NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कोरोना काल में मंदिरों को खुलवा कर क्या हासिल करना चाहते हैं कोश्यारी?
हिंदुत्व का झंडा लहरा रहे महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को पता नहीं यह बात क्यों समझ में नहीं आ रही है कि मंदिरों को खोलने की अनुमति न देकर उद्धव ठाकरे की सरकार हिन्दुओं का भला ही कर रही है।
अनिल जैन
15 Oct 2020
 Bhagat Singh Koshyari

महाराष्ट्र में 11 महीने पहले तमाम बाधाओं पार करते हुए उद्धव ठाकरे की अगुवाई में बनी शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार को न भारतीय जनता पार्टी पचा पा रही है और न ही सूबे के राज्यपाल और केंद्र सरकार का नेतृत्व।

महाराष्ट्र देश का सर्वाधिक कोरोना संक्रमण प्रभावित राज्य है और राज्य सरकार इस महामारी से निबटने में जुटी हुई है। चूंकि भाजपा के पास राज्य सरकार को घेरने का फिलहाल कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, इसलिए उसने राज्य के बंद पड़े उन तमाम मंदिरों को खोलने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया है, जो कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए पिछले छह महीने से बंद हैं।

मुंबई सहित राज्य के कई शहरों भाजपा की ओर से सड़कों पर आकर पूजा-आरती के आयोजन किए जा रहे है, बिना इस बात की चिंता किए कि उनकी इस राजनीतिक नौटंकी से कोरोना संक्रमण बढ़ सकता है। यही नहीं, मंदिर खोलने की भाजपा की मांग को मुखरित करते हुए सूबे के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें उन्होंने सवाल किया है कि जब रेस्तरां और बार खोलने की अनुमति दे दी गई है तो मंदिरों को बंद रखने का क्या औचित्य है?

उन्होंने ठाकरे को यह ताना भी दिया गया है कि 'आप तो हिंदुत्व के मजबूत पक्षधर रहे हैं। खुद को राम का भक्त बताते हैं। क्या आपको धर्मस्थलों को खोले जाने का फैसला टालते रहने का कोई दैवीय आदेश मिला है या फिर आप अचानक 'सेक्युलर’ हो गए हैं?’

राज्यपाल के इस पत्र पर जवाबी पत्र लिखते हुए उद्धव ठाकरे ने सवाल किया है, 'क्या धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान का हिस्सा नहीं है, जिसके नाम पर आपने शपथ लेकर राज्यपाल का पद ग्रहण किया है?’

ठाकरे ने अपने पत्र में लिखा है, 'लोगों की धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं को ध्यान में रखने के साथ ही उनके जीवन की रक्षा करना भी सरकार का अहम दायित्व है। जैसे अचानक लॉकडाउन लागू करना सही नहीं था, उसी तरह इसे एक बार में पूरी तरह से खत्म कर देना भी उचित नहीं होगा।’

ठाकरे ने खुद को 'सेक्युलर’ कहे जाने पर पलटवार करते हुए कहा, 'हां, मैं हिन्दुत्व को मानता हूँ और मेरे हिंदुत्व को आपके सत्यापन की आवश्यकता नहीं है। मुंबई को पीओके बताने वाली का स्वागत करने वाले मेरे हिन्दुत्व के पैमाने पर खरे नहीं उतर सकते। सिर्फ धार्मिक स्थलों को खोल देना ही हिन्दुत्व नहीं है।’

राज्यपाल कोश्यारी ने अपने पत्र में जिस तरह की बेहूदा बातें कही थीं, उसका तार्किक और मर्यादित जवाब यही हो सकता था, जो मुख्यमंत्री ठाकरे ने दिया है। मगर सवाल है कि मुंबई में समंदर किनारे आलीशान राजभवन में रहने वाले कोश्यारी इस तरह का पत्र लिखने के बाद राज्यपाल के पद पर कैसे बने रह सकते हैं?

उन्होंने जिस संविधान की शपथ की लेकर राज्यपाल का पद ग्रहण किया है, उस संविधान के सबसे बुनियादी तत्व सेक्युरिज्म यानी धर्मनिरपेक्षता में उन्हें भरोसा नहीं है या उससे नफरत है तो उन्हें राज्यपाल का पद छोडकर संविधान और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ आंदोलन और महाराष्ट्र के बंद मंदिरों को खोलने की मांग करना चाहिए।

राज्यपाल कोश्यारी को उनकी चिट्ठी के जवाब में उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना की ओर से भी यह ठीक याद दिलाया गया है कि मंदिरों की तुलना रेस्तरां और शराबखानों से नहीं की जा सकती। लेकिन इस मसले को शिवसेना के इस जवाब से परे भी व्यावहारिकता के धरातल पर देखने-समझने की जरूरत है।

कोरोना संक्रमण का खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है और लंबे लॉकडाउन का असर लोगों के काम-धंधे पर भी पडा है और सरकारों के राजस्व पर भी। इसलिए लोगों की व्यावसायिक गतिविधियों को शुरू करने की इजाजत देना किसी भी तरह से अनुचित नहीं है।
 
शराबखाने, डांस बार, होटलों और अन्य कारोबारी गतिविधियों से सरकार को राजस्व मिलता है। वहां उत्पाती शराबियों और मनचलों को काबू में करने के लिए प्रबंधन की ओर से बाहुबली कर्मचारियों बाउंसर को तैनात किया जाता है। चूंकि कोरोना संक्रमण का खतरा अभी भी मौजूद है और ऐसे में अगर सरकार धर्मस्थलों को खोलने की इजाजत दे दे और वहां भीड़ बेकाबू हो जाए या भगदड़ मच जाए तो उसे काबू में कौन करेगा?

इस हकीकत से कौन इंकार कर सकता है कि किसी भी बड़े धार्मिक स्थल पर या किसी बड़े धार्मिक आयोजन में लोग भीड़ की शक्ल में आते ही बेकाबू और अराजक हो जाते हैं, कुछ लोग हथियार तक निकाल लेते हैं और मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। वे अपने धर्म को किसी भी कानून या संविधान से ऊपर मानते हैं।

भी पिछले दिनों ही बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले का जो फैसला आया है। बड़ी मासूमियत से दिए गए उस फैसले में भले ही सारे आरोपियों को बरी कर दिया गया हो, लेकिन 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद विध्वंस की घटना को जिन लोगों ने देखा है, वे जानते हैं कि नेताओं के भडकाऊ बयानों से प्रेरित अयोध्या में जुटी भीड़ किस तरह हिंसक और अराजक हो गई थी कि उसने मस्जिद गिराकर ही चैन लिया।

अयोध्या कांड को राजनीतिक मामला मानकर छोड़ भी दें तो देश में पिछले वर्षों के दौरान प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों और कुछ बडे धार्मिक आयोजनों में भीड़ बढ़ने और भगदड़ मचने की कई घटनाएं इस बात का प्रमाण है कि ऐसे स्थानों पर जब भीड़ बेकाबू हो जाती है तो सारे सुरक्षा उपाय और कानून-कायदे धरे रह जाते हैं। ऐसी कुछ घटनाएं तो महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी के गृह राज्य उत्तराखंड में भी हो चुकी हैं, जो कहा नहीं जा सकता कि उन्हें याद होंगी या नहीं।

जिस महाराष्ट्र में धार्मिक स्थल खोलने की मांग की जा रही है, वहां कई विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से चार महाराष्ट्र में ही हैं। शिर्डी का साई मंदिर है। शिगणापुर का शनि मंदिर है। मुंबई में ही सिद्धि विनायक मंदिर है। इसके अलावा प्रदेश में कई प्रसिद्ध जैन तीर्थ और दरगाहें और गुरद्वारे हैं, ईसाइयों और पारसियों के आस्था स्थल हैं।

इन सभी स्थानों पर सामान्य दिनों में भी रोजाना हजारों की संख्या में लोग आते हैं। लेकिन न तो जैनियों की ओर से और न ही मुसलमानों, सिक्खों या ईसाइयों की ओर उनके धार्मिक स्थल खोलने की मांग हो रही है। सिर्फ भाजपा की ओर से ही यह मांग की जा रही है।

कोरोना संक्रमण के इस भीषण दौर में अगर इन धार्मिक स्थलों को खोल दिया जाए तो कल्पना करें कि वहां क्या होगा? वहां जुटने वाली लोगों की भीड़ को किस तरह नियंत्रित किया जा सकेगा? अगर किसी वजह से वहां भगदड़ मची तो उस स्थिति में कितनी जनहानि होगी? भीड़ जुटने से कोरोना संक्रमण बढने का खतरा तो अपनी जगह है ही।

ऐसी स्थिति में मंदिरों को खोलने की मांग कर रही भाजपा और राजभवन में बैठकर उस मांग के समर्थन में हिंदुत्व का झंडा लहरा रहे भगत सिंह कोश्यारी को पता नहीं यह बात क्यों समझ में नहीं आ रही है कि मंदिरों को खोलने की अनुमति न देकर उद्धव ठाकरे की सरकार हिन्दुओं का भला ही कर रही है, उन पर उपकार कर रही है।

जाहिर है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल मंदिर खोल देने पर हिन्दुओं के लिए पैदा होने वाले खतरे को नजरअंदाज करते हुए जो बयानबाजी कर रहे हैं, वह न सिर्फ मूर्खतापूर्ण और शर्मनाक है बल्कि सरकार पर अनुचित और जनविरोधी काम करने का आपराधिक दबाव भी है।

दरअसल, सेक्युलरिज्म यानी पंथनिरपेक्षता किसी पार्टी का नारा नहीं बल्कि हमारे स्वाधीनता संग्राम से जुड़ा मूल्य है, जिसे केंद्र में रखकर हमारे संविधान की रचना की गई है। 15 अगस्त 1947 को जिस भारतीय राष्ट्र राज्य का उदय हुआ, उसका अस्तित्व पंथनिरपेक्षता की शर्त से बंधा हुआ है। पंथनिरपेक्षता या कि धर्मनिरपेक्षता ही वह एकमात्र संगठक तत्व है, जिसने भारतीय राष्ट्र राज्य को एक संघ राज्य के रूप में बनाए रखा है।

जाहिर है कि संविधान और खासकर उसके इस उदात्त मूल्य के बारे में कोश्यारी की समझ या तो शून्य है या फिर वे समझते-बूझते हुए भी उसे मानते नहीं हैं। दोनों ही स्थिति में वे राज्यपाल के पद पर रहने की पात्रता नहीं रखते हैं। लेकिन जिस केन्द्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने कोश्यारी को राज्यपाल नियुक्त किया है, उस सरकार से या राष्ट्रपति से यह उम्मीद करना बेमानी है कि वे कोश्यारी को बर्खास्त कर संविधान के प्रति अपनी निष्ठा और सम्मान प्रदर्शित करेंगे। अगर उन्हें ऐसा करना ही होता तो बहुत पहले ही कर चुके होते, क्योंकि कोश्यारी इससे पहले भी अपने पद की गरिमा और संवैधानिक मर्यादा को कई बार लांघ चुके हैं।

पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव के बाद भाजपा की सरकार न बनने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश करने में भी कोश्यारी ने अनावश्यक जल्दबाजी की थी और फिर देवेंद्र फडणवीस को आधी रात को आनन-फानन में मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने में भी उन्होंने संवैधानिक निर्देशों और मान्य लोकतांत्रिक परंपराओं को नजरअंदाज किया था। उनके और प्रकारांतर से केंद्र सरकार तथा राष्ट्रपति के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कडी टिप्पणी की थी। बाद में जब देवेंद्र फडणवीस सरकार गिर गई और उद्धव ठाकरे की अगुवाई में महाविकास अघाडी यानी गठबंधन की सरकार बनी तो उसे अस्थिर करने की भी उन्होंने कई बार कोशिशें कीं।

राज्यपाल के रूप में सिर्फ कोश्यारी का ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों और खासकर गैर भाजपा शासित राज्यों के राज्यपालों का आचरण भी कोश्यारी से भिन्न नहीं रहा है। कई राज्यपालों ने धर्मनिरपेक्षता की खिल्ली उड़ाई है, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में भी अपमानजनक टिप्पणियां की हैं और विपक्षी दलों की सरकारों को अस्थिर करने की कोशिशें की हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि उन्होंने ऐसा केंद्र सरकार में बैठे नियोक्ताओं की शह पर ही किया है।

जहां तक धर्मनिरपेक्षता या पंथनिरपेक्षता की बात है, उसकी खिल्ली उड़ाने का काम तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही अक्सर करते रहते हैं। 2019 का चुनाव जीतने के बाद अपने पहले सार्वजनिक संबोधन में ही उन्होंने कहा था कि चुनाव नतीजों ने धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे को अप्रासंगिक बना दिया है। वे अपनी सरकार के आलोचकों को भी अक्सर सेक्युलर गिरोह और सेक्युलर गैंग कहते रहते हैं। उनका अनुसरण उनकी पार्टी के दूसरे नेता भी करते हैं।

वैसे देश की राजनीति में सेक्युलर शब्द को गाली के रूप में पेश करने की शुरुआत तीन दशक पहले लालकृष्ण आडवाणी ने की थी। उन्होंने अपने अयोध्या अभियान के लिए सोमनाथ से शुरू की रथयात्रा के दौरान संविधान के इस बुनियादी तत्व के खिलाफ खूब जगह-जगह खूब जहर उगला था। यह और बात है कि उसी संविधान की शपथ लेकर वे बाद देश के उप प्रधानमंत्री बने। सत्ता में रहते हुए उन्होंने कोशिश तो खूब की संविधान में बड़े पैमाने पर फेरबदल करने की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए।

मौजूदा सरकार भी चाहती तो बहुत है कि संविधान से सेक्युलर शब्द को हटा दिया जाए लेकिन वह भी अभी तक ऐसा कर नहीं पाई है। मगर इसके खिलाफ जहर उगलने का अभियान तो संगठित रूप से जारी है ही। इसलिए कोश्यारी ने जो कुछ उद्धव ठाकरे को लिखे पत्र में कहा है वह कोई नया उदाहरण नहीं है बल्कि वह एक सुनियोजित अभियान का हिस्सा है।

Maharastra
COVID-19
Temple Reopen
Bhagat Singh Koshyari
BJP
Uddhav Thackeray

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • समीना खान
    ज़ैन अब्बास की मौत के साथ थम गया सवालों का एक सिलसिला भी
    16 May 2022
    14 मई 2022 डाक्टर ऑफ़ क्लीनिकल न्यूट्रीशन की पढ़ाई कर रहे डॉक्टर ज़ैन अब्बास ने ख़ुदकुशी कर ली। अपनी मौत से पहले ज़ैन कमरे की दीवार पर बस इतना लिख जाते हैं- ''आज की रात राक़िम की आख़िरी रात है। " (राक़िम-…
  • लाल बहादुर सिंह
    शिक्षा को बचाने की लड़ाई हमारी युवापीढ़ी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई का ज़रूरी मोर्चा
    16 May 2022
    इस दिशा में 27 मई को सभी वाम-लोकतांत्रिक छात्र-युवा-शिक्षक संगठनों के संयुक्त मंच AIFRTE की ओर से दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित कन्वेंशन स्वागत योग्य पहल है।
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: किसानों की दुर्दशा बताने को क्या अब भी फ़िल्म की ज़रूरत है!
    16 May 2022
    फ़िल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी का कहना है कि ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि किसान का बेटा भी एक फिल्म बना सके।
  • वर्षा सिंह
    उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!
    16 May 2022
    “किसी स्थान की वहनीय क्षमता (carrying capacity) को समझना अनिवार्य है। चाहे चार धाम हो या मसूरी-नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल। हमें इन जगहों की वहनीय क्षमता के लिहाज से ही पर्यटन करना चाहिए”।
  • बादल सरोज
    कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी
    16 May 2022
    2 और 3 मई की दरमियानी रात मध्य प्रदेश के सिवनी ज़िले के गाँव सिमरिया में जो हुआ वह भयानक था। बाहर से गाड़ियों में लदकर पहुंचे बजरंग दल और राम सेना के गुंडा गिरोह ने पहले घर में सोते हुए आदिवासी धनसा…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License