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असम बाढ़ : एनआरसी का डर; डूबने के बावजूद घर छोड़ने को तैयार नहीं लोग
बहुत से ऐसे परिवार हैं जो अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं। एनआरसी के प्रकाशन की डेडलाइन 31 जुलाई है। इसको लेकर लोगों में डर समाया हुआ है कि अगर वे घर को गंवा देते हैं तो उनके पास सबूत ख़त्म हो जाएगा।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
17 Jul 2019
असम बाढ़

असम भीषण बाढ़ की चपेट में है। राज्य के 33 में से 30 ज़िलों में बाढ़ आ गई है। बाढ़ के चलते जहां लोग अपने मकान को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जा रहे वहीं कुछ लोग घर छोड़कर जाने को तैयार नहीं है। ये लोग एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस) को लेकर घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं। जनसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक़ नैशनल डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फ़ोर्स (एनडीआरएफ़) के बचावकर्मी परवेश कुमार बीते दो दिनों से मोरीगांव ज़िले के तुलसीबाड़ी गांव की रहने वाली रीना बेग़म को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वह जाने को तैयार नहीं हैं। रीना का घर बाढ़ के चलते डूबा हुआ है।

बचावकर्मी रीना के पड़ोसियों को उनके डूबे हुए घर से निकालकर सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे हैं लेकिन  50 वर्षीय रीना बेग़म अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं। रीना का घर कमर तक पानी में डूब चुका है। रीना कहती हैं, ‘हम अपना घर कैसे छोड़ सकते हैं?’ परवेश कुमार का कहना है कि जान जोखिम में होने के बावजूद घर न छोड़ने को तैयार लोगों में रीना बेग़म के अलावा कई लोग शामिल हैं।

परवेश ने बताया कि बहुत से ऐसे परिवार हैं जो अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं। वह कहते हैं कल हम एक बेहद सुनसान इलाक़े में गए थे। 20 लोग एक घर में फंसे थे लेकिन उनमें से 7 लोग ही हमारे साथ वापस आए।

घर न छोड़ने वाले लोगों को बचावकर्मियों ने अपना मोबाइल नंबर देकर कहा कि अगर उन्हें ज़रूरत पड़े तो वे उनसे संपर्क कर सकते हैं। देर रात जब पानी का स्तर बढ़ गया तो परवेश कुमार को एक फ़ोन आया। कुमार ने बताया कि ‘जब हालात बेहद ख़राब होने लगते हैं तो लोग अमूमन अपना विचार बदलकर लौटना चाहते हैं।’

असम के मुस्लिम बहुल इलाक़ों में घर और ज़मीन ही किसी व्यक्ति की पहचान का बड़ा सबूत है। ज्ञात हो कि एनआरसी के प्रकाशन की डेडलाइन 31 जुलाई है। इसको लेकर लोगों में डर समाया हुआ है कि अगर वे घर को गंवा देते हैं तो उनके पास सबूत ख़त्म हो जाएगा। एक स्थानीय अधिकारी ने आशंका जताई कि शायद डेडलाइन का खौफ़ है जिसकी वजह से जान पर ख़तरा मंडराने के बावजूद ये लोग घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

परवेश कुमार ने कहा कि जो लोग बाढ़ प्रभावित इलाक़ों को छोड़ने को तैयार हुए उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके दस्तावेज़ सुरक्षित रहें। उन्होंने बताया कि कई मामले ऐसे हुए जब लोगों को बचाकर लाने के बाद वे वापस लौटने के लिए कहने लगे। ऐसा इसलिए क्योंकि वे अपने दस्तावेज़ भूल आए थे।

ज्ञात हो कि रीना बेग़म के परिवार समेत राज्य के क़रीब 52 लाख लोग ऐसे हैं जो इस बार मानसून के बाद आई बाढ़ की चपेट में हैं। असम के 33 ज़िलों में से 30 ज़िले बाढ़ की चपेट में हैं। 695 शिविरों में क़रीब 1,47,304 लोग रह रहे हैं। काज़ीरंगा उद्यान भी पानी में डूबा हुआ है। कई लोगों का मानना है कि इस बार बीते एक दशक में सबसे ख़राब हालात हैं।

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