NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
उत्पीड़न
भारत
राजनीति
गैंगरेप पीड़ित परिवार के ख़िलाफ़ क्यों खड़ी है योगी सरकार?
हाथरस की घटना में पीड़िता की मौत हुई है इससे बड़ा सच कुछ नहीं हो सकता। मरने से पहले पीड़िता ने गैंगरेप करने वालों के नाम बताए हैं। यह मृत्युपूर्व बयान है जिस पर शक करने का अधिकार कानूनन किसी को नहीं है, पुलिस को भी नहीं।
प्रेम कुमार
03 Oct 2020
गैंगरेप पीड़ित परिवार के ख़िलाफ़ क्यों खड़ी है योगी सरकार?

हाथरस गैंगरेप-मर्डर केस में योगी सरकार पीड़ित पक्ष के ही खिलाफ खड़ी दिख रही है। नार्को टेस्ट कराने का फैसला इसका बड़ा, मजबूत और ताजातरीन उदाहरण है। दोनों पक्ष का नार्को टेस्ट समझ से परे है। नार्को टेस्ट इसलिए कराया जाता है ताकि झूठ पकड़ा जा सके। हाथरस की घटना में पीड़िता की मौत हुई है इससे बड़ा सच कुछ नहीं हो सकता। मरने से पहले पीड़िता ने गैंगरेप करने वालों के नाम बताए हैं। यह मृत्युपूर्व बयान है जिस पर शक करने का अधिकार कानूनन किसी को नहीं है, पुलिस को भी नहीं। ऐसे में पीड़ित पक्ष का नार्को टेस्ट बताता है कि शक आरोपी पक्ष से ज्यादा पीड़ित पक्ष पर है। ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो योगी सरकार और उसके प्रशासन को गैंगरेप पीड़िता के खिलाफ खड़ा दिखाते हैं।

क्यों लगाई मीडिया पर पाबंदी, पहरे में रहा पीड़ित परिवार?

पूरे हाथरस को पुलिस छावनी में बदल दिया गया। मीडिया तक के प्रवेश पर रोक लगा दी गयी। आज 3 सितंबर को बात करने की इजाजत दी गई। इससे पहले कर्फ्यू जैसे माहौल में उस एसआईटी ने कथित जांच की जिसका गठन 30 सितंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था। मगर, यह कैसी जांच थी कि पीड़िता के परिवार को समाज से अलग-थलग रखा गया। उनके मोबाइल फोन छीन लिए गये। सुबह से देर रात तक महिला पत्रकारों समेत किसी भी पत्रकार को रिपोर्टिंग करने नहीं दी गयी। देश स्तब्ध था। टीवी पर एक-एक पल का नज़ारा सामने दिख रहा था। सिर्फ प्रतिबंध नहीं था, एक जबरदस्ती थी। पुलिसवालों की अभद्रता, धक्का-मुक्की और पत्रकारों को रिपोर्टिंग से रोकने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए गये। ये घटनाएं ऐसा संदेश बिल्कुल नहीं दे रही थीं कि पीड़ित परिवार के साथ न्याय किया जा रहा है।

किसने की फोन टैपिंग, क्या ये स्टिंग है?

2 अक्टूबर की शाम होते-होते एक निजी न्यूज चैनल में फोन पर हुई बातचीत के दो अंश प्रसारित किए जाते हैं। इनमें बातचीत पीड़िता के परिजन और पत्रकार के बीच है। जबकि, एक अन्य बातचीत में एक स्थानीय व अन्य हैं। इस बातचीत के माने-मतलब लगाकर इसे स्टिंग बताया जाता है और नैरेटिव बनायी जाती है कि पीड़िता परिवार को लोभ-लालच देकर गलतबयानी के लिए उकसाया जा रहा था। आरोप मीडिया के एक धड़े पर और कांग्रेस पर लगाया गया।

मीडिया का वह धड़ा भी पीड़ित परिवार से मिलने और रिपोर्टिंग करने के लिए मैदान में खड़ा था और कांग्रेस भी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी हाथरस नहीं जा सके क्योंकि उनके साथ भी धक्का-मुक्की हुई। भारी पुलिस बल ने पीड़ित परिवार के लिए सहानुभूति दिखाने वालों को हाथरस जाने से रोक दिया। और, अब उन पर ही उल्टे इल्जाम मढ़ दिए गये। इस कदम से भी योगी सरकार की तनिक भी सहानुभूति पीड़ित के लिए नज़र नहीं आती।

इंडिया टुडे समूह ने एक बयान जारी कर पूछा है कि उसके रिपोर्टर की मोबाइल किस कानून और अधिकार के तहत टैप की गयी। या फिर लड़की के भाई के फोन को भी सर्विलांस पर क्यों रखा गया? निश्चित रूप से इस कार्रवाई को एक योजना के तहत ही अंजाम दिया गया है। इसके नतीजे जल्द देखने को मिलेंगे। जिन लोगों ने भी पीड़िता के लिए आवाज़ उठाने की कोशिश की है उन्हें इस फोन टैपिंग के जरिए फंसाया जाने वाला है, इसकी आशंका बन आयी है।

क्यों नहीं हुआ श्मशान घाट में ‘अंतिम संस्कार’, क्यों खेत में जला दी गयी लाश?

योगी सरकार का बदला हुआ रुख तब भी बहुत वीभत्स दिखा जब रातों रात पीड़िता को हाथरस ले जाया गया लेकिन उसका ‘अंतिम संस्कार’ नहीं होने दिया गया। एक मां की विनती ठुकरा दी गयी कि वह अपनी बेटी का अंतिम बार मुंह देखना चाहती है। पूरे परिवार को उसके घर में बंद कर बाहर भारी पुलिस बल का पहरा बिठा दिया गया। लाश को न जाने किस ज्वलनशील पदार्थ से आग के हवाले कर दिया गया। यह किसी भी दृष्टि से ‘अंतिम संस्कार’ नहीं था।

अब तक यह मामला मीडिया में सुर्खियां पा चुका था लिहाजा रात 2 बजे के बाद लाश जलाने का फैसला सिर्फ पुलिस या स्थानीय प्रशासन का नहीं हो सकता। एक तस्वीर भी इस बात की पुष्टि करती है जो इन दिनों में सोशल मीडिया में तैर रही है। इस तस्वीर में योगी आदित्यनाथ जलती हुई लाश को एक लैपटॉप पर देख रहे हैं। यह पता नहीं कि वह वीडियो उसी वक्त देख रहे थे या फिर बाद में। बहरहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मसले पर सरकार और प्रशासन को नोटिस जारी कर गलत को गलत बोलने वालों के लिए उम्मीद जिन्दा रखी है।

पुलिस की लापरवाही से नहीं, हैरानी सरकार के रुख से

14 सितंबर को हाथरस में घटी गैंगरेप की घटना में पुलिस की लापरवाही कतई नहीं चौंकाती है। ऐसे मामलों में पीड़ित पक्ष से कमाई नहीं होती है और अमूमन पुलिस दोषी पक्ष से लेन-देन करती है- यह बात देश का आम नागरिक बगैर किसी सबूत के भी मान लेता है। मगर, जब मामला बड़ा होता जाता है, सरकार की नज़र में आता है तो बड़े अधिकारियों की देखरेख में ‘गलती’ सुधार ली जाती है- यह भी देश के लोग मान कर चलते हैं। हाथरस गैंगरेप में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

अलीगढ़ के अस्पताल में 13 दिन तक इलाज होता रहा। पुलिस ने देर से ही सही मगर लड़की का बयान लिया, गैंगरेप की बात लड़की ने बतायी और नाम भी लिए। यह सब रिकॉर्ड में है। छेड़खानी के आरोप में गिरफ्तार अभियुक्तों पर गैंगरेप की धारा पुलिस को देर से ही सही, लेकिन लगानी पड़ी। मगर, आश्चर्य की बात है कि उसी अस्पताल के न्यूरो सर्जन जिनकी निगरानी में पीड़िता थी उनका बयान आता है कि गैंगरेप की बात उन्हें नहीं मालूम!

पीड़िता के परिजन लगातार ब्लीडिंग होने की बात बताते रहे, किसी ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया! पीड़िता की हालत बिगड़ती चली गयी और इसके पीछे यह बड़ा कारण था। जब पीड़िता को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर किया जा रहा था तब भी प्रशासन या सरकार को एअर लिफ्ट देनी चाहिए थी। मगर, नहीं दी गयी। युवती नहीं बची।

यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि गैंगरेप केस में पहले छेड़खानी का केस दर्ज हुआ। पीड़िता के बयान दर्ज करने की जरूरत नहीं समझी गयी। देर से बयान लेने पुलिस पहुंची और जब मामला सुर्खियों में आया तो 22 सितंबर को गैंगरेप का केस दर्ज हुआ। इस दौरान परिजन कहते रहे कि बच्ची बगैर कपड़ों में मिली थी, उसके जीभ कटी थे, वह बोल नहीं पा रही थी, वह चलने लायक नहीं थी। मगर, पुलिस ने संज्ञान नहीं लिया। आरोपियों की गिरफ्तारी भी तुरंत नहीं हुई। और गैंगरेप की धाराएं तो बाद में लगायी गयी।

क्या अन्याय नहीं है गैंगरेप पीड़ित परिवार का नार्को टेस्ट?

दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में यहां तक भी स्थिति को मन मारकर लोग स्वीकार करते हैं, प्रशासन को कोसते हैं, सरकार को कोसते हैं। मगर, अचानक पुलिस के आला अधिकारियों के बयान आने लगे कि लड़की से बलात्कार नहीं हुआ!  तो, आश्चर्य की सीमा भी अनंत हो जाती है। मरने वाली युवती के मुंह से कैमरे पर लिया गया बयान क्या इस तरह से खारिज हो सकता है! अदालत से बाहर कोई इस बयान को झुठला नहीं सकता। मगर, झुठलाया गया। पुलिस अफसर और सत्ताधारी नेताओं ने इसे झुठलाया। यहीं से यह दिखने लगा कि योगी सरकार की सहानुभूति पीड़ित पक्ष के साथ नहीं है। अब दोषी लोगों के साथ पीड़ित परिवार को भी रख दिया गया है। उनका भी नार्को टेस्ट होगा– यह अन्याय है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

UP Hathras GangRape
Hathras Rape case
Yogi Adityanath
UP police
UP Administration
UP Law And Order
crimes against women
sexual harassment
rape case
CRIMES IN UP

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

चंदौली पहुंचे अखिलेश, बोले- निशा यादव का क़त्ल करने वाले ख़ाकी वालों पर कब चलेगा बुलडोज़र?

यूपी : महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के विरोध में एकजुट हुए महिला संगठन

चंदौली: कोतवाल पर युवती का क़त्ल कर सुसाइड केस बनाने का आरोप

प्रयागराज में फिर एक ही परिवार के पांच लोगों की नृशंस हत्या, दो साल की बच्ची को भी मौत के घाट उतारा

प्रयागराज: घर में सोते समय माता-पिता के साथ तीन बेटियों की निर्मम हत्या!

बिहार: आख़िर कब बंद होगा औरतों की अस्मिता की क़ीमत लगाने का सिलसिला?

उत्तर प्रदेश: योगी के "रामराज्य" में पुलिस पर थाने में दलित औरतों और बच्चियों को निर्वस्त्र कर पीटेने का आरोप

बिहार: 8 साल की मासूम के साथ बलात्कार और हत्या, फिर उठे ‘सुशासन’ पर सवाल


बाकी खबरें

  • जितेन्द्र कुमार
    मुद्दा: बिखरती हुई सामाजिक न्याय की राजनीति
    11 Apr 2022
    कई टिप्पणीकारों के अनुसार राजनीति का यह ऐसा दौर है जिसमें राष्ट्रवाद, आर्थिकी और देश-समाज की बदहाली पर राज करेगा। लेकिन विभिन्न तरह की टिप्पणियों के बीच इतना तो तय है कि वर्तमान दौर की राजनीति ने…
  • एम.ओबैद
    नक्शे का पेचः भागलपुर कैंसर अस्पताल का सपना अब भी अधूरा, दूर जाने को मजबूर 13 ज़िलों के लोग
    11 Apr 2022
    बिहार के भागलपुर समेत पूर्वी बिहार और कोसी-सीमांचल के 13 ज़िलों के लोग आज भी कैंसर के इलाज के लिए मुज़फ़्फ़रपुर और प्रदेश की राजधानी पटना या देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य बड़े शहरों का चक्कर काट…
  • रवि शंकर दुबे
    दुर्भाग्य! रामनवमी और रमज़ान भी सियासत की ज़द में आ गए
    11 Apr 2022
    रामनवमी और रमज़ान जैसे पर्व को बदनाम करने के लिए अराजक तत्व अपनी पूरी ताक़त झोंक रहे हैं, सियासत के शह में पल रहे कुछ लोग गंगा-जमुनी तहज़ीब को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगे हैं।
  • सुबोध वर्मा
    अमृत काल: बेरोज़गारी और कम भत्ते से परेशान जनता
    11 Apr 2022
    सीएमआईए के मुताबिक़, श्रम भागीदारी में तेज़ गिरावट आई है, बेरोज़गारी दर भी 7 फ़ीसदी या इससे ज़्यादा ही बनी हुई है। साथ ही 2020-21 में औसत वार्षिक आय भी एक लाख सत्तर हजार रुपये के बेहद निचले स्तर पर…
  • JNU
    न्यूज़क्लिक टीम
    JNU: मांस परोसने को लेकर बवाल, ABVP कठघरे में !
    11 Apr 2022
    जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में दो साल बाद फिर हिंसा देखने को मिली जब कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से संबद्ध छात्रों ने राम नवमी के अवसर कैम्पस में मांसाहार परोसे जाने का विरोध किया. जब…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License