NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दिल्ली विश्वविद्यालय पर CCS एवं ESMA थोपने की कोशिश?
उच्च शिक्षा की बेहतरी के लिए सकारात्मक हस्तक्षेप के बजाय मोदी सरकार द्वारा इन नकारात्मक कानूनों को लादने की राजनीति को समझने की ज़रूरत है।
राजीव कुंवर
19 Oct 2018
Delhi university

पिछले कुछ सालों में लगातार सरकार उच्च शिक्षा और शिक्षण संस्थानों में एक के बाद एक परिवर्तन लाने की कोशिश करती रही है। इन सभी परिवर्तन का उद्देश्य उच्च शिक्षा का निजीकरण एवं व्यवसायीकरण रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) एवं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में छात्र एवं शिक्षक संघ द्वारा इसका लगातार विरोध हुआ। HEFA, HECI, ऑटोनोमी, फंड में कटौती का प्रावधान (70:30), त्रिपक्षीय MOU आदि का मुद्दा संयुक्त प्रतिरोध का कारण बना। इस सभी नीतियों का परिणाम अंततः गरीब, अनुसूचित जाति और जनजातियों एवं महिलाओं पर ही पड़ना है।

उच्च शिक्षा को बर्बाद करने की इसी कड़ी में अब केंद्र सरकार विश्वविद्यालयों पर केन्द्रीय कर्मचारियों पर लागू होने वाले सेवा नियम लगाने की कोशिश कर रही हैI दिल्ली विश्वविद्यालय को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने दो चिट्ठियाँ भेजीं जिनके निहितार्थ समझने के लिए इन्हें एक साथ रखकर पढ़ने की ज़रूरत है।

पहली चिट्ठी 1 मई 2018 को भेजी गयी। मई दिवस के दिन। मई दिवस मजदूर दिवस के लिए जाना जाता है। खत के अंतिम बिंदु को ध्यान से देखें। कहा गया है कि केंद्रीय कर्मचारियों के लिए जो सर्विस रूल यानी केन्द्रीय सिविल सेवाएँ (CCS) नियमावली है, उसे ही कॉलेज एवं विश्वविद्यालय के शिक्षकों पर भी लागू करने का प्रावधान किया जाए।

WhatsApp Image 2018-10-18 at 19.44.28.jpeg

दूसरी चिट्ठी 4 अक्टूबर की है, जिसमें एक कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी को एक महीने में रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। इस कमेटी को समय बद्ध तरीके से इस बात पर रिपोर्ट देने का काम दिया गया है कि परीक्षा/पठन/पाठन/मूल्यांकन - इन सभी को एसेंशियल सर्विसिज़ मैनेजमेंट एक्ट (ESMA) के तहत लाने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के एक्ट में क्या परिवर्तन सुझाए!

WhatsApp Image 2018-10-18 at 19.43.48.jpeg

मई महीने के खत के बाद भी अभी तक दिल्ली विश्वविद्यालय में CCS लागू नहीं हुआ। जबकि JNU में इसे लागू कर दिया गया है। इसलिए दिल्ली विश्वविद्यालय को नियमों परिवर्तन के लिए चिट्ठी नहीं भेजकर, एक कमेटी का गठन किया गया है, ताकि सीधे सरकार इसमें हस्तक्षेप कर बदल दे।

एक तरफ सरकार लगातार स्वायत्तता देने की बात कर रही है, फिर दूसरी तरफ CCS एवं ESMA को विश्वविद्यालय पर क्यों थोपना चाह रही है?

सरकार के तीन हिस्से हैं - व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। केंद्रीय कर्मचारी कार्यपालिका में आते हैं। कार्यपालिका की जिम्मेदारी है कि वह व्यवस्थापिका द्वारा तय की गई नीतियों, नियमों को लागू करे। केंद्रीय मंत्री, केंद्रीय सचिव से लेकर पटवारी तक की यह संरचना, जो कार्यपालिका का हिस्सा है इसके लिए अलग सेवा शर्त है। वही सेवा शर्त व्यवस्थापिका और न्यायपालिका के लिए नहीं है। ये तीनों इकाईयाँ एक दूसरे से जुड़ी भी हैं और स्वतंत्र भी हैं। विश्वविद्यालय को इन तीनों से अलग स्वतंत्र इकाई के तौर पर रखा गया। वैसे ही जैसे चुनाव आयोग।

तब सवाल यह है कि आखिर क्यों केंद्रीय कर्मचारियों के सर्विस रूल को विश्वविद्यालय के शिक्षकों के ऊपर थोपने की कोशिश की जा रही है? इससे पहले यह जानना ज़रूरी है कि केंद्रीय कर्मियों के सर्विस रूल आखिर क्या है? केंद्रीय कर्मचारी व्यवस्थापिका की नीतियों की सार्वजनिक आलोचना नहीं कर सकते, न ही वे उसका विरोध कर सकते। सरकार के फैसले के खिलाफ वे प्रदर्शन या धरना नहीं कर सकते। ऐसा करना दंडनीय अपराध है। अगर यही सर्विस रूल विश्वविद्यालय के शिक्षकों पर थोपा जाएगा तो स्वाभाविक है कि शिक्षक की भूमिका मात्र विश्लेषक की रह जाएगी। आलोचनात्मक विवेक जो विश्वविद्यालय की अवधारणा के मूल में है और यह स्वायत्तता के बिना नहीं बची रह सकती है। तब यह विचारणीय है कि आखिर मोदी सरकार आज क्यों विश्वविद्यालय एवं शिक्षकों की इस स्वायत्तता पर हमला कर रही है? इस सवाल का जवाब ढूँढने से पहले जान लें कि क्या है ESMA?

ESMA का अर्थ है अनिवार्य सेवाओं को बनाये रखने का अधिनियम। 1968 में यह कानून इसलिए लाया गया कि अनिवार्य सेवा, अर्थात ऐसी सेवा जिसके बिना जीवन के अंत का खतरा हो जाए, को चिन्हित किया जाए - जैसे चिकित्सा, ट्रांसपोर्ट, बिजली, पानी, आदि। इन सेवा क्षेत्रों में हड़ताल या काम में अवरोध पैदा करना गैरकानूनी माना गया। यह कानून अभी तक बहुत कम इस्तेमाल में लाया जाता रहा है। अलग-अलग राज्यों में इसे सरकार अपने हिसाब से लागू करती रही हैं। इस कानून के तहत हड़ताल या काम में रुकावट पैदा करने वाले को बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है, कारावास से लेकर जुर्माना तक या फिर दोनों एक साथ लगाया जा सकता है। उच्च शिक्षा का क्षेत्र अभी तक इस अनिवार्य सेवा अधिनियम के दायरे से बाहर रहा है। तब यह सवाल है कि आखिर दिल्ली विश्वविद्यालय जो पार्लियामेंट के अधिनियम से बना है उसमें परिवर्तन लाने और परीक्षा/पठन/पाठन/मूल्यांकन को अनिवार्य सेवा बनाये रखने वाले अधिनियम में लाने का उद्देश्य क्या है?

डूटा ने FEDCUTA एवं AIFUCTO को साथ लाकर देशभर के शिक्षकों को संगठित करने और शिक्षा के सवाल पर राष्ट्रीय स्तर के संघर्ष की रूपरेखा तैयार की है। सरकार की कई कोशिशों के बाद भी दिल्ली विश्वविद्यालय एक्ट और शिक्षक-छात्र आंदोलन लगातार रुकावट का काम करते रहे हैं। इन दोनों रुकावटों को दूर करने के लिए CCS और ESMA को लागू करने का यह मोदी सरकार का अविवेकपूर्ण प्रयास है। यह सरकार की उच्च शिक्षा में असफलता को छिपाने और उसकी निजीकरण-व्यवसायीकरण का हताशा वाला प्रयास है। आज जब शिक्षकों की भर्तियाँ रुकी पड़ी हैं, पेंशन के लिए रिटायर्ड शिक्षक सालों से फैसले की बाट जोह रहे हैं, प्रमोशन दिवास्वप्न बन गया है, लगातार शोध के लिए सीटें कम हो रही हैं, अनवरत रिफॉर्म के कारण शैक्षणिक माहौल और सिलेबस अस्त-व्यस्त हैं - तब सकारात्मक हस्तक्षेप के बजाय इन नकारात्मक कानून को लादने की राजनीति को समझने की ज़रूरत है।

शिक्षक-छात्र-कर्मचारी का साझा आंदोलन जनता को लामबंद कर इस शिक्षा विरोधी कार्यवाही का करारा जवाब देगा।

(केंद्र सरकार को अपने इस कदम के लिए शिक्षकों और छात्रों का भरसक विरोध  झेलना पड़ाI और मजबूरन  ESMA  सम्बन्धी  आदेश को वापस लेना पड़ाI यह लेखक के लेख लिखने के बाद हुआI)

Delhi University
Higher education
attack on higher education
ccs
ESMA
Modi government
DUTA
Fedcuta
JNU

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

दिल्ली: दलित प्रोफेसर मामले में SC आयोग का आदेश, DU रजिस्ट्रार व दौलत राम के प्राचार्य के ख़िलाफ़ केस दर्ज


बाकी खबरें

  • भाषा
    कांग्रेस की ‘‘महंगाई मैराथन’’ : विजेताओं को पेट्रोल, सोयाबीन तेल और नींबू दिए गए
    30 Apr 2022
    “दौड़ के विजेताओं को ये अनूठे पुरस्कार इसलिए दिए गए ताकि कमरतोड़ महंगाई को लेकर जनता की पीड़ा सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं तक पहुंच सके”।
  • भाषा
    मप्र : बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद दो छात्राओं ने ख़ुदकुशी की
    30 Apr 2022
    मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल की कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा का परिणाम शुक्रवार को घोषित किया गया था।
  • भाषा
    पटियाला में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं निलंबित रहीं, तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का तबादला
    30 Apr 2022
    पटियाला में काली माता मंदिर के बाहर शुक्रवार को दो समूहों के बीच झड़प के दौरान एक-दूसरे पर पथराव किया गया और स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस को हवा में गोलियां चलानी पड़ी।
  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    बर्बादी बेहाली मे भी दंगा दमन का हथकंडा!
    30 Apr 2022
    महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक विभाजन जैसे मसले अपने मुल्क की स्थायी समस्या हो गये हैं. ऐसे गहन संकट में अयोध्या जैसी नगरी को दंगा-फसाद में झोकने की साजिश खतरे का बड़ा संकेत है. बहुसंख्यक समुदाय के ऐसे…
  • राजा मुज़फ़्फ़र भट
    जम्मू-कश्मीर: बढ़ रहे हैं जबरन भूमि अधिग्रहण के मामले, नहीं मिल रहा उचित मुआवज़ा
    30 Apr 2022
    जम्मू कश्मीर में आम लोग नौकरशाहों के रहमोकरम पर जी रहे हैं। ग्राम स्तर तक के पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर जिला विकास परिषद सदस्य अपने अधिकारों का निर्वहन कर पाने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्हें…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License