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भारत
राजनीति
दलितों का भारत बंद एक ऐतिहासिक घटना है: सुभाषिनी अली
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह आदेश में कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है और इसमें संशोधनों की ज़रूरत हैI देश के दलित समाज और प्रगतिशील समाज इस निर्णय का सख्त विरोध कियाI इसी विरोध के तौर पर दलित समाज और संगठनों ने 2 अप्रैल, यानी आज, भारत बंद का आह्वान कियाI इसी मुद्दे पर न्यूज़क्लिक ने दलित शोषण मुक्ति मंच की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाषिनी अली से टेलीफोन पर एक संक्षिप्त बात कीI
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
02 Apr 2018
Subodh

प्रश्न: आज दलित समाज और संगठनों ने जो ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है, क्या आप उसकी थोड़ी पृष्ठभूमि हमें दे सकतीं हैं? और साथ ही इस कार्यक्रम में दलित शोषण मुक्ति मंच की हिस्सेदारी और भूमिका के बारे में भी हमें बताएँI

उत्तर: आज जो भारत बंद हो रहा है वह एक ऐतिहासिक घटना है क्योंकि इस तरह के सवाल पर पूरे देश में बंद का आह्वान होना और उसे सफल तौर पर अमल होना, मेरे ख्याल से आज तक कभी हुआ नहीं हैI सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इतना ज़्यादा अन्यायपूर्ण था कि एक ज़बरदस्त गुस्सा लोगों में हैI उन तमाम लोगों में जो न्यायप्रिय हैं और दलितों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोग हैंI आज जो यह बंद हो रहा उसमें हमारे दलित शोषण मुक्ति मंच (DSMM) का आगे बढ़-चढ़कर भाग लेना भी एक नई बात हैI कई जगहों पर तो हमारे ही कार्यकर्त्ता सबसे आगे हैंI जैसे मध्य-प्रदेश के मुरैना में तो उनको पुलिस के छर्रे भी लगे हैं, वो घायल भी हुए हैंI ग्वालियर से भी इसी तरह की खबरें आ रही हैंI ऐसी घटनाओं की हम निंदा करते हैंI यह भी पता चला है कि बजरंग दल के लोगों ने आकार बंद कराने वालों पर हमला कियाI तो उनका जो मनुवादी चेहरा आज बिलकुल बेनक़ाब हो गया हैI [समाज को] इसे पहचानना चाहिएI

झारखण्ड के झरिया में DSMM के 32 कार्यकर्त्ता गिरफ्तार किये गये हैंI बिहार के दरभंगा में बंद को लागू करवाने में DSMM आगे रहाI इसी तरह, भीम आर्मी के चन्द्रशेखर जहाँ से हैं, वहाँ हमारे DSMM के अजय और रजनीश गौतम भी काफी सक्रिय भूमिका [बंद को लागू करवाने में] अदा कर रहे हैंI पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में बंद का ज़बरदस्त असर देखने को मिल रहा हैI वहाँ पर [प्रदर्शनकारियों पर] हमले भी हो रहे हैंI मेरठ में तो पुलिस ने बंद करवाने वालों पर लाठीचार्ज भी किया हैI योगी आदित्यनाथ की सरकार से हम ये ही उम्मीद कर सकते हैं! पंजाब में बंद बहुत ही सफल रहा हैI राजस्थान में भी बंद में DSMM के लोगों ने भूमिका निभाईI

इसका यह मतलब नहीं कि यह बंद DSMM के आह्वान पर हुआI निश्चित तौर पर जो दलित संगठन, छात्र संगठन, अम्बेडकरवादी संगठन वो इस बंद को लागू करने में हर जगह आगे हैं हीI लेकिन DSMM भी जगह-जगह पर इस बंद को सफल बनाने में शामिल रहे, वो लाठी खाने, जेल जाने में, गोली खाने में भी आगे हैं, सबके साथ हैंI यह एक नयी जुझारू एकता की शुरुआत हो सकती हैI

प्रश्न: इस बंद को हमें इस परिप्रेक्ष्य में भी देखना चाहिए कि मोदी सरकार लगातार अम्बेडकर को और उनकी वैचारिक सिरसत को हड़पने की फिराक़ में रही हैI लेकिन मोदी सरकार की नीतीयाँ दलित-विरोधी रही हैंI इस पर आपका क्या कहना है?

उत्तर: भारतीय जनता पार्टी बुनियादी तौर पर वर्ण-व्यवस्था में आस्था रखने वाली पार्टी हैI आरएसएस ने हमेशा मनुस्मृति का समर्थन किया है इसलिये उनके लिए अम्बेडकर एक दुश्मन के रूप में रहे हैंI समानता का सिद्धांत उनके लिए कभी भी स्वीकार्य नहीं था, संविधान उनके लिए स्वीकार्य नहीं थाI अगर अब कुछ लोगों को खुश करने के लिए या कुछ वोट पाने के लिए वो [बीजेपी-आरएसएस] ढ़ोंग रचा रहे हैं कि अम्बेडकर हमारे बड़े प्रिय हैं, तो वो ढ़ोंग तो दिखाई दे ही रहा है सबको! क्योंकि असल में वो क्या कर रहे है! रोज़ तो अम्बेडकर जी की ये लोग मूर्ति तोड़ रहे हैं! अब उनके [अम्बेडकर] नाम में रामजी भी जोड़ दिया, क्योंकि यह उनके पिताजी का नाम थाI इसपर यूपी का एक मंत्री कह रहा है कि उन्होंने अम्बेडकर की शुद्धि कर दी है! इनकी सोच और भाषा छिपाए नहीं छिपती हैI जो कुछ इन्होंने सहारनपुर-शब्बीरपुर में कहा, चन्द्रशेखर को रासुका लगाकर बिना वजह अब तक गिरफ़्तार किया हुआ है! तो उनके [बीजेपी-आरएसएस] के कृत्यों से स्पष्ट ज़ाहिर है कि वो घोर दलित-विरोधी, समानता-विरोधी लोग हैंI कोई भी उनको अम्बेडकर के पक्षधर के रूप में नहीं देख रहाI

जब भी सुप्रीम कोर्ट के सामने कोई मामला जाता है तो सरकारी वकील भी हस्तक्षेप कर सकता है, जब यह मामला सुना जा रहा था, तब सरकारी सब सरकारी वकील कहाँ थे! अब जब इस निर्णय का इतना विरोध हो रहा है और उनके भी [बीजेपी] के कुछ दलित संसद इसका विरोध कर रहे हैं, तब वो सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए मजबूर हुए हैंI लेकिन इस सब से लोग संतुष्ट होने वाले नहीं हैंI इस बंद के पूरा होने के बाद यही सामने आएगा कि इनकी जिन-जिन राज्यों में सरकार है वहीं प्रदर्शनकारियों पर सबसे ज़्यादा अत्याचार किया जायेगाI

प्रश्न: पिछले 3-4 सालों में हमनें देश में दलित आन्दोलन को एक तरह से पुनर्जीवित होते हुए देखा जा रहा है और इस आन्दोलन में युवाओं की भारी हिस्सेदारी भी काफी उत्साहित करने वाली हैI युवाओं की इस भूमिका पर आपके क्या विचार हैं?

उत्तर: जबसे भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, पहले जो चीज़ें छिपकर होती थीं या सरकार की दलित-विरोधी नीतियों पर पर्दा पड़ा रहता था, अब वो सारे परदे उठ गये हैंI भारतीय जनता पार्टी ने बहुत ही निर्मम तरीके से अपने दलित-विरोधी एजेंडे को लागू किया हैI एससी/एसटी सब-प्लान को ख़त्म कर दिया गया है, एससी/एसटी के लिए निर्धारित बजट में ज़बरदस्त कटौती करना, शिक्षा के क्षेत्र से उनको बाहर करने की कोशिश करना, नौकरियों में आरक्षण को और भी ज़्यादा प्रतिबंधित कर देना आदि जैसी सारी चीज़ें वो लगातार कर रहे हैंI अब तो आरक्षण पर ही बहुत बड़ा सवाल उन्होंने खड़ा कर दिया हैI इन सब कदमों ने पहले ही लोगों को बहुत आंदोलित कर दिया थाI साथ ही, रोहित वेमुला के मामले में जो स्मृति ईरानी का रवैया था, गुजरात में जो ऊना की घटना हुई, लगातार बीजेपी शासित राज्यों में दलितों खासतौर से दलित महिलाओं के खिलाफ़ जो अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं, राजस्थान की 17 वर्षीय दलित लड़की के बलात्कार और हत्या मामले में अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गयी है आदि-आदिI लोग ये सब देख रहे हैंI लेकिन इस सब में भी एक ज़बरदस्त बात यह है कि आज सड़कों पर नौजवानों की जो एक फ़ौज दिखाई दे रही है वो केवल बीजेपी के लिए चुनौती नहीं हैंI बल्कि तमाम उन दलित नेताओं के लिए भी चुनौती हैं जो समझौतापरस्त हैं, जो इनके [बीजेपी-आरएसएस] के साथ मिल गये हैंI आज दलित नौजवान उनको भी बता रहे हैं कि तुम हमारे नेता नहीं हो, तुमने हमारे साथ, हमारे भविष्य के साथ और डॉ. अम्बेडकर के सिद्धांतों के साथ बहुत बड़ी ग़द्दारी की हैI यह आवाज़ सड़कों से उठ रही हैI

प्रश्न: इस बंद की ख़बर देते हुए मुख्यधारा के मीडिया का ज़यादा ध्यान हिंसा पर रहा, वे प्रदर्शनकारियों के मुद्दों को छोड़कर सिर्फ और सिर्फ आगजनी और पुलिस से हुई झड़पों को ही दिखता रहाI मुख्य्धारा, खासतौर से टेलीविज़न मीडिया, के इस रवैये पर आपका क्या ख़याल है?

उत्तर: मुख्यधारा का मीडिया तो हम सभी जानते हैं कि बहुत ही प्रतिक्रियावादी चीज़ों को पेश कर रहा हैI एक तरह से वो सरकार के साथ मिलकर ही चीज़ों को पेश कर रहा हैI लेकिन यह विरोध और बंद इतना ज़बरदस्त है कि भले ही वो [मुख्यधारा का मीडिया] एक ख़ास से इसे पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, पर इस बंद का विस्तार और असर पूरे देश में रहा कि उसे वो नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएI इसकी खबर उन्हें देनी ही पड़ी, वो बाकि जन-आंदोलनों की तरह इसे नज़रंदाज़ नहीं कर पाएI

प्रश्न: इस बंद के बाद, दलित आन्दोलन और खासकर इससे जुड़े युवाओं को आप देश के राजनीतिक पटल पर किस और अग्रसर होते हुए देखती हैं?

उत्तर: हमें इन चीज़ों को बहुत गहरायी से देखना चाहिएI यह स्पष्ट दिखाई देता है कि जो युवा इसमें भाग ले रहे हैं वो बिलकुल आम युवा हैI ये किसी साज़िश या राजनीति विशेष से प्रेरित होकर नहीं उतरे बल्कि अपने आत्मसम्मान के लिए सड़कों पर आज उतरे हैंI

हमने जो नारा दिया कि ‘नीले आकाश में, लाल झंडा’, मेरे मुताबिक इसकी प्रासंगिकता आज दिखाई देने लगी हैI वाम ताकतों और अम्बेडकरवादी ताकतों, दलितों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली ताकतों में एकता अगर आगे बढ़ती है [तो बेहतर समाज की संभावनायें काफी बढ़ जाती हैं]I इस एकता में आज संघर्ष जुड़ गया है, संयुक्त संघर्षI इससे अगर एक नयी ताकत निकलती है तो वो हमारे देश की

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