NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बकोरिया मुठभेड़ कांड : न्यायहित में सीबीआई जांच से क्यों डर रही है झारखंड सरकार?
“पुलिस–सीआईडी की जाँच ने जवाब की अपेक्षा सवाल अधिक खड़े कर दिए हैं। जाँच में बरती गयी लापरवाही और धीमी गति से प्रथमदृष्टया यही लगता है कि पुलिस ने मामले को अलग रंग देने का प्रयास किया है।”
अनिल अंशुमन
29 Oct 2018
सांकेतिक तस्वीर

23 अक्तूबर, 2018 को झारखण्ड उच्च न्यायलय ने 8 जून 2015 के चर्चित “ बकोरिया मुठभेड़ काण्ड” की जाँच राज्य सरकार के पुलिस विभाग से लेकर सीबीआई को देने का फैसला सुनाया। जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की बेंच ने 21 पन्नों के फैसले में  इस मुठभेड़ कांड में पुलिस द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को सिरे से खारिज़ करते हुए अपने आदेश में लिखा है कि “पुलिस–सीआईडी की जाँच ने जवाब की अपेक्षा सवाल अधिक खड़े कर दिए हैं। जाँच में बरती गयी लापरवाही और धीमी गति से प्रथमदृष्टया यही लगता है कि पुलिस ने मामले को अलग रंग देने का प्रयास किया है, जिससे राज्य की पुलिस और सीआईडी जैसी एजेंसियों पर से लोगों का विश्वास डिग रहा है। ऐसे में स्वतंत्र जाँच ज़रूरी है इसलिए न्यायहित में ‘बकोरिया मुठभेड़ काण्ड’ की जाँच अब सीबीआई करेगी।” इस काण्ड में  मारे गए पारा शिक्षक नीरज यादव के पिता जवाहर यादव ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मुठभेड़–कांड को फ़र्ज़ी करार देते हुए इसकी निष्पक्ष जांच और इन्साफ की मांग की थी। अब झारखण्ड सरकार हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है।

सवाल है कि आखिर ऐसा क्या मामला है कि झारखण्ड की सरकार को अपने ही राज्य के हाईकोर्ट के फैसले और अपनी ही केंद्र सरकार की सबसे बड़ी जांच संस्था सीबीआई के विरोध में सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ रही है। सूत्रों की मानें तो कोर्ट के इस फैसले से राज्य के पुलिस डीजीपी समेत कई बड़े आला अधिकारियों की गर्दन फंसने की नौबत आ सकती है। दूसरे, इस कांड में जिस उग्रवादी गिरोह जेजेएमपी के साथ पुलिस संलिप्तता की चर्चा आम है, यदि वह साबित हुआ तो माओवाद से निपटने के नाम पर जारी तथाकथित उग्रवादी गिरोहों से सरकार और पुलिसिया मिलीभगत से जारी खेल का पुख्ता प्रमाण सार्वजनिक हो सकता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य के विपक्षी दलों से लेकर कई जन संगठन व मानवाधिकार संगठनों ने अपनी जाँच रिपोर्टों में साफ़ कह दिया है कि ‘बकोरिया मुठभेड़ काण्ड’ में पुलिस जिन 12 लोगों को नक्सली बताकर मारने का दावा कर रही है वह पूरी तरह संदेहास्पद है। दबी ज़ुबान में स्थानीय लोगों के अनुसार काण्ड का असली सच है कि 8 जून को एक गुप्त स्थल पर पुलिस की मध्यस्थता में जेजेएमपी और माओवादी दस्ता छोड़कर उनके साथ शामिल होने वाले तथाकथित कमांडर के बीच ‘ सेटिंग-गेटिंग’ की डील होनी थी। पैसों के हिस्सेदारी के सवाल पर तीखा विवाद हो जाने के कारण जेजेएमपी वालों ने कमांडर व उनके साथियों को वहीं गोली मार दी। साथ ही पुलिस के दबाव पर लिंकमैन बने पारा टीचर उदय यादव व उनके रिश्तेदार को भी अगवाकर कर उसी रात मार डाला। इस अप्रत्याशित घटना को आनन फानन में दूसरा रंग देने के लिए ही पुलिस ने पूरे मामले को माओवादियों से मुठभेड़ का रूप देकर वाहवाही लूटी ली। इस बीच पूरी खबर प्रमंडलीय पुलिस महकमे में फ़ैल जाने के कारण पलामू प्रमंडलीय डीआईजी व लातेहार एसपी समेत पलामू सदर थाना प्रभारी इत्यादि ने ऊपर के दबाव के बावजूद इस काण्ड को “मुठभेड़” मानने से साफ़ इनकार कर दिया। जिसका खामियाजा उन्हें तत्काल भुगतना भी पड़ा और फ़ौरन सबका तबादला हो गया। मामले ने तूल तब पकड़ा जब सीआईडी के तत्कालीन एडीजी ने 1 जनवरी 2016 को गृह विभाग को पत्र लिखकर शिकायत की कि बकोरिया कांड की जाँच धीमी करने के लिए ‘ऊपर’ से दबाव डाला जा रहा है। 13 दिसम्बर ‘17 को उनका भी तबादला दिल्ली कर दिया गया। ये स्थितियां खुद बता रहीं हैं कि क्यों     सरकार नहीं चाहती कि इस काण्ड की कोई अलग से जांच हो और वास्तविक सच्चाई पर से पर्दा उठे। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो राज्य के कई इलाकों में माओवाद से निपटने के नाम पर हुए मुठभेड़–कांड और माओवादी कहकर निर्दोष आदिवासियों और ग्रामीणों कि हत्या तथा अनेकों गिरफ्तारियों की घटनाओं पर भी संदेह पुख्ता हो जाएगा और जाँच की मांग उठने लगेगी। 

सनद रहे कि झारखण्ड एकमात्र ऐसा प्रदेश है जहाँ तथाकथित माओवादी हिंसा से निपटने के नाम पर खुद पुलिस के आला अधिकारियों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर कई उग्रवादी गिरोह खड़े कर रखे हैं। जो अपने प्रभाव क्षेत्र में चल रहे वैध-अवैध धंधे, ठेकेदारी, खनन व क्रशर कार्य इत्यादि के कारोबारियों और यहाँ तक कि माफियाओं से भी हर माह करोड़ों ‘लेवी’ वसूली करतें हैं। जिसका एक हिस्सा ऊपर पंहुचता है। इन गिरोहों में से अधिकांश के संरक्षण में सत्ता राजनीति की ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका रहती है। सन् 2002 में विपक्ष के प्रखर नेता भाकपा माले विधायक महेंद्र सिंह ने झारखण्ड विधानसभा में तत्कालीन एनडीए सरकार पर खुला आरोप लगाते हुए जवाब माँगा था कि वो बताये कि क्यों उनके डीजीपी माओवाद से निपटने के नाम पर उग्रवादी गिरोह बना रहें है? चुनाव के समय जंगल क्षेत्र के इलाकों में इन गिरोहों से वोट मैनेज कराने और विरोधी वोटरों को धमकाने जैसे कार्यों के अलावा इनके दबंग कमांडरों को पार्टी नेता व उम्मीदवार तक बनाने की ख़बरें कई बार चर्चा में आ चुकी हैं। इसीलिए जब झारखण्ड विधान सभा में बकोरिया मुठभेड़ काण्ड का मामला उठा और विपक्ष ने उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए सरकार से जानना चाहा कि जेजेएमपी-पुलिस सांठ-गांठ का मामला क्या है, तो सत्ता पक्ष बिफर उठा और भारी हो-हंगामे के कारण उस दिन का सदन स्थगित हो गया था।

बहरहाल, झारखण्ड हाईकोर्ट ने जिस पार्टी कि राज्य सरकार के खिलाफ जाकर सीबीआई को “बकोरिया मुठभेड़ कांड” कि ज़ल्द से ज़ल्द जांच कर रिपोर्ट देने का फैसला सुनाया है, उसी पार्टी की केंद्र की सरकार की देखरेख में आज उसी सीबीआई कि ही विश्वसनीयता का संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। देखना है कि यदि झारखण्ड सरकार सुप्रीम कोर्ट जाती है तो क्या होता है, लेकिन इतना तो तय है कि इस मुठभेड़ काण्ड में मारे गए 5 नाबालिग और पारा टीचर उदय यादव समेत सभी 12 निर्दोष लोगों के परिजनों को इन्साफ मिलने का तकाजा तो बना रहेगा ही। साथ ही इस काण्ड के वास्तविक सूत्रधारों और कर्त्ताओं को भी कानून के कठघरे में खड़ा कर जनता के सामने लाने का काम भी बाकी रहेगा।   

Jharkhand
Jharkhand government
jharkhand tribals
bakoria encounter case
Fake encounter
jharkhand high court
cbi probe

Related Stories

हैदराबाद फर्जी एनकाउंटर, यौन हिंसा की आड़ में पुलिसिया बर्बरता पर रोक लगे

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार

झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध

झारखंड : हेमंत सरकार को गिराने की कोशिशों के ख़िलाफ़ वाम दलों ने BJP को दी चेतावनी

झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 

झारखंड की खान सचिव पूजा सिंघल जेल भेजी गयीं

झारखंडः आईएएस पूजा सिंघल के ठिकानों पर छापेमारी दूसरे दिन भी जारी, क़रीबी सीए के घर से 19.31 करोड़ कैश बरामद

खबरों के आगे-पीछे: अंदरुनी कलह तो भाजपा में भी कम नहीं

आदिवासियों के विकास के लिए अलग धर्म संहिता की ज़रूरत- जनगणना के पहले जनजातीय नेता


बाकी खबरें

  • रवि कौशल
    डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी
    24 May 2022
    दिल्ली विश्वविद्यालय के इस फैसले की शिक्षक समूहों ने तीखी आलोचना करते हुए आरोप लगाया है कि इससे विश्वविद्यालय में भर्ती का संकट और गहरा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पश्चिम बंगालः वेतन वृद्धि की मांग को लेकर चाय बागान के कर्मचारी-श्रमिक तीन दिन करेंगे हड़ताल
    24 May 2022
    उत्तर बंगाल के ब्रू बेल्ट में लगभग 10,000 स्टाफ और सब-स्टाफ हैं। हड़ताल के निर्णय से बागान मालिकों में अफरा तफरी मच गयी है। मांग न मानने पर अनिश्चितकालीन हड़ताल का संकेत दिया है।
  • कलिका मेहता
    खेल जगत की गंभीर समस्या है 'सेक्सटॉर्शन'
    24 May 2022
    एक भ्रष्टाचार रोधी अंतरराष्ट्रीय संस्थान के मुताबिक़, "संगठित खेल की प्रवृत्ति सेक्सटॉर्शन की समस्या को बढ़ावा दे सकती है।" खेल जगत में यौन दुर्व्यवहार के चर्चित मामलों ने दुनिया का ध्यान अपनी तरफ़…
  • आज का कार्टून
    राम मंदिर के बाद, मथुरा-काशी पहुँचा राष्ट्रवादी सिलेबस 
    24 May 2022
    2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जब राम मंदिर पर फ़ैसला दिया तो लगा कि देश में अब हिंदू मुस्लिम मामलों में कुछ कमी आएगी। लेकिन राम मंदिर बहस की रेलगाड़ी अब मथुरा और काशी के टूर पर पहुँच गई है।
  • ज़ाहिद खान
    "रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर न देख..." : मजरूह सुल्तानपुरी पुण्यतिथि विशेष
    24 May 2022
    मजरूह सुल्तानपुरी की शायरी का शुरूआती दौर, आज़ादी के आंदोलन का दौर था। उनकी पुण्यतिथि पर पढ़िये उनके जीवन से जुड़े और शायरी से जुड़ी कुछ अहम बातें।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License