NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
मज़दूर-किसान
समाज
विज्ञान
भारत
राजनीति
…अंधविश्वास का अंधेरा
आओ तर्क करें : आज विज्ञान का युग है। हम विज्ञान की खोजों तथा आविष्कारों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। फिर भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी निर्मूल धारणाओं और अंधविश्वासों से घिरा हुआ है। इनमें अशिक्षित और पढ़े-लिखे दोनों ही प्रकार के लोग शामिल हैं।
देवेंद्र मेवाड़ी
29 Sep 2019
superstition

हर साल आए दिन यही ख़बर कि डायन के शक में औरत को मार डाला गया, कि बच्ची को जन्म देने के जुर्म में महिला को घर से निकाल दिया गया, कि बुरी आत्मा से मुक्त कराने के अनुष्ठान में तांत्रिक ने दुष्कर्म किया, कि भूत-प्रेत को भगाने की मार से बच्चे की जान चली गई, कि नागराज दूध पी रहे हैं, कि मूर्ति की आंखों से आंसू बह रहे हैं, कि बाबा ने हवा में हाथ घुमा कर कीमती हार पैदा किया, कि ज्योतिषी की राय पर शादी के बाद पत्नी की जान बचाने के लिए बेटे की शादी कुत्ते से की, कि वर्षा के लिए मेंढकों की शादी रचाई...इतना ही नहीं, अंतरिक्ष अभियान की सफलता के लिए अंतरिक्षयान का मॉडल आस्था स्थल में ले जा कर प्रार्थना करना और किसी बड़ी वैज्ञानिक परियोजना को आरंभ करने के लिए पूजा अनुष्ठान करना। ख़बर तो यह भी थी कि दीपावली में महालक्ष्मी पूजन की रात को और अधिक धन-संपत्ति की आस में मूक उल्लुओं की बलि दी जाती है। बलि के लिए एक-एक उल्लू कई लाख रुपयों तक में खरीदा गया!

सोच कर हैरानी होती है कि हाथरिक्शे और बैलगाड़ी से चंद्रमा और मंगल ग्रह तक अंतरिक्षयान भेजने में सफलता हासिल करने और जानलेवा रोगों का दवाइयों से उपचार करने वाले हमारे ही देश में सोच का कितना फासला है! इस इक्कीसवीं सदी में एक ओर जहां वैज्ञानिक सोच के बूते पर समाज को समय के साथ आगे बढ़ाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है, वहीं समाज के करोड़ों लोग आज भी अंधविश्वासों, कुरीतियों और चमत्कारों के छल-प्रपंच से ठगे जा रहे हैं। लगता ही नहीं कि सोच के स्तर पर वे आज के वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं।

बल्कि लगता है, जैसे वे अभी भी तीन-चार सौ साल पीछे के समय में चल रहे हैं। समय के साथ अपनी सोच को न बदलने के कारण वे उसी छल-छद्म का शिकार हो रहे हैं जिसके शिकार तीन-चार सौ साल पुराने समाज के लोग हो रहे थे।   

अन्यथा, क्या कारण है कि आज भी घर से निकलने पर रास्ता पार करती बिल्ली को देख कर उनके कदम रुक जाते हैं, वे दिन-वार और दिशा देख कर यात्रा पर निकलते हैं और सूर्य या चंद्रग्रहण के दौरान कुछ भी खाना या पीना वर्जित मानते हैं। अगर स्वयं ही तर्क कर लिया जाए कि बिल्ली हमारी ही तरह एक प्राणी है जो भोजन की तलाश में या अपने बच्चों के पास जा रही है तो फिर उसका रास्ता पार करना अशुभ कैसे हो सकता है? मैंने और मेरे परिवार ने यही तर्क किया और हमें बिल्ली के रास्ता पार करने से कभी कोई कठिनाई नहीं हुई।

हम पिछले तमाम वर्षों से आकाश के रंगमंच पर सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की लुका-छिपी के अद्भुत खेल ‘सूर्यग्रहण’ को सुरक्षित चश्मे या दर्पण से बनी रोशनी की छवि में देखते आ रहे हैं। कई चंद्रग्रहण भी हमने देखे हैं। ग्रहण के दौरान हम सामान्य ढंग से खाते-पीते रहे हैं। लेकिन, इससे कोई अनिष्ट नहीं हुआ क्योंकि ये खगोलीय घटनाएं हैं। ये प्राकृतिक घटनाएं भी उसी तरह होती हैं जिस तरह सूर्य और चंद्रमा हमें उगते और अस्त होते दिखाई देते हैं या ऋतुएं बदलती हैं।  

जब सृष्टि की रचना हुई, हमारा सौरमंडल बना, पृथ्वी पर जीवन पनपा और विकास के क्रम में मानव अपने दो पैरों पर खड़ा हो गया। वह आदिमानव हमारा पुरखा था। तब उसे किसी दिन, वार या दिशा का पता नहीं था। दिन-वार सूचक कलैंडर या पंचांग तो सदियों बाद बने। विश्व की विभिन्न सभ्यताओं ने अपने-अपने पंचांग बनाए और दिन-वार गढ़े। वे पंचांग समय की गणना के काम आते गए।

तब भला किसे पता था कि सचमुच कौन-सा दिन सप्ताह का कौन-सा वार है? ये नाम तो बाद में रखे गए। इसलिए हमारे जीवन का हर दिन, हर पल अच्छा ही है। कोई दिन, दिशा या वार हमारा भाग्य नहीं गढ़ता। हम जो कुछ जीवन में अर्जित करते हैं, वह अपने कर्म और अपने सोच से अर्जित करते हैं।

इसलिए ज्योतिषी की बताई हुई शुभ घड़ी में शिशु जन्म कराने के लिए जो लोग समय से पूर्व सीजेरियन आपरेशन करा डालते हैं, वे जच्चा और बच्चा के जीवन को भारी संकट में डाल देते हैं। हमें यह तो सोचना ही चाहिए कि जिस घड़ी या पल में प्रोफेसर सी.वी. रामन पैदा हुए या सचिन तेंदुलकर पैदा हुए, ठीक उसी घड़ी या पल में हमारे देश में अनेक शिशु पैदा हुए होंगे। लेकिन, वे भी प्रोफेसर रामन जैसे वैज्ञानिक या तेंदुलकर जैसे प्रसिद्ध क्रिकेटर तो नहीं बन गए।

इसका मतलब है कि हम में से हर कोई केवल मानव प्रजाति के एक शिशु के रूप में जन्म लेता है और अपनी लगन, मेहनत तथा सोच से अपना भविष्य गढ़ता है। इसमें बाहरी कारणों का बड़ा योगदान होता है जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं आदि। हर बच्चे में कुछ बनने की संभावनाएं होती हैं जो सुविधाएं और अवसर मिलने पर साकार हो जाती हैं।

आज विज्ञान का युग है। विज्ञान के तमाम गैजेट हमारे दैनंदिन जीवन का अभिन्न अंग बन चुके हैं। हम विज्ञान की खोजों तथा आविष्कारों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। फिर भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी निर्मूल धारणाओं और अंधविश्वासों से घिरा हुआ है। इनमें अशिक्षित और पढ़े-लिखे दोनों ही प्रकार के लोग शामिल हैं। ये लोग झाड़-फूंक, जादू-टोना और टोटकों से लेकर तरह-तरह के भ्रमों पर विश्वास करते हैं जिसके कारण वे वैज्ञानिक चेतना से दूर हैं।

अनेक टी.वी. चैनल भी चमत्कार, असंभव घटनाओं, इच्छाधारी नाग-नागिनों और भूत-प्रेतों का अस्तित्व दिखा कर तथा ज्योतिषियों की अवैज्ञानिक व्याख्याएं प्रसारित करके अंधविश्वास फैलाने में काफी योगदान दे रहे हैं। उन्हें यह ज़रूर समझना चाहिए कि यह सब करके वे लोगों के सोच को आगे बढ़ाने के बजाय सदियों पीछे ले जा रहे हैं।

ज्योतिषी फलाफल परिणाम बांचने के मोह में प्राचीन खगोल वैज्ञानिक आर्यभट प्रथम के ‘आर्यभटीय’ ग्रंथ तक का उल्लेख नहीं करते जिसमें ग्रहणों की सटीक व्याख्या की गई है। आर्यभट ने छठी शताब्दी में ही गणना करके बता दिया था कि चंद्र ग्रहण पृथ्वी की छाया और सूर्य ग्रहण चंद्रमा की छाया के कारण लगता है।

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू समाज की उन्नति में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को आवश्यक मानते थे। उन्होंने सन् 1946 में अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में पहली बार वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उल्लेख किया था। सन् 1958 में संसद में भारत की ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति’ प्रस्तुत की थी। किसी देश की संसद द्वारा विज्ञान नीति का प्रस्ताव पारित करने वाला भारत विश्व में पहला देश था।

सन् 1976 में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मौलिक कर्तव्यों पर 42वें संशोधन, भाग-4ए के तहत संविधान में शामिल कर लिया गया। नेहरू ने देश में वैज्ञानिक वातावरण के निर्माण पर बल दिया था। उनका विचार था कि वैज्ञानिकों को चाहिए, वे प्रयोगशालाओं को वैज्ञानिक अनुसंधान का मात्र केन्द्र न मानें, बल्कि उनका लक्ष्य यह हो कि जन मानस में वैज्ञानिक दृष्टिकोण लाया जा सके। ऐसा दृष्टिकोण ही उन्नति का मेरुदंड होता है।

हमें समझना चाहिए कि हम अपना भविष्य आप बना सकते हैं, दूर आसमान के तारे या हमारी हथेली पर बनी आड़ी-तिरछी रेखाएं या माथे की लकीरें हमारा भविष्य नहीं बनातीं। भविष्यवाणियां केवल संयोग से काम करती हैं। ये अंधेरे में चलाए गए तीर हैं। तमाम लोग आज भी अज्ञानतावश बीमारी का इलाज झाड़-फूंक, गौमूत्र और गंडे-ताबीजों से करवाते हैं।

बीमारियां पैदा करने वाले बैक्टीरिया, वाइरस, फफूदियां और पैरासाइट गंडे-ताबीज या झाड़-फूंक को नहीं पहचानते। यह समझना चाहिए कि बीमारी का इलाज केवल औषधियों से हो सकता है जो रोगाणुओं को नष्ट करती हैं। अंधविश्वास के कारण हर साल बड़ी संख्या में मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं। कैंसर एक जानलेवा बीमारी है जो गाय की पीठ पर हाथ फिराने से नहीं बल्कि दवाइयों से ही ठीक हो सकती है।

इसी तरह अबोध पशुओं की बलि देकर भी किसी बीमार व्यक्ति की बीमारी का इलाज नहीं हो सकता, उसकी मनोकामना पूरी नहीं हो सकती। बल्कि, मूक पालतू पशु आदमी के विश्वासघात का शिकार हो जाता है। हमें यह भी समझना चाहिए कि जन्मपत्री मिला कर अगर विवाह सफल होता तो आपसी कलह का शिकार होकर इतने जोड़े तलाक न लेते।

वास्तु शास्त्र और फेंगसुई का भी कोई तार्किक या वैज्ञानिक आधार नहीं है। समाज में आए दिन किस्मत बदल देने, गड़ा धन दिलाने, सोना-चांदी दुगुना कर देने वाले ढोंगी बाबा लोगों को ठग रहे हैं। इसका कारण भी वैज्ञानिक सोच की कमी ही है। यदि तार्किक ढंग से सोचा जाए तो समाज में ऐसी घटनाएं नहीं होंगी।

समाज में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए यह जरूरी यह है कि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं। किसी भी घटना या परिघटना के रहस्य को वैज्ञानिक दृष्टि से समझने का प्रयास करें, उस पर तर्क करें, उसके बाद ही उस पर विश्वास करें। तभी, समाज में वैज्ञानिक चेतना आएगी और समाज आगे बढ़ेगा।

वैज्ञानिक चेतना जगाने के इसी काम में नरेंद्र दाभोलकर जैसे लोगों ने अपना जीवन लगा दिया। अंधश्रद्धा उन्मूलन का अभियान चला कर वे लोगों को जाग्र्रत करते रहे कि कुरीतियों और अंधविश्वासों से बाहर निकल कर सच की जमीन पर खड़े हों और समाज को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें।

एक और दाभोलकर हुए हैं - रसायन विज्ञानी और विज्ञान लेखक डॉ. दत्त प्रसाद दाभोलकर। उन्होंने समाज में वैज्ञानिक चेतना जगाने के लिए ‘माणूस’ मराठी पत्रिका के संपादक के सुझाव पर उस पत्रिका में गल्प विधा और ललित शैली में काफी समय तक ‘विज्ञानेश्वरी’ स्तंभ लिखा।

उद्देश्य था पाठकों को इस बात का बोध कराना कि हम विज्ञान युग में रह रहे हैं, इसलिए हमें अंधविश्वासों के साथ नहीं बल्कि विज्ञान के सच और तर्क के प्रकाश में जीना चाहिए। उनके ये लेख ‘विज्ञानेश्वरी’ नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुए। उन्होंने किताब के शुरू में ही एक बात बहुत अच्छी लिखी है कि: “कोई हांक ले जाए कहीं भी/ऐसी गूंगी और बेचारी/भेड़-बकरियां मत बनना...मत बनना।”

यानी, हमें आसपास की घटनाओं को भेड़-बकरियों की तरह चुपचाप नहीं मान लेना चाहिए। हमें सोचना चाहिए, तर्क करना चाहिए और सच का साथ देना चाहिए।

(देवेंद्र मेवाड़ी पिछले 50 वर्षों से भी ज़्यादा समय से विज्ञान लेखन कर रहे हैं।)

blind faith
Era of science
Social blindfaith
Religious blindfaith
women exploitation
male dominant society
patriarchal society

Related Stories

नज़रिया: पितृ-पक्ष की दकियानूसी सोच

विशेष: प्रेम ही तो किया, क्या गुनाह कर दिया

क्या समाज और मीडिया में स्त्री-पुरुष की उम्र को लेकर दोहरी मानसिकता न्याय संगत है?

राम के नाम एक खुली चिट्ठी

इंडियन मैचमेकिंग पर सवाल कीजिए लेकिन अपने गिरेबान में भी झांक लीजिए!

नज़रिया : बलात्कार महिला की नहीं पुरुष की समस्या है

अटेंशन प्लीज़!, वह सिर्फ़ देखा जाना नहीं, सुना जाना चाहती है


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License