NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
समाज
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
मंगलेश डबराल नहीं रहे
आज यह एक पंक्ति लिखना कितना मुश्किल है, कितना भारी... शायद हज़ार लेख और ख़बरों से भी ज़्यादा
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
09 Dec 2020
मंगलेश डबराल

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त देश के प्रतिष्ठित कवि मंगलेश डबराल नहीं रहे। आज बुधवार रात दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उन्होंने आख़िरी सांस ली। वे पिछले दिनों कोरोना से संक्रमित हो गए थे। पहले उनका ग़ाज़ियाबाद के एक अस्पताल में इलाज चला। सुधार न होने पर उन्हें दिल्ली के एम्स लाया गया। यहां वे वेंटिलेटर पर रखे गए।

उनके निधन की ख़बर सुनते ही देश में शोक की लहर दौड़ गई है। मंगलेश जी न केवल एक संवेदनशील कवि-लेखक थे, बल्कि वे कला के भी पारखी थे और पत्रकार भी।

16 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल में जन्में मंगलेश डबराल पूरे जीवन में वे एक वाम लोकतांत्रिक व्यापक विचार पर अडिग रहे और अपने लेखन में जनवाद की हिमायत करते रहे। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित इस कवि ने अपने विचार और व्यापक जनहित में अपना पुरस्कार भी वापस करने से गुरेज नहीं किया और इसके लिए दक्षिणपंथी नेताओं और ट्रोल आर्मी के तीखे हमले भी झेले।

मंगलेश जी ने वर्ष 2015 में देश में बढ़ती असहिष्णुता और कन्नड़ के प्रख्यात साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था।

उनके लेखन के तेवर और तासीर आप इन चंद पंक्तियों से लगा सकते हैं। ‘तानाशाह’ शीर्षक की कविता में वह कहते हैं-

तानाशाह सुन्दर दिखने की कोशिश करते हैं,

आकर्षक कपड़े पहनते हैं,

बार-बार सज-धज बदलते हैं,

लेकिन यह सब अन्तत: तानाशाहों का मेकअप बनकर रह जाता है।

इतिहास में कई बार तानाशाहों का अन्त हो चुका है,

लेकिन इससे उन पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता

क्योंकि उन्हें लगता है वे पहली बार हुए हैं।

इस 72 साल के जीवन में मंगलेश जी के कई कविता संकलन आए। पहाड़ पर लालटेन (1981), घर का रास्ता (1988), हम जो देखते हैं (1995), आवाज़ भी एक जगह है और  सबसे नया कविता संग्रह रहा- नए युग में शत्रु। ‘हम जो देखते हैं’ के लिए ही उन्हें वर्ष 2000 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला।

मंगलेश जी साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था जन संस्कृति मंच (जसम) से लंबे समय से जुड़े थे और वर्तमान में उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे।

न केवल भारतीय भाषाओं में मंगलेश जी की कविताओं का अनुवाद हुआ बल्कि अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, फ्रांसीसी, स्पानी, इतालवी, पुर्तगाली, बल्गारी, पोल्स्की आदि विदेशी भाषाओं के कई संकलनों और पत्र-पत्रिकाओं में मंगलेश डबराल की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हुए।

अपने नए कविता संग्रह- नए युग में शत्रु में वे इसी नाम से कविता में लिखते हैं-

अंततः हमारा शत्रु भी एक नए युग में प्रवेश करता है

अपने जूतों कपड़ों और मोबाइलों के साथ

वह एक सदी का दरवाज़ा खटखटाता है

और उसके तहख़ाने में चला जाता है

जो इस सदी और सहस्राब्दी के भविष्य की ही तरह अज्ञात है

वह जीत कर आया है और जानता है कि अभी पूरी तरह नहीं जीता है

उसकी लड़ाइयाँ बची हुई हैं

हमारा शत्रु किसी एक जगह नहीं रहता

लेकिन हम जहाँ भी जाते हैं पता चलता है वह और कहीं रह रहा है

अपनी पहचान को उसने हर जगह अधिक घुला-मिला दिया है

जो लोग ऊँची जगहों में भव्य कुर्सियों पर बैठे हुए दिखते हैं

वे शत्रु नहीं सिर्फ़ उसके कारिंन्दे हैं

जिन्हें वह भर्ती करता रहता है ताकि हम उसे खोजने की कोशिश न करें

 

वह अपने को कम्प्यूटरों, टेलीविजनों, मोबाइलों

आइपैडों की जटिल आँतों के भीतर फैला देता है

किसी महँगी गाड़ी के भीतर उसकी छाया नज़र आती है

लेकिन वहाँ पहुँचने पर दिखता है वह वहाँ नहीं है

बल्कि किसी दूसरी और ज़्यादा नई गाड़ी में बैठ कर चल दिया है

कभी लगता है वह किसी फ़ैशन परेड में शिरक़त कर रहा है

लेकिन वहाँ सिर्फ़ बनियानों और जाँघियों का ढेर दिखाई देता है

हम सोचते हैं शायद वह किसी ग़रीब के घर पर हमला करने चला गया है

लेकिन वह वहाँ से भी जा चुका है

वहां एक परिवार अपनी ग़रीबी में से झाँकता हुआ टेलीविजन देख रहा

जिस पर एक रंगीन कार्यक्रम आ रहा है

 

हमारे शत्रु के पास बहुत से फ़ोन नंबर हैं, ढेरों मोबाइल

वह लोगों को सूचना देता है आप जीत गए हैं

एक विशाल प्रतियोगिता में आपका नाम निकल आया है

आप बहुत सारा कर्ज़ ले सकते हैं, बहुत-सा सामान ख़रीद सकते हैं

एक अकल्पनीय उपहार आपका इन्तज़ार कर रहा है

लेकिन पलट कर फ़ोन करने पर कुछ नहीं सुनाई देता

 

हमारा शत्रु कभी हमसे नहीं मिलता सामने नहीं आता

हमें ललकारता नहीं

हालाँकि उसके आने-जाने की आहट हमेशा बनी रहती है

कभी-कभी उसका संदेश आता है कि अब कहीं शत्रु नहीं है

हम सब एक दूसरे के मित्र हैं

आपसी मतभेद भुलाकर

आइए, हम एक ही थाली में खाएँ एक ही प्याले से पिएँ

वसुधैव कुटुम्बकम् हमारा विश्वास है

धन्यवाद और शुभरात्रि ।

manglesh dabral
Manglesh Dabral dies
writer
poet

Related Stories

स्मृति शेष: वह हारनेवाले कवि नहीं थे

सरकारी कार्यक्रम में सीएए विरोधी कविता पढ़ने के मामले में कवि और पत्रकार गिरफ़्तार

विशेष : पाब्लो नेरुदा को फिर से पढ़ते हुए

“तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले, अब तक कहाँ छिपे थे भाई...”

फ़हमीदा की ‘वसीयत’- “मुझे कोई सनद न देना दीनदारी की…”

इस ‘खोटे’ समय में एक ‘खरे’ कवि का जाना...


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत
    14 May 2022
    देश में आज चौथे दिन भी कोरोना के 2,800 से ज़्यादा मामले सामने आए हैं। आईआईटी कानपूर के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. मणींद्र अग्रवाल कहा है कि फिलहाल देश में कोरोना की चौथी लहर आने की संभावना नहीं है।
  • afghanistan
    पीपल्स डिस्पैच
    भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी
    14 May 2022
    आईपीसी की पड़ताल में कहा गया है, "लक्ष्य है कि मानवीय खाद्य सहायता 38% आबादी तक पहुंचाई जाये, लेकिन अब भी तक़रीबन दो करोड़ लोग उच्च स्तर की ज़बरदस्त खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। यह संख्या देश…
  • mundka
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड : 27 लोगों की मौत, लेकिन सवाल यही इसका ज़िम्मेदार कौन?
    14 May 2022
    मुंडका स्थित इमारत में लगी आग तो बुझ गई है। लेकिन सवाल बरकरार है कि इन बढ़ती घटनाओं की ज़िम्मेदारी कब तय होगी? दिल्ली में बीते दिनों कई फैक्ट्रियों और कार्यस्थलों में आग लग रही है, जिसमें कई मज़दूरों ने…
  • राज कुमार
    ऑनलाइन सेवाओं में धोखाधड़ी से कैसे बचें?
    14 May 2022
    कंपनियां आपको लालच देती हैं और फंसाने की कोशिश करती हैं। उदाहरण के तौर पर कहेंगी कि आपके लिए ऑफर है, आपको कैशबैक मिलेगा, रेट बहुत कम बताए जाएंगे और आपको बार-बार फोन करके प्रेरित किया जाएगा और दबाव…
  • India ki Baat
    बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून
    13 May 2022
    न्यूज़क्लिक के नए प्रोग्राम इंडिया की बात के पहले एपिसोड में अभिसार शर्मा, भाषा सिंह और उर्मिलेश चर्चा कर रहे हैं बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून की। आखिर क्यों सरकार अड़ी हुई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License