NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
उत्पीड़न
भारत
राजनीति
बुल्ली बाई प्रकरण: संवेदनाओं और मूल्यों की नीलामी
अल्पसंख्यक समुदाय को प्रताड़ित करना आजकल कोई गंभीर अपराध नहीं माना जाता है, फिर यह तो मुस्लिम महिलाएं हैं। हो सकता है कि इन ऐप निर्माताओं को राष्ट्र भक्तों के रूप में सोशल मीडिया पर चित्रित किया जाए।
डॉ. राजू पाण्डेय
07 Jan 2022
bulli bai
प्रतीकात्मक चित्र

निश्चित ही नफरत के पुजारियों ने इस बात का जश्न मनाया होगा कि वे बीस-इक्कीस वर्ष की आयु के तीन हिन्दू युवकों तथा अठारह वर्षीय हिन्दू युवती में इतनी गहरी घृणा भर सके कि इन्होंने मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी के लिए बुल्ली बाई जैसा निंदनीय और निर्मम ऐप बनाया। इसे चर्चित  करने के लिए नववर्ष के प्रथम दिवस का चयन किया गया जब लाखों देशवासियों की भांति यह मुस्लिम महिलाएं भी जम्हूरियत को बचाने,औरतों के हक़ की लड़ाई को नए जोश से आगे बढ़ाने तथा मुल्क में अमन-चैन और भाईचारे का माहौल स्थापित करने के लिए संकल्पबद्ध हो रही थीं। इन मुस्लिम महिलाओं के मनोबल को तोड़ने के लिए बड़ी ही चतुर नृशंसता से नव वर्ष के उत्सव भरे दिनों का चयन किया गया। 

बुल्ली बाई ऐप के निर्माता मुस्लिम महिलाओं के अपमान तक ही सीमित नहीं रहे। उन्होंने झूठी सिख पहचान गढ़ी, ऐप की भाषा में पंजाबी को प्रधानता दी गई और पगड़ी को ऐप का लोगो बनाया गया। इसे खालिस्तान समर्थक भी दिखाने की कोशिश हुई। इस तरह न केवल सिख समुदाय की छवि को धूमिल किया जा सकता था अपितु सिख तथा मुस्लिम समुदाय के मध्य शत्रुता भी उत्पन्न की जा सकती थी। हो सकता है कि ऐप के निर्माण से जुड़े लोग कृषि कानूनों पर सरकार के बैकफुट पर जाने के लिए सिख किसानों को जिम्मेदार समझते हों और इस तरह उनसे प्रतिशोध ले रहे हों।

क्या यह महज एक संयोग है कि बुल्ली बाई ऐप तब आया है जब पंजाब, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में चुनाव निकट हैं और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें अपने चरम पर हैं। क्या यह महज एक संयोग था कि इसी तरह की कुत्सित मानसिकता को दर्शाने वाला पहला ऐप सुल्ली डील्स तब सामने आया था जब बंगाल के चुनाव निकट थे और उस समय भी साम्प्रदायिक दुष्प्रचार सारी सीमाएं लांघ रहा था। 

पता नहीं हममें से कितने लोगों ने जुलाई 2021 में सुल्ली डील्स की शिकार बनी व्यावसायिक पायलट हाना मोहसिन खान का वह मार्मिक आलेख पढ़ा है जिसमें उन्होंने उस घनघोर मानसिक यंत्रणा का चित्रण किया है जो उन्हें झेलनी पड़ी थी। हाना बताती हैं कि सुल्ली डील्स की शिकार 83 महिलाओं में से बहुत ने स्वयं सोशल मीडिया छोड़ दिया। कई महिलाओं को परिजनों ने सोशल मीडिया छोड़ने को बाध्य कर दिया। बहुत सी पीड़ित महिलाएं इस अमानवीय घटनाक्रम का विरोध तो कर रही हैं, लेकिन उनमें कानूनी कार्रवाई करने का साहस नहीं है, उनके मित्र और परिजन भी उन्हें परामर्श दे रहे हैं कि वे कानूनी कार्रवाई करने का "खतरा" मोल न लें। हाना जैसी चंद पीड़ित महिलाओं ने कानून की शरण ली है और अब उन्हें पता है कि उनके हितैषी क्यों उन्हें शांत रहने को कह रहे थे। बहुत सारी जिंदादिल औरतों की जिंदा आवाज़ें खामोश कर दी गई हैं। 

सब मौन हैं। केंद्र सरकार की सभी कद्दावर महिला मंत्री चुप हैं। अभी कुछ ही महीने पहले तीन तलाक प्रकरण में स्वयं को मुस्लिम महिलाओं के परम हितैषी के रूप में प्रस्तुत करने वाले बुद्धिजीवी मूकदर्शक बने हुए हैं। बार-बार भावोद्रेक में अपने नेत्र सजल कर लेने वाले आदरणीय प्रधानमंत्री जी की सर्द खामोशी इन महिलाओं को चिंता में डाल रही है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव का जवाब यह बताता है कि यह मामला उन्हें दूसरे साइबर अपराधों से ज्यादा गंभीर नहीं लगता। अनेक मामलों में स्वतः संज्ञान लेने वाला न्यायालय भी इस बार शांत है।  मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी के अपराध से ज्यादा डराने वाली सरकार और सभ्य समाज की यह चुप्पी है। हाना ने सुल्ली डील्स के डरावने अनुभव को शब्दों में उतारने की जो कठिन कोशिश जुलाई 2021 में शुरू की थी, उसके पूरा होते होते बुल्ली बाई प्रकरण सामने आ गया। 

ऐसा लगता है कि लंबे संघर्ष के बाद अर्जित स्वतंत्रता, सशक्त लोकतांत्रिक व्यवस्था और गौरवशाली नागरिक जीवन का हासिल हम चंद महीनों में ही खो देंगे, मध्ययुगीन सामंती व्यवस्था की वापसी हो रही है जहां हिंसा है, प्रतिशोध है, जहां औरतों की आज़ादी के लिए कोई जगह नहीं है। अंतर केवल एक है- अब हमारे पास औरतों को अपमानित और प्रताड़ित करने के लिए उन्नत तकनीक है। दुर्भाग्य है कि तकनीक तो विकसित हो रही है किंतु वैज्ञानिक दृष्टि तथा मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है।

सुल्ली डील्स के अपराधी जुलाई 2021 से अब तक आजाद घूम रहे हैं यदि उन्हें गिरफ्तार कर उन पर कार्रवाई की गई होती तो शायद इसका दूसरा संस्करण बुल्ली बाई गढ़ने की हिम्मत पकड़े गए आरोपी न कर पाते। किंतु जैसा आजकल का चलन है अल्पसंख्यक समुदाय को प्रताड़ित करना कोई गंभीर अपराध नहीं माना जाता, फिर यह तो मुस्लिम महिलाएं हैं। हो सकता है इन ऐप निर्माताओं को राष्ट्र भक्तों के रूप में सोशल मीडिया पर चित्रित किया जाए। 

मुस्लिम समुदाय से आने वाली जागरूक, सक्रिय, मुखर एवं अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने को तत्पर महिला पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ता इस ऐप के निशाने पर थीं। यह ऐप कितना जघन्य और भयानक है इसकी कल्पना केवल वही महिला कर सकती है जिसे किसी प्यारी सी सुबह में मालूम हो  कि वह नीलामी के लिए लोगों के सामने पेश की गई है, उसकी तस्वीर को देखकर कुत्सित और भद्दे कमेंट किए जा रहे हैं। वह एक बहन, बेटी,पत्नी या माँ नहीं है बल्कि वह एक सामान है- केवल एक जिस्म! वासना के सौदागर अपने सामान की मुँहमाँगी कीमत देने को लालायित हैं और लोगों को बता रहे हैं कि वे दी गई कीमत कैसे वसूल करेंगे।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि इस तरह के ऐप्लीकेशन्स के निर्माताओं पर कठोरतम कार्रवाई की जाए। पता नहीं इस आग्रह पर सरकार की प्रतिक्रिया क्या होगी? कहीं इसे भारत की छवि खराब करने के अभियान का एक भाग तो नहीं कह दिया जाएगा।

हम निश्चिंत हैं, हमें भरोसा है कि ऐसी किसी नीलामी में हम हमेशा खरीददार ही रहेंगे। हमारी बहन-बेटी-पत्नी-माँ की इस नीलामी में कभी बोली नहीं लगेगी। यह हमारा भ्रम है। नफरत, हिंसा, प्रतिशोध- यह सारे संक्रामक रोग हैं। जब इनका आक्रमण होगा तो हमें पछतावा होगा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

Bulli Bai
Harassment
Sulli Deals
Github

Related Stories

दिल्ली गैंगरेप: निर्भया कांड के 9 साल बाद भी नहीं बदली राजधानी में महिला सुरक्षा की तस्वीर

सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई: एप्स बने नफ़रत के नए हथियार

‘बुल्ली बाई’ ऐप मामला : मुंबई पुलिस ने एक और छात्र को गिरफ़्तार किया

मेरठ: मौसेरी बहनों को समलैंगिक बता टीचर ने की पिटाई, स्कूल में घुमाकर किया अपमानित!


बाकी खबरें

  • लाल बहादुर सिंह
    सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 
    26 Mar 2022
    कारपोरेटपरस्त कृषि-सुधार की जारी सरकारी मुहिम का आईना है उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट। इसे सर्वोच्च न्यायालय ने तो सार्वजनिक नहीं किया, लेकिन इसके सदस्य घनवट ने स्वयं ही रिपोर्ट को…
  • भरत डोगरा
    जब तक भारत समावेशी रास्ता नहीं अपनाएगा तब तक आर्थिक रिकवरी एक मिथक बनी रहेगी
    26 Mar 2022
    यदि सरकार गरीब समर्थक आर्थिक एजेंड़े को लागू करने में विफल रहती है, तो विपक्ष को गरीब समर्थक एजेंडे के प्रस्ताव को तैयार करने में एकजुट हो जाना चाहिए। क्योंकि असमानता भारत की अर्थव्यवस्था की तरक्की…
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 1,660 नए मामले, संशोधित आंकड़ों के अनुसार 4,100 मरीज़ों की मौत
    26 Mar 2022
    बीते दिन कोरोना से 4,100 मरीज़ों की मौत के मामले सामने आए हैं | जिनमें से महाराष्ट्र में 4,005 मरीज़ों की मौत के संशोधित आंकड़ों को जोड़ा गया है, और केरल में 79 मरीज़ों की मौत के संशोधित आंकड़ों को जोड़ा…
  • अफ़ज़ल इमाम
    सामाजिक न्याय का नारा तैयार करेगा नया विकल्प !
    26 Mar 2022
    सामाजिक न्याय के मुद्दे को नए सिरे से और पूरी शिद्दत के साथ राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में लाने के लिए विपक्षी पार्टियों के भीतर चिंतन भी शुरू हो गया है।
  • सबरंग इंडिया
    कश्मीर फाइल्स हेट प्रोजेक्ट: लोगों को कट्टरपंथी बनाने वाला शो?
    26 Mar 2022
    फिल्म द कश्मीर फाइल्स की स्क्रीनिंग से पहले और बाद में मुस्लिम विरोधी नफरत पूरे देश में स्पष्ट रूप से प्रकट हुई है और उनके बहिष्कार, हेट स्पीच, नारे के रूप में सबसे अधिक दिखाई देती है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License