NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
चुनाव 2022
विधानसभा चुनाव
भारत
राजनीति
यूपी के चुनाव मैदान में आईपीएस अफसरः क्या नौकरशही के इस राजनीतिकरण को रोकना नहीं चाहिए?
ईडी के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह और कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण को टिकट देकर भाजपा ने निश्चित तौर पर नौकरशाही की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।
अनिल सिन्हा
02 Feb 2022
यूपी के चुनाव मैदान में आईपीएस अफसरः क्या नौकरशही के इस राजनीतिकरण को रोकना नहीं चाहिए?
असीम अरुण, पूर्व IPS(बाएं से), राजेश्वर सिंह,पूर्व ज्वाइंट डॉयरेक्टर ईडी(दाएं से)

उत्तर प्रदेश चुनावों में भाजपा ने दो सेवारत आईपीएस अफसरों को मैदान में उतार दिया है। इन अफसरों का सत्ताधारी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ना यही बताता है कि मोदी के शासन काल में नौकरशाही का राजनीतिकरण किस हद तक हुआ है। ईडी के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह और कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण को टिकट देकर भाजपा ने निश्चित तौर पर नौकरशाही की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।
राजेश्वर सिंह के मैदान में उतरने से तो यह साफ हो गया है कि ऐन चुनाव के वक्त विपक्ष के नेताओं या रिश्तेदारों के घर ईडी के छापे पड़ने का क्या राज है। जाहिर है कि सिंह को उनकी वफादारी का इनाम मिला है। उन्होंने ईडी की विश्वसीयाता गिराने में सक्रिय भूमिका अदा की है। क्या चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट को इस पर खामोश रहना चाहिए? क्या इस पर लगाम लगाने की जरूरत नहीं है?

दोनों ही अधिकारी चुनाव मैदान में उतरने से ठीक पहले तक अपने पद पर सिर्फ बने हुए नहीं थे, बल्कि खूब सक्रिय थे। सिंह के चुनाव लड़ने का कयास पिछले अगस्त से ही लगाया जा रहा था जब उन्होंने वीआरएस का आवेदन दिया था। क्या इस बीच उनकी ओर से की गई कार्रवाई के पीछे सीधे-सीधे राजनीतिक पूर्वग्रह का संदेह नहीं किया जाए?

राजेश्वर सिंह लखनऊ की सरोजिनी नगर सीट से और असीम अरुण कन्नौज सदर से चुनाव लड़ रहे हैं।

राजेश्वर सिंह ईडी में कई हाई प्रोफाइल केसों की जांच से संबद्ध रहे हैं जिसने देश की राजनीति को प्रभावित किया है और नरेंद्र मोदी को सत्ता में पहुंचाने में मदद की है। इसमें मशहूर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला भी शामिल है जिसमें एक काल्पनिक नुकसान बताने का काम उस समय के कंट्रोलर एंड आडिटर जनरल विनोद राय ने किया था। अदालत ने इस कथित घोटाले के सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया और टिप्पणी की कि भ्रष्टाचार का कोई प्रमाण नहीं था। उसने यह भी कहा कि चालाकी से कुछ तथ्यों को जोड कर मामले को बनाया गया तथा नुकसान को काफी बड़ा बता दिया गया।

2014 में कांग्रेस की पराजय में 2जी स्पेकट्रम घोटाले  ने अहम भूमिका निभाई थी। विनोद राय को इसका पुरस्कार भी मिला। वह रिटायर होने के बाद बैकिंग बोर्ड के चेयरमैन बना दिए गए। बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया (बीसीसीआई) के अंतरिम अध्य़क्ष का पद भी संभाला। वह कई बैंकों के निदेशक मंडल में रहे हैं और मोदी के शासन काल में कई उच्च जिम्मेदारियां संभालते रहते हैं।

राजेश्वर सिंह ने जिन मामलों की जांच की है उनमें पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम तथा उनके बेटे के खिलाफ मनीलॉन्डरिंग का मामला भी है। ईडी ने इस मामले को लेकर चिंदबरम और उनके बेटे को काफी प्रताड़ित किया। इसे मीडिया में भी खूब प्रचारित किया गया। उन्हें अब इस तरह की सेवाओं के लिए इनाम दिया जा रहा है।

राजेश्वर सिंह का परिवार नौकरशाहों का परिवार है और उनके कई नजदीकी रिश्तेदार उत्तर प्रदेश पुलिस तथा प्रशासन में उच्च पदों पर है। क्या चुनाव आयोग को इस तथ्य को नजरअंदाज करना चाहिए?

कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहे असीम अरुण का मामला तो और भी दिलचस्प है। मार्च 2017 में लखनऊ में हुए संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह के एनकाउंटर के नेतृत्व करने का श्रेय उनके नाम है। उस समय वह एटीएस के प्रमुख थे और माना जाता है कि विधान सभा चुनावों के अंतिम चरण के मतदान ठीक पहले हुए इस एनकाउंटर का फायदा भाजपा को मिला। यही वजह है कि उन्हें टिकट देने पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने बयान दिया कि दंगा कराने वाले समाजवादी पार्टी में और दंगा रोकने वाले भारतीय जनता पार्टी में आते हैं। सपा नेता अखिलेश ने आरोप लगाया कि ये वर्दी में छिपे भाजपा समर्थक थे। अरुण को भाजपा दलित चेहरे के रूप में प्रस्तुत कर रही है और उनका इस्तेमाल हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव बनाने में करेगी। उन्होंने यह बयान देना भी शुरू कर दिया है कि अखिलेश की सरकार के समय उन्हें अपराधियों को छोड़ देने का दबाव झेलना पड़ता था। उनका यह बयान पद और गोपनीयता का उल्लंघन के दायरे में आता है।

सिंह और अरुण के राजनीति में उतरने और चुनाव लड़ने का मामला कानूनी रूप से पेचीदा जरूर है, लेकिन नजरअंदाज करने योग्य नहीं। सिंह को जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत सीधे तौर पर चुनाव लडने से रोका नहीं जा सकता है। उनका चुनाव लड़ना आदर्श आचार संहिता के खिलाफ भी नहीं है। वैसे भी चुनाव की घोषणा के पहले ही उन्होंने वालंटरी रिटायरमेंट का आवेदन दिया था। लेकिन यह सवाल तो है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से उन्हें चुनाव प्रकिया के बीच रिटायर होने की अनुमति देना कितना वैध है?

अरुण के मामले में तो यह सरकारी सेवा कानून के उल्लंघन का साफ मामला दिखाई देता है। चुनाव की घोषणा के बाद राज्य के सारे अधिकारी चुनाव आयोग की सेवा में माने जाते हैं। उनके स्थानांतरण से लेकर उनके पदस्थापन तक का सारा फैसला चुनाव आयोग के निर्देश पर होता है। ऐसे में चुनाव आयोग के एक अधिकारी को पद से मुक्त करने का फैसला क्रेंद्र या राज्य सरकार कैसे ले सकता है? यह चुनाव प्रक्रिया में सीधा हस्तक्षेप है। लेकिन क्या अपनी विश्वसनीयता को बचाए रखने में लगातार विफल रहे आयोग से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह कोई कार्रवाई करेगा?  

प्रसिद्ध वकील प्रशांत किशोर ने अन्ना आंदोलन के समय ही मांग की थी कि सरकारी अधिकारी के पद छोड़ने के पांच साल तक वह कोई गैर-सरकारी जिम्मेदारी नहीं ले। यह नियम नहीं बना है। लेकिन बने तो इसे पद छोड़ कर राजनीति मे दाखिल होने वालों पर लागू करना चाहिए। मोदी के शासन काल में पद के दुरुपयोग और हितों का टकराव कोई मुद्दा नहीं रह गया है। मोदी मंत्रिमंडल के कई मंत्री ऐसे हैं जो उन्हीं व्यापारों से जुड़े रहे हैं जिसका उन्हें मंत्री बनाया गया है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

BJP
UP ELections 2022
UP Government

Related Stories

यूपी : आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की साख़ बचेगी या बीजेपी सेंध मारेगी?

त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान

सियासत: अखिलेश ने क्यों तय किया सांसद की जगह विधायक रहना!

यूपी चुनाव नतीजे: कई सीटों पर 500 वोटों से भी कम रहा जीत-हार का अंतर

यूपीः किसान आंदोलन और गठबंधन के गढ़ में भी भाजपा को महज़ 18 सीटों का हुआ नुक़सान

यूपी के नए राजनीतिक परिदृश्य में बसपा की बहुजन राजनीति का हाशिये पर चले जाना

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

पंजाब : कांग्रेस की हार और ‘आप’ की जीत के मायने

यूपी चुनाव : पूर्वांचल में हर दांव रहा नाकाम, न गठबंधन-न गोलबंदी आया काम !

यूपी चुनाव: कई दिग्गजों को देखना पड़ा हार का मुंह, डिप्टी सीएम तक नहीं बचा सके अपनी सीट


बाकी खबरें

  • भाषा
    अदालत ने कहा जहांगीरपुरी हिंसा रोकने में दिल्ली पुलिस ‘पूरी तरह विफल’
    09 May 2022
    अदालत ने कहा कि 16 अप्रैल को हनुमान जयंती पर हुए घटनाक्रम और दंगे रोकने तथा कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में स्थानीय प्रशासन की भूमिका की जांच किए जाने की आवश्यकता है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,207 नए मामले, 29 मरीज़ों की मौत 
    09 May 2022
    राज्यों में कोरोना जगह-जगह पर विस्पोट की तरह सामने आ रहा है | कोरोना ज़्यादातर शैक्षणिक संस्थानों में बच्चो को अपनी चपेट में ले रहा है |
  • Wheat
    सुबोध वर्मा
    क्या मोदी सरकार गेहूं संकट से निपट सकती है?
    09 May 2022
    मोदी युग में पहली बार गेहूं के उत्पादन में गिरावट आई है और ख़रीद घट गई है, जिससे गेहूं का स्टॉक कम हो गया है और खाद्यान्न आधारित योजनाओं पर इसका असर पड़ रहा है।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: एक निशान, अलग-अलग विधान, फिर भी नया इंडिया महान!
    09 May 2022
    क्या मोदी जी के राज में बग्गाओं की आज़ादी ही आज़ादी है, मेवाणियों की आज़ादी अपराध है? क्या देश में बग्गाओं के लिए अलग का़ानून है और मेवाणियों के लिए अलग क़ानून?
  • एम. के. भद्रकुमार
    सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति
    09 May 2022
    सीआईए प्रमुख का फ़ोन कॉल प्रिंस मोहम्मद के साथ मैत्रीपूर्ण बातचीत के लिए तो नहीं ही होगी, क्योंकि सऊदी चीन के बीआरआई का अहम साथी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License