NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
घटना-दुर्घटना
भारत
दिल्ली : हिरासत में मौतों की सुध कौन लेगा?
पी.यू.डी.आर की नयी रिपोर्ट ‘कंटिन्युइंग इंप्यूनिटी: डेथ्स इन पुलिस कस्टडी, दिल्ली 2016-2018’ दर्शाती है कि पुलिस हिरासत में मौतों का मुद्दा अब भी न्याय पाने के उन्हीं पुराने सवालों से जूझ रहा है।
मुकुंद झा
20 May 2019
Custodial Death

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन का अधिकार एक विशेष अधिकार है जो पुलिस हिरासत और जेल में भी लागू होता है। लेकिन हाल ही में कई बार सामने आया है कि इस अधिकार का उल्लंघन होता है। राजधानी में पिछले कई सालो से पुलिस हिरासत में संदिग्ध परिस्थितियों में लोगों की मौत हुई है और इसको लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। कई सिविल सोसाइटी के लोगों का आरोप रहा है कि पुलिस निर्दोष लोगों को इसलिए अपना शिकार बनाती है, जिससे वह भ्रष्टाचार के मामलों में ज़्यादा से ज़्यादा पैसों की उगाही कर सके। इसलिए हिरासत के दौरान उनसे मारपीट की जाती है। सितबंर 2018 में अधिवक्ता अजय गौतम द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में कहा गया कि दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में अप्रैल से लेकर सितंबर तक क़रीब आधा दर्जन मामलों में लोगों की पुलिस स्टेशन में मौत हो गई या टॉर्चर से तंग आकर क़ैदियों ने ख़ुदकुशी कर ली।

हिरासत में हो रही मौतों को लेकर पुलिस और प्रशासन हमेशा से ही सवालों के घेरे में रहते हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक़ अब दिल्ली पुलिस ने इससे निपटने के लिए हिरासत में हुई मौतों को लेकर मानवाधिकार आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने का फ़ैसला किया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली पुलिस से सिफ़ारिश की है कि हिरासत में होने वाली मौतों के मामलों में, पोस्टमार्टम तीन डॉक्टरों के पैनल द्वारा किया जाए चाहिए, लेकिन वो तीनों अलग-अलग संस्थानों से होने चाहिए जिससे पोस्टर्माटम की निष्पक्षता बनी रहे।
दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने भी दिल्ली पुलिस और तिहाड़ जेल प्रशासन को आदेश दिया था कि वे यह सुनिश्चित करें कि एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) की सिफ़ारिशों को लागू किया जाए।

अपने इस फ़ैसले की पीछे सरकार का तर्क है कि "तीन अलग-अलग संस्थानों से कम से कम तीन डॉक्टरों द्वारा पोस्टमार्टम किया जाना चाहिए क्योंकि एक ही संस्थान के डॉक्टरों के होने से ये संभावना है कि वे बोर्ड में वरिष्ठ सदस्यों से प्रभावित हो जाएँ, और अन्य सदस्यों की स्वतंत्र राय न हो।"
दिल्ली पुलिस के पीआरओ मधुर वर्मा ने कहा, “हिरासत में हुई मौतों और लापरवाही के मामलों में हम सभी सावधानियों का पालन करते हैं। हमने पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियोग्राफ़ी की भी सिफ़ारिश की है। आगे बढ़ते हुए, हम इन नई दिशानिर्देशों का पालन करेंगे।"

कई जूनियर डॉक्टरों ने शिकायत की है कि उनके वरिष्ठ अफ़सर रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए उन पर दबाव डालते हैं। ऐसा न करने पर उनकी वार्षिक रिपोर्ट जो गोपनीय होती है उसमें भी प्रतिकूल असर होता है। इसलिए आगे इस रिपोर्ट में यह भी सिफ़ारिश की गई है कि पोस्टमार्टम करने वाले सभी डॉक्टरों को फ़ोरेंसिक चिकित्सा में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त होनी चाहिए और उन्हें पोस्ट की विशेषता में कम से कम पाँच साल का अनुभव होना चाहिए।

ये सिर्फ़ पोस्टमार्टम का ही मामला नहीं है, पुलिस हिरासत में कई मौतें ऐसे भी होती हैं जिन्हें हिरासत में हुई मौत माना ही नहीं जाता है। इसको लेकर समय-समय पर पीपल्स यूनियन फ़ॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पी.यू.डी.आर) ने अपनी रिपोर्ट जारी की है जिसमें उन्होंने पुलिस पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

पी.यू.डी.आर 1980 के दशक से ही दिल्ली की पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों पर तथ्यान्वेषण को सामने लाता रहा है। इन पड़तालों में पी.यू.डी.आर ने अक्सर यह पाया है कि पुलिस हिरासत में दी जाने वाली यातनाएँ ग़ैर-इरादतन मौतों का कारण बनती हैं, हिरासत में दी जाने वाली प्रताड़ना जो पुलिस के नियमित कार्य का एक हिस्सा बन चुकी है। पी.यू.डी.आर की यह नयी रिपोर्ट ‘कंटिन्युइंग इंप्यूनिटी: डेथ्स इन पुलिस कस्टडी, दिल्ली 2016-2018’ दर्शाती है कि पुलिस हिरासत में मौतों का मुद्दा अब भी न्याय पाने के उन्हीं पुराने सवालों से जूझ रहा है।

इस दौरान जितनी भी मौतें हुई हैं, इन मौतों के तथ्यान्वेषण में जो मुद्दे सामने निकले हैं वो इस प्रकार हैं:
 
1. हिरासत में हो रही मौतों का कारण या तो ‘आत्महत्या’ है या फिर पुलिस हिरासत से भागने की कोशिश के दौरान हुआ ‘हादसा’ बताया गया है,जबकि पी.यू.डी.आर ने अपनी जांच में बताया है कि आदर्श नगर पुलिस स्टेशन में सोम पाल की मौत, करावल नगर पुलिस स्टेशन में दीपक, नारायणा पुलिस स्टेशन में दलबीर सिंह की मौतों को मौजूदा तथ्यों के आधार पर ना तो पक्के तौर पर ‘आत्महत्या’ और न ही पुलिस हिरासत से ‘भागने’ की नाकाम कोशिश के रूप में बताया जा सकता है – ‘सरकारी’ कारणों पर शक करने के लिए पर्याप्त आधार भी मौजूद हैं। बल्कि दलबीर सिंह के मामले में तो मजिस्ट्रेट ने भी पुलिस की कहानी को झूठा साबित किया है। इन मौतों के पीछे पुलिस हिरासत में प्रताड़ना की ओर इशारा करने वाले कई तथ्य भी दिखाई देते हैं।

2. हिरासत में हुई मौतों के मामलों में पुलिस के अलावा किसी और चश्मदीद के नहीं होने के कारण न्यायिक तौर पर पुलिस के ख़िलाफ़ कोई भी आपराधिक मामला दर्ज़ करने में एक बड़ी समस्या उत्पन्न होती है।

3. इन मौतों की जाँच को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। 2005 से पहले इन सभी मामलों की एसडीएम द्वारा जाँच की जाती थी लेकिन इसके बाद अब इन सभी मामलो की जाँच डीएम द्वारा शुरू हुई तो उम्मीद थी कि अब न्याय मिल सकेगा लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि कोई भी फ़र्क़ नहीं पड़ा है। क्योंकि ये भी जाँच के लिए पुलिस की छानबीन पर ही निर्भर रहते हैं, जाँच समय सीमा में ख़त्म नहीं कर पाते हैं, यह मरने वालों के परिजनों के लिए कठिन होता है, क्योंकि ये लोग कमज़ोर आर्थिक परिस्थिति से आते हैं और जाँच एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा बन जाती है।  

4. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका पर भी सवाल है। वर्ष 2001 में एनएचआरसी ने हिरासत में मौतों के मामले में 2 महीने के भीतर रिपोर्ट भेजने का दिशा-निर्देश राज्यों को जारी किया था। यहाँ यह भी स्पष्ट है कि इस समय अवधि का नियमित रूप से उल्लंघन किया जा रहा है, पर एनएचआरसी इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। न ही इस संस्था नें दिल्ली मे हाल में हुई किसी भी हिरासत में हुई मौत की घटना में कोई मुआवज़ा दिया है। क्या एनएचआरसी का एकमात्र काम हिरासत में मौतों की सूचना रखना है? 

5. पुलिस हिरासत के इन मामलों में, अभी तक कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया है, न ही मुआवज़ा देने के लिए किसी नियमित मापदंड या व्यवस्था को बनाया गया है। अजीब बात है तो यह है कि दुर्घटनाओं में मुआवज़े के लिए नियम आदि बनाये गये हैं पर इन घटनाओं के लिए नहीं। मुआवज़ा देना एकमात्र न्याय का मिलना नहीं हो सकता है परन्तु जिन आर्थिक सामाजिक परिस्थितियों से हिरासत में मरने वाले लोग आते हैं उनके परिजनों के लिए शीघ्र मुआवज़ा ज़िंदगी चलाते हुए न्याय के पहियों को हिलाने और पुलिस द्वारा दिये जाने वाले दबाव का मुक़ाबला करने में बड़ी मदद साबित हो सकता है। 

दो वर्षों में हिरासत हुई मौतों पर अपनी जाँच के आधार पर पी.यू.डी.आर ने निम्न मांगें की हैं:

1. हिरासत में इन मौतों पर सेक्शन 176 सीआरपीसी के तहत आवश्यक रूप से की जाने वाली मैजिस्ट्रेट जाँच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए। ऐसा हिरासत में होने वाली सभी मौतों के लिए किया जाए।

2. मौजूदा रिपोर्ट में हिरासत में मौतों के लिए ज़िम्मेदार पुलिस कर्मियों को गिरफ़्तार किया जाए व उन पर क़ानूनी कार्रवाई/मुक़दमा दर्ज़ किया जाए।

3. इन सभी मृतकों के परिवारजनों को राज्य द्वारा बिना किसी देरी के मुआवज़ा दिया जाए। पुलिस हिरासत में मौतों के सभी मामलों के लिए राज्य द्वारा नियमित मुआवज़े के लिए प्रावधान बनाये जाएँ (जिसका आधार कलकत्ता हाई कोर्ट का 6.9.17 का आदेश हो सकता है। रिपोर्ट- पृष्ठ 46)।

custodial death
custodial death in india
custodial death in dellhi
delhi police
death
delhi govt
AAP
BJP

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?

रुड़की से ग्राउंड रिपोर्ट : डाडा जलालपुर में अभी भी तनाव, कई मुस्लिम परिवारों ने किया पलायन

हिमाचल प्रदेश के ऊना में 'धर्म संसद', यति नरसिंहानंद सहित हरिद्वार धर्म संसद के मुख्य आरोपी शामिल 

ग़ाज़ीपुर; मस्जिद पर भगवा झंडा लहराने का मामला: एक नाबालिग गिरफ़्तार, मुस्लिम समाज में डर

लखीमपुर हिंसा:आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने के लिए एसआईटी की रिपोर्ट पर न्यायालय ने उप्र सरकार से मांगा जवाब

टीएमसी नेताओं ने माना कि रामपुरहाट की घटना ने पार्टी को दाग़दार बना दिया है

चुनाव के रंग: कहीं विधायक ने दी धमकी तो कहीं लगाई उठक-बैठक, कई जगह मतदान का बहिष्कार


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License