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भारत
राजनीति
यूपी: योगी 2.0 में उच्च-जाति के मंत्रियों का दबदबा, दलितों-पिछड़ों और महिलाओं की जगह ख़ानापूर्ति..
52 मंत्रियों में से 21 सवर्ण मंत्री हैं, जिनमें से 13 ब्राह्मण या राजपूत हैं।
नीलांजन मुखोपाध्याय
02 Apr 2022
Yogi Adiyanath

यह संकेत मिलने के बाद कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर नरेंद्र मोदी बनाम योगी आदित्यनाथ का मुकाबला, योगी 2.0 के शपथ ग्रहण समारोह में मोदी के पक्ष में तय हो गया था, जहां प्रधानमंत्री स्पष्ट रूप से पूरे जलसा के सिरमौर थे, पर ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री योगी केंद्र के वर्चस्व को पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।

हालांकि मंत्रियों के विभागों के बंटवारे के बाद स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री अपना विस्तार कम होने के बावजूद अपनी स्वायत्तता स्थापित करने के अवसर यों ही लगातार गंवाते नहीं रहेंगे। इसका वृतांत यह है कि संघ परिवार के भीतर से मोदी के लिए प्रभावी रूप से पहली चुनौती मिलने की संभावना है।

भाजपा के भीतर जारी इस नैरेटिव को जिस पर अत्यधिक सावधानी के साथ चर्चा की जाती है, उसकी जांच से पहले तथ्यों का एक आवश्यक पुलिंदा पर विचार करना लाजिमी है। ब्रजेश मिश्रा अब नए उपमुख्यमंत्री हैं, जो योगी की पहली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे थे। 

पाठक मूल रूप से बहुजन समाज पार्टी से आते हैं, जिन्हें अमित शाह की उपस्थिति में भाजपा में शामिल किया गया था। इसके कुछ सप्ताह बाद ही मार्च 2017 में उन्हें योगी के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। तब पाठक को कानून और न्याय मंत्रालय के अलावा अतिरिक्त ऊर्जा संसाधन और राजनीतिक पेंशन विभाग का प्रभार दिया गया था।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब अगस्त 2019 में पहली बार मंत्रिमंडल में फेरबदल किया तो ब्रजेश पाठक के पोर्टफोलियो में मामूली बदलाव किए गए थे। हालांकि, पाठक द्वारा पिछले साल कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के प्रबंधन में कमी और राज्य में स्वास्थ्य संरचना की स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त करने के बाद दोनों के संबंध तल्ख हो गए थे।

तब मंत्री ब्रजेश पाठक का स्वास्थ्य सचिव को लिखा एक पत्र मीडिया में प्रकाशित हो गया था, जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोई प्रेम भाव से नहीं लिया था। अपने उस पत्र में पाठक ने लखनऊ की स्थिति को ‘चिंताजनक’ बताते हुए लिखा था कि “अस्पतालों में कोई बिस्तर नहीं है और मरीजों को न तो समय पर एम्बुलेंस मिल रही है और न ही उनका इलाज हो रहा है”

इसके चार महीने बाद, पाठक कोविड-19 से निपटने के मामले में सही पाए गए और यह भी संकेत दिया कि तब राज्य सरकार की अक्षमता को रेखांकित करने में वे गलत नहीं थे क्योंकि कई मंत्रियों और विधायकों की कोरोना महामारी से इलाज के अभाव में मौत हो गई थी। 

पाठक के पत्र के बाद भाजपा के अन्य नेताओं ने भी उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज की आलोचना की। इसमें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार भी शामिल थे, जिन्हें मोदी ने जुलाई 2021 में मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया था। लेकिन पाठक को आदित्यनाथ सरकार के खराब प्रदर्शन पर लिखे पत्र को सार्वजनिक करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। संभवतः इसलिए कि उन्हें केंद्रीय नेतृत्व का आशीर्वाद प्राप्त था।

उपमुख्यमंत्री के रूप में पाठक को उनके साथ साट दिए जाने के बाद, योगी आदित्यनाथ ने वह सब किया जो उनकी शक्ति-सामर्थ्य के दायरे में था- उन्हें अपेक्षाकृत मामूली विभाग आवंटित करने का। ब्रजेश पाठक को चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, मातृ और बाल कल्याण दिया गया है। गौरतलब है कि ये सभी विभाग वही हैं, जिनके बारे में पाठक ने पिछले साल मंत्री रहते हुए शिकायत की थी। तो योगी सरकार 2.0 का संदेश स्पष्ट है- अगर आपको इन विभागों के साथ कोई समस्या है, तो ‘उनका प्रबंधन’ बेहतर करें।

लेकिन आदित्यनाथ ने पोर्टफोलियो आवंटन में 'सर्वव्यापी प्रतिशोध' का विकल्प नहीं चुना है, और वे सभी विभागों के आवंटन में 'प्रतिशोधपूर्ण' रवैया नहीं अपना सकते थे। उदाहरण के लिए, केशव प्रसाद मौर्य जो मुख्यमंत्री के वफादार नहीं हैं पर जिनमें पार्टी नेतृत्व द्वारा फिर से विश्वास व्यक्त किया गया है, उन्हें कांग्रेस से आए नेता जितिन प्रसाद के लिए अपना महत्त्वपूर्ण महकमा लोक निर्माण विभाग छोड़ना पड़ा है। 

लेकिन, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, जो आश्चर्यजनक रूप से अपना चुनाव हार गए, उनको शक्तिशाली और संसाधन संपन्न ग्रामीण विकास मंत्रालय और ग्रामीण इंजीनियरिंग, मनोरंजन कर, खाद्य प्रसंस्करण, सार्वजनिक उद्यमों और राष्ट्रीय एकीकरण सहित छह अन्य विभागों का प्रभार देकर एक तरह से हार की 'क्षतिपूर्ति' कर दी गई है। 

लेकिन योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले कार्यकाल में स्वायत्तता को बनाए रखने और दूसरी पारी में उदारता बरतने के बीच संतुलन को कड़ाई से साधते हुए न केवल नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र अरविंद कुमार शर्मा को कैबिनेट में शामिल किया, बल्कि उन्हें शहरी विकास, समग्र शहरी विकास, शहरी रोजगार और गरीबी उन्मूलन, ऊर्जा, ऊर्जा के अतिरिक्त स्रोतों की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी आवंटित कीं।

यह निर्णय यह भी इंगित करता है कि इन महत्त्वपूर्ण विभागों के कामकाज से संबंधित मामलों पर, मंत्री और पीएमओ के बीच 'प्रत्यक्ष समन्वय' होगा।

यहाँ यह भी याद रखने की आवश्यकता है कि अरविंद कुमार शर्मा ने समय से पहले सेवानिवृत्ति की मांग की थी, जब 2020 के अंत में, आदित्यनाथ और पीएमओ के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए थे क्योंकि मुख्यमंत्री ने पीएमओ के इशारे पर नहीं बल्कि स्वतंत्र रूप से राजकाज चलाने की टेक लगा रखी थी। जब शर्मा को विधान परिषद के लिए 'निर्वाचित' बनाया गया, तो यह व्यापक रूप से माना गया कि उन्हें कोई राजनीतिक भूमिका निभाने के मकसद से उत्तर प्रदेश भेजा गया था।

तब इसे योगी आदित्यनाथ ने खारिज कर दिया था। उन्होंने 2021 के दौरान और चुनावी अभियान के शुरुआती समय में खुद पर ही फोकस रखा था। मोदी-शाह की जोड़ी ने स्थिति बिगाड़ने की बजाए आदित्यनाथ को 'सीधा' करने की कोशिश की क्योंकि उन्हें यकीन नहीं था कि राज्य के लोग अपनी खराब भौतिक स्थिति, कोविड महामारी का खराब प्रबंधन और अर्थव्यवस्था को सुचारु चलाने में योगी सरकार की अक्षमता को लेकर उनके पक्ष में मतदान नहीं करेंगे।

लेकिन चुनाव अभियान के बीच से, जब मोदी-शाह जोड़ी ने अधिक 'दृश्यमान बढ़त' ली और जो फैसले के बाद भी कायम रही तो इसे सचित्र रखते हुए लगा कि 'एम्पायर' अपनी जगह पर वापस आ गया। मोदी ने उत्तर प्रदेश में जीत का दावा करते हुए गुजरात में विजय रैलियों से पार्टी के चुनावी अभियान की शुरुआत की। यहां मोदी ने आदित्यनाथ के लिए 2022-2027 तक के जनादेश की घोषणा की। इसके बारे में कहा गया कि यह घोषणा करते समय मोदी के दिमाग में योगी की भूमिका मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश तक सीमित रखने की बात थी।

दूसरों से श्रेष्ठ होने के इस खेल में आदित्यनाथ भाजपा के अन्य लचीले मुख्यमंत्रियों से 'भिन्न' दिखने की कोशिश करते हैं, जबकि केंद्रीय नेतृत्व उन्हें केंद्र और राज्य के नेता के बीच सत्ता समीकरण के बारे में पार्टी के खाके की याद दिलाता रहता है पर इनके बीच कुछ खास रवायतें जारी रहती हैं।

सबसे पहले, भाजपा के अपनी सोशल इंजीनियरिंग अधिनियम को एक साथ लाने का शोर-शराबा करने और ओबीसी एवं दलितों के बीच गैर प्रमुख उप जातियों में घुसपैठ करने के बावजूद, योगी मंत्रिमंडल के 52 सदस्यों में से 21 उच्च जाति के मंत्री हैं, जिनमें से 13 ब्राह्मण या राजपूत हैं।

मंत्रिमंडल न केवल मुस्लिम की नगण्य भागीदारी है बल्कि महिलाओं का भी बहुत कम प्रतिनिधित्व है-इनमें केवल एक कैबिनेट मंत्री हैं और तीन जूनियर हैं। यहां तक कि विभागों के चयन में भी प्रबल रूढ़िवादिताएं हैं: महिलाओं को केवल महिला कल्याण और बाल पोषण या अन्य नरम मंत्रालयों का प्रभार दिया गया है जबकि मुस्लिम समुदाय के एकमात्र मंत्री अपने समुदाय से संबंधित मामलों की ही देखभाल करेंगे।

इसी तरह, संजय निषाद मत्स्य पालन विभाग तक ही सीमित थे और पूर्व आईपीएस अधिकारी असीम अरुण को समाज कल्याण, अनुसूचित जाति और जनजातीय कल्याण मंत्रालयों/विभागों का प्रभार दिया गया था, जो कि अनुसूचित जातियों से संबंधित मामलों से पूरी तरह या काफी हद तक देखता है। अरुण खुद भी इसी समुदाय से आते हैं।

दलितों, विशेषकर जाटवों का भाजपा के प्रति समर्थन बढ़ने के बावजूद योगी 2.0 में दलित मंत्रियों की संख्या आठ ही बनी हुई है, जो इंगित करता है कि भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग प्रतिनिधित्व को जनसांख्यिकीय उपस्थिति से जोड़ने की नहीं है। 

2024 के आम चुनाव का अधिकांश स्वरूप यूपी सरकार के प्रदर्शन, मोदी-शाह की जोड़ी और योगी आदित्यनाथ के बीच सहज संबंधों पर निर्भर करेगा, विशेष रूप से सरकार के कामकाज के संदर्भ में और इसके साथ ही पार्टी मशीनरी में उनका पूर्ण एकीकरण (जो हिंदू युवा मंच को पूरी तरह से खत्म करना भी शामिल है) से तय होगा। साथ ही, वह इस बात पर भी तय होगा कि विपक्ष भाजपा द्वारा प्रदान किए गए अवसरों का उपयोग कर उसका कितना लाभ उठा पाता है।

एक अन्य मुद्दे का भी यहां उल्लेख करने की आवश्यकता है, जिस पर बहुत कम चर्चा की गई है, वह यह कि उत्तर प्रदेश के सभी जिलों को समान रूप से पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। राज्य के 75 में से लगभग आधे जिलों से कोई मंत्री नहीं हैं, जिनमें पांच प्रशासनिक इकाइयों में से चार शामिल हैं, वहां पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती है। इसके विपरीत, कई जिलों से कई मंत्री बनाए गए हैं। आश्चर्यजनक रूप से वाराणसी से तीन मंत्री बनाए गए हैं।

(नीलांजन एनसीआर के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं। दि डिमोलिशन एंड दि वर्डिक्टः अयोध्या एंड दि प्रोजेक्ट टू रिकंफिगर इंडिया उनकी नवीनतम पुस्तक है। उनकी अन्य पुस्तकें हैं- दी आरएसएस: आइकॉन्स ऑफ दि इंडियन राइट एंड नरेन्द्र मोदीः दि मैन, दि टाइम्स। उनको @NilanjanUdwin पर ट्वीट किया जा सकता है।)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:

UP: Heavy Dominance of Upper-Castes Ministers in Yogi 2.0, Under-representation of Women and Muslims

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