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भारत
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अर्थव्यवस्था
आर्थिक मंदी: घर में आग लगी है और आप फ़र्नीचर सजा रहे हैं!
वित्त मंत्री की घोषणा में दिए गए उपाय उद्योग जगत की लॉबी और शेयर बाज़ार के लिए केवल रियायतें हैं, वे मांग में आई कमी को पूरा नहीं कर पाएंगे।
सुबोध वर्मा
26 Aug 2019
Translated by महेश कुमार
economy

भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए कुछ उपायों की घोषणा की है लेकिन उनसे गिरते आर्थिक विकास के थमने की क़तई संभावना नहीं है और न ही वे लोगों की ख़रीदने की शक्ति में कमी को दूर कर पाएंगे और न ही बेरोज़गारी की भयावह समस्या से निजात पा सकेंगे। ऐसा लग रहा है जैसे घर में आग लगी है और फ़र्नीचर को व्यवस्थित किया जा रहा है।

सीतारमण की इन घोषणाओं का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और गृह मंत्री अमित शाह से लेकर पार्टी के नेताओं, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और यहां तक कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी स्वागत किया है। ऑटोमोबाइल उद्योग के कुछ दिग्गजों और शेयर बाज़ार के खिलाड़ियों ने भी उनका स्वागत किया है। यहां तक कि यूएस-इंडिया बिज़नेस काउंसिल ने भी इसकी प्रशंसा की है।

इन उपायों के मुताबिक़: विदेशी पोर्टफ़ोलियो निवेशकों पर बढ़ा हुआ अधिभार वापस लेना, नई कारों की सरकारी ख़रीद पर लगे प्रतिबंध को हटाना, बीएस- IV वाहनों को उनके पंजीकरण का समय समाप्त होने तक चलाने की अनुमति देना, और वाहनों के लिए अतिरिक्त 15 प्रतिशत मूल्यह्रास दर की अनुमति देना, बैंकों में 70,000 करोड़ और नेशनल हाउसिंग बैंक के माध्यम से हाउसिंग फ़ाइनेंस कंपनियों के लिए 20,000 करोड़ रुपये मुहैया कराना, MSMEs (मध्यम, छोटे और सूक्ष्म उद्यमों) को सभी लंबित गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स रिफ़ंड को पूरा करने के लिए 30 दिनों की रियायत देना और और स्टार्ट-अप के एंजेल टैक्स को हटाना आदि।

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर सूरजजीत मजूमदार ने कहा, “वित्त मंत्री अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकालने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन ये काम नहीं करेगा।" 

उन्होंने आगे कहा, “भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ प्रमुख समस्या यह है कि मांग में गिरावट आई है। मौजूदा सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है। वे उम्मीद कर रहे हैं कि इस तरह के उपायों से निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिससे बेहतर विकास होगा, और अधिक रोज़गार मिलेगा।"

मुख्यधारा के मीडिया में बैठे टिप्पणीकार सावधानीपूर्वक इन उपायों का स्वागत कर रहे थे – इस संकेत की भी सराहना करते हुए कि सरकार के पास "सुनने की क्षमता" है,जैसा कि विशाल ऑटो-निर्माता महिंद्रा समूह के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने एक ट्वीट में कहा। उनके कहने का मतलब यह था कि सरकार कॉर्पोरेट सेक्टर की दलीलों का जवाब दे रही थी। अब वे और अधिक रियायतों की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिनका वादा सीतारमण ने किया था जब उन्होंने कहा था कि आने वाले हफ़्तों में और अधिक घोषणाएं होंगी।

ऑटो निगमों को रियायतें

ऑटोमोबाइल क्षेत्र को दी गई रियायतें मामले को बड़े सलीके से दर्शाती हैं। इस क्षेत्र के लिए घोषित कुल उपायों में, जो कार की बिक्री के मामले में दो-दशक के निचले स्तर पर है, और जहां लाखों नौकरियों का नुकसान हो रहा है, यह है कि सरकार नई कारों को खरीदेगी, कंपनियां पुरानी कारों को बदल सकती हैं, जिनका लाभ मार्च 2020 तक उच्च मूल्यह्रास की दर पर उठाया जा सकता है, और वाहनों को अधिक कठोर BS-VI मानदंडों में अपग्रेड करने की आवश्यकता नहीं होगी। क्या यह नई कारों की मांग को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त है, यहां तक कि उन भारतीयों के छोटे से हिस्से के लिए जो कार ख़रीदना चाहते हैं? यह क़दम मदद नहीं करेगा।

यह क्या बताता है - जैसा कि महिंद्रा ने बताया कि - क्या सरकार ऑटो-निर्माताओं को जो चाहिए उसकी जानकारी लेने की कोशिश कर रही है। और, वर्तमान परिस्थितियों में, वे जो चाहते हैं, उनका बिक्री लाभ बना रहे बावजूद इसके की बिक्री राजस्व गिर रहा है।

बैंक के ज़रिये पूंजीगत जान फूंकने की कोशिश

जहाँ तक 70,000 करोड़ रुपये की पूँजी लगाने की बात है, मजूमदार बताते हैं कि यह उपाय पहले से ही बजट का हिस्सा था। सरकार ने जो कुछ भी किया है, वह कि, इसे साल के बजाए अभी से लागू कर दिया है। इसका उद्देश्य बैंकों को अधिक ऋण देने में सक्षम बनाना है, जो सैद्धांतिक रूप से उत्पादक क्षमताओं और रोज़गार को बढ़ावा देगा।

लेकिन यह एक गंभीर ग़लती है। निवेश को बढ़ावा देने की समस्या उधार कम देने के कारण नहीं है। इसकी मुख्य वजह मांग में कमी से है। अधिक ऋण उपलब्ध कराने से केवल एनपीए (ग़ैर-निष्पादित परिसंपत्ति या ख़राब ऋण) पैदा हो सकता है क्योंकि बैंक ऋण देनए की शर्तो को आसान कर देंगे और बेईमान पुंजिपति पैसा ले लेंगे और उसे उड़ा जाएंगे, जैसा कि अब तक होता रहा है।

हाउसिंग फ़ाइनेंस कंपनियों के लिए 20,000 करोड़ रुपये का तोहफ़ा भी केवल एक विश्वास-निर्माण का उपाय है, न कि ऐसा कोई एक क़दम जो रियल एस्टेट क्षेत्र को पुनर्जीवित कर देगा जो आज पूरी तरह से मृत्यु की आग़ोश में जा रहा है। सरकार द्वारा तैयार की गई छाया बैंकिंग प्रणाली पहले से ही संकट में है- यहां आईएल एंड एफ़एस और डीएचएफ़एल को याद रखें - इसने कॉर्पोरेट क्षेत्र को हिला कर रख दिया है और यह पुंजिगत तोहफ़ा उन्हें आश्वस्त करने भर के लिए है।

एमएसएमई के लिए को लंबित जीएसटी रिफ़ंड के समय में बढ़ोतरी एक अच्छा क़दम है, लेकिन यह भी उस क्षेत्र की ख़ास मदद नहीं करने जा रहा है जो नोटबंदी/विमुद्रीकरण और जीएसटी के दोहरे झटके से उबर नहीं पाया है। इस क्षेत्र के लिए बैंक कर्ज़ का प्रवाह कम हो रहा है और इस संकट से बेरोज़गारों का एक बड़ा हिस्सा पैदा हो रहा है। जीएसटी रिफ़ंड एक सड़ते घाव पर बैंडएड लगाने जैसा है।

विदेशी हॉट मनी को रियायतें

विदेशी निवेशकों के पूंजीगत लाभ (जो वे शेयरों को बेचकर कमाते हैं) पर अधिभार को ख़त्म करना और स्टार्ट-अप से एंजेल टैक्स में छूट मुख्य रूप से विदेशों में हॉट मनी धन प्रबंधकों को ख़ुश करने के लिए है। पिछले हफ़्तों में, जब से सरकार ने अपने बजट में अधिभार की घोषणा की थी, तब से विदेशी निवेशकों ने बाज़ार में उच्च अस्थिरता और अनिश्चितता के कारण 23,000 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी कर ली थी। अब, वे आश्वस्त होंगे, और एक बार फिर से निवेश शुरू कर सकते हैं। लेकिन इससे क्या होगा?

एफ़पीआई भारत में उत्पादक क्षमताओं के विस्तार में मदद नहीं करता है, न ही यह रोज़गार पैदा करता है। यह केवल शेयर बाज़ारों में विदेशी निवेशकों की जेब को पसंद करता है। इसमें आश्चर्य नहीं कि यूएसआईबीसी और यूएस इंडिया स्ट्रेटेजिक एंड पार्टनरशिप फ़ोरम (यूएसआईएसपीआईएफ) जैसे निकाय इन उपायों से अधिक ख़ुश हो रहे हैं।

आख़िर करना क्या चाहिए?

अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जाना चाहिए? मजूमदार के अनुसार, सार्वजनिक ख़र्च को बढ़ावा देना प्राथमिक ज़रूरत है। उन्होंने कहा, "स्वास्थ्य, शिक्षा,बुनियादी ढांचा, कृषि जैसे क्षेत्र संसाधन संकट का सामना कर रहे हैं और इनमें किया गया सरकारी निवेश न केवल लोगों की सीधे मदद करेगा, इससे रोज़गार भी पैदा होंगे और आय में वृद्धि होगी जिससे अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।"

लेकिन सरकार की तथाकथित राजकोषीय विवेक के प्रति प्रतिबद्धता, यानी सरकारी ख़र्च को कम करना और राजकोषीय घाटे को कम रखना, ऐसा करने से रोकता है। नवउदारवादी हठधर्मिता का यह फंदा जिसे मोदी सरकार अपने गले में डाला हुआ है, अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के किसी भी प्रभावी क़दम के लिए रोड़ा बना हुआ है।

आने वाले दिनों में, जैसा कि सीतारमण ने वादा किया है, ऐसे और उपायों की घोषणा की जाएगी। कॉरपोरेट्स को अधिक रियायतें दी जाएंगी, यहां तक कि पैकेज की घोषणा भी की जा सकती है। और, जनता की ख़रीदने की ताक़त को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक व्यय में किसी भी पर्याप्त वृद्धि के अभाव में - जैसे मज़दूरी बढ़ाना, कल्याणकारी योजनाओं पर ख़र्च बढ़ाना, आदि। 
इस सब की वजह से बेरोज़गारी में ज़्यादा वृद्धि, और अर्थव्यवस्था के डूबने की ज़्यादा उम्मीद है।

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