NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान
अज़हर को 'वैश्विक आतंकी' घोषित करवाने वाले कूट-नीतिज्ञ मुस्लिम हैं
मोदी, अमित शाह तथा आदित्यनाथ का मुँह बंद हो जाना चाहिए इस बात से कि न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने वाले भारतीय कूट-नीतिज्ञ एक मुस्लिम हैं।
एम. के. भद्रकुमार
05 May 2019
अज़हर को 'वैश्विक आतंकी' घोषित करवाने वाले कूट-नीतिज्ञ मुस्लिम हैं
यूएन में भारत के प्रतिनिधि सय्यद अकबरुद्दीन

मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की हमें जब ख़बर मिली तो हम देशभक्त भारतीय के रूप में काफ़ी खुश हुए। देश ने भारत के उन कूट-नीतिज्ञों की सराहना की जिन्होंने आख़िरकार शांति, धैर्य, समर्पित कार्य की बदौलत इस मुद्दे को हल कर लिया। व्यक्तिगत तौर पर यह मुझे भारतीय विदेश सेवा में अपने पूर्व सहयोगियों पर गर्व महसूस कराता है।

हालांकि निस्संदेह भारत के भाग्य का फ़ैसला करने वाले आम चुनावों के आख़िरी दौर में जाने से पहले हमें महसूस करना चाहिए कि अज़हर से परे भी कोई दुनिया है। ऐसे में तीन बातें ज़ेहन में आती हैं।

पहला ये कि 1 मई को न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र में जो कुछ हुआ इसके महत्व को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना आसान है। इस मुद्दे से हाल के वर्षों में इस तरह से खेला गया है कि यह एक भावनात्मक मुद्दा बन गया। लेकिन भावनाएँ फ़ैसले को किरकिरा बना देती है।

वास्तव में अज़हर को घोषित करना (या अघोषित करना) कोई अधिक योग नहीं करता है। इसे ईश-निंदा कहा जा सकता है। फिर भी सच्चाई यह है कि संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक आतंकवादियों के सूची में समान रूप से हम कम से कम दो अन्य (अ)प्रसिद्ध दोषियों हाफ़िज़ सईद और दाऊद इब्राहिम को अज़हर के इंडियन एयरलाइंस के जहाज़ हाइजैक करने की तुलना में अपराधों को अंजाम देने को लेकर चिन्हित कर सकते हैं।

और इससे उसके जीवन के आचरण पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। हमें यह भी पता नहीं है कि उसकी यूएन की घोषणा कहाँ है। 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद सईद और 2003 के बाद इब्राहिम की घोषणा। सईद मामले में निश्चित रूप से नहीं है।

इसलिए अज़हर की घोषणा को परिपेक्ष में रखा जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह पाकिस्तान की तरफ़ आतंकवादियों की भूमि के रूप में ध्यान खींचता है लेकिन फिर भी यह काफ़ी प्रसिद्ध नहीं है? हमेशा पाकिस्तान अपने पड़ोसी देेशों ईरान, अफ़गानिस्तान और भारत के ख़िलाफ़ संचालित आतंकवाद में घिरता नज़र आया है लेकिन हमेशा अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इससे निपटाया होगा। एक परमाणु शक्ति होने के नाते पाकिस्तान को 'अलग-थलग' नहीं किया जा सकता है।

क्या अज़हर की घोषणा से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर आतंकी ख़तरा समाप्त हो जाता है? नहीं, यह ख़तरे को उल्लेखनीय ढंग से कम नहीं कर सकता है। अनसुलझा कश्मीर विवाद आतंकी समूहों को पैदा करेगा ख़ासकर तब जब सरकार राज्य दमन को अपनाएगी क्योंकि घाटी में गहरे अलगाव से निपटने का यह एकमात्र साधन यही है। पुराने समूह रूप बदलते हैं जबकि नए समूह स्थापित होने और नाम के लिए संघर्ष करते हैं।

यहाँ तक कि अगर पाकिस्तान हमेशा के लिए अज़हर को बंद कर देता है तो यह भारतीय सुरक्षा संस्थान की अनुपयुक्तता का विकल्प नहीं होगा। मोदी सरकार के अधीन आतंकवाद से लड़ने का अवसर था। नेतृत्व की इस भारी विफ़लता से ध्यान हटाने में ख़तरा है और यह भ्रम पैदा करता है कि अज़हर की घोषणा से काफ़ी फ़र्क़ पड़ने वाला है। नहीं, ऐसा नहीं होगा। अंतिम विश्लेषण में सरकार के सुरक्षा तंत्रों को बताने की आवश्यकता है जिसके लिए निश्चित रूप से इसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

निश्चित रूप से पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत विरोधी आतंकवादी समूहों द्वारा उपयोग किए जा रहे उसके क्षेत्र के दायरे को कम करने में मदद करता है। ऐसा दृष्टिकोण काम कर भी सकता है और नहीं भी लेकिन यह प्रयास करने योग्य है। ईरान का हालिया अनुभव यह रहा है कि सीमा पार हमलों में लिप्त आतंकी समूह, पाकिस्तान के प्रति उसके तुष्टीकारी रवैये से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। फिर भी तेहरान लगातार प्रेरित करता रहा और इस्लामाबाद के लिए रास्ता खुला रखा है।

दूसरा ये कि न्यूयॉर्क में अज़हर मामले में आया परिणाम ज़ाहिर तौर पर दुसाध्य मतभेदों और विवादों को हल करने के लिए शांत, धैर्यवान कूटनीति की प्रभावशीलता को रेखांकित करता है। मोदी सरकार ने मुख्य रूप से बीजिंग को परेशान करने पर केंद्रित अभियान में तीखे बयानों की कूटनीति में लिप्त होकर काफ़ी समय बर्बाद किया और अज़हर को आतंकी घोषित करने की रुकावट को हटाने के लिए दबाव डाला। ये रणनीति काम करने में विफ़ल रही।

स्पष्ट रूप से चीन की अपनी मजबूरीयाँ भी थीं और उसे केवल गंभीर कूटनीति के माध्यम से ही सुलझाना संभव था। इस मामले की सच्चाई यह है कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के मामले में चीन तथा भारत समान धरातल पर हैं और यह कल्पना करना बहुत सरल है कि बीजिंग चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को लेकर फंसा हुआ है। पीछे मुड़कर देखें तो तीखे बयानों की कूटनीति को छोड़ने का दिल्ली का निर्णय उचित था।

तीसरा ये कि अज़हर का अनुभव चीन के साथ व्यवहार के क्षेत्रों पर प्रकाश डालता है। मोदी सरकार ने ओजस्वी कूटनीति में पूरे तीन साल बर्बाद किए। पीपल्स लिबरेशन आर्मी के साथ संभावित विरोध के दहशत और खौफ़ से पुनर्विचार संभव हो सका जो डोकलाम में हमारे सामने हुआ है।

लंबी बातचीत के ज़रिये गतिरोध समाप्त हो गया था। (दोनों देश 18 बार मिले लेकिन सभी बैठक बीजिंग में हुई पर एक बार भी दिल्ली में नहीं हुई - प्रतीकवाद विलक्षण था।) ये संदेश सही स्थान पर गया। संयोग से उस समय विदेशी सचिव बदलते रहे और पिछले साल फ़रवरी में दक्षिण ब्लॉक में एक सक्षम, दक्ष, शालीन, विश्वसनीय अधिकारी ने पद ग्रहण कर लिया।

ये बदलाव केवल विषय सूची में ही नहीं बल्कि शैली में भी था। अप्रत्याशित रूप से इस महत्वपूर्ण बदलाव ने भारत-चीन संबंधों को और अधिक पूर्वानुमेय स्तर पर ले गया है। अज़हर प्रकरण इसकी गवाही देता है।

चीन के निर्णय का समय अधिक संयोगी नहीं हो सकता था। अगली सरकार में संबंधों के लिए एक नया रास्ता बनाने के लिए यह धरातल तैयार करता है जो उत्पादक, पारस्परिक रूप से लाभप्रद और दूरदर्शी हो सके। उम्मीद है संबंधों के इस नए वातावरण से भारत को नई सोच के साथ प्रमुख मुद्दों पर संपर्क करने में मदद मिलेगी। विशेष रूप से 5 जी तकनीक, बेल्ट और रोड आदि जैसे मुद्दे पर मदद मिलेगी।

अंत में इस समय जो सबसे ज़्यादा मायने रखता है वह ये है कि ये महत्वपूर्ण समय है और हम आज जो भी सांस लेते हैं, हम जो भी क़दम उठाते हैं वह मुख्य रूप से हमारे देश में आम चुनाव से संबंधित है। इसमें कोई दो राय नहीं कि धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में भारत की नियति अधर में लटकी हुई है।

इसलिए अज़हर की घोषणा के इस गौरव क्षण में शानदार दृश्य जो है वह ये कि न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भारत के ध्वजवाहक सैयद अकबरुद्दीन है।

Syed Akbaruddin.jpg

भारत की कल्पना में यह असाधारण नहीं था। याद रखें कि भारत अभी भी एक अन्य अकबर मुग़ल सम्राट की याद को भी संजोता है जिसकी पत्नी मरियम-उज़-ज़मानी हिंदू थी। ये बादशाह जहांगीर की माँ थी और एक राजपूत राजकुमारी थीं।

लेकिन आज नाख़ुशी से ऐसी बातों को दोहराया जाना चाहिए। विशेष रूप से हमारे देश के सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के उन सभी हिंसक प्रवृत्ति वाले राजनेताओं के लाभ के लिए जो भारत के मुस्लिमों को विभक्त निष्ठा के साथ संदिग्ध मानते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में संपादक वंदिता मिश्रा की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जो बिहार के सुदूर इलाक़े की है। इस रिपोर्ट में अनकही पीड़ा है। इस क्षेत्र में अभी चुनाव हो रहा है। इस रिपोर्ट में लिखा है:

“मोदी का संदेश अनुसूचित जाति के बीच गड़बड़ी पैदा करता है जो अभी भी भूमि और पानी के लिए बुनियादी लड़ाई लड़ रहे हैं। वे आर्थिक संकट का भी ख़ामियाज़ा भुगत रहे हैं। मुस्लिम दृढ़ निश्चय के साथ महागठबंधन का समर्थन कर रहें हैं और मजबूर हैं। ”

सारण के छोर पर स्थित मांझी मियांपट्टी के मोहम्मद हाशिम कहते हैं: " यह हमारा देश है, हम यहीं मरेंगे। हम भारतीय सेना का भी हिस्सा हैं। और आप हमसे कहते हैं, पाकिस्तान जाओ! आप हमारे दरवाज़े पर क्यों आते हैं और जय श्री राम बोलते हैं। आप हमें राष्ट्र विरोधी क्यों कहते हैं? पीएम ख़ुद को चौकीदार क्यों कहते हैं, वह किसकी रखवाली किससे कर रहे हैं? हम नौकरी नहीं चाहते हैं, हम अपनी रोज़ी रोटी पैदा कर लेंगे, लेकिन कम से कम हमें शांति से जीने दें।”

इससे मोदी, अमित शाह और आदित्यनाथ का मुँह बंद हो जाना चाहिए कि न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अज़हर का मामला उठाने वाले भारतीय राजनयिक भी मुस्लिम हैं। हाँ, यही आश्चर्य है कि यह भारत ही था।

नहीं सर, केरल के मलप्पुरम और वायनाड पाकिस्तान के हिस्से नहीं हैं। न ही देशद्रोह या पाकिस्तान के साथ विकसित पर्यायवाची है। मानव जाति विकास, सद्भाव, ताज़गी, सुरक्षा और उर्वरता के अर्थों के साथ जुड़े जीवन, नवीकरण और ऊर्जा के रंग के रूप में हरे रंग की कल्पना करता है। इसमें सेहत बख़्शने की क्षमता है।

Syed Akbaruddin
Masood Azhar
UN Security Council
india-pakistan
Global Terrorist

Related Stories

अपने क्षेत्र में असफल हुए हैं दक्षिण एशियाई नेता

वार इन गेम: एक नया खेल

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इथियोपिया में संघर्ष तत्काल रोकने की अपील की

कितना याद रखें, कितना मन को मनाएं और कितना भूलें? 

15 अगस्त 1947: आज़ादी की ख़ुशी के साथ था बँटवारे का सदमा

बंटवारे का दर्द: जो हो चुका या जो किया जा रहा है!

आगरा शिखर सम्मलेन: भारत-पाकिस्तान के रिश्तों का अहम पड़ाव

नौकरी छोड़ चुके सरकारी अधिकारी का कुछ लिखने से पहले सरकार की मंज़ूरी लेना कितना जायज़?

किसी लापता सैनिक के मानवाधिकारों की हिफ़ाज़त कौन करेगा?

पठानकोट-पुलवामा में NIA की चार्जशीट: अब पाकिस्तान का हाथ, तब जिहादी ताकत!


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License