NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बंगाल में खेला होबो!
जिस हिंसा की परम्परा को ममता ने शुरू किया था, उसे आगे तक ले जाने में भाजपा हर तरह से अव्वल है। उन्माद फैलाने और समुदायों को विभक्त करने में ममता उसकी बराबरी नहीं कर सकतीं।
शंभूनाथ शुक्ल
13 Mar 2021
बंगाल में खेला होबो!

पश्चिम बंगाल में भाजपा अपने ही बनाए जाल में फँस गई है। यह सच है कि बंगाल में धार्मिक उन्माद कभी नहीं रहा, लेकिन इस बार भाजपा ने बंगाल को धार्मिक और जातीय गोलबंदी में क़ैद कर दिया है। यह गोलबंदी जितना बंगाल को नुक़सान पहुँचाएगी, उससे कहीं अधिक भाजपा और उसके परिवार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी। इसका असर पूरे देश पर पड़ेगा। क्योंकि उन्माद को फैला कर आप चुनाव तो जीत सकते हैं किंतु राजनीति नहीं कर सकते। राजनीति का मूल सिद्धांत राजनय है। अर्थात् राज चलाने की नीति। भारतीय जनता पार्टी राजनीति के क्षरण को न्योत रही है। वह राजनीति के बुनियादी सिद्धांतों को ही ख़त्म कर रही है। जब ये सिद्धांत ही नहीं बचेंगे तो सिवाय उन्माद, हिंसा, खून-ख़राबा और असहमति के स्वर को कुचल देने के सिवाय क्या बचेगा!

किसी भी समुदाय, कबीले या समाज को उस समय की मुख्यधारा में लाने का नाम राजनीति है। इसमें उन्माद और हिंसा को कोई जगह नहीं है। इसके लिए प्यार, सहानुभूति और करुणा को आधार बनाना पड़ता है। जिन श्रीराम को भाजपा अपना मुखौटा बनाए है, उन्होंने भी दक्षिण विजय के लिए इन्हीं तत्त्वों का सहारा लिया था। उन्होंने लंका की भव्यता को ठुकरा दिया था और लंका पूरे वैभव के साथ विभीषण को सौंप दी थी। वाल्मीकि रामायण में लिखा है- ‘अपि सुवर्णमयी लंका किम ते लक्ष्मण रोचते?’ (यह सोने की लंका लक्ष्मण तुमको पसन्द है?) लक्ष्मण का जवाब था- “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी!” (माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर है) यही उन्होंने किष्किन्धा में किया था जब बालि को मारने के उपरांत उन्होंने राज उसके छोटे भाई सुग्रीव के हाथों में दिया था। उन्हीं राम के नाम का इस्तेमाल भाजपा उन्माद, हिंसा और राज्य-हड़पो की अपनी कुटिल नीति को पूरा करने के लिए कर रही है। इस तरह की छल-नीति से भाजपा क्या करना चाहती है, यह शायद उसके नियंताओं को भी नहीं पता?

बंगाल पूरे भारत में अकेला ऐसा प्रांत है, जहाँ न धर्म ऊपर है न जाति न कोई समुदाय। वहाँ सबसे ऊपर है बंग भाषा और बंग संस्कृति। चूँकि भाषा, उत्पादन के साधन और क्षेत्र-विशेष के लोगों की आस्था से ही संस्कृति का विकास होता है, इसलिए बंग संस्कृति की जड़ें पूरे बंगाली समाज में बहुत गहरी हैं। क्योंकि यह बंगाल ही था, जहाँ शुरू से श्रम को महत्त्व मिला। बुनकर संस्कृति बंगाल की ही देन है। बंगाल में कोई काम हड़बड़ी में नहीं होता बल्कि उसको खूब मनोयोग से पूरा किया जाता है। कपड़ा बुनने में बंगाल ने इतनी प्रगति की कि ढाका की मलमल की ख्याति पूरे विश्व में फैल गई। जब बंगाल की दीवानी ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने हाथों में ली तो पहला काम ही यह किया कि यहाँ के पूरे कपड़ा उद्योग को ही नष्ट कर दिया। हज़ारों बुनकरों के हाथ काट दिए। ताकि उनकी लंका शायर की मिलों में बना कपड़ा भारत में बाज़ार पा सके। लेकिन अंग्रेजों ने यहाँ जितने अत्याचार किए, उतना ही बंगाल को उन्होंने आधुनिकता की तरफ़ ढकेला भी। नतीजन बंगाल में ही सबसे पहले समाज सुधार के आंदोलन चले। यहाँ के लोग सबसे पहले आधुनिक योरोप के सम्पर्क में आए और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से परिचित हुए। जिसके चलते बंगाल में रेनेसाँ आया। इसी कारण बंग भाषा पुरातन और आधुनिकता के संगम से पुष्ट हुई। भाषा के तेवर का असर यहाँ की समूची संस्कृति पर भी पड़ा। रवींद्रनाथ टैगोर बंगाल की वह थाती हैं, जिन्होंने बंग भाषा और संस्कृति को नया आकार दिया। पूरा बंगाल धर्म और जातीयता की दीवारों को तोड़ कर एक नए रूप में सामने आया। क्या यह विचित्र नहीं है कि बंगाल की परंपरा में कोई हिंदू-मुस्लिम या ब्राह्मण-शूद्र नहीं बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ बाँग्ला संस्कृति है। और वह इस तरफ़ के बंगाल में भी है तथा उस तरफ़ के बंगाल में भी उसी शिद्दत के साथ है।

पश्चिम बंगाल में पूरे 34 साल वाम मोर्चा ने एक अवधि में शासन किया है। 1977 से 2011 तक और इस बीच वहाँ पर ऐसे क्रांतिकारी सुधार लागू किए गए कि बंगाल में जाति, मज़हब अथवा धर्म की संकीर्ण दीवारें स्वतः ध्वस्त हो गईं। जो भूमि सुधार क़ानून वहाँ बने उन्होंने बड़ी-बड़ी जोतों के शहरी अभिजात्य से ज़मीन छीन ली। और कृषि की ज़मीनें उन्हें मिलीं जो उसके हक़दार थे। ज्योति बसु सरकार में मंत्री रहे बिनय चौधरी ने पश्चिम बंगाल में कृषि भूमि बँटवारे में इतने बदलाव कर दिए कि बंगाल में किसान सबसे पहले आत्मनिर्भर हो गए। हालाँकि इसकी शुरुआत 1967-1970 के बीच भूमि सुधार मंत्री रहे हरे कृष्ण कोनार ने की थी। उन्होंने क़रीब 4000 वर्ग किमी का रक़बा बेनामी भूमि मालिकों से ले लिया। इसके बाद बिनय चौधरी ने यह ज़मीन 24 लाख किसानों के बीच वितरित कर दी। इस अभियान को ऑपरेशन बर्गा कहा गया। भूमि वितरण के चलते ही राज्य में वाम मोर्चे का एकछत्र शासन रहा। उस समय कांग्रेस के सभी नेता इन बेनामी भूमि मालिकों के साथ थे। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस बंगाल से साफ़ होने लगी।

लेकिन कोई भी शासन हो, उसमें कमियाँ आने ही लगती हैं। माकपा की अगुआई में वाम मोर्चा ने पश्चिम बंगाल को व्यवस्थित किया और वहाँ पर उग्र हुए नक्सलबाड़ी आंदोलन को भी ख़त्म किया तथा उस आंदोलन के नेताओं को संसदीय राजनीति में लाने का बड़ा काम संपन्न कराया। किंतु इस सबके बीच माकपा में एक ऐसा काडर उभरा जो ख़ुद को सरकार समझने लगा। इस काडर ने बंगाल की औद्योगिक तरक़्क़ी में रोड़े अटकाए। व्यापार और उद्योग वहाँ ख़त्म होने लगे। आधुनिकीकरण का काम रुक गया। जो बंगाल सत्तर के दशक तक पूरे देश में सिरमौर था, वह पिछड़ने लगा। वहाँ से युवा पलायन करने लगे। ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाकर कांग्रेस के शून्य को भरने की कोशिश की। उन्होंने ठीक माकपा की तर्ज़ पर एक ऐसा काडर बनाया जो ख़ूब उग्र और हिंसक मनोवृत्ति का था। उन्होंने माकपा के विरुद्ध व्यूह-रचना में गाँवों में मतदाताओं के बीच कुप्रचार किया कि माकपा आप लोगों की ज़मीन हड़पना चाहती है। चूँकि गाँव में ज़्यादातर मुस्लिम थे इसलिए ममता ने उनका भरोसा जीतने के लिए मुस्लिम बाना भी धारण किया। ज्योति बसु के बाद मुख्यमंत्री हुए बुद्धदेब भट्टाचार्य ने प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए नंदीग्राम में टाटा को एक मोटर कारख़ाना लगाने की इजाज़त दी। ममता बनर्जी ने इसी मुद्दे पर राजनीतिक हमले तेज किए। उन्होंने किसानों को ज़मीन नहीं देने की अपील की। यह कारख़ाना नहीं लग सका। साल 2011 के चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को विधान सभा में बहुमत मिली और वे प्रदेश की मुख्यमंत्री हुईं। इसी तरह 2016 में भी उन्हीं की पार्टी जीती। 

ममता बनर्जी ने माकपा को शिकस्त देने के लिए जो तुरुप का पत्ता फेंका था, उस पत्ते को खेलने में भाजपा सबसे आगे है। यही कारण है कि केंद्र में जब से भाजपा की सरकार आई तब से लगातार उन्हें घेरने की कोशिश की जाती रही है। कभी राज्यपाल के ज़रिए तो कभी किसी जाँच के नाम पर। कभी सार्वजनिक तौर पर उन्हें अपमानित करने के प्रयास किए जाते हैं। मगर ममता इन सभी विघ्न-बाधाओं को पार कर भाजपा को अच्छी तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे रही हैं। जिस हिंसा की परम्परा को ममता ने शुरू किया था, उसे आगे तक ले जाने में भाजपा हर तरह से अव्वल है। उन्माद फैलाने और समुदायों को विभक्त करने में ममता उसकी बराबरी नहीं कर सकतीं। यही कारण है कि धर्म और जाति-भेद से दूर पश्चिम बंगाल में अब धार्मिक नारे गूंज रहे हैं। हालाँकि मंच पर चंडी पाठ कर ममता ने भाजपा को उसके ही पाले में घेर लिया है। क्या भाजपा अब मंच से रावण संहिता का पाठ कर सकती है। इसके अतिरिक्त ममता बनर्जी के साथ जो हिंसा हुई है, वह बंगाल के भद्र-लोक को भी नागवार गुजरी है। एक स्त्री पर हमला, ऐसा बंगाल में कभी सोचा नहीं जा सकता। बंगाल में स्त्री की प्रतिष्ठा इधर के बंगाल में ही नहीं उधर के बंगाल में भी है। शेख़ हसीना वाजेद वहाँ की प्रधानमंत्री हैं और उनके पहले ख़ालिदा जिया थीं। यह है बंगाल कि सार्वभौमिकता और इसी के बूते ममता बनर्जी पूरी टक्कर दे रही हैं। बंगाल में वाक़ई खेला होबो!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

West Bengal Elections
BJP
Narendra modi
TMC
mamta banerjee
CPI-M
left parties

Related Stories

राज्यपाल की जगह ममता होंगी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति, पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने पारित किया प्रस्ताव

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • लाल बहादुर सिंह
    सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 
    26 Mar 2022
    कारपोरेटपरस्त कृषि-सुधार की जारी सरकारी मुहिम का आईना है उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट। इसे सर्वोच्च न्यायालय ने तो सार्वजनिक नहीं किया, लेकिन इसके सदस्य घनवट ने स्वयं ही रिपोर्ट को…
  • भरत डोगरा
    जब तक भारत समावेशी रास्ता नहीं अपनाएगा तब तक आर्थिक रिकवरी एक मिथक बनी रहेगी
    26 Mar 2022
    यदि सरकार गरीब समर्थक आर्थिक एजेंड़े को लागू करने में विफल रहती है, तो विपक्ष को गरीब समर्थक एजेंडे के प्रस्ताव को तैयार करने में एकजुट हो जाना चाहिए। क्योंकि असमानता भारत की अर्थव्यवस्था की तरक्की…
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 1,660 नए मामले, संशोधित आंकड़ों के अनुसार 4,100 मरीज़ों की मौत
    26 Mar 2022
    बीते दिन कोरोना से 4,100 मरीज़ों की मौत के मामले सामने आए हैं | जिनमें से महाराष्ट्र में 4,005 मरीज़ों की मौत के संशोधित आंकड़ों को जोड़ा गया है, और केरल में 79 मरीज़ों की मौत के संशोधित आंकड़ों को जोड़ा…
  • अफ़ज़ल इमाम
    सामाजिक न्याय का नारा तैयार करेगा नया विकल्प !
    26 Mar 2022
    सामाजिक न्याय के मुद्दे को नए सिरे से और पूरी शिद्दत के साथ राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में लाने के लिए विपक्षी पार्टियों के भीतर चिंतन भी शुरू हो गया है।
  • सबरंग इंडिया
    कश्मीर फाइल्स हेट प्रोजेक्ट: लोगों को कट्टरपंथी बनाने वाला शो?
    26 Mar 2022
    फिल्म द कश्मीर फाइल्स की स्क्रीनिंग से पहले और बाद में मुस्लिम विरोधी नफरत पूरे देश में स्पष्ट रूप से प्रकट हुई है और उनके बहिष्कार, हेट स्पीच, नारे के रूप में सबसे अधिक दिखाई देती है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License