NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
वैक्सीन की जांच कराने से क्यों कतरा रही है सरकार?
देश में कोरोना वायरस के संक्रमण को काबू में करने के टीकाकरण अभियान को शुरू हुए दो महीने पूरे हो चुके हैं। लेकिन कोरोना के टीके पर लोगों का भरोसा अभी भी नहीं बन पाया है।
अनिल जैन
16 Mar 2021
वैक्सीन की

भारत सरकार ने एक साल पहले कोरोना महामारी को गंभीरता से लेने में जिस तरह की कोताही बरती थी, वही रवैया अब वह इस महामारी को नियंत्रण करने के लिए जारी वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण अभियान को लेकर भी अपना रही है। देश में कोरोना वायरस के संक्रमण को काबू में करने के टीकाकरण अभियान को शुरू हुए दो महीने पूरे हो चुके हैं। लेकिन कोरोना के टीके पर लोगों का भरोसा अभी भी नहीं बन पाया है। इसी वजह से लोगों में टीका लगवाने को लेकर कोई उत्साह नहीं है। हालांकि लोगों की आशंकाओं को दूर करने के लिए कोरोना की 'नई लहर’ के प्रचार के बीच प्रधानमंत्री सहित कई केंद्रीय मंत्री और कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी कोरोना का टीका लगवा चुके हैं, सरकार ने टीकाकरण को अभियान को अपने नियंत्रण से मुक्त करते हुए उसमें निजी क्षेत्र को भी शामिल कर लिया है। इस सबके बावजूद टीकाकरण अभियान में अपेक्षित तेजी नहीं आ सकी है।

कोरोना के टीकाकरण अभियान को लेकर लोगों में उत्साह नहीं होने की मुख्य वजह यही है कि टीके के प्रभाव यानी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। यही वजह है कि टीकाकरण अभियान के शुरुआती दौर में तो दिल्ली के एक बडे सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों तक ने टीका लगवाने से इंकार कर दिया था। हाल ही में भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने केंद्र सरकार से सूचना के अधिकार के तहत हासिल की गई जो जानकारी सोशल मीडिया में साझा की है, उसके मुताबिक सरकार ने माना है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की वैक्सीन 'कोविशील्ड’ लगाने के बाद देश में 48 लोगों की मौत हो चुकी है।

यह सोचने वाली बात है कि ऑस्ट्रिया में यही वैक्सीन लगाने के बाद एक व्यक्ति की मौत हुई तो उस देश ने अपने यहां इसके इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगा दी। ऑस्ट्रिया के अलावा इटली डेनमार्क, नार्वे, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया आदि देशों ने भी अपने यहां इस वैक्सीन के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इस वैक्सीन को मंजूरी दे चुका है, लेकिन इसके बावजूद अमेरिका ने भी अपने यहां इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी नहीं दी है। लेकिन भारत में 48 लोगों की मौत के बाद भी सरकार के स्तर पर कोई हलचल नहीं है और कॉरपोरेट पोषित मीडिया भी इस पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है।

जहां तक वैक्सीन बनाने वाली कंपनी की बात है, वह भी इस बारे में कुछ नहीं बोल रही है। उसकी चुप्पी की वजह भी बेहद आसानी से समझी जा सकती है। असल में सीरम इंस्टीट्यूट ने सरकार से मंजूरी मिलने के पहले ही जो 20 करोड़ टीके बना लिए थे, उनमें से 25 फीसदी यानी 5 करोड़ टीकों की एक्सपायरी डेट अप्रैल महीने में खत्म होने वाली है। सीरम इंस्टीट्यूट 2 करोड़ टीकों की आपूर्ति पहले ही सरकार को कर चुकी है, जिन्हें एक्सपायरी डेट से पहले ही इस्तेमाल करना जरूरी है, अभी तक दो महीने में महज करीब तीन करोड़ टीके ही उपयोग में आ पाए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक 14 मार्च तक दो करोड़ 97 लाख 38 हजार 409 डोज लगाई जा चुकी थी। इनमें भारत बायोटेक के टीके 'कोवैक्सीन’ भी शामिल हैं। यह स्थिति तब है जब सरकार ने टीकाकरण में निजी क्षेत्र को भी शामिल कर लिया है और टीके के एक डोज की कीमत भी काफी किफायती (महज 250 रुपए) रखी गई है।

गौरतलब है कि सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख कर्ताधर्ता अदार पूनावाला ने पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। समझा जाता है कि उनकी यह मुलाकात अपना तैयार माल खपाने के सिलसिले में ही थी। उस मुलाकात के बाद ही सरकार ने टीकाकरण अभियान को अपने नियंत्रण से मुक्त करते हुए उसमें निजी क्षेत्र को भी शामिल करने का एलान किया था।

लेकिन हकीकत यह भी है कि दुनिया भर में इस वैक्सीन को लेकर सवाल उठ रहे हैं और कई सभ्य देशों ने इस वैक्सीन पर पाबंदी भी लगानी शुरू कर दी है लेकिन भारत सरकार इसकी बुनियादी जांच कराने के लिए भी तैयार नहीं है। जब भी इस वैक्सीन में किसी किस्म की गड़बड़ी की बात सामने आती है या इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठता है तो सरकार की ओर से उसे फौरन खारिज कर दिया जाता है। सवाल अगर किसी राजनीतिक दल की ओर से उठाया जाता है तो उसे राजनीति से प्रेरित करार दे दिया जाता है। सवाल है कि आखिर केंद्र सरकार कब सीरम इंस्टीट्यूट में बन रही ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवालों को कालीन के नीचे दबाती रहेगी? आखिर ऐसी क्या मजबूरी है, जो इस वैक्सीन का इस तरह से बचाव किया जा रहा है? क्या सरकार ने देश के नागरिकों को गिनी पिग समझ लिया है? या फिर वैक्सीन डिप्लोमेसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्व नेता की छवि बनाने में यह वैक्सीन काम आ रही है, इसलिए इस पर उठ रहे सवालों को दबाया जा रहा है?

दरअसल भारत सरकार इस महामारी को शुरू से ही अपने लिए एक बहुआयामी अवसर की तरह देखती रही है। इस महामारी के भारत में प्रवेश के वक्त भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सारे काम छोड़ कर अपनी सरकार को एक बेहद खर्चीली अंतरराष्ट्रीय तमाशेबाजी के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति का खैरमकदम करने में झोंक रखा था। उसके बाद एक दिन के देशव्यापी 'जनता कर्फ्यू’ और फिर दो महीने से ज्यादा के संपूर्ण लॉकडाउन के दौरान भी प्रचार प्रिय और उत्सवधर्मी प्रधानमंत्री की पहल पर ताली-थाली, दीया-मोमबत्ती, सरकारी अस्पतालों पर हवाई जहाज से फूल बरसाने और स्वास्थ्यकर्मियों के सम्मान में सेना का बैंड बजवाने जैसे मेगा इवेंट आयोजित हुए। यही नहीं, इन सभी उत्सवी आयोजनों को कोरोना नियंत्रण का हास्यास्पद श्रेय भी दिया गया। उसी दौरान प्रधानमंत्री का पांच-छह मर्तबा राष्ट्र को संबोधित करना भी एक तरह से इवेंट ही रहा, क्योंकि उनके किसी भी संबोधन में देश को आश्वस्त करने वाली कोई ठोस बात नहीं थी।

आपदा को अवसर में बदलने का 'मंत्र’ देने वाले प्रधानमंत्री और उनकी सरकार ने दो महीने पहले शुरू हुए टीकाकरण अभियान को भी इवेंट अपार्च्यूनिटी के तौर पर ही लिया है। जिस तरह अंतरिक्ष और परमाणु कार्यक्रम के क्षेत्र में दशकों से काम कर रहे देश के वैज्ञानिकों ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, उसी तरह वैक्सीन निर्माण के क्षेत्र में भी भारत के पास दशकों पुराना अनुभव है। भारत की निजी कंपनियां वैक्सीन का परीक्षण और निर्माण कर रही हैं। केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की पहली सरकार बनने के भी बहुत पहले से भारत में विभिन्न संक्रामक रोगों की वैक्सीन का निर्माण हो रहा है और उसे दुनिया के तमाम देशों को भेजा जा रहा है। लेकिन कोरोना वायरस की वैक्सीन के बारे में कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया के जरिए ऐसा प्रचार कराया गया, मानो पहली बार भारत में कोई वैक्सीन बनी है और पहली बार देश में टीकाकरण अभियान शुरू हुआ है।

टीकाकरण को इस तरह से इवेंट में बदल देने और इसका श्रेय लेने की जल्दबाजी का ही यह नतीजा है कि वैक्सीन पर लोगों का भरोसा नहीं बन पा रहा है। चूंकि सरकार, मीडिया और वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने इसे एक इवेंट बना दिया, लिहाजा इससे जुडी हर छोटी-बड़ी बात रिपोर्ट होने लगी। इसमें सोशल मीडिया की भी अपनी भूमिका रही, क्योंकि झूठी सूचनाएं फैलाने के लिए कुख्यात सत्तारुढ दल का आईटी सेल वैक्सीन बनने और लगने की पूरी प्रक्रिया का श्रेय प्रधानमंत्री को देने में और कोरोना के खिलाफ लडाई उन्हें विश्व नेता के तौर प्रचारित करने में लगा हुआ था। जब तमाम छोटी-बड़ी बातें रिपोर्ट होने लगीं तो वैक्सीन के परीक्षण में आई समस्याओं से लेकर टीका लगने के बाद होने वाले साइड इफ़ेक्ट्स की बातें भी लोगों तक पहुंच गईं। ऐसा नहीं है कि यह पहली वैक्सीन है, जिसका साइड इफ़ेक्ट हो रहा है। हर वैक्सीन का साइड इफ़ेक्ट होता है। अब भी बच्चों को तरह-तरह का टीका लगाते हुए डॉक्टर बताते हैं कि बुखार आ सकता है या इंजेक्शन की जगह पर सूजन संभव है। इसके बावजूद लोगों को वैक्सीन पर भरोसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें इवेंट बना कर लांच नहीं किया गया था।

इस बार चूंकि टीकाकरण अभियान को इवेंट बनाना था इसलिए कई पैमानों और मानकों का ध्यान नहीं रखा गया। एक साल के अंदर वैक्सीन तैयार की गई और भारत में एक वैक्सीन को तो तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल का डाटा आए बगैर इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई। अगर इसे इवेंट नहीं बनाया गया होता तो लोग इस बात का नोटिस नहीं लेते या इसके प्रति बहुत सजग नहीं रहते। दूसरी बात यह है कि कोरोना की वैक्सीन के बारे में डॉक्टरों से ज्यादा बातें नेताओं खासकर सरकार में बैठे लोगों ने की हैं। अगर सिर्फ डॉक्टर इसकी बात कर रहे होते तो तमाम कमियों के बावजूद लोगों का इस पर भरोसा बनता। लेकिन डॉक्टर की बजाय प्रधानमंत्री वैक्सीन की बात करते थे। वे वैक्सीन बनते हुए देखने दवा कंपनियों की फैक्टरी में चले गए। इसकी तैयारियों पर भी वे लगातार बैठकें करते रहे- कभी मुख्यमंत्रियों के साथ तो कभी नौकरशाहों और विशेषज्ञों के साथ। सिर्फ प्रधानमंत्री की इन्हीं गतिविधियों की खबरें मीडिया में छाई रहीं। वैक्सीन पर बनी विशेषज्ञ समिति और दूसरे डॉक्टरों की बातों का जिक्र ही नहीं हुआ। वैक्सीन की मंजूरी से लेकर इसके लांच होने तक सेटेलाइट प्रक्षेपण या मिसाइल परीक्षण की तरह उलटी गिनती चली और फिर एक बडे इंवेट में इसे लांच किया गया।

कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के इवेंट प्रेम का ही यह नतीजा है कि सरकार अब वैक्सीन की प्रभावी और विश्वसनीय होने पर उठ रहे सवालों पर न सिर्फ चुप्पी साधे हुए है बल्कि वह वैक्सीन की बुनियादी जांच कराने से भी बच रही है।

(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Coronavirus
COVID-19
corona vaccine
Covishield
BJP
Modi government

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • MGNREGA
    सरोजिनी बिष्ट
    ग्राउंड रिपोर्ट: जल के अभाव में खुद प्यासे दिखे- ‘आदर्श तालाब’
    27 Apr 2022
    मनरेगा में बनाये गए तलाबों की स्थिति का जायजा लेने के लिए जब हम लखनऊ से सटे कुछ गाँवों में पहुँचे तो ‘आदर्श’ के नाम पर तालाबों की स्थिति कुछ और ही बयाँ कर रही थी।
  • kashmir
    सुहैल भट्ट
    कश्मीर में ज़मीनी स्तर पर राजनीतिक कार्यकर्ता सुरक्षा और मानदेय के लिए संघर्ष कर रहे हैं
    27 Apr 2022
    सरपंचों का आरोप है कि उग्रवादी हमलों ने पंचायती सिस्टम को अपंग कर दिया है क्योंकि वे ग्राम सभाएं करने में लाचार हो गए हैं, जो कि जमीनी स्तर पर लोगों की लोकतंत्र में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए…
  • THUMBNAIL
    विजय विनीत
    बीएचयू: अंबेडकर जयंती मनाने वाले छात्रों पर लगातार हमले, लेकिन पुलिस और कुलपति ख़ामोश!
    27 Apr 2022
    "जाति-पात तोड़ने का नारा दे रहे जनवादी प्रगतिशील छात्रों पर मनुवादियों का हमला इस बात की पुष्टि कर रहा है कि समाज को विशेष ध्यान देने और मज़बूती के साथ लामबंद होने की ज़रूरत है।"
  • सातवें साल भी लगातार बढ़ा वैश्विक सैन्य ख़र्च: SIPRI रिपोर्ट
    पीपल्स डिस्पैच
    सातवें साल भी लगातार बढ़ा वैश्विक सैन्य ख़र्च: SIPRI रिपोर्ट
    27 Apr 2022
    रक्षा पर सबसे ज़्यादा ख़र्च करने वाले 10 देशों में से 4 नाटो के सदस्य हैं। 2021 में उन्होंने कुल वैश्विक खर्च का लगभग आधा हिस्सा खर्च किया।
  • picture
    ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
    डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अर्जेंटीना ने लिया 45 अरब डॉलर का कर्ज
    27 Apr 2022
    अर्जेंटीना की सरकार ने अपने देश की डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के साथ 45 अरब डॉलर की डील पर समझौता किया। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License