NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
बजट में किसानों के लिए क्या? कुछ नहीं!
"सरकार से उम्मीद थी कि कुछ बेहतर देखने को मिलेगा। लेकिन हुआ बिल्कुल उलट है। किसान को दिया जाने वाला आवंटन घटा दिया गया है।"
अजय कुमार
01 Feb 2021
बजट में किसानों के लिए क्या? कुछ नहीं!

जो सरकार तीन महीने से कड़कड़ाती हुई ठंड में दिल्ली की बॉर्डर पर बैठे हुए किसानों की नहीं सुन रही उल्टे उन्हें बदनाम कर पीटने के हथकंडे निकाल रही है उसके बजट से क्या उम्मीद की जा सकती है? साल 2021 - 22 का बजट पेश किया जा चुका है। बजट में भरपूर निजीकरण की बात की गई है।अब तक की सबसे बड़ी सरकारी सेल का प्रस्ताव है। बैंक से बंदरगाह और बिजली लाइनों से हाइवे तक बेचे जाने की लंबी सूची है। 

लेफ्ट नेता मोहम्मद सलीम अली ने कहा है कि इस बजट में रेल, बैंक, बीमा, रक्षा और स्टील सब कुछ सरकार बेचने जा रही है. ये बजट है या OLX. सीपीएम नेता सलीम अली ने बजट की कड़ी आलोचना की है. सलीम अली ने कहा कि सरकार ने बजट में बीमा, रेलवे, डिफेंस, स्टील, बैंक...सब कुछ सेल पर डाल दिया है. ये बजट है या OLX. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि ये पूंजीपतियों का बजट है।

सरकार ने इन सबको बेचते हुए आत्म निर्भर भारत की शब्दावली का इस्तेमाल किया है। लेकिन यह सोचने वाली बात है कि अखरिकर यह कौन सी आत्म निर्भरता है कि सरकार को अपने कर्मचारियों का वेतन देने के लिए अपनी ही संपति को बेचना पड़ रहा है। 

साल 2020 - 21 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 9.5 फ़ीसदी पर रहा। आने वाले साल यानी 2021-22 में राजकोषीय घाटे का अनुमान जीडीपी के 6.5 फ़ीसदी लगाई गई है। इसे राशि के माध्यम से समझने की कोशिश करें तो 2020-21 में सरकार का कुल खर्च - 34.50 लाख करोड़ था। और 2021-22 में सरकार का कुल खर्च - 34.48 लाख करोड़ रहने का अनुमान है। यानी सरकार का ऐलान सुनकर रिझने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। 

लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि क्या केवल राजकोषीय घाटे का बढ़ा हुआ आंकड़ा दिखा देने से आम लोगों तक पैसा पहुंच जाएगा। आम लोगों तक जब तक पैसा नहीं पहुंचेगा तब तक अर्थव्यवस्था में मांग नहीं पैदा होगी। और आम लोगों तक पैसा पहुंचाने का सबसे कारगर तरीका यह है कि उनके पास रोजगार हो। और जो वह नौकरी कर रहे हो वहां उनका शोषण ना हो। बल्कि उन्हें गरिमा पूर्ण सैलरी मिले। 

क्या सरकारी उपक्रमों के निजीकरण से यह संभव है? सबको पता है कि प्राइवेटाइजेशन का असल मकसद मालिक का मुनाफा कमाना होता है। यहां लोगों की जिंदगीयों पर गौर नहीं किया जाता। प्राइवेट जगहों पर काम करने वाले लोगों की सैलरी सरकारी जगहों पर काम करने वाले लोगों से हमेशा कम होती है। उसके बाद और भी सारे पचड़े।

 इसलिए जिस बजट में सरकारी उपक्रम को बेचकर कमाई करने का तरीका पेश किया गया हो उस बजट के बारे में यह कैसे कहा जा सकता है कि उसने आम जनता की परेशानियों पर गौर किया होगा होगा? 

बजट से जुड़े इस केंद्रीय तत्व के बाद अब बजट में मौजूद कृषि से जुड़े अंश पर बातचीत करते हैं। थोड़ा समझने की कोशिश करते हैं कि क्या सरकार किसानों के दर्द को सुन भी रही है या नहीं?

- कृषि और सहायक गतिविधियों के मद में सरकार ने तकरीबन 1 लाख 48 हजार करोड रुपए राशि का प्रावधान किया है। यह पिछले साल तकरीबन 1 लाख 54 हजार करोड रुपए के प्रावधान से भी कम है। जबकि इस बार का कुल बजट पिछले साल के कुल अनुमानित बजट 30 लाख करोड़ से  5 लाख करोड़ अधिक तकरीबन 35 लाख करोड रुपए का है। इसमें 5 से 7 फीसदी के बीच में रहने वाली महंगाई दर भी जोड़ लीजिए। इस लिहाज से यह साफ है कि किसानों द्वारा किए गए इतने अधिक अनुनय विनय को सरकार ने अनसुना कर दिया है। बल्कि इससे ज्यादा यह है कि पहले के मुकाबले इस साल कृषि में मदद देने वाले पैसे में भी कमी कर दी है।

 -- बजट भाषण में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत 1 लाख करोड रुपए की घोषणा की गई। एनिमल इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत 15 हजार करोड रुपए का ऐलान किया गया। लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि इसे बजट में आवंटित नहीं किया जाता है। यह एक तरह की फाइनेंस की योजना है। कहने का मतलब यह कि कृषि से जुड़े बुनियादी ढांचा में 1 लाख करोड रुपए का निवेश होगा। अब यह आप पैसा कहां से आएगा? कहां कहां खर्च होगा? कब तक खर्च होगा? इसकी कोई जानकारी नहीं होती है। पिछले साल से लेकर अब तक इसमें महज 2900 करोड रुपए अनुबंध हुआ है। इसमें से केवल 200 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। और आने वाले साल में केवल 900 करोड रुपए सरकार के द्वारा लगाने का ऐलान किया गया है। यानी एक लाख करोड़ रुपए में काम की बात महज 9 सौ करोड रुपए से जुड़ी हुई है। बाकी सब मीडिया हाईलाइट के लिए है।

- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में पिछले साल 75 हजार करोड रुपए का आवंटन किया गया था। इसे घटाकर इस साल 65 हजार करोड रुपए कर दिया गया है। जबकि यह योजना से 12 करोड़ लोगों में से तकरीबन 9 करोड लोगों तक यह योजना पहुंच पाई है। किसान संगठन इस योजना को और अधिक बढ़ाने की बात कर रहे थे। लेकिन हुआ उल्टा इस योजना का फंड ही काट दिया गया।

- बाजार में हस्तक्षेप करके मिनिमम सपोर्ट प्राइस दिलवाने के लिए सरकार ने मार्केट इंटरवेंशन स्कीम के तहत पिछले साल 2 हजार करोड रुपए का आवंटन किया था। जबकि इसमें से 9 सौ करोड रुपए भी खर्च नहीं हुए थे। इस स्कीम का आवंटन काम करके 15 सौ करोड़ रुपए कर दिया गया है। अब सोचिए क्या ऐसे देगी सरकार किसानों को अपनी उपज की वाजिब कीमत?

- खाद्य सब्सिडी के तौर पर पिछले साल तकरीबन 1 लाख 15 हजार करोड रुपए का प्रावधान किया गया था। इस बार 2 लाख 42 हजार करोड रुपए का प्रावधान किया गया है। अचानक से इतना बड़ा इजाफा क्यों? वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार अनिंदो चक्रवर्ती अपने ट्वीट में इशारा करते हैं कि कहीं सरकार एफसीआई को भी बेचने का मन तो नहीं बना रही है। इसे थोड़ा स्पष्ट समझा जाए तो बात यह है कि एफसीआई बहुत अधिक कर्ज के तले दबी हुई है। मौजूदा समय में एफसीआई का कर्जा तकरीबन 3 लाख करोड रुपए से अधिक का है। इसलिए इतने बड़े इजाफे के पीछे अंदेशा यह लगाया जा रहा है कि सरकार एफसीआई का कर्जा वापस का इरादा कर रही हो। जब यह लौट जाएगा तभी इसकी बिक्री हो पाएगी। और अगर एफसीआई नहीं तो इसका सीधा मतलब है कि किसानों को अपनी उपज का वाजिब दाम नहीं। एमएसपी नहीं। और ऐसी स्थिति में एमएसपी की लीगल गारंटी तो भूल ही जाइए।

-- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यूपीए के जमाने से धान के पैदावार की तुलना की। आंकड़ों के जरिए बताया कि उत्पादन कितना बड़ा है। और पहले के मुकाबले किसानों को पैसे भी अधिक मिले हैं। जबकि इन आंकड़ों की जरूरत बजट में बिल्कुल नहीं होती है। बजट से इनका कोई लेना देना नहीं होता है। और अगर हकीकत ही बताना है तो हकीकत यह है कि पिछले 1 महीने में सरकारी मंडियों में तकरीबन 10 फसलों पर 68 फ़ीसदी किसानों को एमएसपीसी नीचे का भुगतान किया गया है। यह महज सरकारी मंडियों की बात है। अगर देश भर में बेचे जाने वाले जगहों को जोड़ लिया जाएगा तो स्थिति और बदतर दिखाई देगी।

- मनरेगा एक ऐसी स्कीम है जिसके जरिए प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिलता है। लोगों की कमाई होती है। अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है। इसके लिए नागरिक संगठन हमेशा से कहते आए हैं कि सरकार को तकरीबन एक लाख करोड रुपए का प्रावधान करना चाहिए। सरकार ऐसा नहीं करती है। पिछले साल इसके तहत तकरीबन 65 हजार करोड रुपए का प्रावधान किया गया था। कोरोना की आज आने की वजह से सरकार को मनरेगा में तकरीबन 1 लाख 15 हजार करोड रुपए का खर्च करना पड़ा। लेकिन फिर से सरकार ने मनरेगा में दिए जाने वाले पैसे को कम कर दिया है। आवंटन महज 73 हजार करोड रुपए का किया गया है। यानी जहां सबसे अधिक जरूरत थी, उस जरूरत से रूबरू होने के बावजूद भी सरकार ने पूरी तरह से जरूरत पूरा करने से इंकार कर दिया।

- जय किसान आंदोलन के अध्यक्ष और संयुक्त मोर्चा के सदस्य योगेंद्र यादव का कहना है कि किसानों की चर्चा जोरों पर थी। सरकार से उम्मीद थी कि कुछ बेहतर देखने को मिलेगा। लेकिन हुआ बिल्कुल उलट है। किसान को दिया जाने वाला आवंटन घटा दिया गया है। एग्रीकल्चर एंड एलाइड एक्टिविटीज के तहत पिछले साल कुल बजट का तकरीबन 5.1 फ़ीसदी हिस्सा आवंटित किया गया था। इस साल यह घटघर 4.3 फ़ीसदी हो गया है। हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और वाली हालात है।

Budget 2021
Nirmala Sitharaman
COVID 19 Pandemic
agricultural crises
Agriculture workers

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

बिहार: कोल्ड स्टोरेज के अभाव में कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर आलू किसान

नया बजट जनता के हितों से दग़ाबाज़ी : सीपीआई-एम

ग्राउंड  रिपोर्टः रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के गृह क्षेत्र के किसान यूरिया के लिए आधी रात से ही लगा रहे लाइन, योगी सरकार की इमेज तार-तार

देशभर में घटते खेत के आकार, बढ़ता खाद्य संकट!

पूर्वांचल से MSP के साथ उठी नई मांग, किसानों को कृषि वैज्ञानिक घोषित करे भारत सरकार!

ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वांचल में 'धान का कटोरा' कहलाने वाले इलाके में MSP से नीचे अपनी उपज बेचने को मजबूर किसान

किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है कृषि उत्पाद का मूल्य

खेती गंभीर रूप से बीमार है, उसे रेडिकल ट्रीटमेंट चाहिएः डॉ. दर्शनपाल


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License