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अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है, यहाँ हर रोज़ इतिहास बनता है।"
सत्यम् तिवारी
27 May 2022
dargah ajmer sharif

सरताजन के ताज मोइनूद्दीन, तुम हो जगत महाराज मोइनूद्दीन,

ग़ैर का मुँह काहे को देखूँ, मैं हूँ तेरी मोहताज मोइनूद्दीन

इस कव्वाली में नुसरत फ़तेह अली ख़ान सूफ़ी संत ख़्वाजा मोइनूद्दीन चिश्ती(1143–1236) से मुख़ातिब हैं। ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ कहे जाने वाले मोइनूद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर में है जिसे अजमेर शरीफ़ कहा जाता है। इस दरगाह में देश दुनिया के हर धर्म हर संप्रदाय के लोग अपनी मुरादों को लेकर पहुँचते हैं। देश के हालिया माहौल में लगातार पुरानी इमारतों, मस्जिदों को मंदिर बताने का दौर चल पड़ा है, इसके बावजूद शायद ही किसी ने ख़याल किया होगा कि यह नफ़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह तक भी पहुँच जाएगी। 26 मई गुरुवार को एक हिन्दुत्ववादी संगठन महाराणा प्रताप सेना ने राजस्थान सरकार को एक ख़त लिखा है, और ख़त में दावा किया है कि दरगाह अजमेर शरीफ़ पुराना हिन्दू मंदिर है और वहाँ की दीवारों और खिड़कियों में स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं। महारणा प्रताप सेना के अध्यक्ष राजवर्धन परमार ने मांग की है कि दरगाह में सर्वे करवाया जाए, उनका दावा है कि यहाँ पुख्ता सबूत प्राप्त होंगे जिससे साबित होगा कि यह हिन्दू मंदिर है।

महाराणा प्रताप सेना ने जो तस्वीर जारी की है उसमें एक दीवार की जाली में बनी आकृति को स्वास्तिक बताया गया है। मेनस्ट्रीम मीडिया चैनलों ने उस तस्वीर की बिना पर राजवर्धन परमार के दावे की ख़बरें चलाई हैं। मगर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए राजवर्धन ने ख़ुद मान लिया कि वह तस्वीर दरगाह अजमेर शरीफ़ की है ही नहीं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए राजवर्धन ने कहा, "यह तस्वीर अढ़ाई दिन का झोंपड़ा की है मगर हमने सुना है कि ऐसी ही दीवारें अजमेर शरीफ़ में भी हैं।"

 

 

यानी जो दावा राजस्थान सरकार को लिखे ख़त में किया गया है, उसे महाराना प्रताप सेना के अध्यक्ष ने ख़ुद ही झूठा साबित कर दिया है।

इतिहासकार राणा सफ़वी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बताया कि अढ़ाई दिन का झोंपड़ा मंदिरों की जगह पर बनाया गया था यह बात तो इतिहास में दर्ज है ही। बता दें कि अजमेर में स्थित अढ़ाई दिन का झोंपड़ा 1199 में क़ुतुब उद दीन ऐबक ने बनवाया था।

राजवर्धन ने बताया कि उन्होंने सुना है कि अजमेर शरीफ़ की दरगाह में इसी तरह का स्वस्तिक चिन्ह है। तथ्यों के बग़ैर और दृढ़निश्चय के साथ वह कहते हैं कि दरगाह के नीचे भी मंदिर ही है।

दरगाह अजमेर शरीफ़ के मायने

महाराणा सेना के खोखले दावों पर गद्दी नशीन दरगाह अजमेर शरीफ़ और चिश्ती फ़ाउंडेशन के चेयरमैन हाजी सय्यद सलमान चिश्ती ने कहा, "ये सब बातें झूठी हैं, ये सब ख़ुद को नुमायां करने के लिए भारत देश की मुहब्बत की तहज़ीब के विरोध में किया गया है। यही देशविरोधी ताक़तें हैं। इनको कौन उकसा रहा है, इनको कौन फ़ंड कर रहा है सरकार ख़ुद इसकी जांच करे।"

सलमान चिश्ती मानते हैं कि यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो।

राणा सफ़वी अपने एक लेख में लिखती हैं कि दरगाह की तामीर के शुरुआती सबूत 1532 में मिलते हैं। वह लिखती हैं, "ऐसा दरगाह की उत्तरी दीवार पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इंडो-इस्लामिक आर्किटैक्चर की मिसाल क़ायम करते हुए गुम्बद पर एक कमल है और एक सुनहरा मुकुट है जिसे रामपुर के नवाब हैदर अली ख़ान ने पेश किया था।"

राणा के लेख के अनुसार दरगाह अजमेर शरीफ़ में वक़्तन फ़ वक़्तन कई लोगों का योगदान रहा है। कभी अकबर ने और जहाँगीर द्वारा पेशगी दी गई हांडियां आज भी इस्तेमाल में लाई जाती हैं। दरगाह का निज़ामी दरवाज़ा 1911 में अंग्रेज़ी इंजीनियर्स ने हैदराबादी निज़ाम के आदेश पर बनाया था। मज़ार के गिर्द की रेलिंग जहांनारा बेग़म की पेशगी है। जहांनारा बेग़म ने ही वहाँ एक बेग़मी चबूतरा भी बनवाया था। नक़्क़ारख़ाना में टंगा झूमर गोल्डन टेंपल कमेटी ने दरगाह को दिया था।

राणा सफ़वी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "मैं कई बरसों से दरगाह जाती रही हूँ। इस जगह पर हमेशा से सांप्रदायिक सौहार्द रहा है और हर धर्म के लोग इस दरगाह में आते हैं। हालिया समय में जो इस्लामिक इमारतों की स्कैनिंग करवाने की मांग उठ रही है, वह डरावनी और चिंताजनक है।

महाराणा प्रताप सेना है क्या?

अब जानते हैं कि इतने वसीअ इतिहास और संस्कृति को समेट कर रखने वाली दरगाह को बदनाम करने की कोशिश किसने की है।

बता दें कि महाराणा प्रताप सेना का गठन 2014 में 38 साल के राजवर्धन सिंह ने किया था। यह वही संगठन है जो क़ुतुब मीनार पर 9 मई को हनुमान चालीसा पढ़ने वालों में भी शामिल था। राजवर्धन ने बताया कि महाराणा प्रताप सेना ने दिल्ली के सड़कों के नाम और इमारतों के नाम भी अपने हिसाब से बदले हैं।

राजवर्धन ने कहा, "देश का हिन्दू 8 साल पहले जागा है, हम हिंदुओं को जगाने का काम करते हैं। हमने अकबर रोड का नाम महाराणा प्रताप मार्ग, शाहजहां रोड का नाम भगवान परशुराम मार्ग, जामा मस्जिद का नाम महादेव मंदिर, क़ुतुब मीनार का नाम विष्णु स्तम्भ रखा है।"

राजवर्धन ने दावा किया कि 80 प्रतिशत लोग दरगाह में जाते हैं, उनकी मुराद पूरी होती है क्योंकि वहाँ पर महादेव हैं।

"अजमेर दरगाह शरीफ़ में रोज़ इतिहास बनता है" : सलमान चिश्ती

सलमान चिश्ती ने कहा, "यह समझना बहुत ज़रूरी है कि अजमेर दरगाह शरीफ़ कोई मुग़ल इमारत नहीं है। यह इतिहास का हिस्सा ही नहीं है यह 'लिविंग हिस्टरी' है, यहाँ रोज़ इतिहास बनता है। आज जुमे की नमाज़ के वक़्त यहाँ दो ढाई लाख से ज़्यादा लोग थे। आप एएसआई संरक्षित इमारतों पर कुछ कहें तो वह सरकार और एएसआई का मसला है, लेकिन आप एक जीती जागती सभ्यता-परंपरा के बारे में कुछ कैसे कह सकते हैं?"

सलमान ने बताया कि अजमेर शहर सिर्फ़ हिंदुस्तान नहीं पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है। उन्होंने कहा, "दरगाह में चढ़ने वाले गुलाब पुष्कर से लाये जाते हैं इससे बड़ी मिसाल क्या होगी। लोग आज खाने पीने को लेकर लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं, हमारे यहाँ 800 साल से जो लंगर बन रहा है वह शाकाहारी लंगर बनता है, प्याज़ लहसुन अदरक भी इस्तेमाल नहीं करते ताकि जैन धर्म के लोग भी यहाँ का लंगर खा सकें। हमारे बुज़ुर्गों ने इतना ख़याल रखा है, इस तरह की बकवास करना दिलों को तोड़ने वाली बात है।"

महाराणा सेना के इस पत्र को अजमेर प्रशासन ने कोई तूल नहीं दिया है। एसडीएम दफ़्तर के अधिकारियों ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "अजमेर का माहौल बहुत शांत रहता है। बसंत में हिन्दू भगवान ख़्वाजा साब के यहाँ जाते हैं और जब हिंदुओं के जुलूस निकलते हैं तो दरगाह से भी लोग फूलवर्षा करते हैं।"

राजवर्धन परमार से बात कर के वही बातें सामने आईं जो अन्य हिन्दुत्ववादी संगठन करते हैं। राजवर्धन ने कहा, "हिंदुओं में हिम्मत नहीं है कि वो आवाज़ उठा पाएँ कि दरगाह को महादेव का मंदिर कहा जाए। मैं कहना चाहता हूँ कि जीतने भी मुग़ल शासकों द्वारा बनाए कन्वर्ट किए गए धाम हैं इनको हम हिंदुओं के नाम पर परिवर्तित करेंगे।"

राजवर्धन ने बताया कि उन्हें हिन्दू जागरण मंच, हिन्दू महासभा का समर्थन मिला है आगे-आगे देखिये होता है क्या। बात ख़त्म होने के वक़्त राजवर्धन ने जो बात कही वह इस वक़्त मुसलमानों के ख़िलाफ़ फैलती नफ़रत का मुज़ाहरा ही है। "हम 9 जून को क़ुतुब मीनार पर जा के पूजा अर्चना करेंगे। और निश्चित तौर पर आने वाले समय हम भगवान शिव का रुद्राभिषेक अजमेर की दरगाह के अंदर करेंगे, और हम मक्का से भी अपने महादेव को लाने का काम करेंगे।"

सलमान चिश्ती ने बताया कि कुछ दिन क्वीन मैरी हौज़ के फव्वारे की फ़ोटो वायरल कर के उसे शिवलिंग बताया जाने लगा था। उन्होंने कहा कि किसी भी चीज़ को शिवलिंग बता कर यह लोग अपने धर्म की ही तौहीन कर रहे हैं।

सलमान चिश्ती ने कहा कि इस तरह का दावा करने वाले बेवकूफ़ और हिंदुस्तान का मीडिया भी बेवकूफ़ है कि बग़ैर स्पष्टीकरण के यह ख़बरें चला रहा है। मीडिया की अमानत कलम है, उनको कैसे गवारा है कि अपनी अमानत की ख़यानत करें। इस तरह की बातें, फ़ेक न्यूज़ फैलाने वालों को कोई 3 दिन बाद कोई नहीं याद रखेगा। दरगाह 800 साल से है। यह मुल्क बड़ा ख़ास मुल्क है इस मुल्क को किसी नज़र लगी है।"

राणा सफ़वी दरगाह अजमेर शरीफ़ के बारे में लिखती हैं, "अजमेर नाम ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ और उनकी दरगाह की तस्वीर पेश करता है। यह मुझे मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की याद दिलाता है, जो समुद्र की तरह उदार और पृथ्वी की तरह मेहमान नवाज़ थे। आज सफ़ेद गुंबद और सुनहरे मुकुट से सजी इस दरगाह में लाखों दुआ मांगने वाले आते हैं और ख़्वाजा के रहम में डूबे रहते हैं। पूरी इंसानी क़ौम के लिए इस मुहब्बत और लगाव की वजह से ही मोइनूद्दीन चिश्ती को ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ यानी ग़रीबों को पालने वाला नाम मिला है।"

दरगाह अजमेर शरीफ़ की सभी तस्वीरें राणा सफ़वी के सौजन्य से।

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