NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार विधानसभा चुनाव पूरे देश के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं?
बिहार में महामारी के दौर में होने वाले विधानसभा चुनाव में जनता बाढ़, चमकी बुखार, इंडस्ट्री, कृषि संकट, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे स्थानीय मसलों पर अपना फैसला सुनाएगी। साथ ही मोदी मैजिक, किसान असंतोष, बदहाल अर्थव्यवस्था और मजदूरों के देशव्यापी पलायन जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को भी ध्यान में रखकर मतदान करने जाएगी।
अमित सिंह
12 Oct 2020
बिहार विधानसभा चुनाव

बिहार में होने वाला विधानसभा चुनाव कई मायनों में अभूतपूर्व है। सबसे पहले विश्वव्यापी कोरोना महामारी के दौर में यह चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में कई ऐसे बदलाव हो रहे हैं जो इतिहास बनाने वाले हैं। बड़ी ग्रामीण आबादी वाले बिहार में अब तक विशाल रैलियों का चलन रहा है। पटना के गांधी मैदान समेत दूसरी जगहों पर नेता बड़ी-बड़ी रैलियां करके अपना शक्ति प्रदर्शन किया करते थे।

दावा यहां तक किया जाता रहा है कि इन रैलियों से राज्य की राजनीतिक हवा बदल जाया करती थी लेकिन इस सबके विपरीत बिहार इस बार भारत के चुनावी इतिहास में सबसे अधिक डिजिटल रैलियों का गवाह बनेगा। बीजेपी, जेडीयू, कांग्रेस, आरजेडी समेत दूसरे दल इस तरह की कई रैलियों का आयोजन कर भी चुके हैं। ऐसे में चुनावी प्रचार का यह तरीका मतदाताओं को लुभाने में कितना सफल रहेगा, इसकी परीक्षा इस बार के चुनाव में हो जाएगी।

दूसरी जो सबसे अहम बात हैं वह है चुनावों में आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति। पिछले करीब तीन दशक से ज्यादा समय से लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति की धुरी बने हुए थे। इस दौरान जितने भी विधानसभा चुनाव हुए उसमें एक फैक्टर लालू की सत्ता में वापसी या फिर उन्हें सरकार से बाहर रखने की लड़ाई के रूप में सामने आया है।

इस बार चुनाव में उनकी अनुपस्थिति से बिहार में प्रतिस्पर्धी राजनीति और राजनीतिक विरोध की सतत जलने वाली ज्वाला कमजोर पड़ रही है। कई जानकार इसका निष्कर्ष बिहार में विपक्ष की कमजोरी के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेताओं की अनुपस्थिति में होने वाला चुनाव नीतीश की राह को आसान बना रहा है।

तीसरी अहम बात नीतीश कुमार को लेकर है। नीतीश कुमार पंद्रह साल से मुख्यमंत्री हैं, पर अब वह अपने अतीत की छाया भर दिखते हैं। उनका सुशासन और राजनीतिक नैतिकता का आभामंडल क्षीण हो गया है। हालांकि इससे बचने के लिए वो नीतीश के 15 साल बनाम लालू के 15 साल का सहारा ले रहे हैं लेकिन अभी जनता यह भी नहीं भूली होगी कि यही नीतीश पिछले विधानसभा चुनाव में लालू के सहारे और बीजेपी के विरोध में वोट मांग रहे थे। जनता का वोट लेने के बाद उन्होंने पाला बदल लिया था।

फिलहाल नीतीश कुमार इस बार एंटी इनकंबेंसी का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा विधानसभा चुनाव में जनता बाढ़, चमकी बुखार, इंडस्ट्री, कृषि संकट, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे स्थानीय मसलों पर अपना फैसला सुनाएगी। इस बार नीतीश कुमार के कैंपेन की खास बात यह है कि यह लालू के 15 साल की बुराईयों पर ज्यादा जोर दे रही है, अपने कामों के बारे में उसका फोकस कम है।

बिहार चुनाव की चौथी अहम बात गठबंधन का गणित और जातीय समीकरण है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लंबे समय तक चले उठापठक के बाद तस्वीर अब थोड़ी साफ हो गई है। एनडीए के अगुआ नीतीश कुमार हैं। इसमें जेडीयू, बीजेपी प्रमुख दल के तौर पर शामिल हैं तो मुकेश साहनी की विकासशील इन्सान पार्टी (वीआईपी) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (एचएएम) भी सहयोगी की भूमिका में है। इस मामले में एलजेपी की भूमिका थोड़ी उलझी सी हैं जो नीतीश से तो बैर कर रही है लेकिन बीजेपी के साथ है। वहीं, विपक्षी गठबंधन आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों ने तालमेल थोड़ा ढंग से बिठा लिया है। एक और मोर्चा जो आरएलएसपी, बीएसपी और एआईएमआईएम को लेकर बन रहा है वह भी कहीं न कहीं चुनाव को प्रभावित करने वाला है।

इसके अलावा जातीय समीकरण हैं। इसमें भी मुस्लिम और दलित वोट बैंक को लेकर सभी की निगाहें हैं। ये दोनों जातियां बिहार में बदलाव की वाहक बन सकती हैं। वैसे भी मुस्लिम परंपरागत तौर पर लालू के साथ रहते हैं लेकिन एआईएमआईएम और जेडीयू इसमें से हिस्सेदारी चाहेंगे। फिलहाल सीएए, एनआरसी प्रोटेस्ट, दिल्ली दंगे, अयोध्या पर आए फैसले समेत मोदी सरकार में साइडलाइन किए गए मुस्लिम वोटर जेडीयू के साथ कितना जाएंगें यह अलग डिबेट का विषय है। इसी तरह कुल आबादी के लगभग 16 प्रतिशत दलित वोटों पर कई दल दावेदारी ठोक रहे हैं। इसमें महादलित का कार्ड खेलने वाले नीतीश कुमार से लेकर चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, मुकेश साहनी, रालोसपा, भाकपा माले और आरजेडी भी शामिल है। अब दलित वोटरों का बड़ा हिस्सा जिस गठबंधन की तरफ जाएगा, वही सरकार बनाने की दावेदारी पेश करेगा।

अंत में और सबसे महत्वपूर्ण बात कि बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम पूरे देश के लिए सबक देने वाला होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार में मोदी मैजिक खूब चला था। एनडीए ने यहां जोरदार जीत हासिल की थी और विपक्ष का लगभग सफाया कर दिया था। सिर्फ कांग्रेस को एक सीट पर सफलता मिली थी। ऐसे में बीजेपी इस बार भी मोदी मैजिक के भरोसे पर है।

हालाँकि, तब से भाजपा को झारखंड, दिल्ली और महाराष्ट्र में हार का सामना करना पड़ा है। और हरियाणा में वह किसी तरह से सरकार बनाने में कामयाब हुई है। इसके अलावा लॉकडाउन में सबसे ज्यादा प्रवासियों की घर वापसी बिहार में हुई है। ऐसे में यह एक तरह से लिटमस टेस्ट है कि किसान असंतोष, बदहाल अर्थव्यवस्था और मजदूरों के देशव्यापी पलायन जैसे राष्ट्रीय मुद्दे क्या मोदी की लोकप्रियता को प्रभावित करेंगे? या फिर मोदी मैजिक इन सबसे परे है।

यानी साफ है कि इस विधानसभा चुनाव का परिणाम सिर्फ नीतीश के कुशासन या सुशासन को परिलक्षित ही नहीं करेगा बल्कि यह मोदी सरकार के महामारी प्रबंधन और अर्थव्यवस्था की पतली हालात से निपटने को भी प्रतिबिंबित करेगा। क्योंकि अगर जनता बीजेपी को नकारेगी तभी वह केंद्र में लिए जा रहे जनविरोधी फैसलों पर पुनर्विचार के लिए तैयार होगी अन्यथा वह इसे जनता का आशीर्वाद मानकर अपने विरोधियों को कुचलने की प्रक्रिया तेज कर देगी। साथ ही इस चुनाव का सीधा असर बीजेपी के पश्चिम बंगाल में चल रही चुनावी तैयारियों पर पड़ेगा। अगर वह बिहार में जीत हासिल करती है तो बंगाल में उसका असर दिखेगा। ऐसे में बिहार की जनता पर बड़ी जिम्मेदारी है। 

Bihar
Bihar election 2020
Nitish Kumar
jdu
BJP
Coronavirus
RJD
Lalu Prashad Yadav

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    संतूर के शहंशाह पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में निधन
    10 May 2022
    पंडित शिवकुमार शर्मा 13 वर्ष की उम्र में ही संतूर बजाना शुरू कर दिया था। इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम बंबई में 1955 में किया था। शिवकुमार शर्मा की माता जी श्रीमती उमा दत्त शर्मा स्वयं एक शास्त्रीय…
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    ग़ाज़ीपुर के ज़हूराबाद में सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर पर हमला!, शोक संतप्त परिवार से गए थे मिलने
    10 May 2022
    ओमप्रकाश राजभर ने तत्काल एडीजी लॉ एंड ऑर्डर के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम, गाजीपुर के एसपी, एसओ को इस घटना की जानकारी दी है। हमले संबंध में उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया। उन्होंने कहा है कि भाजपा के…
  • कामरान यूसुफ़, सुहैल भट्ट
    जम्मू में आप ने मचाई हलचल, लेकिन कश्मीर उसके लिए अब भी चुनौती
    10 May 2022
    आम आदमी पार्टी ने भगवा पार्टी के निराश समर्थकों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए जम्मू में भाजपा की शासन संबंधी विफलताओं का इस्तेमाल किया है।
  • संदीप चक्रवर्ती
    मछली पालन करने वालों के सामने पश्चिम बंगाल में आजीविका छिनने का डर - AIFFWF
    10 May 2022
    AIFFWF ने अपनी संगठनात्मक रिपोर्ट में छोटे स्तर पर मछली आखेटन करने वाले 2250 परिवारों के 10,187 एकड़ की झील से विस्थापित होने की घटना का जिक्र भी किया है।
  • राज कुमार
    जनवादी साहित्य-संस्कृति सम्मेलन: वंचित तबकों की मुक्ति के लिए एक सांस्कृतिक हस्तक्षेप
    10 May 2022
    सम्मेलन में वक्ताओं ने उन तबकों की आज़ादी का दावा रखा जिन्हें इंसान तक नहीं माना जाता और जिन्हें बिल्कुल अनदेखा करके आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। उन तबकों की स्थिति सामने रखी जिन तक आज़ादी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License