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एक विश्लेषण:  क्या आप जानते हैं क्या हैं वे चार लेबर कोड्स जिन्हें सरकार 44 कानूनों की जगह लागू कर रही है
जो लेबर कोड संसद में पास किए गए हैं, उनमें असंगठित क्षेत्र मज़दूरों की समस्याओं पर पर्याप्त रूप से ध्यान नहीं दिया गया है। इसकी बजाय, इन संहिताओं से मज़दूरों के बीच विभाजन व बिखराव की आशंका को और बल मिला है।
न्यूज़क्लिक डेस्क
23 Sep 2020
लेबर कोड

पूरे देश में लागू श्रम कानूनों को समेकित (Integrated) करने और उनमें संशोधन करने के लिए बनाए गए तीन लेबर कोड को विपक्ष के विरोध के बावजूद मंगलवार, 22 सितंबर को लोकसभा में पास कर दिया गया है। और बुधवार, 23 सितंबर को विपक्ष की गैर मौजूदगी में राज्यसभा ने भी इन्हें पारित कर दिया। इन कोड्स या संहिताओं में औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थिति संहिता, 2020 तथा सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 शामिल हैं। इसके अलावा वेतन संहिता, 2019 पहले ही पारित हो चुका है। ये सभी श्रम संहिताएं (लेबर कोड्स) 44 मौजूदा श्रम कानूनों का स्थान लेने वाले हैं।

स्वयंसेवी संगठन ‘एक्शन एड’ ने अपने साथी संगठनों की मदद से इस संदर्भ में एक शोधपरक आलेख तैयार किया है। ताकि श्रम कानूनों में हो रहे बदलाव के बारे में समग्र तौर पर एक समझ बन सके कि दरअसल ये बदलाव क्या और क्यों हैं। आइए पढ़ते हैं यह आलेख :-

श्रम कानूनों में इन प्रस्तावित बदलावों का महत्व आज के संदर्भ में और बढ़ जाता है क्योंकि कोरोना महामारी और उसके बाद देश भर में लागू किए गए लॉकडाउन की वजह से असंख्य मज़दूर अपने रोज़गार और आय के साधन गंवा चुके हैं। अनौपचारिक क्षेत्र मज़दूरों के लिए हालात सबसे ज्यादा विकट हैं। प्रवासी मज़दूर भी इन्हीं अनौपचारिक मज़दूरों में आते हैं। कई सर्वेक्षणों में इस बात का विस्तृत ब्योरा दिया गया है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान उनकी हालत कितनी खराब हुई है।

इसे पढ़ें : बेरोज़गारी की मार: 50 लाख औद्योगिक कामगारों और 62 लाख प्रोफेशनल कर्मचारियों की नौकरियां ख़त्म

उदाहरण के लिए, मई 2020 में एक्शन एड एसोसिएशन नामक संस्था द्वारा 11,500 अनौपचारिक क्षेत्र मज़दूरों के बीच किए गए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में 78 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया था कि उनका रोज़गार छिन चुका है जबकि 48 प्रतिशत से ज्यादा उत्तरदाताओं ने बताया था कि लॉकडाउन की घोषणा होने बाद से उन्हें कोई तनख्वाह नहीं मिली है।

हमारे देश में श्रमशक्ति का बहुत बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में आता है। पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 90 प्रतिशत मज़दूर असंगठित क्षेत्र के मज़दूर हैं। लिहाजा, यह सुनिश्चित करना लाजिमी हो जाता है कि जो भी श्रम कानून लागू किए जाएं वे असंगठित क्षेत्र मज़दूरों को सुरक्षा प्रदान करने, उनको बेहतर जीवन प्रदान करने और उनके अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य पर केंद्रित हों।

मगर, जो लेबर कोड संसद में पेश (पास) किए गए हैं, उनमें असंगठित क्षेत्र मज़दूरों की समस्याओं पर पर्याप्त रूप से ध्यान नहीं दिया गया है। इसकी बजाय, इन संहिताओं से मज़दूरों के बीच विभाजन व बिखराव की आशंका को और बल मिला है। इसका कारण यह है कि इन संहिताओं के तहत केवल पक्की नौकरी वाले बहुत थोड़े से मज़दूरों को ही निश्चित काम, निश्चित तनख्वाह और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार देने की बात कही जा रही है जबकि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में सक्रिय या ठेके पर काम कर रहे करोड़ों लोगों को और ज्यादा असुरक्षित हालात में धकेल दिया जाएगा।

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ये संशोधन मज़दूरों की इस विशाल आबादी के हर तबके के लिए हानिकारक दिखाई दे रहे हैं। ये संशोधन उनकी तनख्वाह से संबंधित शर्तें, ओवरटाइम के भुगतान, सामाजिक सुरक्षा, मालिकों और ठेकेदारों के साथ मोलभाव की क्षमता व अधिकार, कार्यस्थल पर स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधित अधिकार तथा विवादों के निपटारे की प्रणाली सहित इन मज़दूरों की जिंदगी के हर पहलू को प्रभावित करने जा रहे हैं। लिहाजा, अगर इन विधेयकों पर विस्तृत चर्चा नहीं होती है और संसद में उन्हें सीधे मतदान के लिए पेश किया जाता है तो इसे एकतरफा तौर पर थोपा गया बदलाव माना जाएगा। यह दशकों से चली आ रही त्रिपक्षीय व्यवस्था की अवहेलना होगा, समवर्ती सूची में आने वाले इस महत्वपूर्ण विषय पर राज्यों की ओर से फीडबैक की संभावना को खत्म कर देगा और मज़दूरों के अधिकारों पर गहरा कुठाराघात होगा।

वक्त की मांग है कि सरकार समूचे असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को समान श्रम अधिकार दे, ऐसी व्यवस्था लागू करने जिससे उनके अधिकारों को साकार रूप दिया जा सके, वर्कर्स बोर्ड्स में उनके पंजीकरण की व्यवस्था की जाए, उनकी शिकायतों के निपटारे की एक सरल व्यवस्था मुहैया कराई जाए और मज़दूरों के सांगठनीकरण को बढ़ावा दिया जाए। श्रम कानूनों का दायरे को भी विस्तार दिया जाना चाहिए ताकि गिग वर्कर्स और प्लेटफार्म वर्कर्स को भी इन कानूनों के दायरे में लाया जा सके क्योंकि यह मज़दूरों का बहुत तेजी से फैलता वर्ग है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी मज़दूरों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा का अधिकार अनिवार्य रूप से मिले। इसके अलावा प्रवासी मज़दूरों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा और अधिकार की पोर्टेबिलिटी की व्यवस्था की जानी चाहिए। पोर्टेबिलिटी का मतलब है कि उन्हें देश में कहीं भी जाने पर वही अधिकार मिलें जो उन्हें अपने गृह राज्य में मिल रहे थे।

इसे पढ़ें: क्या आपको मालूम है श्रम क़ानूनों में बदलाव का क्यों हो रहा है विरोध?

औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (Industrial Relations Code, 2020)

ट्रेड यूनियनों का पंजीकरण: (धारा 6)

ट्रेड यूनियन संगठनों के पंजीकरण के लिए किसी तरह की शर्तें नहीं होनी चाहिए। मसलन, ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के लिए संबंधित प्रतिष्ठान या उद्योग में काम करने वाले मज़दूरों या यूनियन के सदस्यों की संख्या जैसी बंदिशें नहीं होनी चाहिए। भारत का संविधान अनुच्छेद 19 के तहत प्रत्येक नागरिक को ‘‘संगठन या यूनियन बनाने’’ का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण के लिए किसी भी तरह की बाध्यकारी शर्त संविधान द्वारा दिए गए इस मौलिक और बुनियादी अधिकार की अवहेलना होगा। धारा 6 की उपधारा (2) और (4) को हटा दिया जाना चाहिए।

इस अध्याय का दायरा (स्थायी आदेश (धारा 28)):

स्थायी आदेशों का उद्देश्य ये है कि मालिक श्रम संहिता के प्रावधानों को मान्यता दे, उन्हें लागू करे, और इस तरह मज़दूरों के शोषण पर अंकुश लगाया जाए। लिहाजा, स्थायी आदेशों वाले अध्याय को ऐसे सभी प्रतिष्ठानों और उद्योगों पर लागू किया जाना चाहिए जहां 10 या इससे अधिक मज़दूर/कर्मचारी काम करते हैं। इस न्यूनतम पात्रता की संख्या को 10 से बढ़ाकर 300 या इससे अधिक कर देने का मतलब होगा कि ज्यादातर छोटे प्रतिष्ठानों को स्थायी आदेश (स्टैंडिंग ऑर्डर) तय करने की जरूरत नहीं रहेगी और उन्हें मनमाने ढंग से काम करने की छूट मिल जाएगी।

मालिकों द्वारा स्थायी आदेशों का मसविदा तैयार करने और उनके प्रमाणन की प्रक्रिया (धारा 30):

प्रस्तावित संहिता में इस बात का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए कि स्थायी आदेशों के निर्धारण की प्रक्रिया क्या होगी और इसके लिए मज़दूरों की सहभागिता कैसे सुनिश्चित की जाएगी। ये भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रमाणन अधिकारी मज़दूरों और उनकी ट्रेड यूनियनों की तरफ से आने वाली आपत्तियों पर हमदर्दी के साथ सुनवाई करे। वह प्रत्येक मज़दूर को स्थायी आदेशों के मसविदे पर अपनी राय व्यक्त करने का पूरा मौका दे और उनको समझने की कोशिश करे।

इसे भी पढ़ें : : लेबर कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशंस बिल पर संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट बेहद सतही

हड़ताल और तालाबंदी पर पाबंदी (धारा 62):

यदि मज़दूर अपनी जान पर पैदा हो रहे खतरे की तत्काल आशंका को देखते हुए हड़ताल पर जाना चाहते हैं तो उनकी ओर से मालिक को दिए जाने वाले नोटिस की अवधि कुछ घंटे से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अभी तक केवल सार्वजनिक उपक्रम सेवाओं (पब्लिक यूटिलिटी सर्विसेज़) में कार्यरत मज़दूरों को ही मालिक को कम से कम 14 दिन का नोटिस देने की शर्त होती थी। अब यह प्रावधान सभी फैक्ट्रियों पर लागू किया जा रहा है जबकि इसका विधेयक में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। यह संशोधन कानूनन हड़ताल पर जाने के मज़दूरों के अधिकार को बेहद कमजोर कर देगा। यह प्रावधान पहले की भांति केवल लोक उपक्रम सेवाओं तक ही सीमित रहना चाहिए।

इस अध्याय (विशेष प्रतिष्ठानों में ले-ऑफ, छंटनी और बंदी से संबंधित विशेष प्रावधान) का दायरा: (धारा 77)

उपधारा 77 (1) में कहा गया है कि अध्याय 10 में उल्लिखित विशेष प्रतिष्ठानों में ले-ऑफ, छंटनी और बंदी से संबंधित प्रावधान ऐसे औद्योगिक प्रतिष्ठानों (मौसमी किस्म का या केवल यदा-कदा काम करने वाले प्रतिष्ठानों के अतिरिक्त) पर लागू होंगे जिनमें कम से कम 100 मज़दूर काम करते हों या जहां मज़दूरों की संख्या संबंधित शासकीय निकाय द्वारा अधिसूचित सीमा से अधिक हो और यह संख्या पिछले 12 महीने के दौरान औसत कार्यदिवसों के दौरान रही हो।

इस प्रावधान में यह गुंजाइश खुली छोड़ दी गई है कि सरकार कार्यकारी आदेशों के जरिए 100 मज़दूरों की सीमा को भी जब चाहे बढ़ा सकती है। हमारा मानना है कि कार्यकारिणी को बाद में इस तरह का संशोधन करने का अधिकार प्रदान करने वाला कोई भी प्रावधान समूची विधायी प्रक्रिया को निरर्थक बना देगा। लिहाजा, इस प्रावधान में बदलाव किया जाना चाहिए और केंद्र व राज्य सरकारों को दी गई इस विवेकाधीन शक्ति को समाप्त किया जाना चाहिए।

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 (Code on Social Security, 2020)

अध्याय 1: प्रारंभिक

1. सामाजिक सुरक्षा का सार्वभौमिकीकरण करने की बजाय यह संहिता अभी तक चली आ रही सीमित परिभाषाओं को ही आगे बढ़ा रही है। उदाहरण के लिए, उपबंध 2 (6) में सामाजिक सुरक्षा की पात्रता के लिए अभी भी 10 या अधिक भवन एवं अन्य निर्माण मज़दूरों वाले कार्यस्थलों को ही पात्रता के दायरे में रखा गया है जबकि इससे कम मज़दूरों वाले सभी कार्यस्थलों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे से बाहर रखा गया है। सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था में केवल ऐसे प्रतिष्ठानों को ही पीएफ प्रावधानों के तहत रखा गया है जहां 20 या इससे अधिक मज़दूर काम करते हैं। इस प्रकार, यह संहिता लाखों सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के करोड़ों मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा की पात्रता से वंचित कर देती है।

2. पिछले मसविदे में ‘परिवार’ और पारिवारिक उद्यमों को भी नियोक्ता की श्रेणी में शामिल गया था। मगर मौजूदा मसविदे में परिवार या पारिवारिक उद्यम को नियोक्ता या प्रतिष्ठान की श्रेणी में नहीं रखा गया है जबकि वह भी श्रम का एक महत्वपूर्ण केंद्र होता है और वहां घरेलू मज़दूरों के अलावा भी लोग काम करते हैं।

अध्याय 2: सामाजिक सुरक्षा संगठन

3. इस बारे में ना तो कोई प्रावधान किया गया है और ना ही इस बात का उल्लेख किया गया है कि सेंट्रल बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व समान संख्या में कैसे सुनिश्चित किया जाएगा। संहिता में ईपीएफओ के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ में अजा/अजजा/ओबीसी तथा महिलाओं के समुचित प्रतिनिधित्व की भी कोई रूपरेखा प्रस्तुत नहीं की गई है। असंगठित क्षेत्र बोर्ड (अनॉर्गेनाइज्ड वर्कर्स बोर्ड) में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि अलग-अलग क्षेत्रों/व्यवसायों का प्रतिनिधित्व कैसे सुनिश्चित किया जाएगा।

4. सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों और संरचना को समेकित व सरलीकृत करने की बजाय यह संहिता कई तरह की व्यवस्था खड़ा करना चाहती है और ये भी स्पष्ट नहीं करती कि उनमें से कौन सी व्यवस्था को दूसरी व्यवस्थाओं के मुकाबले वरीयता दी जाएगी। राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड अथवा प्रादेशिक असंगठित क्षेत्र श्रमिक बोर्ड जैसे कुछ मामलों में इन बोर्ड्स के क्रियाकलापों और उत्तरदायित्व को भी स्पष्ट नहीं किया गया है।

5. मंत्रालय द्वारा इस बात का उल्लेख किया गया है कि यह संहिता समग्र सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने पर केंद्रित है मगर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों और संगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए अलग-अलग प्रणालियों और व्यवस्थाओं की रचना इसी उद्देश्य को धराशायी कर देती है। इस संहिता में एक ऐसी न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा के बारे में बात नहीं की गई है जो औपचारिक व अनौपचारिक, किसी भी तरह के व्यवसायों या क्षेत्रों में काम करने वाले सभी मज़दूरों को अनिवार्य रूप से मिल सके।

अध्याय 5: ग्रेच्युटी

6. मज़दूरों के प्रतिनिधियों और स्थायी समिति (स्टैंडिंग कमेटी) ने ये सुझाव दिया है कि ग्रेच्युटी भुगतान के लिए 5 वर्ष तक नौकरी की जो समय सीमा दी गई है उसे घटा कर एक वर्ष तक सीमित कर दिया जाए। ऐसा करने पर ठेका मज़दूरों, मौसमी मज़दूरों, इकाई दर पर काम करने वाले मज़दूरों और निश्चित अवधि के लिए काम करने वाले मज़दूरों अथवा दैनिक/मासिक तनख्वाह पर काम करने वाले मज़दूरों सहित सभी प्रकार के मज़दूरों को इस प्रावधान का लाभ मिल पाएगा। संहिता के मौजूदा मसविदे में ऐसा प्रावधान नहीं किया गया है जिसकी वजह से मज़दूरों की एक विशाल संख्या इस सुविधा से वंचित रह जाएगी।

7. श्रम स्थायी समिति ने ये भी सिफारिश दी है कि संहिता में सुगमतावर्धक प्रावधान शामिल किए जाएं ताकि ठेकेदार द्वारा निर्धारित समय के भीतर ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं कर पाने पर कर्मचारी को ग्रेच्युटी का भुगतान करने के लिए प्रधान नियोक्ता को जवाबदेह ठहराया जा सके। फिलहाल इस संहिता में ठेकेदारों और प्रधान नियोक्ताओं की जिम्मेदारी की स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई है। इस स्पष्टता के अभाव में इन दोनों नियोक्ताओं की जिम्मेदारियां तय करना और मज़दूरों को उनके अधिकारों की अवहेलना की स्थितियों से बचाने की संभावना बहुत कमजोर हो गई है।

अध्याय 6: प्रसूति लाभ

8. संहिता में कहा गया है कि किसी भी महिला को तब तक प्रसूति लाभ का अधिकार नहीं मिलेगा जब तक कि वह संबंधित प्रतिष्ठान में अपने प्रसव की संभावित तारीख से पहले के 12 महीनों के भीतर कम से कम 80 दिन काम ना कर चुकी हो। समस्या ये है कि असंगठित क्षेत्र में पूरे साल काम करने के बावजूद 80 दिन की नौकरी साबित करना भी बहुत मुश्किल होता है। लिहाजा इस संहिता में सार्वभौमिक प्रसूति लाभों की व्यवस्था की जानी चाहिए वर्ना असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली ज्यादातर महिलाओं को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा।

अध्याय 9: असंगठित क्षेत्र मज़दूरों, जिग वर्कर्स एवं प्लेटफार्म वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा

9. असंगठित क्षेत्र मज़दूरों, गिग वर्कर्स और प्लेटफार्म वर्कर्स हेतु सामाजिक सुरक्षा वाले अध्याय में इन मज़दूरों की सामाजिक सुरक्षा से संबंधित योजनाओं व प्रावधानों के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। उदाहरण के लिए, संबंधित उपबंध में कहा गया है कि केंद्र सरकार जिग वर्कर्स और प्लेटफार्म वर्कर्स के लिए उचित सामाजिक सुरक्षा योजना निर्धारित कर सकती है। इसमें जिन श्रेणियों का उल्लेख किया गया है वे बहुत व्यापक और केवल सांकेतिक किस्म की श्रेणियां हैं। वहां वैसी सार्वभौमिक न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था प्रदान करने की बात नहीं की गई है जिसका हमने ऊपर उल्लेख किया है।

10. संहिता में प्रवासी मज़दूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रावधान मुहैया करने के लिए पृथक व्यवस्था या प्रणाली स्थापित करने की भी बात नहीं कही गई है। इसमें अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा की पोर्टेबिल्टी यानी सभी राज्यों में गृह राज्य की भांति सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था नहीं की गई है जो बहुत बड़ी खामी है।

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थिति संहिता, 2020 (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2020)

स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थितियां कायम करने के लिए नियोक्ता की जिम्मेदारी (धारा 23)

मज़दूरों का स्वास्थ्य एवं उचित कार्य परिस्थितियां सुनिश्चित करना मालिकों की जिम्मेदारी है और यह इस विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। विधेयक के इससे संबंधित प्रावधानों को और स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए जिससे मालिकों की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से सुनिश्चित की जा सके क्योंकि इसके बिना वे आसानी से अपनी जिम्मेदारियों से बच निकलेंगे।

प्रतिष्ठानों में कल्याणकारी सुविधाएं इत्यादि (धारा 24)

मजदूरा जिस प्रतिष्ठान में काम करते हैं, वहां उन्हें कल्याणकारी सुविधाएं पाने का एक सुपरिभाषित अधिकार मिला हुआ है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी मज़दूरों को कल्याणकारी सुविधाएं मुहैया कराए। इस अनुच्छेद में इस मद में सरकार की भूमिका को कमजोर कर दिया गया है।

महिलाओं के रोज़गार से संबंधित विशेष प्रावधान धारा (43-44)

* यह विधेयक जेंडर/लैंगिक आधार पर भेदभाव को निषिद्ध घोषित करता है मगर यह घोषणा सिर्फ काम के घंटों से संबंधित प्रावधानों तक ही सीमित है। गौरतलब है कि महिलाओं की भर्ती, तबादले, पदोन्नति आदि अलग-अलग क्षेत्रों में लैंगिक भेदभाव काफी व्यापक है। जहां तक भर्ती, तबादले और पदोन्नति आदि का सवाल है तो इन मामलों में लैंगिक भेदभाव के निषेध का कोई प्रावधान नहीं है। लिहाजा संहिता में सभी प्रकार के लैंगिक/जेंडर आधारित भेदभाव को स्पष्ट रूप से निषिद्ध घोषित किया जाना चाहिए।

* प्रत्येक नियोक्ता की यह जिम्मेदारी हो कि वह कार्यस्थल और प्रतिष्ठान को सभी प्रकार के लैंगिक भेदभाव से मुक्त रखे, महिला मज़दूरों को सुरक्षित वातावरण मुहैया कराए, महिला मज़दूरों के सामने आने वाली समस्याओं से निपटारे के लिए पर्याप्त और प्रभावी उपाय किए जाएं। उदाहरण के लिए, लंबी पालियों या अनिर्धारित पालियों में मजदूरी, जेंडर के आधार पर भेदभाव, अत्याचार, सुरक्षा साधनों का अभाव आदि समस्याओं से निपटने के लिए मालिक पूरा बंदोबस्त करें।

* यह विधेयक गर्भवती महिलाओं के लिए विश्राम के घंटों, सुरक्षा संबंधी सावधानियों, स्वास्थ्य और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने जैसे प्रावधानों पर भी खामोश दिखाई देता है। इन सारे मदों में स्पष्ट प्रावधान किए जाने चाहिए।

अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूरों के ठेकेदारों की जिम्मेदारियां (धारा 59):

यह विधेयक अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूरों के ठेकेदारों की जिम्मेदारियों के बारे में खामोश दिखाई देता है। इसमें ‘‘अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के ठेकेदारों के दायित्व’’ शीर्षक उपबंध अलग से जोड़ा जाना चाहिए।

अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के प्रधान नियोक्ता की जिम्मेदारी

यह विधेयक ऐसी स्थितियों में प्रधान नियोक्ताओं की जिम्मेदारियों और जवाबदेही पर खामोश दिखाई देता है जहां ठेकेदार अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाअधिकार करने में चूक गया है।

‘‘ठेकेदार द्वारा जिम्मेदारियों का निर्वाह न करने की स्थिति में अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के प्रधान नियोक्ता की जिम्मेदारियां’’ शीर्षक के साथ एक अलग उपबंध जोड़ा जाना चाहिए।

सज़ा और जुर्माना: (धारा 94-115)

मौजूदा मसविदे में सजा के तौर पर कैद और जुर्माने की जो मात्रा तय की गई है वह दोषियों को हतोत्साहित करने के लिए प्रर्याप्त नहीं है। लिहाजा विभिन्न उल्लंघनों के लिए सजा और जुर्माने की मात्रा में उचित संशोधन किया जाना चाहिए।

कर्मचारियों द्वारा उल्लंघन (धारा 106)

इस संहिता के अंतर्गत किसी भी कर्मचारी के खिलाफ तब तक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए जब तक चीफ इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर अथवा जिला मजिस्ट्रेट या इस मद में प्राधिकृत इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर द्वारा ऐसा करने का निर्देश ना दिया गया हो। चीफ इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर या जिला मजिस्ट्रेट या प्राधिकृत इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर को भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि किसी मज़दूर के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करने से पहले वह इस बात का भली प्रकार अध्ययन कर लें कि संबंधित कार्यस्थल या खान में काम करने वाले मज़दूर ने वाकई उस उल्लंघन से बचने के लिए समुचित प्रयास या सावधानी बरती थी अथवा नहीं।

संबंधित आरोपी मज़दूर को अपना बचाव पेश करने और उसे अपनी यूनियन/समूह/संगठन से सलाह लेने का समुचित अवसर दिया जाना चाहिए। ऐसी स्थितियों में उसे उचित सुरक्षा भी प्रदान की जानी चाहिए।

किसी खान के मालिक, एजेंट या मैनेजर पर कार्रवाई (धारा 107):

किसी खान के मालिक, एजेंट या मैनेजर को इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर या जिला मजिस्ट्रेट या प्राधिकृत इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर से कोई अनुचित सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए। यह प्रावधान हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर की मज़दूरों के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता व अधिकारों में कमी आती है।

सौजन्य : एक्शन एड

(लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

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