NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
चुनाव 2019; प. बंगाल : मीडिया में तृणमूल और भाजपा, लेकिन ज़मीन पर हक़ीक़त अलग
पश्चिम बंगाल के स्तर पर यह साफ़ है कि मीडिया की ख़बरें भले तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में बंटकर रह जाती हों लेकिन आंकड़ें गवाही देते हैं कि दूसरे और तीसरे पायदान पर लेफ्ट और कांग्रेस मौजूद है। और इन चुनाव में तस्वीर बिल्कुल अलग भी हो सकती है।
अजय कुमार
26 Apr 2019
modi yechuri mamta

इस बार के चुनावी माहौल में पश्चिम बंगाल के चुनाव की चर्चा जोरो पर है। मीडिया में यह कायास लगाया जा रहा है कि पूरे भारत में बिगड़ती भाजपा की तस्वीर बंगाल में कुछ ठीक ठाक बन जाए।

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां तृणमूल कांग्रेस को 42 में से 34 सीटें हासिल हुईं थी और शेष आठ सीटों का बंटवारा लेफ्ट (2), भाजपा (2) और कांग्रेस (4) में हो गया।

2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को 39.05 फीसदी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) को 29.71 फीसदी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 17.02 फीसदी और कांग्रेस को 9.69 फीसदी मत मिले थे। 

साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस की यही बढ़त रही। इस विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 44.05 फीसदी, सीपीएम को 26  फीसदी, कांग्रेस को 12.3 फीसदी और बीजेपी को 10.2 फीसदी मत मिले। इन्हें सीटों में देखा जाए तो तृणमूल कांग्रेस को 211, सीपीएम को 26,  सीपीआई को 1, फारवर्ड ब्लाक को 2, कांग्रेस को 44 और भाजपा को केवल 3 सीटें हासिल हुईं।

इस तरह से यह साफ़ है कि पश्चिम बंगाल के स्तर पर मीडिया की खबरें भले तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में बंटकर रह जाती हों लेकिन आंकड़ों से साफ़ है कि दूसरे और तीसरे पायदान पर लेफ्ट और कांग्रेस मौजूद है। और इन चुनाव में तस्वीर बिल्कुल अलग भी हो सकती है। 

कहने वाले कहते हैं कि बंगाल की राजनीति को समझने को लिए आंकड़ेबाज़ी के साथ वहाँ के समाज को समझना भी जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि बंगाल एक ऐसा राज्य है, जहां पर सीपीएम के नेतृत्व में वाम मोर्चे ने तकरीबन 34 साल लगातार शासन किया। आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि लेफ्ट सरकार से बाहर होता चला गया और तृणमूल कांग्रेस का आधार बढ़ता चला गया। साल 2006 के 27 फीसदी मत से लेकर साल 2016 के विधानसभा चुनाव तक तृणमूल कांग्रेस का मत 44 फीसदी तक हो  गया।

बंगाल में लेफ्ट के बहुत लम्बे समय तक शासन में रहने की एक बहुत बड़ी वजह भूमि सुधार था। भूमि सुधार की वजह से गांव के गरीब और वंचित लोगों को ज़मीनें मिलीं और यह लोग लेफ्ट पार्टी के स्थायी जनाधार में बदलते गए। इसके साथ  लेफ्ट की सत्ता के दौरान बंगाल के सामाजिक ताने बाने को बहुत बड़ी क्षति नहीं पहुंची। जबकि बंगाल,  कश्मीर और असम के बाद दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला इलाका है। साल 1992 में यूपी के अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद जब सारे देश में दंगे हुए तो बंगाल में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ। यह लेफ्ट की सत्ता की खूबियां थी लेकिन जैसे-जैसे समय का समीकरण बदला वह कमजोर हुई और तृणमूल कांग्रेस सत्ता के करीब आ गयी।  

भाजपा की बढ़त बनाने की स्थिति पर राजनीतिक विश्लेषक आशीष रंजन कहते  हैं कि भाजपा को बंगाल के कुल 42 लोकसभा सीटों में से 20 से अधिक सीट जीतने के लिए कम से कम अपने मत प्रतिशत में 15 फीसदी का इजाफा करना होगा। और यह स्थिति तृणमूल कांग्रेस, लेफ्ट और भाजपा की तिकोनी लड़ाई में बनते नहीं दिखती है। साथ में भाजपा बंगाल में पैन बंगाल पार्टी भी नहीं है। और अभी तक का राजनीतिक  इतिहास रहा है कि लेफ्ट पार्टियों के वोटों में पिछले चुनाव के मुकाबले  20 फीसदी मतों की कमी कभी नहीं आयी है। और भाजपा 20 से अधिक सीटें तभी जीत पाएगी जब वह लेफ्ट और तृणमूल  से  इतना बड़ा हिस्सा निकाल पाए। लेफ्ट एक कैडर बेस पार्टी है।  साल 2016 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस  को तकरीबन 26 फीसदी मत मिले थे। यहां पर अचरज वाली बात यह है कि अगर केवल उन सीटों के हिसाब से मतों की गणना की जाए जहां पर लेफ्ट ने चुनाव लड़ा था तो यह तकरीबन 38.4  फीसदी तक पहुंच जाता है। यानी लेफ्ट की स्थिति साल 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले मजबूत हुई है।  इसके साथ बंगाल की राजनीति में लोकल पॉलिटिक्स भी बहुत अधिक  मायने  रखता है।  यहां के पंचायत बहुत अधिक समृद्ध और मजबूत हैं। जिस पर राजनीतिक दलों के कैडर  का दबदबा होता है।  जब तक लेफ्ट फ्रंट का शासन था, तब तक पंचायतों पर लेफ्ट फ्रंट की मजबूती थी।  अब जब तृणमूल का शासन है तो पंचायतों पर तृणमूल का भी दबदबा हुआ है। यही पर भाजपा भी सेंधमारी कर रही है। 

जहां तक बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट के गठबंधन होने या न होने की बात है तो यह साफ़ है कि गठबंधन नहीं हुआ है। इसका प्रभाव भी आने वाले चुनाव में पड़ेगा।  लेकिन यह उस तरह से नहीं पड़ेगा जिस तरह से जातियों की हकीकत की वजह से गठबंधन का फायदा या नुकसान उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में देखा जाता है।  ऐसा इसलिए क्योंकि बंगाल की राजनीति में जाति से ज्यादा पोलिटिकल कैडर काम करता है। और कैडर अचानक से अपना राजनीतिक  दल छोड़ नहीं देता।  फिर भी कहा जाता है कि लेफ्ट के  दबंग कैडर तृणमूल और भाजपा में शामिल हो रहे हैं, इसलिए स्थिति बदल भी सकती है।  

बंगाल की राजनीति पर  वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने कहा कि बंगाल में मुस्लिम समुदाय की बहुत बड़ी आबादी है। यहां की  खासियत यह रही कि  भारत पाकिस्तान पार्टीशन के  बाद से अभी तक यहां पर साम्प्रदायिक तनाव का माहौल पैदा नहीं हुआ था। लेकिन भाजपा की राजनीतिक कारगुजारियां जीवनशैली में  बिल्कुल समान केवल   धर्म के नाम पर  एक दूसरे अलग हिन्दू मुस्लिम लोगों के बीच तनाव पैदा कर अपना विस्तार करने की राजनीति कर रही है। एनआरसी और नागरिकता बिल में संशोधन से जुड़े  मुस्लिम समुदाय से जुड़े प्रावधनों ने केवल तनाव पैदा करने का काम किया है। पहले के दुर्गापूजा में बंगाल में  अस्त्र का इस्तेमाल नहीं होता था लेकिन अब हो रहा है। इसलिए  बंगाल के बॉर्डर इलाकों में भाजपा की चुनावी स्थिति उभरती दिख रही है।  

अत: यह कहा जा सकता है कि मीडिया में  अपना रसूख रखने की वजह से भाजपा की बंगाल से जुड़ी साम्प्रदायिक कारगुजारियां ख़बरों का हिस्सा ना बन रही हो और ऐसा लग रहा हो कि चुनावी राजनीति तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच है लेकिन बंगाल की जमीनी हक़ीक़त अलग है। और हो सकता है कि नफ़रत की इस दौड़  को जनता समझे और  लेफ्ट पार्टियां उभरकर सामने आएं।

 

2019 आम चुनाव
General elections2019
2019 Lok Sabha elections
West Bengal
TMC
left parties
BJP
Congress
Hate politics
Save Democracy
Save Nation

Related Stories

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

बहस: क्यों यादवों को मुसलमानों के पक्ष में डटा रहना चाहिए!

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

ख़बरों के आगे-पीछे: पंजाब में राघव चड्ढा की भूमिका से लेकर सोनिया गांधी की चुनौतियों तक..

कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते

उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता


बाकी खबरें

  • सत्येन्द्र सार्थक
    आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?
    25 Apr 2022
    सरकार द्वारा बर्खास्त कर दी गईं 991 आंगनवाड़ी कर्मियों में शामिल मीनू ने अपने आंदोलन के बारे में बताते हुए कहा- “हम ‘नाक में दम करो’ आंदोलन के तहत आप और भाजपा का घेराव कर रहे हैं और तब तक करेंगे जब…
  • वर्षा सिंह
    इको-एन्ज़ाइटी: व्यासी बांध की झील में डूबे लोहारी गांव के लोगों की निराशा और तनाव कौन दूर करेगा
    25 Apr 2022
    “बांध-बिजली के लिए बनाई गई झील में अपने घरों-खेतों को डूबते देख कर लोग बिल्कुल ही टूट गए। उन्हें गहरा मानसिक आघात लगा। सब परेशान हैं कि अब तक खेत से निकला अनाज खा रहे हैं लेकिन कल कहां से खाएंगे। कुछ…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,541 नए मामले, 30 मरीज़ों की मौत
    25 Apr 2022
    दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच, ओमिक्रॉन के BA.2 वेरिएंट का मामला सामने आने से चिंता और ज़्यादा बढ़ गयी है |
  • सुबोध वर्मा
    गहराते आर्थिक संकट के बीच बढ़ती नफ़रत और हिंसा  
    25 Apr 2022
    बढ़ती धार्मिक कट्टरता और हिंसा लोगों को बढ़ती भयंकर बेरोज़गारी, आसमान छूती क़ीमतों और लड़खड़ाती आय पर सवाल उठाने से गुमराह कर रही है।
  • सुभाष गाताडे
    बुलडोजर पर जनाब बोरिस जॉनसन
    25 Apr 2022
    बुलडोजर दुनिया के इस सबसे बड़े जनतंत्र में सरकार की मनमानी, दादागिरी एवं संविधान द्वारा प्रदत्त तमाम अधिकारों को निष्प्रभावी करके जनता के व्यापक हिस्से पर कहर बरपाने का प्रतीक बन गया है, उस वक्त़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License