NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
विनाशकारी 2020 ने पश्चिम बंगाल चुनाव के पूर्वानुमानों को पलटा 
केंद्र और राज्य सरकार की हर तरह की विफलता सबके सामने उभर आई है। वामपंथ और कांग्रेस का  उभरता विपक्ष अब 2019 के लोकसभा चुनाव की कहानी को पलट देगा।
डोला मित्रा
30 Nov 2020
Translated by महेश कुमार
पश्चिम बंगाल चुनाव

इससे पहले यह एक बड़ा सवाल था कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नियत समय पर होंगे या नहीं विशेषकर कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए, लेकिन बिहार चुनाव की सफलता ने बंगाल चुनाव का रास्ता साफ कर दिया है। यहां तक कि पिछले महीने के आखिर तक कोलकाता के राजनीतिक टिप्पणीकार समय पर चुनाव होने को लेकर छाई अनिश्चितता के बारे में बात कर रहे थे। राजनीतिक वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर बिस्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि, ''बिहार चुनाव के सफलतापूर्वक पूरे होने पर एक बड़ा सवालिया निशान था, लेकिन अब इसकी सफलता से यह संकेत मिल गया है कि ऐसा हो सकता है और चुनाव आयोग ने बंगाल चुनाव की हरी झंडी दे दी है। राज्य अब अप्रैल और मई 2021 में होने वाली चुनावों के लिए कमर कस रहा है।

दरअसल, पिछले हफ्तों में, कई अन्य धारणाएं भी बदली हैं। अब इस बात को भी महसूस नहीं किया जा रहा है कि अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, जो राज्य में सत्ताधारी पार्टी है, और भारतीय जनता पार्टी, जो अपने को मुख्य विपक्ष के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है, दोनों में कोई मुख्य टक्कर होने वाली है। अभी तक दोनों प्रमुख प्रतियोगी बने हुए थे, लेकिन इस चुनावी दंगल में अन्य कारकों की वजह से लड़ाई अब काफी जटिल होने की संभावना है।

इनमें से मुख्य कारक वामपंथी दलों और कांग्रेस पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन न होकर सीटों के बंटवारे की संभावना का होना है, जो चुनावों की रंगत को बदल देगा। न केवल दोनों पक्षों के नेताओं ने इस पर चर्चा की है, बल्कि 2019 के संसदीय चुनावों के मुक़ाबले इस बार गोलमोल बातें नहीं है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता और सीपीआईएम पोलित ब्यूरो के सदस्य मोहम्मद सलीम ने न्यूज़क्लिक को बताया, "अभी तक किसी फैंसले पर नहीं पहुंचे है, लेकिन बातचीत जारी है।" फिर उन्होने बताया कि किसी भी बातचीत को केवल चुनावों पर ध्यान केंद्रित कर वोट हासिल करने तक सीमित रखने के बजाय, अंतिम निर्णय लेने से पहले, हम विचार कर रहे है कि वे ऐसे किस तरह के कार्यक्रमों करें ताकि आम लोगों को फायदा पहुंचे। उन्होने बताया कि लोग राजनीतिक वर्गों की सत्ता की चाहत को पूरा करने के लिए गठबंधन की राजनीति की परवाह नहीं करते हैं। "हम लोगों को एक व्यवहार्य विकल्प पेश करना चाहते हैं जो उन मुद्दों को संबोधित करे जो उनकी चिंता का विषय हैं,"।

मौ॰ सलीम का मानना है कि कोविड-19 महामारी के प्रकोप से राजनीतिक हालात बहुत हद तक बदल गए है, और राजनीतिक पंडित जो 2019 के संसदीय चुनावों (जिसमें तृणमूल और भाजपा मुख्य टक्कर में थे) के आधार पर 2021 के विधानसभा चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी कर रहे थे) वे अब भयंकर रूप से गलत साबित होने वाले हैं। "जिन्होंने वामपंथियों और कांग्रेस को भुला दिया था और जोर देकर कहा था कि 2021 का चुनावी दंगल केवल भाजपा और तृणमूल के बीच है, तो वे एक महत्वपूर्ण तथ्य भूल गए हैं वह है: 2020 का विनाशकारी वर्ष। इस साल सब कुछ उल्ट गया है और केंद्र और राज्य के सत्ताधारी दलों की विफलताओं को उजागर करने वाले मुद्दों उठाएं गए हैं।”

सलीम का कहना है कि बजाय लोगों से वोट मांगने के वामपंथी दल अन्य दलों के साथ मिलकर उनके मुद्दों को संबोधित करने पर विचार कर रहे हैं। महामारी से जुड़े मुद्दों का एक पूरा का पूरा सरगम इसमें शामिल है, जैसे कि प्रवासी श्रमिक जो बेरोजगार हो गए और बिना आमदनी के जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हैं और जिन्हें खुद के भरोसे छोड़ दिया गया था। उन्होंने शहरों से पैदल मार्च कर अपने गाँवों में वापसी की। मई में महामारी के दौरान पश्चिम बंगाल में आए सुपर साइक्लोन एमफैन ने उनके दुख को दोगुना कर दिया और हजारों ग्रामीणों को बेघर और बेरोजगार बना दिया। “वामपंथी दल इन जिलों में लगातार काम करते रहे हैं। हमने राशन वितरण और अन्य राहत के सैकड़ों कार्यक्रम किए हैं। वामपंथी दल, आम लोगों विशेषकर श्रमिक वर्गों और ग्रामीण और शहरी गरीबों के साथ खड़े हैं।

इस काम को जारी रखते हुए वामपंथी दल अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को उठा रहे हैं, खासकर लोगों के कोविड-19 के उपचार, अस्पताल में अधिक बिस्तर मुहैया कराने, नौकरी और आय-सृजन की योजनाएँ के बारे में, मूल्य विनियमन, नए कृषि कानूनों का विरोध आदि शामिल है। सलीम का कहना हैं, "जब हम लोगों के बीच विश्वास और आत्मविश्वास का निर्माण कर पाएंगे तो हम उन्हें वोट देने के लिए कहेंगे।" क्योंकि वामपंथियों का मानना है कि तृणमूल और भाजपा के चुनावी फोकस "हिंदू" वोट या "मुस्लिम" वोटों की तुलना में जनता के मुद्दों पर फोकस होना अधिक प्रभावी रणनीति है। “विभाजन की राजनीति अब बंगाल में काम नहीं करेगी। हिंदू और मुसलमान दोनों ही महामारी के दौरान पीड़ित हैं। वायरस उन दोनों के बीच अंतर नहीं करता है,“ सलीम ने  जोर देकर कहा है।

राजनीतिक टिप्पणीकारों ने भी इस रुख से मुह मोड लिया हैं कि 2021 की चुनावी लड़ाई केवल तृणमूल और भाजपा में होगी। "कोविड-19 महामारी," और चक्रवात के कारण एक बड़ा बदलाव आया है। जब बीजेपी ने पिछले संसदीय चुनाव में बंगाल में 42 में से 18 सीटें जीतीं थी, तो 2021 के लाभ का अनुमान इस पर आधारित था। 2019 का यह लाभ न केवल 2014 की दो सीटों से 16 सीटों का लाभ था, बल्कि भाजपा का वोट-शेयर भी लगभग आधे के निशान को पार कर गया था। कांग्रेस को केवल दो सीट मिली और कम्युनिस्टों के पास जो दो सीटें थी वे भी चली गई इसलिए अगली लड़ाई को सभी ने मान लिया कि रक्षात्मक तृणमूल और आक्रामक भाजपा के बीच होगी। "लेकिन अब राजनीतिक हालात बदल गए है- और वे 2020 में काफी बदल गए हैं। पहले की धारणाएं अब काम नहीं करेंगी। चक्रवर्ती ने कहा अन्य मुद्दे सामने आए हैं जिन्हे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होगा,“।

26 नवंबर को, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सभी आयकर न भरने वाले परिवारों को प्रति माह 7,500 रुपये नकद देने और प्रति व्यक्ति 10 किलोग्राम मुफ्त राशन जैसी मांगों को लेकर हड़ताल की थी। दस ट्रेड यूनियनों द्वारा जारी एक संयुक्त बयान में बताया कि इसमें, इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन, ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर, ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन सेंटर, सेल्फ-एम्प्लोयड वुमन एसोसिएशन, ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस, लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस और कई अन्य स्वतंत्र फेडेरेरेशनस आदि शामिल हैं ने हड़ताल में भाग लिया। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसानों के साथ एकजुटता निभाते हुए देशव्यापी हड़ताल में कम से कम 20 किसान संगठनों ने हिस्सा लिया; जैसा कि इस महीने की शुरुआत में अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के एक राज्य-स्तरीय सम्मेलन के दौरान तय किया गया था।

जैसा कि अपेक्षा की गई थी- और ट्रेड यूनियनों का अनुमान था- इस हड़ताल में 20 करोड़ से अधिक मजदूर सड़कों पर आए और उनका गुस्सा पूरे देश में फैल गया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी पुलिस के साथ झड़पें हुईं। इसने राजनीतिक आंदोलन में ताकत और बदलाव की पुष्टि की है। कहने की जरूरत नहीं है कि ये वामपंथी दल ही हैं जिन्होंने हड़ताल का भरपूर समर्थन किया। “वर्तमान जनविरोधी नीतियों का मुकाबला करने के लिए एक विशाल विपक्षी बल का निर्माण किया गया है और हड़ताल ने इसे एक आधार दिया है। सलीम कहते हैं कि, ''यह सोचना कि बंगाल चुनावों में इस हड़ताल या जन-लामबंदी का कोई असर नहीं होगा एक मूर्खतापूर्ण बात होगी।''

चक्रवर्ती भी कहते हैं, "कि चुनाव से छह महीने से भी कम समय पहले हड़ताल की सफलता 2021 के रास्ते को तय कर सकती है और यह उसका एक संकेतक हो सकता है।" यह सच है कि अन्य नए प्रवेशक इन चुनावों में बाधाएं पैदा करने की कोशिश में हैं, जैसे कि हैदराबाद स्थित असदुद्दीन ओवैसी की अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमन पार्टी, जिसके  उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की उम्मीद है। "दिलचस्प बात यह है कि एआईएमआईएम को हिंदुत्व के बढ़ते असर के विपरीत एक ताक़त माना जाता है, और इसलिए भाजपा के विरोध में भी माना जाता है, क्योंकि तृणमूल के पास मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा है, इसलिए उसके लिए ओवेसी खतरा बन सकते है।”

प्रोफेसर ओम प्रकाश मिश्रा, जो कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में इंटरनेशनल रिलेशन्स  विभाग के प्रमुख हैं, और तृणमूल की कोर कमेटी के सदस्य हैं, ने 2019 के संसदीय चुनावों से पहले वाम और कांग्रेस गठबंधन की वकालत की थी, जब वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे। उन्होंने पिछले चुनाव में भाजपा को मिले भारी लाभ के लिए इस तथ्य को जिम्मेदार ठहराया कि वोट विभाजित हुए थे। "अगर एजेंडा किसी भी कीमत पर भाजपा को हराना है तो गठबंधन होना चाहिए था।" मिश्रा को लगता है कि वामपंथी और कांग्रेस गठबंधन ही भाजपा को रोक सकता है। उनकी संयुक्त ताकत तृणमूल की भाजपा के खिलाफ लड़ाई को मज़बूत कर सकती है।

जबकि वामपंथी इस बात में स्पष्ट है कि भाजपा मुख्य राजनीतिक दुश्मन है, लेकिन वह तृणमूल के साथ किसी भी तरह के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समझ के किसी भी विचार को खारिज करती है। सलीम ने कहा, "तृणमूल, को जाने या अनजाने में किसी भी तरह के समर्थन का कोई सवाल ही नहीं है।" "हम भाजपा के खिलाफ हैं, इससे हम तृणमूल समर्थक नहीं बन जाते हैं।"

यदि वास्तव में पश्चिम बंगाल में कोई स्वतंत्र स्थान बन रहा है, तो आने वाले दिनों में वामपंथी और कांग्रेस की बढ़ती ताक़त देखने वाली होगी।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Disastrous 2020 Topples West Bengal Election Forecasts

West Bengal
Farmers Strike
Migrant workers
CITU
Workers Strike
CPI(M)
Congress
TMC

Related Stories

राज्यपाल की जगह ममता होंगी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति, पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने पारित किया प्रस्ताव

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल, कहा प्रधानमंत्री का छोटा सिपाही बनकर काम करूंगा

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

ED के निशाने पर सोनिया-राहुल, राज्यसभा चुनावों से ऐन पहले क्यों!

झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान

ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया

राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License