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नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें
आज जब देश के छात्र-युवा जबरदस्त मानसिक दबाव और भविष्य की असुरक्षा का सामना कर रहे हैं तब चंद्रशेखर का जीवन और संघर्ष उनके लिए आशावाद और शक्ति का स्रोत हो सकता है।
लाल बहादुर सिंह
31 Mar 2022
student unity

उत्तर भारत में शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रमुख केंद्र इलाहाबाद से विधानसभा चुनाव के बाद लगातार आ रही छात्रों की आत्महत्या की खबरें बेहद चिंताजनक और विचलित करने वाली हैं।

आत्महत्या की घटनाओं में जो अचानक तेजी आई है, उसके पीछे कारण सम्भवतः रोजगार-विरोधी योगी सरकार दुबारा बनने से युवाओं में पैदा हुई गहरी निराशा है। याद कीजिये ये नौजवान कितने उत्साह से प्रयाग स्टेशन से अपने घरों की ओर मतदान के लिए कूच कर रहे थे। यह उत्साह निश्चित रूप से सरकार बदलने के लिए था। दरअसल, पिछली योगी सरकार के पूरे कार्यकाल प्रतियोगी छात्र सरकारी नौकरियों की बहाली और उनमें अनियमितताओं के खिलाफ लगातार लड़ते रहे और लाठी-डंडा खाते रहे, जेल जाते रहे। उन्हें उम्मीद थी कि सरकार बदलेगी और फिर से उनके लिए नौकरियों के दरवाजे खुलेंगे। 

लेकिन भाजपा-विरोधी विपक्षी गठबंधन रोजगार के सवाल को प्रमुखता से  उठाने और इसे  केन्द्रीय राजनैतिक प्रश्न बना पाने में विफल रहा। विपक्ष की राजनैतिक  कमजोरियों के कारण योगी सरकार को dislodge करने की एक बड़ी सम्भावना साकार नहीं हो सकी और सत्ता परिवर्तन नहीं हो सका।  जाहिर है इसने अन्य तबकों के साथ साथ, 5 साल से योगी सरकार की रोजगार-विहीन नीति के शिकार युवाओं में गहरी हताशा का संचार किया है।

आज रोज़गार को लेकर युवाओं में भयानक असुरक्षा बोध व्याप्त है। मोदी-राज के नवउदारवादी आर्थिक ढांचे में नोटबन्दी जैसी विनाशकारी नीतियों के फलस्वरूप, कोविड के पहले ही NSSO के सरकारी आँकड़े के हिसाब से बेरोजगारी दर 40 साल के उच्चतम स्तर, 6.1% तक पहुँच गयी थी। दिसम्बर 21 में CMIE के अनुसार देश में कुल 5.3 करोड़ बेरोजगार थे और बेरोजगारी दर 7.91% के खतरनाक स्तर पर पहुँच गयी थी।

आज स्थिति कितनी विस्फोटक है इसका अंदाज़ा  इसी बात से लगाया जा सकता है कि हरियाणा के पानीपत में चपरासी के 13 पदों के लिए 27000 प्रार्थी आ गए जिनमें अनेक पोस्ट-ग्रेजुएट, इंजीनियर और MBA डिग्री धारी थे। हिमाचल प्रदेश सचिवालय में चपरासी, माली, रसोइया के 42 पदों के लिए जो 18 हजार application आईं, उनमें अनेक परास्नातक और Ph D थे। UP पुलिस में 62 messenger पद के लिये 93 हजार लोगों ने apply किया, जिनमें 3700 Ph D, 50 हजार स्नातक थे, जबकि उसके लिए वांछित योग्यता कक्षा 5 और साइकिल चलाने का self-declaration था। कई बार इन हालात में चयन ही असम्भव हो जा रहा है और चयन प्रक्रिया टालनी पड़ रही है!

यह अफसोसनाक है कि जो मानव सम्पदा, जो युवा ऊर्जा हमारी सबसे बड़ी strength हो सकती थी, हमारी राष्ट्रीय समृद्धि का आधार बन सकती थी, वह आज अनुत्पादक होकर नष्ट हो जाने, आत्मघात के रास्ते बढ़ने या फ़ासिस्ट गिरोहों का चारा बनने के लिए अभिशप्त है।

मोदी ने कभी सत्ता हथियाने के लिए  युवा भारत की, Demographic डिविडेंड की बड़ी बड़ी बातें की थीं, लेकिन आज वह demographic disaster में तब्दील हो चुका है। याद कीजिये, अभी 2 महीने पहले रेलवे भर्ती में अनियमितताओं के सवाल पर किस तरह पटना से प्रयागराज तक युवा- आक्रोश  से दहल उठा था।

आज रोजगार के सवाल पर इसी युवा आक्रोश की विस्फोटक सम्भावनाओं से निपटने के लिए ही कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्मों और नित नूतन विभाजनकारी मुद्दों के माध्यम से उन्हें नफरती डोज़ दिया जा रहा है।

रोजगार के मुद्दे की राजनीतिक सम्भावनाओं को भांपते हुए AAP पार्टी जैसे दल इसको प्रमुख मुद्दा बनाने की बात कर रहे हैं। हाल ही में दिल्ली में उन्होंने अपने वार्षिक बजट को रोजगार बजट का नाम देते हुए 5 साल में 20 लाख रोजगार का वायदा किया। पंजाब के उनके नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ने सरकारी नौकरियों की बहाली से शुरुआत की।

यह साफ है कि रोजगार का सवाल वायदों और जुमलों से हल होने वाला नहीं, न उसके बल पर बेरोजगार युवाओं को अधिक समय तक गुमराह किया जा सकता है। बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के लिए नवउदारवादी अर्थनीति के ढाँचे को पलटना होगा, कृषि, छोटे लघु उद्यमों, शिक्षा स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सरकारी निवेश करना होगा, निजीकरण पर रोक लगाना होगा, सरकारी पदों में कटौती पर रोक लगाना और सेवाओं के विस्तार के लिए उनकी संख्या बड़े पैमाने पर बढ़ाना होगा, खाली पदों को युद्धस्तर पर भरना होगा, ग्रामीण मनरेगा की तर्ज़ पर शहरी रोजगार की गारंटी का कानून बनाना होगा, रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाना होगा।

संयोगवश 31 मार्च JNU छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर का शहादत दिवस है। उनकी शहादत के 25 वर्ष पूरे ही रहे हैं।

फासीवादी राजनीति के खिलाफ देश में  आज जो संघर्ष चल रहा है, JNU में चंद्रशेखर का दौर एक तरह से उसके curtain raiser ( झांकी ) जैसा था। चंद्रशेखर ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद के मंडल-कमंडल के तूफानी दौर में JNU के प्रगतिशील, लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले छात्रों की विराट गोलबंदी करके वहां प्रतिक्रिया की ताकतों को पीछे धकेला था और लोकतान्त्रिक ताकतों का वर्चस्व स्थापित किया था।

सत्ता-प्रतिष्ठान में जगह तलाशने की बजाय जिस तरह चंद्रशेखर ने उत्पीड़ित जनता की बेहतरी की राजनीति के लिए दिल्ली से सिवान का रुख किया और जनविरोधी माफिया राजनीति के खिलाफ लड़ते हुए शहादत का वरण किया, उसने छात्र-युवाओं और लोकतान्त्रिक ताकतों को बड़े पैमाने पर उद्वेलित किया था। उस समय चंद्रशेखर की हत्या के खिलाफ दिल्ली के बिहार भवन से लेकर सिवान, पटना और राजधानी के पार्लियामेंट स्ट्रीट-जंतरमंतर तक हुआ छात्रों-युवाओं का अभूतपूर्व प्रतिरोध इतिहास में दर्ज हो चुका है, जिनमें JNU के अनेक प्राध्यापकों ने भी भाग लिया था। प्रतिरोध की वह स्पिरिट छात्र-युवा आंदोलन के लिए हमेशा प्रेरणा बनी रहेगी। 

आज जब देश के छात्र-युवा जबरदस्त मानसिक दबाव और भविष्य की असुरक्षा का सामना कर रहे हैं तब चंद्रशेखर का जीवन और संघर्ष उनके लिए आशावाद और शक्ति का स्रोत हो सकता है।

चंद्रशेखर ने JNU में छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा था, " भावी पीढ़ियां हम से जवाब मांगेगी, हम उस समय क्या कर रहे थे जब समाज में नई ताकतों का उदय हो रहा था, जब रोज लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे थे, जब उत्पीड़ित जनता जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही थी? "

उनकी शहादत के बाद की चौथाई सदी में उनके दौर की लड़ाई आज और कठिन और जटिल हो गयी है। जिस माफिया राजनीति के ख़िलाफ़ लड़ते हुए चंद्रशेखर शहीद हुए, न सिर्फ वह राजनीतिक-संस्कृति सर्वव्यापी हो चुकी है, बल्कि उससे आगे बढ़ते हुए देश आज हत्यारी फासीवादी राजनीति के शिकंजे में है। देश के भविष्य के साथ ही,  सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न आज देश की भावी पीढ़ी के भविष्य के सामने खड़ा हो गया है। 

आज जरूरत इस बात की है देश के सारे छात्र-युवा संगठन एक संयुक्त मंच पर आकर रोजगार के सवाल को एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दें। लोकतांत्रिक आंदोलन की ऊर्जा ही नौजवानों को अवसाद और आत्महत्या के रास्ते पर जाने से रोकेगी, सरकारों को रोजगार सृजन के लिए मजबूर करेगी और अंततः किसान व मजदूर आंदोलन के साथ मिलकर हमारे लोकतंत्र के पुनर्जीवन तथा राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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