NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गुडगाँव नमाज़ का मुद्दा:साम्प्रदायिक तो है साथ ही बिल्डर द्वारा भूमि के इस्तेमाल का भी मुद्दा भी है
'सार्वजनिक उपयोग' के लिए केवल 6 प्रतिशत भूमि और घरों, दुकानों, कार्यालयों और उद्योग के लिए 67 प्रतिशत भूमि का इस्तेमाल गुड़गांव शहरी योजना के लिए एक आपदा है।
सुबोध वर्मा
10 May 2018
Translated by महेश कुमार
गुडगाँव
Image Courtesy: Hindustan Times

दिल्ली के उपनगर गुड़गांव में सार्वजनिक स्थानों में नमाज (मुसलमानों द्वारा प्रार्थनाओं) की अदायगी में डाली गई बाधा, बीजेपी और उसके संबंधित संगठनों द्वारा निभाई गई विभाजनकारी राजनीति का खुलासा करती है। बीजेपी के मुख्यमंत्री एमएल खट्टर के बयान में कहा गया है कि मुसलमानों को मस्जिदों और ईदगाह में नमाज अदा करनी चाहिए और इस तरह उन्होंने इसमें  आपराधिक बाधा को प्रभावी ढंग से मंजूरी दे दी है।

लेकिन एक प्रश्न जो अनकहा और अनुत्तरित रहता, वह यह है: कि लोगों के लिए प्रार्थनाओं के लिए खाली सार्वजनिक स्थानों का उपयोग क्यों करना आवश्यक हो गया है? जवाब गुड़गांव में शहरी विकास के तरीके में ही निहित है। यह एक ऐसा मॉडल है जो निजी बिल्डरों और डेवलपर्स के साथ उदारीकरण युग के बाद सरकार द्वारा भूमि के बड़े हिस्से को उन्हें सौंपने और अभिजात वर्ग और ऊपरी मध्यम वर्ग को उच्च कीमतों पर इसे 'विकसित' कर बेचने का मॉडल तैयार हुआ। इस तरह के एक विवाद में, सार्वजनिक उपयोगिताओं और भूमि का सार्वजनिक उपयोग हाशिए पर है, क्योंकि ऐसी भूमि पर वापसी काफी कम है। आश्चर्य की बात नहीं है, इस मामले में हरियाणा सरकार गरीबों से इस छिनने के लिए अंधी हो गयी।

इस निति के चलते इसका शिकार सबसे ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय है क्योंकि उनके लिए न तो मस्जिद बनाने की जगह और न ही विकास योजना उन्हें ध्यान में रखा गया है। यह एक सुविधाजनक परिणाम है क्योंकि बिल्डर्स नहीं चाहते हैं कि जमीन ऐसी चीजों में 'बर्बाद' हो, जबकि सांप्रदायिक रूप से दिमागी नौकरशाह और कई निवासी इस पर कोई विरोध नहीं करते हैं।

निजी भूमि का विकास

यहां गुड़गांव के शहरीकरण का इतिहास देना असंभव है, लेकिन कुछ प्रमुख विशेषताओं पर नज़र डालें तो पायेंगे कि 1990 के दशक से, गुड़गांव के आस-पास की भूमि मुख्य रूप से हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुड्डा) द्वारा विकसित की गई है, विभिन्न अन्य सरकारी एजंसियों के सहयोग से। लेकिन हुड्डा, और हरियाणा राज्य सरकार निजी बिल्डरों और डेवलपर्स के अग्रणी बन गये और उन्हें अपने साथ शामिल कर लिया। इससे गुड़गांव के आसपास आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक भूमि उपयोग का विस्फोटक विकास हुआ।

इस विकास की परिभाषा यह थी कि इस तरह के बड़े उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करने के नतीजों की तरफ कोई गंभीर ध्यान नहीं दिया गया था। औद्योगिक इकाइयों को लाखों में श्रमिकों की जरूरत थी। यह मांग कम से कम 10 राज्यों से प्रवासी श्रमिकों द्वारा भरी गई थी। आवासीय भूमि उनके लिए उपलब्ध नहीं थी क्योंकि निजी उपनिवेशवाद दान के कारोबार में नहीं है - वे सस्ते दरों पर जमीन देने के सरकार द्वारा बड़े पैमाने उसे भुना रहे थे। इसलिए श्रमिकों का प्रवाह ज्यादातर गांवों और औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास के छोटे शहरों में घिरे हुए घोंसले में बस गया।

1990 के दशक में शुरू हुई इस प्रक्रिया से सरकार और हरियाणा सरकार में नगर योजनाकार की आँखों को खुलना चाहिए था। लेकिन इससे कहीं दूर, 2000 के दशक में लगातार मास्टर प्लान में बदलाव कर एक विस्फोटक स्थिति पैदा कर दी। 2006 में, एक मसौदा मास्टर प्लान 2021  जारी में किया गया था। जब तक 2007 में अंतिम संस्करण जारी था तब तक 11 क्षेत्रों के लिए भूमि उपयोग सार्वजनिक और अर्ध-सार्वजनिक/सार्वजनिक उपयोगिता/खुली जगह/औद्योगिक से आवासीय और वाणिज्यिक तक को बिना किसी भी स्पष्टीकरण के बदल दिया गया था।

ध्यान दें कि "सार्वजनिक और अर्ध-सार्वजनिक" भूमि उपयोग विकास कोड 600 में परिभाषित किया गया है और इसमें "शैक्षिक, सांस्कृतिक, धार्मिक संस्थानों" के लिए उप-कोड 620 शामिल है। पूजा के स्थान, नमाज की अदायगी के स्थानों सहित इस श्रेणी में आते हैं।

मास्टर प्लान का झुकाव

2010 तक, 2011 में अधिसूचित होने के लिए एक नया मसौदा मास्टर प्लान 2025 जारी किया गया था। इसमें 500 एकड़ कृषि भूमि आवासीय उपयोग में परिवर्तित कर दी गई थी। फिर, 2012 में, एक नया मसौदा मास्टर प्लान 2031 जारी किया गया और अधिसूचित किया गया कि जिसमें अधिसूचना/वाणिज्यिक भूमि में 4570 हेक्टेयर एसईजेड भूमि को परिवर्तित करने के बाद से " क्योंकि एसईजेड के लिए अब कोई रूचि नहीं ले रहा था" क्योंकि अधिसूचना में इसे स्पष्ट रूप से रखा गया था। इसके साथ सार्वजनिक/अर्ध-सार्वजनिक उपयोग के लिए कुछ और भूमि वाणिज्यिक उपयोग में परिवर्तित कर दी गई थी।

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी सरकार के हरियाणा में सत्ता में आने के बाद, एक गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएमडीए) की स्थापना 12 अगस्त 2017 को अधिसूचित अध्यादेश के द्वारा की गई थी। इस तरह यह राज्य सरकार की उत्सुकता को दिखता है कि वह कैसे गुड़गांव के भूमि उपयोग की पूरी प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए जीएमडीए की स्थापना के लिए पारित कानून (विधानसभा द्वारा पारित) के माध्यम से इसमें नहीं जाना चाहते थे। जनवरी 2018 में, अध्यादेश के तहत नियम जारी किए गए थे। कुल मिलाकर, भूमि उपयोग और उसके परिवर्तनों का पूरा मुद्दा अब इस सरकार के साथ निहित है। मुख्यमंत्री खुद इस निकाय के सर्वेसर्वा हैं!

 

प्रवासियों को पूरी तरह से वंचित करना

इस संदर्भ में, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि गुड़गांव में बड़े पैमाने पर प्रवासन मुख्य रूप से कृषि मजदूरों और छोटे किसानों से हुआ था और इसका एक उल्लेखनीय अनुपात मुस्लिम का था। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार गुड़गांव उप-जिला तहसील की शहरी आबादी 2001 में 2.5 लाख से बढ़कर 2011 में 9 लाख हो गई। 2011 में, जिले में लगभग 5 प्रतिशत  मुस्लिम आबादी थी जबकि गुड़गांव शहरी क्षेत्र में लगभग 8 प्रतिशत थी।

चूंकि ओल्ड गुड़गांव क्षेत्र में केवल 22 मस्जिद हैं और न्यू गुड़गांव में एक भी नहीं है, और चूंकि मुसलमान श्रमिक इन मस्जिदों से बहुत दूर औपचारिक और अनौपचारिक इकाइयों में पूरे क्षेत्र में काम करते हैं, इसलिए अप्रयुक्त सार्वजनिक स्थानों में शुक्रवार की नमाज अदा करने की प्रथा खाली भूखंड या मैदान में अपनाई गयी थी। यह बताया गया है कि 106 ऐसे अपरिपक्व नामाज अदा करने की जगहें हैं। इन श्रेणियों में उपस्थिति 100 से 300 तक है।

अगर शहरी योजनाकारों ने मजदूरों के आवास और औद्योगिक इकाइयों के साथ-साथ पूजा या प्रार्थनाओं के लिए नामित स्थानों के साथ घिरा और तर्कसंगत योजना विकसित की होती, तो मुसलमानों को नमाज के लिए जगह आसानी से अपलब्ध कराई जा सकती थी। लेकिन यह कैसे संभव होता जब निजी कॉलोनी बनाने वालों और भवन निर्माण के लालची बादशाह बड़ी कीमतों पर वाणिज्यिक और आवासीय उपयोग के लिए भूमि बेच रहे थे?

Gurgaon Namaz Issue
भाजपा
मनहोर लाल खट्टर
गुड़गांव
हरियाणा
GMDA
हुड्डा

Related Stories

खुले में नमाज़ के विरोध को लेकर गुरुग्राम निवासियों की प्रतिक्रिया

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

“पीड़ित को दोष देने की सोच की वजह से हरियाणा रेप का गढ़ बना”

हरियाणा में ‘रोडवेज़ बचाने’ की लड़ाई तेज़, अन्य विभाग और जनसंगठन भी साथ आए

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

भाजपा शासित राज्य: सार्वजनिक परिवहन का निजीकरण

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार


बाकी खबरें

  • अनिल अंशुमन
    झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 
    12 May 2022
    दो दिवसीय सम्मलेन के विभिन्न सत्रों में आयोजित हुए विमर्शों के माध्यम से कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध जन संस्कृति के हस्तक्षेप को कारगर व धारदार बनाने के साथ-साथ झारखंड की भाषा-संस्कृति व “अखड़ा-…
  • विजय विनीत
    अयोध्या के बाबरी मस्जिद विवाद की शक्ल अख़्तियार करेगा बनारस का ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा?
    12 May 2022
    वाराणसी के ज्ञानवापी प्रकरण में सिविल जज (सीनियर डिविजन) ने लगातार दो दिनों की बहस के बाद कड़ी सुरक्षा के बीच गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि अधिवक्ता कमिश्नर नहीं बदले जाएंगे। उत्तर प्रदेश के…
  • राज वाल्मीकि
    #Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान
    12 May 2022
    सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन पिछले 35 सालों से मैला प्रथा उन्मूलन और सफ़ाई कर्मचारियों की सीवर-सेप्टिक टैंको में हो रही मौतों को रोकने और सफ़ाई कर्मचारियों की मुक्ति तथा पुनर्वास के मुहिम में लगा है। एक्शन-…
  • पीपल्स डिस्पैच
    अल-जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह की क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन में इज़रायली सुरक्षाबलों ने हत्या की
    12 May 2022
    अल जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह (51) की इज़रायली सुरक्षाबलों ने उस वक़्त हत्या कर दी, जब वे क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक स्थित जेनिन शरणार्थी कैंप में इज़रायली सेना द्वारा की जा रही छापेमारी की…
  • बी. सिवरामन
    श्रीलंकाई संकट के समय, क्या कूटनीतिक भूल कर रहा है भारत?
    12 May 2022
    श्रीलंका में सेना की तैनाती के बावजूद 10 मई को कोलंबो में विरोध प्रदर्शन जारी रहा। 11 मई की सुबह भी संसद के सामने विरोध प्रदर्शन हुआ है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License