NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
"दुनिया की फ़ार्मेसी" बनने की कगार पर पहुंचा चीन
WHO द्वारा साइनोफ़ार्म को मान्यता दे दी गई है, जिसे एक विकासशील देश ने बनाया है। इस तरह पश्चिमी फ़ार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री के एकाधिकार को भंग कर दिया गया है।
एम. के. भद्रकुमार
11 May 2021
"दुनिया की फ़ार्मेसी" बनने की कगार पर पहुंचा चीन
Image Courtesy: The Economic Times

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने शुक्रवार को चीन की कोरोना वैक्सीन "साइनोफ़ार्म" को मान्यता दे दी। महामारी से जूझ रही दुनिया में इससे बहुत परिवर्तन आएगा। फौरी तौर पर देखें तो WHO के कदम से वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति के बढ़ने की संभावना है, क्योंकि चीन की वैक्सीन उत्पादन की सालाना क्षमता 5 अरब डोज़ तक पहुंच रही है। 

साइनोफ़ार्म किसी भी गैर पश्चिमी देश द्वारा बनाई गई पहली कोविड-वैक्सीन है, जिसे WHO ने मान्यता दी है। अब तक सिर्फ़ 6 वैक्सीनों को ही WHO की मान्यता मिली है। इसी के साथ पश्चिमी फार्मास्यूटिकल कंपनियों का एकाधिकार भंग हो चुका है।

सीधे शब्दों में कहें तो पश्चिमी फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने जिस बागान की ताकतवर घेराबंदी कर रखी थी, बहुत आक्रामकता के साथ चीन ने उसमें प्रवेश लिया है। व्यावहारिकता के हिसाब से देखें तो WHO की अनुमति मिलने के बाद चीन कोवैक्स (COVAX) पोर्टल में बतौर वैक्सीन आपूर्तिकर्ता प्रवेश ले सकेगा। कोवैक्स मंच के ज़रिए विकासशील देशों को 2021 के अंत तक 2 अरब वैक्सीन डोज़ उपलब्ध कराए जाने का लक्ष्य है। लेकिन शुक्रवार तक कोवैक्स में शामिल 121 देशों को सिर्फ़ 5 करोड़ 40 लाख वैक्सीन ही उपलब्ध कराई जा सकी थीं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस हफ़्ते के आखिर में ऐसा होने की वजह बताते हुए लिखा, "भले ही शुरुआत में कितने ही वादे किए गए हों, लेकिन वैश्विक टीकाकरण को प्रोत्साहन देने के लिए विकसित देशों ने बहुत कम प्रयास किए हैं। इसे विश्लेषकों ने नैतिक और महामारीगत असफलता माना है।" इस विसंगति से बहुत अजीबो-गरीब स्थिति बन गई है, जहां पश्चिमी दुनिया में "अरबों वैक्सीन आ रहे हैं, कोविड-19 के मामले कम हो रहे हैं, अर्थव्यवस्था पटरी पर है और लोग गर्मी की छुट्टियां मनाने के लिए निकल रहे हैं", वहीं ग़रीब देशों में वायरस का कहर जारी है और टीकाकरण भी काफ़ी धीमा है।

पश्चिमी फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री, दुनिया के अमीरों को अपनी वैक्सीन बेच कर बहुत मुनाफ़ा कमा रही है। फाइज़र ने 2021 की पहली तिमाही में वैक्सीन से 3.5 बिलियन डॉलर कमाए। मॉडर्ना को इस साल 19 बिलियन डॉलर की कमाई का अनुमान है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रां ने इसके चलते धैर्य खो दिया और कहा कि "आज के दौर में एंग्लो-सैक्सन्स (अमेरिका और ब्रिटेन पढ़िए) कई जरूरी माल और वैक्सीन को रोक रहे हैं। आज अमेरिका में जो भी वैक्सीन बन रही है, वह अमेरिकी बाज़ार में ही पहुंच रही है।"

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले, वर्ल्ड बैंक के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे और अमेरिकी राष्ट्रपति की आर्थिक सलाहकारों की परिषद के सदस्य, नोबल पुरस्कार विजेता जोसेफ़ स्टिग्लिट्ज ने पिछले हफ़्ते एक निबंध लिखा, जिसका शीर्षक था "क्या कॉरपोरेट के लालच के चलते लंबी खिंचेगी महामारी?" इस निबंध में उन्होंने लिखा, 

"वैक्सीन निर्माताओं द्वारा अपने एकाधिकार वाले नियंत्रण को बनाए रखने और मुनाफ़ा कमाने की कोशिशों की वज़ह से विकासशील देशों में कोविड वैक्सीन की कमी बनी हुई है। फाइजर और मॉडर्ना बेहद प्रभावी mRNA वैक्सीन की निर्माता हैं। उन्होंने लगातार उन अर्हता प्राप्त उत्पादकों के निवेदनों को ख़ारिज किया है, जिनमें फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन के निर्माण की अनुमति मांगी गई थी।"

"उनका लक्ष्य बिल्कुल साफ़ है: जितना हो सके, उस हद तक बाज़ार में अपनी शक्ति बनाकर रखो, ताकि मुनाफ़े को अधिकतम किया जा सके। यह तर्क बिल्कुल खोखला है कि नई तकनीक के आधार पर विकासशील देश कोविड वैक्सीन बनाने में असमर्थ हैं। जब अमेरिका और यूरोपीय वैक्सीन निर्माता, भारत के सीरम इंस्टीट्यूट और दक्षिण अफ्रीका के एस्पेन फार्माकेयर के साथ साझेदारी कर सकते हैं, तो साफ़ है कि इन संगठनों में उत्पादन संबंधी कोई समस्या नहीं है। दुनिया में ऐसी कई फर्म मौजूद हैं, जिनके पास इस तरह की क्षमताएं हैं। यह संस्थान वैक्सीन आपूर्ति बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। उन्हें बस तकनीक और निर्माण की प्रक्रिया बताए जाने की जरूरत है।"

पश्चिमी देश अपने नागरिकों को प्राथमिकता दे रहे हैं और वैक्सीन का जमावड़ा भी कर रहे हैं। साथ में वैक्सीन निर्माण क्षमताओं को आरक्षित भी कर रहे हैं, ताकि अगर भविष्य में कोई नया वैरिएंट आता है, तब बूस्टर डोज का निर्माण किया जा सके। 

प्रभावी तौर पर चीन की साइनोफ़ार्म उस वक़्त कोवैक्स प्लेटफॉर्म का हिस्सा बन रही है, जब यह मंच बिखरता हुआ दिखाई दे रहा था। WHO ने एक वक्तव्य में कहा कि साइनोफ़ार्म को अनुमति दिया जाना एक मील का एक पत्थर है, जिससे बड़े स्तर की वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति सुनिश्चित करने का रास्ता खुलेगा।

रिपोर्टों के मुताबिक़ WHO साइनोवैक नाम की एक दूसरी चीनी वैक्सीन को भी अनुमति देने की प्रक्रिया में है। पिछले अक्टूबर में जब चीन कोवैक्स वैश्विक वैक्सीन वितरण अभियान में शामिल हुआ था, तब उसने एक करोड़ वैक्सीन देने का एक औसत वादा किया था। अब WHO द्वारा साइनोफ़ार्म को अनुमति दिए जाने से कोवैक्स में चीन की आपूर्ति तेजी से बढ़ेगी। इस प्लेटफॉर्म के ज़रिए 92 कम आय वाले देशों को मुफ़्त में वैक्सीन उपलब्ध कराए जाने का लक्ष्य है, साथ ही दूसरे 99 देशों और क्षेत्रों को वैक्सीन हासिल करने में मदद की जाएगी। 

साइनोफ़ार्म को WHO की अनुमति मिलना एक ऐतिहासिक कदम है। कई देश चीन की वैक्सीन का उपयोग करने में सशंकित थे, क्योंकि उसके पास WHO की प्रमाणिकता नहीं थी। श्रीलंका ने पिछले हफ़्ते ही साइनोफ़ार्म का उपयोग शुरू किया है!

चीन ने बिना वैक्सीन के ही महामारी पर नियंत्रण पाया है। जबकि वैक्सीन शोध और विकास में भी चीन ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। चीन के पास बहुत बड़े स्तर पर वैक्सीन उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने की ताकत है। सही कहें तो चीन अब "दुनिया की फार्मेसी" बनने की सीमा पर है। इस शब्द का कॉपीराइन निश्चित तौर पर फिलहाल भारत के प्रधानमंत्री के पास है, जिन्होंने पिछले अक्टूबर में इसे गढ़ा था। 

नई दिल्ली में एक निवेश सम्मेलन में मोदी ने बड़बोलेपन में इस शब्द का उपयोग किया था, जबकि हमारे यहां महामारी जारी ही थी, जिसका खात्मा होता दिखाई नहीं दे रहा है। लेकिन गंभीरता से सोचें, तो वैश्विक समुदाय की वैक्सीन जरूरतों की पूर्ति करने की भारत की महत्वाकांक्षा आज बहुत कमज़ोर हो चुकी है। अब जब यह वायरस अपने आप में बदलाव कर रहा है, तब भारत के लिए आगे बड़े अनुपात के संकट की संभावना है।

जहां चीन अपनी राष्ट्रीय लामबंदी पर सवार होकर अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। वहीं अमेरिका काफ़ी पीछे है। अमेरिका के स्वास्थ्यतंत्र को गंभीर मरम्मत की जरूरत है और यह काफ़ी गंभीर स्थिति में है। बाइडेन प्रशासन अपनी कमज़ोरियों को जानता है, इसलिए वह वैक्सीन और कच्चे माल के निर्यात को रोक रहा है।

WHO के वक्तव्य में कहा गया, "चीन की एक वैक्सीन को आपात उपयोग में सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन हम जानते हैं कि चीन में 15 से ज़्यादा वैक्सीन का निर्माण हो रहा है। आज के इस हासिल से दूसरे निर्माताओं को इस रास्ते पर आगे बढ़ने में प्रेरणा मिलनी चाहिए और वैश्विक वैक्सीन के जखीरे को बढ़ाने में योगदान देना चाहिए। चीन को भी आगे और भी ज़्यादा मात्रा में वैश्विक आपूर्ति और वैक्सीन समता में योगदान के लिए प्रेरणा मिलनी चाहिए।"

इसके अलावा, चीन की तीन बायो फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने हाल के हफ़्तों में स्पुतनिक V के 26 करोड़ डोज के निर्माण के लिए रूस के प्रत्यक्ष निवेश कोष (RDIF) के साथ करार किया है। इस करार के तहत दुनिया के 13 करोड़ लोगों का टीकाकरण किया जाएगा। इस मौके पर RDIF ने कहा, "स्पुतनिक V के उत्पादन के लिए चीन एक बड़ा केंद्र है। हम चीन के स्थानीय साझेदारों के साथ अपनी साझेदारी को आगे और बढ़ाने के लिए तैयार हैं, ताकि रूसी वैक्सीन की बढ़ती मांग की पूर्ति की जा सके।"

चीन की वैक्सीन कूटनीति के दूरगामी नतीजे होंगे। ना केवल इससे चीन की साख बढ़ेगी, बल्कि साइनोफ़ार्म, साइनोवैक और दूसरी 15 वैक्सीनों के आने से चीन के विकास ढांचे की प्रवीणता (साथ में वैक्सीन क्षेत्र में चीन-रूस के सहयोग को भी) के तथ्य को भी बल मिलेगा।

पश्चिमी दुनिया के लिए यह एशियाई शताब्दी के आने की याद दिलाएगा। पश्चिमी दुनिया की तरफ से "वुहान वायरस" और "महामारी को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का निर्यात" बताने वाली साजिश व्याख्याएं (जो मरणासन्न स्थिति में हैं) दोबारा पेश किए जाने लगे हैं। पश्चिमी देशों के लिए आखिर अंगूर खट्टे हैं?

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

China on the Horizon as ‘World’s Pharmacy’

World Health Organisation
COVID-19 vaccine
China
Western pharmaceutical industry
COVAX
Moderna
Narendra modi

Related Stories

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

डब्ल्यूएचओ द्वारा कोवैक्सिन का निलंबन भारत के टीका कार्यक्रम के लिए अवरोधक बन सकता है

पेटेंट्स, मुनाफे और हिस्सेदारी की लड़ाई – मोडेरना की महामारी की कहानी

कोरोना के दौरान सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं ले पा रहें है जरूरतमंद परिवार - सर्वे

यूपी चुनाव : क्या पूर्वांचल की धरती मोदी-योगी के लिए वाटरलू साबित होगी

कोविड पर नियंत्रण के हालिया कदम कितने वैज्ञानिक हैं?

भारत की कोविड-19 मौतें आधिकारिक आंकड़ों से 6-7 गुना अधिक हैं: विश्लेषण

पंजाब सरकार के ख़िलाफ़ SC में सुनवाई, 24 घंटे में 90 हज़ार से ज़्यादा कोरोना केस और अन्य ख़बरें

कोविड-19: ओमिक्रॉन की तेज़ लहर ने डेल्टा को पीछे छोड़ा

कोविड: प्रोटीन आधारित वैक्सीन से पैदा हुई नई उम्मीद


बाकी खबरें

  • up elections
    न्यूज़क्लिक टीम
    यूपी में न Modi magic न Yogi magic
    06 Mar 2022
    Point of View के इस एपिसोड में पत्रकार Neelu Vyas ने experts से यूपी में छठे चरण के मतदान के बाद की चुनावी स्थिति का जायज़ा लिया। जनता किसके साथ है? प्रदेश में जनता ने किन मुद्दों को ध्यान में रखते…
  • poetry
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'टीवी में भी हम जीते हैं, दुश्मन हारा...'
    06 Mar 2022
    पाकिस्तान के पेशावर में मस्जिद पर हमला, यूक्रेन में भारतीय छात्र की मौत को ध्यान में रखते हुए पढ़िये अजमल सिद्दीक़ी की यह नज़्म...
  • yogi-akhilesh
    प्रेम कुमार
    कम मतदान बीजेपी को नुक़सान : छत्तीसगढ़, झारखण्ड या राजस्थान- कैसे होंगे यूपी के नतीजे?
    06 Mar 2022
    बीते कई चुनावों में बीजेपी को इस प्रवृत्ति का सामना करना पड़ा है कि मतदान प्रतिशत घटते ही वह सत्ता से बाहर हो जाती है या फिर उसके लिए सत्ता से बाहर होने का खतरा पैदा हो जाता है।
  • modi
    डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: धन भाग हमारे जो हमें ऐसे सरकार-जी मिले
    06 Mar 2022
    हालांकि सरकार-जी का देश को मिलना देश का सौभाग्य है पर सरकार-जी का दुर्भाग्य है कि उन्हें यह कैसा देश मिला है। देश है कि सरकार-जी के सामने मुसीबत पर मुसीबत पैदा करता रहता है।
  • 7th phase
    रवि शंकर दुबे
    यूपी चुनाव आख़िरी चरण : ग़ायब हुईं सड़क, बिजली-पानी की बातें, अब डमरू बजाकर मांगे जा रहे वोट
    06 Mar 2022
    उत्तर प्रदेश में अब सिर्फ़ आख़िरी दौर के चुनाव होने हैं, जिसमें 9 ज़िलों की 54 सीटों पर मतदान होगा। इसमें नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी समेत अखिलेश का गढ़ आज़मगढ़ भी शामिल है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License