनाधार वाली पार्टी को हार का स्वाद चखा दिया है तो अब उसके सामने कोई विपक्ष बचा ही नहीं जो उससे टक्कर ले सके, तब भाजपा का कोई आधार था ही नहीं और कांग्रेस का अवसान तो सालों पहले ही हो चुका था लेकिन 2014-15 से राजनीतिक दृश्य बदले लगा है। जैसे जैसे भाजपा बंगाल की राजनीति में मजबूत हो रही है वैसे वैसे अब राजनीतिक हिंसा और हत्याओं के दौर भी शुरू हो गया है और दोनों दल इन घटनाओं के लिए एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं।  ऐसा नहीं है कि तृणमूल और भाजपा के बीच हमेशा से एक तल्खी वाला नाता रहा, अटल बिहारी बाजपेयी के समय इनके रिश्तों की मधुरता किसी से छुपी नहीं है लेकिन समय के साथ साथ मधुरता कड़वाहट में बदलने लगी और उसका एकमात्र कारण है भाजपा का बंगाल में बढ़ता दबदबा और जनाधार। 

सभी दल अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं, तृणमूल अपनी सत्ता बचाए रखने की जद्दोजहद में है तो भाजपा बंगाल की बागडोर तृणमूल से छीनकर स्वयं हासिल करने की कोशिश में लगी है,  वहीं सीपीएम अपनी खोई जमीन वापस पाने की लड़ाई लड़ रही है तो कांग्रेस इस उम्मीद में है कि कम से कम इतनी सीटें हासिल कर ले कि वह भी राजनीतिक परिदृश्य में कुछ नजर आने लगे और इन सबके बीच हत्याओं का दौर भी जारी है। अब ये हत्याएं राजनीतिक हैं या नहीं यह जांच और बहस का विषय हो सकता है लेकिन बंगाल का राजनीतिक इतिहास बताता है कि जब दौर चुनाव का हो तो  हिंसा और कार्यकर्ताओं की हत्याओं का सिलसिला शुरू होना ही है। इन राजनीतिक हिंसाओं में सभी दलों ने अपने जुझारू और कर्मठ कार्यकर्ताओं को खोया है और आज आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या पश्चिम बंगाल कभी ऐसी राजनीतिक हिंसाओं और हत्याओं से बाहर निकल पाएगा या आने वाले चुनाव में और भयावह और वीभत्स रूप देखने को मिलेगा?

(सरोजिनी बिष्ट स्वतंत्र पत्रकार हैं और बंगाल की राजनीति पर क़रीब से नज़र रखे हुए हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

West Bengal
West Bengal Elections
TMC
BJP
mamta banerjee
Narendra modi
Violence in West Bengal

Related Stories

राज्यपाल की जगह ममता होंगी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति, पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने पारित किया प्रस्ताव

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    18 May 2022
    ज़िला अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए स्वीकृत पद 1872 हैं, जिनमें 1204 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं, जबकि 668 पद खाली हैं। अनुमंडल अस्पतालों में 1595 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 547 ही पदस्थापित हैं, जबकि 1048…
  • heat
    मोहम्मद इमरान खान
    लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार
    18 May 2022
    उत्तर भारत के कई-कई शहरों में 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा चढ़ने के दो दिन बाद, विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के चलते पड़ रही प्रचंड गर्मी की मार से आम लोगों के बचाव के लिए सरकार पर जोर दे रहे हैं।
  • hardik
    रवि शंकर दुबे
    हार्दिक पटेल का अगला राजनीतिक ठिकाना... भाजपा या AAP?
    18 May 2022
    गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। हार्दिक पटेल ने पार्टी पर तमाम आरोप मढ़ते हुए इस्तीफा दे दिया है।
  • masjid
    अजय कुमार
    समझिये पूजा स्थल अधिनियम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां
    18 May 2022
    पूजा स्थल अधिनयम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां तब खुलकर सामने आती हैं जब इसके ख़िलाफ़ दायर की गयी याचिका से जुड़े सवालों का भी इस क़ानून के आधार पर जवाब दिया जाता है।  
  • PROTEST
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा
    18 May 2022
    पंजाब के किसान अपनी विभिन्न मांगों को लेकर राजधानी में प्रदर्शन करना चाहते हैं, लेकिन राज्य की राजधानी जाने से रोके जाने के बाद वे मंगलवार से ही चंडीगढ़-मोहाली सीमा के पास धरने पर बैठ गए हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License