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अनाज मंडी अग्निकांड को लेकर मज़दूरों का प्रदर्शन, कहा-ज़िंदा जलाकर मारना बंद करो
इस घटना से गुस्साए मज़़दूर दिल्ली में लगातर प्रदर्शन कर रहे है। बुधवार को मज़दूर संगठन ऑल इण्डिया सेंटर कॉउंसिल ऑफ़ ट्रेड यूनियन ने मुख्यमंत्री निवास पर विरोध प्रदर्शन किया। 
मुकुंद झा
11 Dec 2019
workers protest

दिल्ली के फिल्मिस्तान के अनाज मंडी के पास भीड़ भाड़ा वाले बाजार क्षेत्र में 8 दिसंबर को सुबह 4 बजे एक फैक्ट्री में भीषण आग लग गई। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस घटना में 43 लोग मारे गए और लगभग 16 गंभीर रूप से घायल हो गए। उधर प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि मृतकों की संख्या 100 से अधिक हो सकती है। कारखाने की आग में मारे गए अधिकांश मज़दूर पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले थें।

प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि आग लगने के समय तीन मंजिला इमारत के अंदर लगभग 300 लोग सो रहे थे। हताहतों में 10 साल की उम्र तक के बच्चे भी शामिल हैं। ।

इस घटना से गुस्साए मज़़दूर दिल्ली में लगातर प्रदर्शन कर रहे है। मंगलवार को भी मज़दूरों के एक समूह ने प्रदर्शन किया था। आज, बुधवार को मज़दूर संगठन ऑल इण्डिया सेंटर कॉउंसिल ऑफ़ ट्रेड यूनियन ने मुख्यमंत्री निवास पर विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान एक डेलिगेशन भी सीएम से मिलने गया। इसने सरकार को एक ज्ञापन सौंपा।

“सरकार के जागाने के लिए कितने मज़दूरों को अपनी जान गंवानी पड़ेंगीहै?, एक मज़दूर के रिश्तेदार ने यह सवाल हम से आग लगने की घटना वाले दिन अस्पताल में कहा जो अपने लापता भाई की तलाश कर रहा था। यही सवाल आज प्रदर्शन में शामिल मज़दूरों ने भी कहा कि कब तक मज़़दूर ऐसे ही मौत के मुंह में समाते रहेंगे।
आपको बात दें कि जिस बिलन्डिंग में आग लगी है उसमें ग्लास कटिंग, प्लास्टिक के खिलौने, बैग और फैब्रिक प्रिंटिंग के लिए कई छोटी उत्पादन इकाइयां लगी हुई थी। ये पूरा बिल्डिंग जो लगभग 600 गज में बनी थी उसमे बाहर निकलने के लिए केवल एक रास्ता था। इसके आलावा आग से बचने के लिए कोई भी सुरक्षा तंत्र भी नहीं था। दिल्ली के कई इलाकों में आम तौर पर बाजार में हर जगह लटकती बिजली के तारों और संकीर्ण गलियों से बचाव अभियान चलाने भी काफी कठिनाई होती है।

वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र से अाई एक महिला मज़दूर शकुन्तला देवी ने कहा कि फैक्ट्री में काम करते हुए हम लोगों के साथ कई दुर्घटनाएं होती हैं जिसपर कोई सुनवाई नहीं होती। उन्होंने कहा कि हादसे के बाद कोई मुआवजा नहीं मिलता है और फैक्ट्री में टॉयेलेट जाने की सुविधाएं भी नहीं होती है।

ये कोई पहला मौका नहीं था जब इस तरह की घटना घटी हो लेकिन सरकारों ने ध्यान नहीं दिया।

13 जुलाई, 2019 को दिल्ली के झिलमिल इलाके में एक और कारखाने में आग लगने से पांच श्रमिकों की मौत हो गई थी। प्लास्टिक और रबर की वस्तुओं का उत्पादन करने वाला ये कारखाना भी भीड़ भाड़ वाले इलाके में स्थित था। इससे पहले, अवैध पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 21 जनवरी 2018 को 17 श्रमिकों की मौत हो गई थी। इस मामले में मालिक द्वारा बाहर निकलने का रास्ता को बंद रखा गया था जिसने आग लगने के साथ ही कारखाने को जलते हुए कब्रिस्तान में बदल दिया।

“ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं। कुछ महीने पहले, फिल्मिस्तान के जिस फैक्ट्री में आग लगी उसी के पास एक अन्य फैक्ट्री में आग लगने से चार मजदूरों की मौत हो गई थी। ट्रेड यूनियनों और मज़दूरों द्वारा आग दुर्घटनाओं के बारे में बार-बार चेतावनी देने के बावजूद, दिल्ली और केंद्र सरकार ने लगातार खतरानक होते कारखानों पर अपनी आंखे मूंदे हैं। झिलमिल में आग की घटना के बाद दिल्ली में ट्रेड यूनियनों ने फैक्ट्री की बढ़ती आग के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था। दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय ने तब सरकार द्वारा कार्रवाई का आश्वासन दिया था। हालांकि, बुधवार की अनाज मंडी में आग लगने के बाद सरकार का आश्वासन खाली वादे से ज्याद कुछ और नहीं है।

ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने श्रमिकों को संबोधित करते हुए कहा कि देश की राजधानी दिल्ली में आज मजदूरों की ये हालत है कि वो या तो भूख से मर रहे हैं या सीवर और फैक्ट्री के अंदर जहरीली गैस और आगजनी से मर रहे हैं।

ऐक्टू दिल्ली के अध्यक्ष संतोष रॉय ने कहा कि संसद में बैठकर जिस तरह श्रम कानूनों ख़त्म किया गया है उसका ही नतीजा है कि आज खुलेआम मालिकों को यह छूट मिल रही है कि को बिना किसी क्लियरेंस के फैक्ट्री चलाएं। दिल्ली में खुलेआम श्रम कानूनों की धज्जी उड़ाई जा रही है।

ऐक्टू की राज्य सचिव श्वेता राज ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि पिछले दो सालो में अगर देखे तो हर दो महीने इस तरह की कोई कोई न घटना घट रही हैं लेकिन हमारी सरकारों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।

ऐक्टू के राज्य महासचिव अभिषेक ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि रविवार की घटना देश की संसद और दिल्ली की विधानसभा से कुछ किलोमीटर दूर पर घटी इसके बाद भी इनकी कोई सुनने वाला नहीं हैं। उन्होंने कहा अगर हम केंद्र की मोदी सरकार की बात करे तो जब से ही वो सत्ता में आई है उसने सबसे पहले उसने मज़दूरों के हक़ में बने कानूनों को खत्म करने का काम किया है।

माकपा माले नेता सुचेता डे ने कहा कि ये सरकार मज़दूरों के सुरक्षा में जितने भी कानून थे सभी को खत्म कर दिया है। पहले आप को किसी फैक्ट्री के लिए सुरक्षा जांच के बाद ही अनुमति मिलती थी लेकिन सरकार ने इन सभी नियमों को ख़त्म कर दिया हैं।

उधर मज़दूरों का कहना है कि "यह एक घटना नहीं है, यह हत्या का एक स्पष्ट मामला है। कारखाने में आग लग रही है क्योंकि सरकार श्रमिकों के जीवन की परवाह नहीं करती है।"

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की सामाजिक, सामान्य और आर्थिक क्षेत्रों (गैर-सार्वजनिक उपक्रम) पर 2017 की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सरकार असंगठित क्षेत्र में दुकानों और कारखानों के व्यापक डेटाबेस को बनाए रखने में पूरी तरह से विफल रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि "इस तरह के डेटा की अनुपस्थिति में, विभाग ने न तो एक व्यापक कार्य योजना तैयार की और न ही समय-समय पर निरीक्षण करने के लिए वार्षिक लक्ष्य निर्धारित किए जो विभिन्न कार्यों के तहत श्रमिकों के वैध हितों, कल्याण और सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में उनके प्रयासों को सुविधाजनक बनाएंगे।"

श्रम डेटा की कमी और नियमित निरीक्षणों ने अवैध उद्योगों को बढ़ावा दिया है जो सुरक्षा नियमों के बिना काम करते हैं और प्रवासी श्रमिकों का शोषण करते हैं।

भारत में श्रम कानूनों और सुरक्षा नियमों के कार्यान्वयन का सबसे खराब रिकॉर्ड है। हाल ही में, भारत सरकार ने मौजूदा कानूनों को चार श्रम कोडों में बदलने का फैसला किया हैं। इसको लेकर सभी मज़दूर संगठनो ने विरोध किया यहां तक की सत्ताधारी दल बीजेपी से वैचारिक सहमति रखने वाली मज़दूर संगठन भारतीय मज़दूर संघ ने भी इनका विरोध किया हैं। इन सबके बाबजूद सरकार वर्तमान श्रम कानूनों को खत्म करने पर तुली हुई है। इसी के विरोध में दस सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने 8 जनवरी को भारत बंद का आवाह्न किया हैं।

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