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पर्यावरण
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पर्यावरण: चरम मौसमी घटनाओं में तेज़ी के मद्देनज़र विशेषज्ञों ने दी खतरे की चेतावनी 
2021 में, चरम मौसमी घटनाओं के चलते महाराष्ट्र, ओडिशा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में सबसे अधिक मौतें हुई हैं। 
मो. इमरान खान
04 Mar 2022
Environment

निमली (राजस्थान): चरम मौसम की घटनाओं ने समूचे देश भर में लोगों की जानें ली हैं और कई लोगों, मुख्य रूप से गरीबों की आजीविका को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों के द्वारा इस बात का खुलासा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले दिनों में चरम मौसमी घटनाओं में और भी अधिक वृद्धि की संभावना है। 

भारत मौसम विभाग (आईएमडी) के मौसम विज्ञान महानिदेशक, मृत्युंजय महापात्रा ने कहा है कि 2021 में, चरम मौसम की घटनाओं के चलते महाराष्ट्र, ओडिशा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में सबसे अधिक संख्या में मौतें हुई हैं; जबकि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक जिले इससे प्रभावित हुए हैं।

महापात्रा ने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा आयोजित चार दिवसीय अनिल अग्रवाल डायलॉग 2022 में अपनी यह बात रखी।

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान गर्मी और शीतलहर और बारिश में उत्तरोतर वृद्धि की प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। भारी बारिश और बाढ़ से संबधित घटनाओं में कथित तौर पर 750 से अधिक मौतों का दावा किया गया है। इसी प्रकार, पिछले वर्ष आंधी और आसमानी बिजली गिरने की घटनाओं से 700 से अधिक मौतों का दावा किया गया था।

वक्ताओं में से एक दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान मामलों के प्रोफेसर एपी डिमरी ने इसके भयानक चेतावनियों को प्रतिध्वनित किया।

उन्होंने कहा, “ग्लेशियर लगातार खत्म होते जा रहे हैं और उत्तर भारत में नदियों के प्रवाह को लगातार तेज कर रहे हैं। देश के पूर्वी हिस्से की तुलना में उत्तरी हिस्से में ज्यादा बारिश होने की संभावना है। बादल फटने की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं, और हमने पाया है कि हिमालय की तलहटी वाले हिस्से में बादल फटने की स्थिति में तेजी 14% बढ़ जाती है।” 

पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के एक मौसम विज्ञानी, रॉक्सी मैथ्यू कोल ने इसी सत्र में बोलते हुए अपेक्षाकृत कम ज्ञात समुद्री हीटवेव की परिघटना पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उनके अनुसार, वैश्विक स्तर पर देखें तो हिन्द महासागर सबसे तेजी से गर्म होने वाला महासागर है, जो दक्षिण एशियाई क्षेत्र को गंभीर तौर पर प्रभावित करता है। समुद्री हीटवेव के कारण पादपप्लवक की आबादी में लगातार गिरावट हो रही है और समुद्री मत्स्य जीवन को प्रभावित कर रही हैं।

कोल ने कहा, “ग्लोबल वार्मिंग की वजह से तापमान वृद्धि का तकरीबन 93% हिस्सा महासागरों में चला जाता है। गर्म पानी असल में चक्रवातों के लिए एक उर्जा स्रोत का काम करते हैं - और इसकी आवृति, तीव्रता, वेग कुल अवधि को निर्धारित करता है। हमारे शोध से पता चलता है कि हिन्द महासागर में जैसे जैसे गर्मी बढ़ेगी चक्रवातों के लिए यह अधिकाधिक अनुकूल होता चला जायगा। समुद्री हीटवेव की वजह से मूंगा ब्लीचिंग, समुद्री घास के विनाश और सिवार के वनों के नुकसान से समुद्री आवास के विनाश का कारण बनती हैं, जिससे मत्स्य पालन क्षेत्र पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।”

सीएसई की महानिदेशक, सुनीता नारायण खतरे की घंटी बजाते हुए कहती हैं: 

“आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट ने इस बात को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि विश्व के पास इस नुकसान की भरपाई पर कार्यवाही करने के लिए एक छोटी सी खिड़की मौजूद है—जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पूर्णतया विनाशकारी हैं; विश्व की आधी आबादी इन विनाशकारी परिवर्तनों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील स्थिति में हैं; और यह और भी बदतर, बेहद भयानक होने जा रहा है। रिपोर्ट ने इस बात को स्वीकार किया है कि दुनिया में गरीब इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं - वे इसके शिकार हैं, जबकि उन्होंने वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के भंडार में अपना योगदान नहीं दिया है। और इस रिपोर्ट ने पहली बार बढ़ते जलवायु परिवर्तन से होने वाले विस्थापन के बारे में बात की है। इससे हमारे विश्व में असुरक्षा में वृद्धि होने जा रही है।”

डाउन टू अर्थ के अक्षित संगोमला ने कहा, “2021 एक बेहद महत्वपूर्ण वर्ष था, यह चरम सीमा का वर्ष था। यह अब तक के इतिहास में दर्ज किये गए सात सबसे गर्म वर्षों में से एक था। भारत जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं का अनुभव करने के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर था। और जलवायु परिवर्तन से संबंधित सर्वाधिक संख्या में मौतों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार बिजली गिरने और आंधी-तूफ़ान से होने वाली घटनाएं रही हैं।”

आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के मुताबिक, यदि जीएचजी उत्सर्जन में कोई भारी कटौती नहीं की गई तो अगले 20 वर्षों में पृथ्वी की औसत सतह के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि और सदी के मध्य तक इसके 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाने की संभावना है। यहाँ तक कि यदि उत्सर्जन को 21वीं सदी के मध्य तक नेट जीरो तक भी ले आया जाता है तो, इसके बावजूद 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा में 0.1 डिग्री सेल्सियस का “ओवरशूट” होगा। यदि उत्सर्जन में “आने वाले दशकों में” गहरी कटौती नहीं की गई तो 2 डिग्री सेल्सियस की दहलीज “21वीं सदी के दौरान ही पार” कर जायेगी।

संगोलमा ने कहा, “एक डरावनी भविष्यवाणी यह है कि सितंबर में आर्कटिक के समुद्री-बर्फ से मुक्त हो जाने की संभावना है- जो कि चरम गर्मी का महिना होता है— 2050 से पहले कम से कम एक बार।” 

अनिल अग्रवाल डायलॉग 2022, जैसा कि इस कॉन्क्लेव को कहा जाता है, एक वार्षिक समारोह है। इस वर्ष इसने भारत के कुछ गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए देश भर से करीब 70 पत्रकारों को एक जगह पर एकत्र करने का काम किया है। इस संवाद का उद्घाटन 1 मार्च को केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मामलों के मंत्री, भूपेंद्र यादव के द्वारा किया गया, जिन्होंने इस अवसर पर सीएसई और डाउन टू अर्थ पत्रिका की भारतीय पर्यावरण 2022 की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट को भी जारी किया।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें   

Environment: Experts Ring Alarm Bells as Extreme Weather Events Rapidly Increasing in India

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