NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
उत्पीड़न
कानून
भारत
राजनीति
तरुण तेजपाल मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी ग़ौर करने लायक क्यों है?
सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि यौन शोषण या रेप की शिकायत करने वाली लड़की या महिला के सबूतों को शक की नज़र से क्यों देखा जाए? क्योंकि मुकदमा आरोपी पर चल रहा है पीड़िता पर नहीं।
सोनिया यादव
04 Jun 2021
तरुण तेजपाल

“सत्र अदालत का निर्णय रेप पीड़िताओं के लिए मैनुअल जैसा है जहां यह बताया गया है कि ऐसे मामलों में एक पीड़िता को कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए।”

ये कठोर टिप्पणी बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने तरुण तेजपाल मामले में सत्र न्यायालय के आदेश पर की है। इस मामले में गोवा की ज़िला अदालत ने 21 मई को अपना फैसला सुनाते हुए समाचार पत्रिका तहलका के संपादक रहे तरुण तेजपाल को सभी आरोपों से बरी कर दिया था। हालांकि फैसला आने के बाद इसकी काफी आलोचना हुई। महिला पत्रकारों और अनेक संगठनों ने मामले की सर्वाइवर के साथ एकजुटता जताई। अब तमाम विरोध की उठती आवाजों के बीच बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई को लेकर गोवा सरकार की अपील स्वीकार कर ली है।  

क्या है पूरा मामला?

गोवा की मपूसा कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ 25 मई को गोवा सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। गोवा सरकार की तरफ से कहा गया कि ट्रायल कोर्ट की जो भी फाइंडिंग्स आई हैं, वो पूर्वाग्रह और पितृसत्ता के रंग से रंगी हुई हैं। सरकार के मुताबिक इस मामले में दोबारा सुनवाई इसलिए होनी चाहिए क्योंकि जज ने पूछताछ के दौरान शिकायतकर्ता से निंदनीय, असंगत और अपमानजनक सवाल पूछने की मंजूरी दी।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार गोवा सरकार ने हाईकोर्ट में अपील करते हुए कहा, “निचली अदालत का 527 पेज का फैसला बाहरी अस्वीकार्य सामग्री और गवाही, पीड़िता के यौन इतिहास के ग्राफिक विवरण से प्रभावित था और इसका इस्तेमाल पीड़िता के चरित्र की निंदा करने और उसके सबूतों को तूल नहीं देने के उद्देश्य से किया गया। यह पूरा फैसला आरोपी की भूमिका का पता लगाने की कोशिश करने के बजाए शिकायतकर्ता की गवाही पर दोष मढ़ने से रहा।“

गोवा सरकार की तरफ से ये भी कहा गया कि ट्रायल कोर्ट ने अपने जजमेंट में ये कहा था कि घटना के बाद वाली तस्वीरों में विक्टिम आहत नहीं दिख रही है। इस तरह की टिप्पणी ये दिखाती है कि विक्टिम्स के पोस्ट-ट्रॉमा बर्ताव को लेकर समझ की बहुत कमी है। ये टिप्पणी ये भी दर्शाती है कि कानून को पूरी तरह से इग्नोर किया गया है, साथ ही साथ ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देश और गाइडलाइन्स को भी अनदेखा किया गया है।

पीड़िता के यौन इतिहास पर इतनी अधिक चर्चा क्यों ?

इस मामले पर 2 जून को बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने कहा कि प्राइमा फेसी यानी ऊपरी तौर पर देखने से लग रहा है कि केस को आगे सुनवाई के लिए कंसिडर किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने तरुण तेजपाल को नोटिस भेजते हुए 24 जून तक रिटर्न करने को कहा है। इसी तारीख को सुनवाई होनी है। इसके साथ ही ट्रायल कोर्ट से इस केस से जुड़े सारे पेपर्स मांगे है।

हाईकोर्ट के जस्टिस एससी गुप्ते ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर व्यंग्य के लहजे में कहा, “ये फैसला ऐसा लगता है मानो रेप विक्टिम्स के लिए एक मैनुअल हो कि उन्हें कैसा बर्ताव करना चाहिए।”

गोवा सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम नहीं जानते कि इस मामले में पीड़िता पर मुकदमा चल रहा था या आरोपी पर। पूरा फैसला ऐसा है कि मानो पीड़िता पर मुकदमा चल रहा था। पीड़िता के यौन इतिहास पर इतनी अधिक चर्चा क्यों होनी चाहिए थी।

ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले का जोरदार विरोध

आपको बता दें कि गोवा के मपूसा कोर्ट की जज क्षमा जोशी ने अपने फ़ैसले में लिखा था कि कथित तौर पर हुए यौन शोषण के बाद की तस्वीर को देखने पर युवती "मुस्कुराती हुई, खुश, सामान्य और अच्छे मूड में दिखती हैं।"

तेजपाल पर लगे बलात्कार के आरोपों को ख़ारिज करते हुए अपने 527 पन्ने के फ़ैसले में कोर्ट ने लिखा, "वो किसी तरह से परेशान, संकोच करती हुई या डरी-सहमी हुई नहीं दिख रही हैं। हालांकि उनका दावा है कि इसके ठीक पहले उनका यौन शोषण किया गया।"

कोर्ट के इस फ़ैसले पर कई लोगों ने कड़ी आपत्ति जाहिर की। इसे असंवेदनशील और पीड़िताओं को निशाना बनाने वाला बताया। तमाम महिलावादी कार्यकर्ताओं, सोशल एक्टिविस्ट्स और एकेडमिक्स के करीब 300 ग्रुप्स ने एक जॉइंट स्टेटमेंट निकाला। इसमें कहा गाया कि इस फैसले ने आरोपी को नहीं, बल्कि विक्टिम को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। ऐसे में ये फैसला रेप का केस लड़ रही सर्वाइवर्स को डिमोटिवेट कर सकता है।

ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमन्स असोसिएशन (एडवा), ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव विमन्स असोसिएशन (ऐपवा), फोरम अगेन्स्ट ओप्रेशन ऑफ विमन्स समेत की अन्य संगठनों द्वारा जारी जॉइंट स्टेटमेंट में कहा गया कि ये जजमेंट दिखाता है कि सेक्शुअल असॉल्ट की सर्वाइवर को किस तरह से असंवेदनशील अदालती माहौल में भीषण ट्रायल का सामना करना पड़ता है। ये फैसला ये भी बता रहा है कि विक्टिम कितने क्रूर, अवैध, अप्रासंगिक और स्कैंडलस क्रॉस एग्ज़ामिनेशन से गुजरती है। स्टेटमेंट में ये भी कहा गया है कि सर्वाइवर की प्राइवेट लाइफ के हर पहलू की जांच की गई, लेकिन इस तरह की जांच आरोपी पर नहीं हुई।

संदेह का लाभ तेजपाल को मिला लेकिन संदेह के घेरे में हमेशा पीड़ित रही

गौरतलब है कि नवंबर 2013 में तरुण तेजपाल पर उनकी एक सहकर्मी ने बलात्कार का आरोप लगाया था। उस वक्त जब तहलका पत्रिका का ईवेंट गोवा में चल रहा था। मामला सामने आने के बाद तेजपाल ने मेल पर माफी मांगी और संपादक के पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि मामला मीडिया में उछला और फिर गोवा पुलिस ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज की। तेजपाल की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन कुछ महीनों बाद ही वो ज़मानत पर बाहर भी आ गए। फिर केस की सुनवाई चलती रही और 21 मई 2021 को फैसला सुनाया गया। जिसमें जज क्षमा जोशी ने तरुण को बरी कर दिया। हालांकि 527 पेज के फैसले की कॉपी लोगों के सामने चार दिन बाद 25 मई को आई।

इसके बाद फैसले में लिखी तमाम बातों का विरोध तेज़ हो गया। बलात्कार पीड़िताओं के व्यवहार को लेकर खुली बहस छिड़ गई। सर्वाइवर को ही कटघरे में खड़ा करने जैसी बातें सामने आने लगीं। लगभग साढ़े सात साल लंबे चले इस मामले को यौन उत्पीड़न से उबरने वालों के लिए एक बड़ा ड्राबैक माना गया, खासकर, तब एक पक्ष ताकतवर हो, और दूसरा नहीं।

कोर्ट ने संदेह का लाभ तेजपाल को दिया लेकिन संदेह के घेरे में हमेशा पीड़ित ही खड़ी दिखाई दी। फैसले में पीड़िता से क्रॉस-क्वेश्चन में किए गए कई सवालों को इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि नए एविडेंस एक्ट संशोधनों के तहत उसका पूर्व चरित्र प्रासंगिक नहीं है यानी शिकायतकर्ता के यौन इतिहास को आरोपी के बरी होने का कानूनी आधार बना दिया गया। जबकि, पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह और अन्य (1996) 2 एससीसी 384 के मामले में कहा गया था, "भले ही किसी मामले में अभियोजन पक्ष के पहले कई यौन संबंध रह चुके हों, उसे किसी भी व्यक्ति या सभी व्यक्तियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने से मना करने का अधिकार है क्योंकि वह ऐसी वस्तु नहीं है कि यौन उत्पीड़न के लिए कोई भी या सभी उसका इस्तेमाल करें।"

इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 1996 कहा था कि यौन शोषण या रेप की शिकायत करने वाली लड़की या महिला के सबूतों को शक की नज़र से क्यों देखा जाए? क्योंकि मुकदमा आरोपी पर चल रहा है पीड़िता पर नहीं। बहरहाल, इस मामले में न्याय अभी और दूर नज़र आता है लेकिन इतना तो तय है कि इतने सालों की लंबी कानूनी लड़ाई और अपमानजनक सवाल तमाम पीड़िताओं को निराश जरूर करते हैं।

............................................................................

 इसे भी पढ़ें :  सेलिब्रिटी पत्रकार तरुण तेजपाल की जीत आम नौकरीपेशा महिलाओं की हार क्यों लगती है?

Tarun Tejpal
Bombay High Court
sexual crimes
sexual violence
crimes against women
violence against women
AIDWA
AIPWA

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

यूपी : महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के विरोध में एकजुट हुए महिला संगठन

बिहार: आख़िर कब बंद होगा औरतों की अस्मिता की क़ीमत लगाने का सिलसिला?

बिहार: 8 साल की मासूम के साथ बलात्कार और हत्या, फिर उठे ‘सुशासन’ पर सवाल

मध्य प्रदेश : मर्दों के झुंड ने खुलेआम आदिवासी लड़कियों के साथ की बदतमीज़ी, क़ानून व्यवस्था पर फिर उठे सवाल

बिहार: मुज़फ़्फ़रपुर कांड से लेकर गायघाट शेल्टर होम तक दिखती सिस्टम की 'लापरवाही'

यूपी: बुलंदशहर मामले में फिर पुलिस पर उठे सवाल, मामला दबाने का लगा आरोप!

दिल्ली गैंगरेप: निर्भया कांड के 9 साल बाद भी नहीं बदली राजधानी में महिला सुरक्षा की तस्वीर

असम: बलात्कार आरोपी पद्म पुरस्कार विजेता की प्रतिष्ठा किसी के सम्मान से ऊपर नहीं


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License