NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
भारत
राजनीति
अम्बेडकर विश्वविद्यालय : गहरी चिंता और सवाल खड़े करती है छात्र पर प्रशासन की कार्रवाई
उत्तर प्रदेश सरकार ने नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शन के दमन के लिए जो तरीका अपनाया था, वही 'उत्तर प्रदेश मॉडल' आज आम आदमी पार्टी वाली दिल्ली सरकार के विश्वविद्यालय में प्रयोग में लाया जा रहा है।
राजीव कुंवर
14 Apr 2021
aud

हाल के दिनों में प्रताप भानु मेहता के इस्तीफे के बाद से विश्वविद्यालय में जनतांत्रिक दायरे के सिकुड़ने को लेकर जो चर्चा एवं चिंता व्यक्त की गई वह अशोका यूनिवर्सिटी या फिर निजी विश्वविद्यालय तक ही सीमित नहीं है। एयूडी (अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली) से आ रही खबर विश्वविद्यालय के जनतांत्रिक दायरे के संकुचन से जुड़े एक अन्य पहलू को उजागर कर रही है।

दिल्ली सरकार द्वारा पूर्ण रूप से वित्त-पोषित विश्वविद्यालय भारत रत्न भीमराव अंबेडकर के नाम से 2008 में स्थापित किया गया। लोगों की उम्मीद को पूरा करने के लिए शिक्षाविद श्याम मेनन को वाइस चांसलर की जिम्मेदारी सौंपी गई। जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) जैसी जनतांत्रिक संस्था दिल्ली में मौजूद थी, सो एयूडी के लिए यह एक चुनौती भी थी कि कैसे इस नए विश्वविद्यालय की नींव डाली जाए जिससे वह आगे भी जनतांत्रिक वातावरण में फले-फूले!

आज जो खबर अम्बेडकर विश्वविद्यालय से आ रही है उससे चिंता गहरी हो रही है। एक छात्र को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इसलिए दंडित किया गया है, क्योंकि उसने दीवारों पर नारे लिखे। साल बीत जाने के बाद भी कैम्पस बंद होने और प्रशासन द्वारा उसे छात्रों के लिए नहीं खोले जाने से छात्रों में गहरा असंतोष व्याप्त था। छात्रों के एक संगठन SFI ने दिल्ली के सभी विश्वविद्यालयों में कैम्पस खोलने के लिए अभियान चलाया। उसी अभियान के कारण कुछ छात्रों ने अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के दीवारों पर स्लोगन लिखे। भगत सिंह की तस्वीर बनाई। इसे विश्वविद्यालय प्रशासन ने कितना बड़ा 'अपराध' घोषित किया है - यह उनके द्वारा दी गई सजा से ही स्पष्ट हो जाता है।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने माना कि छात्र ने स्वीकार किया है कि उसने क्लास न होने के कारण हो रहे अकादमिक नुकसान से नाराज होकर यह काम किया है। छात्रों की इस नाराजगी को संबोधित करने के बजाय विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र को अपराधी मानते हुए सजा के लिए एक जांच कमेटी का गठन कर दिया। उस जांच कमेटी की संस्तुतियों के आधार पर उस छात्र को जो सजा दी गई है वह किसी भी अकादमिक संस्थान के लिए शर्मनाक है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने नागरिकता कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दमन के लिए जो तरीका अपनाया था, वही 'उत्तर प्रदेश मॉडल' आज आम आदमी पार्टी वाली दिल्ली सरकार के विश्वविद्यालय में प्रयोग में लाया जा रहा है। उस छात्र पर 39,442 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। उस आदेश में कहा गया है कि जब तक यह जुर्माना जमा नहीं किया जाता है, तब तक उस छात्र को विश्वविद्यालय में घुसने नहीं दिया जाएगा।

विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा बताया जा रहा है कि यह रकम अनुमानित नुकसान है। ध्यान से देखें तो यह उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का जनतांत्रिक आंदोलन को कुचलने का आजमाया हुआ तरीका है। जुर्माने की रकम इतनी ज्यादा लगाओ कि आंदोलनकारी की कमर टूट जाए। न दे पाने की हालत में उनके घर को तोड़ देने का फरमान जारी कर दिया जाए। योगी मॉडल की इसी नीति को आजमाते हुए एयूडी प्रशासन मुख्य मुद्दे को दरकिनार करते हुए 'नुकसान एवं उसकी भरपाई' को केंद्र में लाने की साजिश कर रही है।

ऑनलाइन शिक्षा से असंतुष्ट आंदोलनकारी छात्रों को 'उपद्रवी' एवं 'मानसिक रूप से बीमार' घोषित करते हुए अमानवीयता की हद तक जाकर सजा सुनाई गई है।

विश्वविद्यालय न सिर्फ किताबी शिक्षा ग्रहण करने का केंद्र है, बल्कि वह एक वैश्विक जीवन-दृष्टि को अर्जित करने का भी केंद्र है। जनतांत्रिक आंदोलन उसी का एक हिस्सा है। देश-विदेश की बृहत्तर राजनीति में शामिल होने से पहले विश्वविद्यालय की राजनीति एक प्रयोगशाला का काम करती है। ध्यान से देखें तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विश्वविद्यालय को इससे दूर करने की समझ सामने आई है। जितने भी निजी कॉलेज एवं विश्वविद्यालय खुले हैं उनमें इसके लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे में एयूडी प्रशासन के द्वारा लिया गया यह फैसला छात्र राजनीति पर एक हमला है। शिक्षण संस्थान में 'गलतियों' के लिए 'सुधार' उद्देश्य होता है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने गलती को 'अपराध' घोषित करते हुए 'सजा' सुनाने का काम किया है।

एयूडी प्रशासन यहीं तक नहीं ठहरता, बल्कि इससे भी आगे तक जाता है। छात्र द्वारा वीडियो में अपने होने की बात कबूल करने और इसके पीछे पढ़ाई न हो पाने के कारण गुस्से में आकर ऐसा करने की बात बताने पर मानसिक इलाज करवाने का आदेश दे दिया जाता है। इलाज भी अपने विश्वविद्यालय के ही मनोविज्ञान विभाग से करवाकर सर्टिफिकेट जमा करने का आदेश जारी किया जाता है।

एयूडी प्रशासन की मानसिकता को समझने के लिए इस सजा के आदेश को समझना जरूरी है। पहले अपराधी बताकर भारी हर्जाना वसूली से शुरू कर एक साल के लिए कैरियर को देर करने (जिसका मतलब अभिभावक पर लाखों रुपये का अतिरिक्त बोझ है), छात्र को मानसिक तौर पर असंतुलित घोषित कर इलाज करवाने और फिर अंततः अपने पिता के साथ माफीनामा लिखवाने का यह आदेश किसी भी तरह से आधुनिक शिक्षण संस्थान का उदाहरण नहीं हो सकता। क्या यह सजा एक जिम्मेदार नागरिक के निर्माण की भूमिका निभा सकता है? तब सवाल यही है कि आखिर इसके पीछे की सोच क्या है ?

याद कीजिए चुनाव आयोग ने भी इसी तरह दीवारों को गंदा करने का तर्क देकर जो चुनावी शुचिता का पाठ पढ़ाया था, वह आज करोड़ों रुपये के चुनावी खर्च में तब्दील हो चुका है। जनतंत्र में हिस्सेदारी का मतलब मात्र करोड़पतियों के लिए ही आरक्षित कर देना हो गया। शुचिता का पाठ जनतंत्र के दायरे को कम से कमतर करने का आजमाया हुआ नुस्खा है। फीस बढ़ोत्तरी पर आधारित 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' को लागू करना है तो इस तरह के जनतांत्रिक दायरे को सिकोड़ना आज सरकार से लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन तक की नीति का हिस्सा बन गया है। छात्र-संगठन से लेकर छात्र-कार्यकर्ताओं पर भारी हर्जाना वसूली और व्यक्तिगत से लेकर परिवार के स्तर तक प्रताड़ित करने की अमानवीय नीति उसी का हिस्सा भर है। एक छात्र को अपराधी ठहराकर भारी हर्जाना वसूली के साथ ही मानसिक रूप से बीमार बताना - यह विश्वविद्यालय प्रशासन के बीमार होने का लक्षण भी है। कोई छात्र मानसिक रूप से अगर बीमार है तो उसे इलाज और सहानुभूति देने के बजाय उससे भारी हर्जाना वसूली, अभिभावक तक से माफी लिखवाना और उसका एक साल खराब करना - क्या उसे किसी अनिष्ट के लिए धकेलना नहीं कहा जाएगा? कोरोना महामारी के समय जहां मानसिक तनाव और उसके कारण कई सारी दुर्घटनाएं देश देख चुका है ऐसे में दिल्ली सरकार का बिना हस्तक्षेप मूक-दर्शक बनकर रहना क्या संदेश दे रहा है?  क्या दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार इसी तरह की दुर्घटना के दोहराने का इंतजार कर रही है? आज तमाम शिक्षाविदों से लेकर जनतांत्रिक संगठनों को खुलकर इसका विरोध करना जरूरी है। दिल्ली सरकार को तुरंत हस्तक्षेप कर इसे सही करने की भूमिका निभाने की जरूरत है। अरविंद केजरीवाल इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते।

(लेखक दयाल सिंह कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Delhi University
Ambedkar university
aud administration
SFI Student
classes in corona
Arvind Kejriwal
yogi aditynatah

Related Stories

दिल्ली: दलित प्रोफेसर मामले में SC आयोग का आदेश, DU रजिस्ट्रार व दौलत राम के प्राचार्य के ख़िलाफ़ केस दर्ज

डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी

‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार

कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट को लेकर छात्रों में असमंजस, शासन-प्रशासन से लगा रहे हैं गुहार

यूजीसी का फ़रमान, हमें मंज़ूर नहीं, बोले DU के छात्र, शिक्षक

नई शिक्षा नीति ‘वर्ण व्यवस्था की बहाली सुनिश्चित करती है' 

SFI ने किया चक्का जाम, अब होगी "सड़क पर कक्षा": एसएफआई

डीयू: कैंपस खोलने को लेकर छात्रों के अनिश्चितकालीन धरने को एक महीना पूरा

दिल्ली विश्वविद्यालय के सामने चुनौतियां: एडहोकवाद, NEP और अन्य

डीयू: एनईपी लागू करने के ख़िलाफ़ शिक्षक, छात्रों का विरोध


बाकी खबरें

  • election
    मुकुल सरल
    जनादेश—2022: वोटों में क्यों नहीं ट्रांसलेट हो पाया जनता का गुस्सा
    11 Mar 2022
    यूपी को लेकर अभी बहुत समीक्षा होगी कि जाट कहां गया, मुसलमान कहां गया, दलित कहां गया। महिलाओं का वोट किसे मिला आदि...आदि। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या ग्राउंड ज़ीरो से आ रहीं रिपोर्ट्स, लोगों की…
  • uttarakhand
    वर्षा सिंह
    उत्तराखंड में भाजपा को पूर्ण बहुमत के बीच कुछ ज़रूरी सवाल
    11 Mar 2022
    "बेरोजगारी यहां बड़ा मुद्दा था। पर्वतीय क्षेत्रों का विकास भी बड़ा मुद्दा था। भू-कानून, पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली बड़ा मुद्दा था। पलायन बड़ा मुद्दा था। लेकिन नतीजे तो यही कहते हैं कि सभी…
  • पटना: विभिन्न सरकारी विभागों में रिक्त सीटों को भरने के लिए 'रोज़गार अधिकार महासम्मेलन'
    जगन्नाथ कुमार यादव
    पटना: विभिन्न सरकारी विभागों में रिक्त सीटों को भरने के लिए 'रोज़गार अधिकार महासम्मेलन'
    11 Mar 2022
    इस महासम्मेलन में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग तथा बिहार तकनीकी सेवा आयोग समेत 20 से ज़्यादा विभाग के अभ्यर्थी शामिल थे।
  • ukraine
    एपी/भाषा
    यूक्रेन-रूस अपडेट: चीन ने की यूक्रेन को मदद की पेशकश, रूस पर प्रतिबंधों को भी बताया गलत
    11 Mar 2022
    चीन के प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका देश संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अनुकूल सभी प्रयासों का समर्थन करता है और इसमें वह सकारात्मक भूमिका निभाएगा।
  • विजय प्रसाद
    एक महान मार्क्सवादी विचारक का जीवन: एजाज़ अहमद (1941-2022)
    11 Mar 2022
    एजाज़ अहमद (1941-2022) की जब 9 मार्च को मौत हुई तो वे अपनी किताबों, अपने बच्चों और दोस्तों की गर्मजोशी से घिरे हुए थे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License