NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दिल्ली के नतीजों के बारे में कुछ मिथक...और कुछ रोचक तथ्य
नतीजों के ताज़ा विवरण में जाएं तो कांग्रेस की गिरावट और पिछले पांच वर्षों में कैसे मतदाताओं ने अपना रुख बदला है उसकी साफ तस्वीर उभर कर आती है। 
सुबोध वर्मा
14 Feb 2020
Translated by महेश कुमार
delhi

हाल ही में सम्पन्न हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों के बारे में एक लोकप्रिय मिथक यह है कि कांग्रेस के मतदाता भाजपा की तरफ चले गए हैं और इसलिए भाजपा को 2015 में मिले मत जो लगभग 33 प्रतिशत थे से बढ़कर 2020 में 40 प्रतिशत हो गए है, जिसमें भाजपा के सहयोगी दल जद (यू) और लोजपा ने भी तीन सीटें गठबंधन के तहत लड़ी हैं। अन्य लोगों की राय इससे जुदा हैं – कि कांग्रेस के मतदाता केवल ‘आप’ की तरफ गए हैं। फिर भी एक तथ्य यह भी है कि बीजेपी ने पिछले चुनावों की तुलना में अपना वोट 7 प्रतिशत बढ़ा लिया है। और इसी तरह -चुनाव मिथकों और पौराणिक कथाओं का सीज़न बन जाता है।

आइए इनमें से कुछ तथ्यों पर नज़र डालते हैं। लेकिन उससे पहले नीचे दिए गए चार्ट में 2015 और 2020 में हुए मतदान की वास्तविक संख्या पर एक नज़र डाल लेते हैं।

delhi.JPG

 
यह आधिकारिक डेटा है। हालांकि मतदान का प्रतिशत 2015 में 67 प्रतिशत से गिरकर 62 प्रतिशत से कुछ अधिक ही है, लेकिन इस बार वोटों की वास्तविक संख्या बढ़ गई है। कैसे? यह बहुत सरल है: कुल मतदाताओं की संख्या 2015 और 2020 के बीच बढ़ गई थी। इसलिए मतदान प्रतिशत में गिरावट के बावजूद, वोटों की वास्तविक संख्या में 3 लाख से अधिक की वृद्धि हुई है। आगे क्या निकलता है, उस पर इस आंकड़े का असर है।

कॉंग्रेस के वोट कहाँ गए?

कॉंग्रेस को 2015 में लगभग 8.67 लाख मत मिले थे, जिससे यह पता चला कि जिस पार्टी ने दिल्ली पर 15 वर्षों तक प्रमुख पार्टी होने के नाते राज किया था उसका असर हल्का हो गया था। अब 2020 में, उन्हें 3.95 लाख वोट मिले, जो कि 2015 का लगभग आधा है। दूसरे शब्दों में कहे तो कांग्रेस ने अन्य पार्टियों के हाथों कुछ 4.7 लाख वोट गंवा दिए (या वे वोट डालने नहीं आए)।

बड़ी मुस्लिम आबादी वाले छह निर्वाचन क्षेत्रों के परिणामों का जल्दी से किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि कांग्रेस के मतदाता ठोस रूप से ‘आप’ की तरफ गए हैं। ये सीटें हैं: चांदनी चौक, मटिया महल, बल्लीमारान, ओखला, सीलमपुर और मुस्तफाबाद। कांग्रेस इनमें से एक भी सीट नहीं जीत पाई लेकिन उसने अकेले इन सीटों पर 1.49 लाख वोट हासिल किए थे, जो कुल मतों के 17 प्रतिशत से अधिक था। लेकिन 2020 में उसे केवल 42.8 हजार वोट मिले, जिसमें से करीब एक लाख नहीं मिले! आखिर वे मत कहाँ गए? इन सीटों पर ‘आप’ के वोटों में 1.32 लाख से अधिक वोटों की बढ़त है। स्पष्ट रूप से कांग्रेस के मतदाताओं का यह हिस्सा ‘आप’ के पास चला गया। इसलिए, यह एक मिथक है कि कांग्रेस के वोट केवल भाजपा के पास गए हैं।

लेकिन अन्य सीटों के विश्लेषण से पता चलता है कि कई सीटों पर भाजपा ने ‘आप’ और कांग्रेस दोनों की कीमत पर अपने वोट बढ़ाए हैं। डेटा की अपनी सीमाएँ हैं - यह ए से बी को शिफ्ट करने वाले मतदाताओं के एक वर्ग की आंतरिक गतिशीलता को नहीं दिखाता है, यहाँ तक कि एक अन्य तबके जो बी से सी  में शिफ्ट हुए, नहीं दिखाता है, लेकिन डेटा से कुछ मार्गदर्शन और दिल्ली के निवासी क्या सोच रहे हैं से कुछ नतीजों पर पहुंचा जा सकता है। ऐसा लगता है कि गरीब वर्गों के मतदाताओं का बड़ा हिस्सा कांग्रेस से ‘आप’ की तरफ गया, जबकि मध्य वर्ग और व्यापारियों की सीटों पर हावी होने के कारण कांग्रेस के मतदाता भाजपा की तरफ चले गए। इसे विशेष रूप से पटपड़गंज, लक्ष्मी नगर, विश्वास नगर, कृष्णा नगर, गांधी नगर और शाहदरा, पूर्वी दिल्ली के मध्य क्षेत्रों की बेल्ट में देखा जा सकता हैं। इसका बड़ा हिस्सा मध्यम वर्ग, व्यापारी तथा दुकानदार तबका है, जो एक समय भाजपा और कांग्रेस के बीच समान रूप से विभाजित था। अब लगता है मंथन का एक और दौर चल रहा है।

इसके अलावा, सीट के स्तर के आंकड़ों से भी पता चलता है कि ‘आप’ और भाजपा के बीच भी कुछ फेरबदल हुआ है। पश्चिमी दिल्ली की कई कालोनियों में जो कभी ग्रामीण या अर्ध ग्रामीण बस्ती थी, लेकिन अब जो निम्न मध्यम वर्ग और श्रमिक वर्ग के घनी आबादी वाले इलाके हैं वहाँ ‘आप’ ने भाजपा के हाथों अपने मतदाताओं को खो दिया है।

भाजपा को दोनों से लाभ हुआ 

वास्तव में, दिल्ली में 32 ऐसी सीटें हैं जहां 2015 के विधानसभा चुनावों की तुलना में भाजपा को 10,000 या उससे अधिक वोट का लाभ हुआ हैं। इन 12 सीटों में से प्रत्येक में भाजपा को करीब 20,000 से अधिक वोट का लाभ हुआ जबकि पांच में 30,000 से अधिक वोट का लाभ हुआ हैं। भाजपा का यह लाभ - लगभग 7 लाख वोट का है-इन 32 सीटों में यह वोट कहां से आया? इसमें कांग्रेस की तारफ से लगभग 3 लाख का योगदान हुआ और यदि आप मुस्तफाबाद और ओखला (जो मुस्लिम बहुल सीटों में पहले उल्लेखित हैं) को इसमें से निकाल देते हैं, तो ‘आप’ के व्यावहारिक रूप से उन सभी में वोट कम हुए है। उन्होंने सीटें नहीं खोईं क्योंकि उनका मार्जिन अभी भी बहुत अधिक था – और उनके कुल वोट अभी भी बीजेपी से बहुत अधिक थे। लेकिन चारों ओर फेरबदल दिख रहा है।

कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि एक मंथन चल रहा है। भाजपा ने ‘आप’ और कांग्रेस दोनों के समर्थन  आधार में घुसपैठ की है। उन्होंने सभी 70 निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 7.6 लाख अधिक वोट हासिल किए हैं। लेकिन जब बारीकी से विश्लेषण करते हैं तो ऐसा लगता है कि उन्होंने पूरे में सेंध लगा ली है। यह ‘आप’ को पलटने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन यह है।

election.JPG
 
भाजपा का यह चुनावी लाभ वास्तविक सच्चाई है। ‘आप’ की जीत हुई है और विशेष रूप से भाजपा को एक निर्णायक झटका भी दिया है क्योंकि उसने नग्न सांप्रदायिक प्रचार का सहारा लेते हुए आरएसएस की योजना पर चुनाव लड़ा था। फिर भी इस के प्रभाव ने लोगों को खतरनाक ढंग से हिला दिया है। लड़ाई तो जीत ली है लेकिन युद्ध अभी भी जारी है – एक ऐसा युद्ध जो लोगों के दिलों और दिमागों में घर कर गया है।

Delhi Election 2020
cpngress
BJP
congress vote percentage
bjp vote percentage

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • ऋचा चिंतन
    WHO की कोविड-19 मृत्यु दर पर भारत की आपत्तियां, कितनी तार्किक हैं? 
    25 Apr 2022
    भारत ने डब्ल्यूएचओ के द्वारा अधिक मौतों का अनुमान लगाने पर आपत्ति जताई है, जिसके चलते इसके प्रकाशन में विलंब हो रहा है।
  • एजाज़ अशरफ़
    निचले तबकों को समर्थन देने वाली वामपंथी एकजुटता ही भारत के मुस्लिमों की मदद कर सकती है
    25 Apr 2022
    जहांगीरपुरी में वृंदा करात के साहस भरे रवैये ने हिंदुत्ववादी विध्वंसक दस्ते की कार्रवाई को रोका था। मुस्लिम और दूसरे अल्पसंख्यकों को अब तय करना चाहिए कि उन्हें किसके साथ खड़ा होना होगा।
  • लाल बहादुर सिंह
    वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव को विभाजनकारी एजेंडा का मंच बनाना शहीदों का अपमान
    25 Apr 2022
    ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध हिन्दू-मुस्लिम जनता की एकता की बुनियाद पर लड़ी गयी आज़ादी के लड़ाई से विकसित भारतीय राष्ट्रवाद को पाकिस्तान विरोधी राष्ट्रवाद (जो सहजता से मुस्लिम विरोध में translate कर…
  • आज का कार्टून
    काश! शिक्षा और स्वास्थ्य में भी हमारा कोई नंबर होता...
    25 Apr 2022
    SIPRI की एक रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार ने साल 2022 में हथियारों पर जमकर खर्च किया है।
  • वसीम अकरम त्यागी
    शाहीन बाग़ की पुकार : तेरी नफ़रत, मेरा प्यार
    25 Apr 2022
    अधिकांश मुस्लिम आबादी वाली इस बस्ती में हिंदू दुकानदार भी हैं, उनके मकान भी हैं, धार्मिक स्थल भी हैं। समाज में बढ़ रही नफ़रत क्या इस इलाक़े तक भी पहुंची है, यह जानने के लिये हमने दुकानदारों,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License