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भारत
राजनीति
भीमा कोरेगांव दमन चक्र कहां रुकेगा
असहमति और विरोध को कुचलने के लिए सरकारी दमनचक्र जारी है। यलगार परिषद मामला और दिल्ली शाहीन बाग़ आंदोलन मामला ‘आपदा को अवसर में बदलने’ का नया नाम बन गये हैं।
अजय सिंह
14 Sep 2020
भीमा कोरेगांव
भीमा कोरेगांव मामले में हो रही गिरफ़्तारियों के विरोध में पिछले दिनों दिल्ली में हुए एक प्रदर्शन की तस्वीर। साभार: ट्विटर 

भीमा कोरेगांव-यलगार परिषद मामले में गिरफ़्तारियों का सिलसिला जारी है। अब तक इस मामले में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने 15 लोगों को गिरफ़्तार किया है। तीन लोगों को एनआईए ने पूछताछ के लिए अपने दफ़्तर (मुंबई) बुलाया है। ऐसी आशंका है कि इन्हें भी गिरफ़्तार कर लिया जायेगा। असहमति और विरोध को कुचलने के लिए सरकारी दमनचक्र जारी है। यलगार परिषद मामला और दिल्ली शाहीन बाग़ आंदोलन मामला ‘आपदा को अवसर में बदलने’ का नया नाम बन गये हैं।

भीमा कोरेगांव मामले में जिन तीन बुद्धिजीवियों को एनआईए ने समन भेजा है, उनके नाम हैं: कोलकाता-स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के प्रोफ़ेसर पार्थो सारथी राय, हैदराबाद-स्थित अंगरेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर के. सत्यनारायण, और हैदराबाद के वरिष्ठ पत्रकार केवी कुरमनथ। सत्यनारायण और कुरमनथ जेल में बंद कवि वरवर राव के दामाद है। वरवर राव को दो साल पहले इस मामले में गिरफ़्तार कर लिया गया था। पार्थो सारथी विषाणुओं पर शोध कार्य करनेवाले वायरोलॉजी वैज्ञानिक हैं, और मानवाधिकार एक्टिविस्ट हैं।

महाराष्ट्र में एनआईए ने 7 व 8 सितंबर 2020 को भीमा कोरेगांव मामले में सांस्कृतिक संगठन कबीर कला मंच से जुड़े तीन युवा कलाकारों-लोकगायकों—सागर तात्याराम गोरखे, रमेश गायचोर और ज्योति जगतप—को गिरफ़्तार कर लिया। दलित-आदिवासी-अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए लड़ने वाले ये तीनों कलाकार एक्टिविस्ट पुणे के निवासी हैं। इन्हें मिलाकर इस मामले में अब तक 15 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है।

केंद्र की हिंदुत्ववादी फ़ासीवादी भारतीय जनता पार्टी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शह पर भीमा कोरेगांव मामले से जुड़ी गिरफ़्तारियों का सिलसिला जून 2018 से शुरू हुआ। यह सिलसिला जारी है, और यह कहां व कब रुकेगा, कहना मुश्किल है। हर बार ‘भारत सरकार के ख़िलाफ़ षडयंत्र’ की नयी थ्योरी, नया क़िस्सा पुलिस व एनआईए (राष्ट्रीय जाँच एजेंसी) की तरफ़ से पेश किया जाता है, और हर बार नया निशाना व नया टार्गेट ढूंढा जाता है।

गिरफ़्तार किये गये अभियुक्तों पर अदालत में मुक़दमा कब चलेगा, सुनवाई कब शुरू होगी, कुछ पता नहीं। अनिश्चित काल के लिए उन्हें जेलों में बंद कर, बिना सज़ा सुनाये, सज़ा दी जा रही है। गिरफ़्तार किये गये 15 लोगों में से 9 लोग दो साल से ज़्यादा समय से जेलों में बंद है, और उन्हें एक बार भी ज़मानत नहीं मिली। शेष 6 अभियुक्तों को भी ज़मानत नहीं मिली। इन छह लोगों को इस साल अप्रैल से अब तक—कोरोना लॉकडाउन के दौरान—बंदी बनाया गया।

इस मामले में जिन्हें गिरफ़्तार किया गया है, ये वे लोग हैं, जो समाज के सर्वाधिक वंचित-उत्पीड़ित तबकों और हाशिए पर फेंक दिये गये समूहों के लिए काम करते रहे हैं, और मनुष्य की स्वतंत्रता व गरिमा के वाहक और गायक रहे हैं। जिन्हें गिरफ़्तार किया गया है, वे कलाकार व संस्कृतिकर्मी हैं, ट्रेड यूनियन नेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता व सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, कवि व लेखक हैं, प्रोफ़ेसर, अकादमीशियन, पत्रकार और वकील हैं। ये सब-के-सब ‘आत्मा के इंजीनियर’ हैं।

जिन लोगों को भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार किया गया है, उनके नाम हैं: महेश राउत, हनी बाबू एमटी, सुधा भारद्वाज, शोमा सेन, वरवर राव, सुधीर धावले, सुरेंद्र गाडलिंग, रोना विल्सन, अरुण फ़रेरा, वरनान गोंजाल्विस, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबडे, ज्योति जगतप, रमेश गायचोर और सागर तात्याराम गोरखे।

इन साथियों ने देश में लोकतंत्र की परिभाषा, समझ व दायरे का विस्तार किया है और उसे भारत के संविधान की प्रस्तावना के अनुरूप बनाने की लड़ाई लड़ी है। यही इनका गुनाह है!

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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