NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मंडल राजनीति को मृत घोषित करने से पहले, सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान अंबेडकर की तस्वीरों को याद करें 
‘मंदिर’ की राजनीति ‘जाति’ की राजनीति का ही एक दूसरा स्वरूप है, इसलिए उत्तर प्रदेश के चुनाव ने मंडल की राजनीति को समाप्त नहीं कर दिया है, बल्कि ईमानदारी से इसके पुनर्मूल्यांकन की ज़रूरत को एक बार फिर से उठा दिया है।
ओमैर अहमद
15 Apr 2022
CAA

जैसा कि उत्तरप्रदेश के चुनावों का प्रभाव लगातार छाना जा रहा है, और 2024 में होने वाले आम चुनावों के लिए मंच को तैयार किया जा रहा है, ऐसा लगता है कि इससे जो प्राथमिक सबक लिया गया है वह यह है कि सत्ता और दंड से मुक्ति, और एक शाही उदारता है जो काम आने वाला है। हक-हुकूक के मुद्दों, विशेष रूप से जातिगत गठबन्धनों को लगभग पूरी तरह से ख़ारिज किया जा रहा है, और मंडल राजनीति का मर्सिया लिखा जा रहा है।

जातिगत राजनीति के अंत को लेकर की जा रही यह हड़बड़ी वाली घोषणा सभी प्रकार के कारणों से समस्याग्रस्त नजर आती है, लेकिन संभवतः सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह इस बात को नजरअंदाज करती है कि समान अधिकारों की राजनीति की कितनी संकीर्ण रूप से व्याख्या की गई है। इस बात को सबसे क्रूर और शक्तिशाली ढंग से आनंद तेलतुम्बडे ने अपनी पुस्तक “रिपब्लिक ऑफ़ कास्ट” में 2006 के खैरलांजी नरसंहार वाले अध्याय में उजागर किया था। जबकि नरसंहार के दौरान महिलाओं और बच्चों पर क्रूरता और हत्या अपने चरम पर थी, वहीं तेलतुम्बडे इस बात पर भी प्रकाश डालते हैं कि “संबंधित प्रशासनिक मशीनरी के सबसे निचले स्तर (सिपाही) से लेकर उच्चतम (पुलिस अधीक्षक) तक, कर्मियों में शामिल पुरुष और महिला कर्मी दोनों ही- जो दलित थे।”

इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि तेलतुम्बडे आरक्षण को ख़ारिज नहीं करते हैं। उन बड़े विरोध प्रदर्शनों की कल्पना करना काफी कठिन होता, जिसने राज्य को कार्यवाही करने के लिए मजबूर कर दिया था, क्योंकि इसके द्वारा शुरू-शुरू में इसे दबाने की कोशिश की गई थी, लेकिन आरक्षण के द्वारा पैदा की गई आर्थिक और सामाजिक गतिशीलता के कारण इतना सब हो पाया। बहरहाल, जैसे ही खैरलांजी मामले में सरकारी कार्यवाही का तमाशा दिखा - 2010 में गाँव को “टंटा मुक्त गाँव” (विवाद मुक्त गाँव) के रूप में घोषित करने सहित – क्योंकि यह स्थायी सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए पर्याप्त नहीं था, जो न्याय को दिला पाने में सक्षम होता।

खैरलांजी, मंडल को सिर्फ “जातिगत राजनीति” के रूप में सीमित करने, और समान अधिकारों के लिए संवैधानिक उत्तरदायित्व और इसकी जमीनी हकीकत के बीच में महत्वपूर्ण दूरी मुख्य मुद्दे हैं जिसके माध्यम से हमें उत्तर प्रदेश के चुनावों के नतीजों को देखना चाहिए। 

मतदाताओं के सामने चार मुख्य रुझान या मुद्दे थे: महामारी में राज्य की विफलता, किसानों के द्वारा चलाया जा रहा निरंतर आंदोलन, एनआरसी/सीएए के खिलाफ विरोध, और पुलिस एवं पशासन जिसने निर्द्वन्द होकर कार्यवाही की। परिभाषा के अनुसार, इन सभी मुद्दों ने आबादी के सबसे निचले हाशिये पर पड़े तबके को प्रभावित किया – जिनको सबसे अधिक स्वास्थ्य सेवा से वंचित रखा गया, जिनमें से अधिकांश के भूमिहीन खेतिहर मजदूर होने की संभावना है, जिनके पास सबसे कम सही दस्तावेज होने की संभावना होती है, और सबसे अधिक पुलिस की मनमानी का खतरा बना रहता है। 

एनआरसी/सीएए मुद्दा विशेष रूप से स्पष्ट होना चाहिए। जैसा कि पूर्व आईएएस अधिकारी शशिकांत सेंथिल ने कहा था, भले ही इसने सीएए में विशिष्ट तौर पर मुसलमानों को बाहर रखने के लिए उन्हें लक्षित किया हो, लेकिन दस्तावेज सत्यापन की एक कष्टदायी प्रकिया बहिष्करण के इतिहास की वजह से बड़े पैमाने पर दलितों को चोट पहुंचाने वाली थी। यही वजह है कि जिस एक नेता की तस्वीर देश भर में एनआरसी/सीएए विरोध प्रदर्शनों में सबसे अधिक मौजूद थी, वह डॉ भीमराव अंबेडकर की थी। कैसे समतामूलक न्याय का मुद्दा, श्रेणीगत असमानता की समस्या एक “मुस्लिम” मुद्दा बन गई? कैसे कानून के समक्ष समानता की अनूठी समस्या, सामाजिक न्याय के केंद्रीय मुद्दे जिसके इर्द-गिर्द डॉ अंबेडकर ने अपना सारा कामकाज और कानूनी कैरियर लगा दिया था, “मंडल” का मुद्दा कैसे नहीं बन सका?

निष्पक्ष रूप से कहें तो जिस संगठन ने सबसे स्पष्ट रूप से यह पहचाना कि ये मंडल के मुद्दे हैं, वह संघ परिवार है। यह कोई संयोगवश नहीं है कि मध्यप्रदेश में नवरात्र के दौरान भीड़ और राज्य दोनों के द्वारा घरों और दुकानों को जमींदोज करने की वारदात आदिवासी क्षेत्रों में हुई है। यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि “मंदिर” की राजनीति “जाति” की राजनीति के प्रतिक्रिया में उतनी नहीं है लेकिन उसी का एक दूसरा स्वरुप है। इसके और मंडल की राजनीति के बीच में फर्क यह है कि बाद वाली राजनीति एक समतामूलक समाज के उद्देश्य की बात करता है, जबकि मंदिर की राजनीति एक नए वंचित समूह- मुस्लिम, ईसाई, मांस-खाने वालों, नास्तिकों के रूप में एक अवसर प्रदान करती है। वहां पर एक साम्यता है, जिसमें कोई भी इन समुदायों पर दंड से मुक्ति के हमला कर सकता है, यद्यपि संघ हिंसा में विशेष रूप से पूर्व बहिष्कृत समुदायों को भर्ती करने और फांसने में विशेष रूचि रखता नजर आता है।

अगर विपक्ष को कोई मौका चाहिए, यदि उसे खूनी और हिंसा की राजनीति को सफलतापूर्वक चुनौती देनी है, जो देश को दिन-प्रतिदिन नीचा दिखा रहा है, तो उसे इस वास्तविकता से जुड़ना होगा कि मंडल की राजनीति से अभी तक क्या हासिल किया है, और यह भी देखना होगा कि अभी भी कितना छूट गया है जिसे हासिल करना है। एक भारतीय के रूप में हमारे सामने क्या चुनौतियाँ हैं के बारे में एक स्पष्ट समझ और एक समतामूलक समाज में रहने के क्या अवसर हैं के बिना हम खैरलांजी जैसी आपदा के साथ बने रहने के लिए अभिशप्त हैं- गरिमा के साथ जीने का वायदा बुरी तरह से अधूरा रह जाने वाला है: मंडल की राजनीति को फिर से परिकल्पित करना होगा क्योंकि यही एकमात्र सबसे शक्तिशाली विचार बचा हुआ है जिससे हम भारत को स्वतंत्र लोगों के एक स्वतंत्र मुल्क बनने की दिशा में ले जा सकते हैं। और उन सभी के लिए जो कहते हैं कि मंडल की मौत हो चुकी है, के लिए केवल एक ही वास्तविक उत्तर है: मंडल अमर रहे।  

लेखक दिल्ली में रहते हैं। उनके उपन्यास जिमी द टेररिस्ट को 2009 के लिए मैन एशियन लिटरेसी प्राइज के लिए शार्टलिस्ट किया गया था। व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Before Declaring Mandal Politics Dead, Recall Ambedkar’s Pictures at CAA Protests

Anand Teltumbde
Khairlanji
Dalits
Mandal politics
social justice
BR Ambedkar

Related Stories

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

राष्ट्रीय युवा नीति या युवाओं से धोखा: मसौदे में एक भी जगह बेरोज़गारी का ज़िक्र नहीं

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

दलितों में वे भी शामिल हैं जो जाति के बावजूद असमानता का विरोध करते हैं : मार्टिन मैकवान

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

बागपत: भड़ल गांव में दलितों की चमड़ा इकाइयों पर चला बुलडोज़र, मुआवज़ा और कार्रवाई की मांग

मेरे लेखन का उद्देश्य मूलरूप से दलित और स्त्री विमर्श है: सुशीला टाकभौरे


बाकी खबरें

  • language
    न्यूज़क्लिक टीम
    बहुभाषी भारत में केवल एक राष्ट्र भाषा नहीं हो सकती
    05 May 2022
    क्या हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देना चाहिए? भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से लेकर अब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की जद्दोजहद कैसी रही है? अगर हिंदी राष्ट्रभाषा के तौर पर नहीं बनेगी तो अंग्रेजी का…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    "राजनीतिक रोटी" सेकने के लिए लाउडस्पीकर को बनाया जा रहा मुद्दा?
    05 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार सवाल उठा रहे हैं कि देश में बढ़ते साम्प्रदायिकता से आखिर फ़ायदा किसका हो रहा है।
  • चमन लाल
    भगत सिंह पर लिखी नई पुस्तक औपनिवेशिक भारत में बर्तानवी कानून के शासन को झूठा करार देती है 
    05 May 2022
    द एग्ज़िक्युशन ऑफ़ भगत सिंह: लीगल हेरेसीज़ ऑफ़ द राज में महान स्वतंत्रता सेनानी के झूठे मुकदमे का पर्दाफ़ाश किया गया है। 
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल
    05 May 2022
    राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि अगर गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने वाला फ़ैसला आता है, तो एक ही जेंडर में शादी करने जैसे दूसरे अधिकार भी ख़तरे में पड़ सकते हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    अंकुश के बावजूद ओजोन-नष्ट करने वाले हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन की वायुमंडल में वृद्धि
    05 May 2022
    हाल के एक आकलन में कहा गया है कि 2017 और 2021 की अवधि के बीच हर साल एचसीएफसी-141बी का उत्सर्जन बढ़ा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License