NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
उत्पीड़न
कानून
घटना-दुर्घटना
भारत
यूपी: सफ़ाईकर्मियों की मौत का ज़िम्मेदार कौन? पिछले तीन साल में 54 मौतें
आधुनिकता के इस दौर में, सख़्त क़ानून के बावजूद आज भी सीवर सफ़ाई के लिए एक मज़दूर ही सीवर में उतरता है। कई बार इसका ख़ामियाज़ा उसे अपनी मौत से चुकाना पड़ता है।
रवि शंकर दुबे
06 Apr 2022
यूपी: सफ़ाईकर्मियों की मौत का ज़िम्मेदार कौन? पिछले तीन साल में 54 मौतें
फोटो साभार-दैनिक भास्कर

केंद्र में बैठी सरकार, या फिर राज्य की सत्ताधारी पार्टियां विकास के तमाम दावे कर लें, आधुनिकता की तमाम मिसाले दे लें, लेकिन मैला साफ करने के लिए आज भी मज़दूर अपनी जान को दांव पर लगाकर सीवर में उतरते हैं। बिना किसी सुरक्षा के... या ज़रूरी उपकरण के।

मैनुअल स्कैवेज़िंग एक्ट 2013 के तहत देश में सीवर सफाई के लिए किसी भी शख्स को उतारना पूरी तरह से ग़ैर कानूनी है। लेकिन देश की विडंबना है कि ये कानून महज़ काग़जों में ही लिखे हुए हैं। इनका वास्तविकता में कोई औचित्य नहीं है।

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार... बीते तीन सालों में 54 सफाईकर्मियों ने उत्तर प्रदेश के मेनहॉल में सफाई करते वक्त दम तोड़ दिया है। जो कि बाकी राज्यों की तुलना बहुत ज्यादा है।

इतने बड़े आंकड़ों के बावजूद सीवर की सफाई सरकारी हो या फिर प्राइवेट, कर्मियों को बिना किसी सुरक्षा, बिना किसी कानून का पालन किए धड़ल्ले से मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 सालों में पूरे देश में 635 कर्मचारियों ने सीवर में सफाई के वक्त दम तोड़ दिया।  

आपको बता दें कि लगातार बढ़ रहे आकड़ों के बाद नींद से जागी सरकार ने उत्तर प्रदेश के सभी निकायों और पालिकाओं को मैनुअल सीवर सफाई कराने पर तत्काल रोक के आदेश दिए हैं। प्रदेश के सभी डीएम, नगर आयुक्तों, एमडी जल निगम को निर्देश दिए गए हैं कि मैनुअली हो रही सीवर सफाई को तत्काल रोका जाए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अपर मुख्य सचिव रजनीश दुबे ने सभी निकायों को लेटर जारी किए हैं।

प्रदेश के बाकी शहरों का हाल तो जैसा-तैसा है ही... राजधानी लखनऊ में ही धड़ल्ले से मज़दूरों को बिना किसी सुरक्षा के सीवर में उतार कर मैला साफ करवाया जाता है। पिछले दिनों ही लखनऊ में सीवर सफाई के दौरान दो मज़दूरों की मौत हो गई। दरअसल सहादतगंज में तीन मज़दूरों को सफाई के लिए सीवर लाइन में उतारा गया था, जिसमें से दो की दम घुटने से मौत हो गई, जबकि तीसरे को गंभीर हालत में ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया था। वहीं एक हादसा रायबरेली के रोड पर अमृत योजना के तहत सीवर सफाई के दौरान मौत हो गई थी।

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिकता मंत्रालय की संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के आंकड़ों में साफ झलकता है कि सीवर में सफाई के दौरान देश में मौतों का सिलसिला फिलहाल थमता नहीं नज़र आ रहा है। साल-2019 में सीवर की सफाई के दौरान 110 लोगों की मौत हुई, जबकि-2018 में 68 और 2017 में 193 मौतें हुईं।

इन आंकड़ों से ये भी साफ है कि सीवर में सफाई के दौरान उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां बाकी राज्यों की तुलना में ये मामला ज्यादा गंभीर है। पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा 54 मौतें यूपी में हुई हैं। इसमें सबसे ज्यादा मामले 2019 में दर्ज हुए।

वैसे तो ये वो मामले हैं जो आंकड़ों में गिन लिए जाते हैं, लेकिन कई ऐसे मामले भी होते होंगे जिनकी भनक तक नहीं लगती। हालांकि सीवर सफाई के दौरान कुछ ऐसे हादसों के बारे में भी जानना ज़रूरी है जो काफी चर्चा में रहे...

गाजियाबाद में 5 कर्मचारियों की मौत- 22 अगस्त 2019 को नंदग्राम इलाके में सफाई कर्मचारी सीवर की सफाई कर रहे थे, इसी दौरान जहरीली गैस के कारण दम घुटने से सभी की मौत हो गई थी।

वाराणसी में 2 की दम घुटने से मौत- 1 मार्च 2019 को वाराणसी के पांडेपुर इलाके में संविदा सफाई कर्मचारी चंदन और राकेश को गहरी सीवर लाइन में बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के उतारा गया। दोनों की दम घुटने से मौत हो गई थी।

कानपुर में 2 सफाई कर्मियों की मौत- 19 जून 2019 को कानपुर के बाबूपुरवा थाना क्षेत्र में सीवर की सफाई के दौरान दो सफाईकर्मियों की मौत हो गई।

कानपुर में 3 सफाई कर्मियों का दम घुटा 1 की मौत- 6 अगस्त 2017 को कानपुर के ही बर्रा विश्वबैंक में सीवर चेंबर की सफाई के दौरान तीन सफाई कर्मी जहरीली गैस की चपेट में आ गए थे। वक्त रहते बचाव कार्य के चलते दो कर्मचारियों को बचा लिया गया था, लेकिन एक की मौत हो गई थी।

सीवर में सफाई के लिए एक्ट के तहत सफाई कर्मियों से सीवेज सफाई पूरी तरह गैरकानूनी है। अगर व्‍यक्ति को सीवर में उतारना ही पड़ जाए, तो उसके लिए कई तरह के नियमों का पालन जरूरी है। कहने का अर्थ है कि स्पेशल कंडीशन में सफाई कर्मी को क्या व्यवस्था मिलनी चाहिए:

·     कर्मचारी का 10 लाख रुपये का बीमा होना चाहिए

·     कर्मचारी से काम की लिखित स्वीकृति लेनी चाहिए

·     सफाई से एक घंटे पहले ढक्कन खोलना चाहिए

·     प्रशिक्षित सुपरवाइज़र की निगरानी में ही काम होगा

·     ऑक्सीज़न सिलेंडर, मास्क और जीवन रक्षक उपकरण देने होंगे

इन तमात कंडीशन के बावजूद नियमों की धड़ल्ले से अनदेखी की जाती है। अगर यूं कहें कि मैला उठाने वालों की जान की कीमत इस समाज में कुछ नहीं तो ग़लत नहीं होगा।

मामले से जुड़े लोग कहते हैं कि सफाई के लिए आधुनिक मशीनों की सुविधाएं नहीं होने और ज्यादातर जगहों पर अनुबंध की व्यवस्था होने से सफाईकर्मियों की मौतें हो रही हैं। अनुबंध की स्थिति में सरकारें सफाई कर्मियों के हितों का उचित ध्यान नहीं रखती हैं। दिल्ली और हरियाणा जैसे कुछ राज्यों ने सीवर की सफाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल शुरू किया है। हालांकि, ऐसी व्यवस्था पूरे देश में नहीं है।

भले ही कुछ लोग कह रहे हैं दिल्ली और हरियाणा में अब मशीनों का इस्तेमाल होता है, लेकिन ये भी सच हैं कि ऐसे उदाहरण गिने-चुने ही हैं। हालांकि ये हादसे पूरी तरह से केंद्र और राज्य सरकारों की मज़दूरों के प्रति अनदेखी बयां करती है।

पूर्व राज्य सांसद केसी त्यागी ने ख़ुद अपने एक लेख में लिखा है कि... मौजूदा कानून के तहत इस तरह की सफाई और शौचालयों का जारी रखना संविधान के अनुच्छेद 14, 17, 21 और 23 का उल्लंघन है। साल 2014 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को 2013 का कानून पूर्ण रूपेण लागू करने, सीवर टैंकों की सफाई के दौरान हुई मौतों पर काबू पाने और मृतकों के आश्रितों को 10 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया जा चुका है। पर कुछ नहीं हुआ।

केसी त्यागी के इस लेख की आखिरी लाइन ‘’पर हुआ कुछ नहीं’’ कोई नई नहीं है। क्योंकि ये हादसे लगातार हमारे समाज में होते रहते हैं, यहां तक इन हादसों को चुनावी मुद्दा तक नहीं बनाया जाता। जिसका खामियाज़ा उन तमाम परिवारों को उठाना पड़ता है जिन्हें पहले तो समाज में उचित सम्मान नहीं मिलता और फिर इस सरकारी लापरवाहियों के ताने बाने में फंसकर घर का इकलौता कमाने वाला भी नहीं रह जाता।

इसे भी पढ़ें: https://hindi.newsclick.in/manual-scavenging-Endless-series-of-deaths-in-sewer

 

manual scavenging
UP
UP Government

Related Stories

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

ग्राउंड रिपोर्ट: ‘पापा टॉफी लेकर आएंगे......’ लखनऊ के सीवर लाइन में जान गँवाने वालों के परिवार की कहानी

सीवर में मौतों (हत्याओं) का अंतहीन सिलसिला

सीवर और सेप्टिक टैंक मौत के कुएं क्यों हुए?

यूपी चुनाव और दलित: फिर पकाई और खाई जाने लगी सियासी खिचड़ी

उत्तर प्रदेश चुनाव : हौसला बढ़ाते नए संकेत!

क़ानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बिना सुरक्षा उपकरण के सीवर में उतारे जा रहे सफाईकर्मी

यूपीः मिड-डे मील भोजन के दौरान दलित बच्चों से भेदभाव का आरोप

यूपी: भर्ती और नियुक्ति घोटाले के बीच योगी सरकार पर लगातार उठते सवाल!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License