NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
भारत
राजनीति
बूट-बूट की सरकार: हमारे नेताओं का अनुशासन कहाँ खो गया है?
उत्तर प्रदेश राज्य के एक शहर संत कबीर नगर से एक विडियो आया है जिसमें बीजपी के एक नेता ने दूसरे नेता को जूते से मारा है।
सत्यम् तिवारी
07 Mar 2019
image courtesy: aaj tak

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के आने के बाद से संस्कृति के नाम पर काफ़ी पाखंड किये गए है। शहर, स्टेशन के नाम बदले गए हैं, "संस्कृति" को ज़िंदा रखने   के लिए ऐसे ही पाखंड किये गए है। उसी संस्कारी राज्य के एक शहर संत कबीर नगर से एक विडियो आया है जिसमें बीजपी के एक नेता ने दूसरे नेता को जूते से मारा है। बदले में दूसरे नेता ने हाथ से और गालियों से जवाब दिया। ये नेता हैं संत कबीर नगर से बीजपी के संसद शरद त्रिपाठी और संत कबीर नगर के विधायक राकेश सिंह बघेल। लड़ाई का मुद्दा था कि किसी सड़क के शिलान्यास होने पर जिनको "क्रेडिट" दिया गया, उनमें संसद शरद त्रिपाठी का नाम नहीं था। विडियो में देखा जा सकता है कि अपना नाम ना होने पर शरद त्रिपाठी ने शिकायत की, जिसपे राकेश सिंह बघेल ने कहा कि ये काम मैंने किया है, मुझसे बात कीजिये। दोनों में बहस हुई और अंत में सांसद जी ने विधायक जी पर जूता चला दिया। 

भारत के 70 साल के लोकतंत्र में ये ऐसी पहली घटना नहीं है। हमारे नेताओं ने अनुशासन के मामले में लगातार गिरावट दिखाई है। ये विडियो तो फिर भी किसी मीटिंग का है, हमने संसद में भी ऐसी गली-मोहल्लों की लड़ाई के नज़ारे समय-समय पर देखे ही हैं। चाहे वो संसद में साथी नेताओं को गाली देना हो, या मार-पीट हो, या रैलीयों में किसी नेता के आपत्तिजनक शब्द इस्तेमाल करने की बात हो; इनमें से किसी में भी हमारे  नेता कभी पीछे नहीं रहे हैं। संस्कारों की बात करने वाली बीजपी की ही बात की जाए, तो प्रधानमंत्री ख़ुद भी अपने भाषणों में ओछे शब्द इस्तेमाल करने से कतराते नहीं हैं। 

इस जूते वाली घटना को देखते हुए कई सवाल खड़े होते हैं। ये संसद और विधायक वो हैं जिनको जनता ने अपना प्रतिनिधि चुना है, ऐसे में  हम ये सोचने पे मजबूर हो जाते हैं कि इन नेताओं का चुनाव किस तरह से होता है? क्या इनके चुनाव का सबसे बड़ा ज़रिया पैसा और बल ही है? ऐसे नेता जो कि जनता के प्रतिनधि हैं, वो अपनी इस हरकत से जनता तक क्या संदेश पहुँचा रहे हैं? 

जूता मारने वाले सांसद शरद त्रिपाठी जिन्होंने जूता निकाला, वो संत कबीर दास पर एक किताब भी लिख चुके हैं, जिसका विमोचन ख़ुद प्रधानमंत्री के द्वारा हुआ था। साथ ही शरद त्रिपाठी विदेश मंत्रालय सहित कई समितियों के सदस्य हैं, जो कि देश-विदेश के फ़ैसले लेती हैं। तो क्या वे इन समितियों की मीटिंग में भी ऐसा ही बर्ताव करते होंगे? 

विडियो में देखा जा सकता है कि वहाँ कई बड़े अफ़सर भी मौजूद थे, और लड़ाई को रोकने का काम भी ख़ुद एक अफ़सर के ही द्वारा हुआ था। ज़ाहिर बात है कि ये घटना अचानक नहीं हुई है, ये व्यवहार की बात है। जब साथ के नेता को जूता मारा जा सकता है, तो क्या ऐसा ही बर्ताव अफ़सरों के साथ भी होता होगा? यदि हाँ, तो वो अफ़सर अभी तक चुप क्यों हैं? 

नियमों की बात की जाए तो देखने वाली बात ये है कि सड़क का निर्माण विधायक के अधीन होता है, तो उसक श्रेय भी विधायक को मिलना चाहिए, सांसद को नहीं। 

एक आख़री और बड़ी बात ये है कि जी राज्य में येब घटना हुई है, उस उत्तर प्रदेश में "जाति" एक बादल मसला है। और ये बात किसी से छुपी नहीं है कि चुनावों में जाति एक बड़ा किरदार अदा करती है। सांसद शरद त्रिपाठी ब्राह्मण हैं, और विधायक राकेश सिंह बघेल जाति के हिसाब से OBC से आते हैं। जो लोग जातीय हिंसा से वाकिफ़ हैं, उन्हें इसका पता होगा कि "जूता" कितना बड़ा और मज़बूत रूपक है। ऐसे में ये बड़ा सवाल भी उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश के नेताओं को जातिवाद ने अभी भी इस क़दर जकड़ा हुआ है कि वो किसी छोटे जाति के नेता को जूते से मारने लगते हैं? ध्यान में रखा जाए कि ये नेता वो हैं, जिन्होंने कबीरदास पे किताब लिखी है। 

इन सब सवालों के बारे में सोचा जाए तो राजनीति की एक घातक तस्वीर उभर के सामने आती है। 

Uttar pradesh
Uttar Pradesh elections
politicians
politicians fight
BJP
India

Related Stories

उर्दू पत्रकारिता : 200 सालों का सफ़र और चुनौतियां

सांप्रदायिक घटनाओं में हालिया उछाल के पीछे कौन?

बनारस: ‘अच्छे दिन’ के इंतज़ार में बंद हुए पावरलूम, बुनकरों की अनिश्चितकालीन हड़ताल

हल्ला बोल! सफ़दर ज़िन्दा है।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएं थोपी जा रही हैं

49 हस्तियों पर एफआईआर का विरोध : अरुंधति समेत 1389 ने किए हस्ताक्षर

कश्मीर के लोग अपने ही घरों में क़ैद हैं : येचुरी

#metoo : जिन पर इल्ज़ाम लगे वो मर्द अब क्या कर रहे हैं?

अविनाश पाटिल के साथ धर्म, अंधविश्वास और सनातन संस्था पर बातचीत

"न्यू इंडिया" गाँधी का होगा या गोडसे का?


बाकी खबरें

  • भाषा
    श्रीलंका में हिंसा में अब तक आठ लोगों की मौत, महिंदा राजपक्षे की गिरफ़्तारी की मांग तेज़
    10 May 2022
    विपक्ष ने महिंदा राजपक्षे पर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमला करने के लिए सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को उकसाने का आरोप लगाया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिवंगत फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को दूसरी बार मिला ''द पुलित्ज़र प्राइज़''
    10 May 2022
    अपनी बेहतरीन फोटो पत्रकारिता के लिए पहचान रखने वाले दिवंगत पत्रकार दानिश सिद्दीकी और उनके सहयोगियों को ''द पुल्तिज़र प्राइज़'' से सम्मानित किया गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    लखीमपुर खीरी हत्याकांड: आशीष मिश्रा के साथियों की ज़मानत ख़ारिज, मंत्री टेनी के आचरण पर कोर्ट की तीखी टिप्पणी
    10 May 2022
    केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के आचरण पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि वे इस घटना से पहले भड़काऊ भाषण न देते तो यह घटना नहीं होती और यह जघन्य हत्याकांड टल सकता था।
  • विजय विनीत
    पानी को तरसता बुंदेलखंडः कपसा गांव में प्यास की गवाही दे रहे ढाई हजार चेहरे, सूख रहे इकलौते कुएं से कैसे बुझेगी प्यास?
    10 May 2022
    ग्राउंड रिपोर्टः ''पानी की सही कीमत जानना हो तो हमीरपुर के कपसा गांव के लोगों से कोई भी मिल सकता है। हर सरकार ने यहां पानी की तरह पैसा बहाया, फिर भी लोगों की प्यास नहीं बुझ पाई।''
  • लाल बहादुर सिंह
    साझी विरासत-साझी लड़ाई: 1857 को आज सही सन्दर्भ में याद रखना बेहद ज़रूरी
    10 May 2022
    आज़ादी की यह पहली लड़ाई जिन मूल्यों और आदर्शों की बुनियाद पर लड़ी गयी थी, वे अभूतपूर्व संकट की मौजूदा घड़ी में हमारे लिए प्रकाश-स्तम्भ की तरह हैं। आज जो कारपोरेट-साम्प्रदायिक फासीवादी निज़ाम हमारे देश में…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License