NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
धर्मांतरण विरोधी कानून को गुजरात हाईकोर्ट का झटका, अगला नंबर यूपी और एमपी का?
गुजरात हाई कोर्ट संवैधानिक अधिकारों की हिफ़ाज़त को लेकर आगे आया है। इससे इस बात की उम्मीद जगी है कि इस तरह का क़ानून बनाने वाले राज्य इस तरह के विभेदकारी कानून लाने से बचेंगे।
सुहित के सेन
24 Aug 2021
धर्मांतरण विरोधी कानून को गुजरात हाईकोर्ट का झटका, अगला नंबर यूपी और एमपी का?
Image Courtesy: India Legal

गुजरात हाई कोर्ट ने 19 अगस्त 2021 को पारित एक अंतरिम आदेश में गुजरात धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की कुछ धाराओं पर रोक लगा दी है। यह जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से दायर उस याचिका के जवाब में जारी किया गया है, जिसमें कहा गया था कि इस साल जून में पारित इस अधिनियम के कुछ हिस्से असंवैधानिक हैं।

उन राज्यों की ओर से इसी तरह के कई क़ानूनों को या तो पारित कर दिया गया था या फिर पारित करने की योजना बनायी जा रही थी, जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सत्ता में है, इस अधिनियम में ख़ास तौर पर शादी के ज़रिये महिलाओं के ‘धोखाधड़ी’ के साथ धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गयी है। सीधे शब्दों में कहा जाये, तो इस अधिनियम के ज़रिये ख़ास तौर पर हिंदू महिलाओं के (लेकिन आख़िरी तौर पर नहीं) मुस्लिम पुरुषों के साथ शादी किये जाने को रोकने की कोशिश की गयी है, जब महिलाओं का शादी करने के चलते धर्मांतरण करवा दिया जाता है।

इससे पहले कि हम हाई कोर्ट के इस अंतरिम स्थगन और इसकी पृष्ठभूमि के निहितार्थों पर पहुंचें, उससे पहले जान लेते हैं कि अदालत ने इस अधिनियम की किन-किन धाराओं पर रोक लगा दी है और ये धारायें क्या कहती हैं। अपना आदेश पारित करते हुए गुजरात न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, "हमारी राय है कि आगे की सुनवाई तक धारा 3, 4a से 4c, 5, 6 और 6a का इस्तेमाल इसलिए नहीं होगा, क्योंकि शादी एक धर्म के व्यक्ति से दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ बल, प्रलोभन या कपटपूर्ण साधनों के बिना विधिपूर्वक की जाती है और इस तरह के विवाह को ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य से विवाह नहीं कहा जा सकता।"

दूसरे शब्दों में, न्यायाधीशों ने हिंदुत्व के दुष्प्रचारकों की ओर से लगातार उठाये जा रहे उस हौवे पर लगाम कस दी है कि हिंदू और मुस्लिम से जुड़े सभी विवाह हिंदुओं को इस्लाम में धर्मांतरित करने की इच्छा से ही प्रेरित होते हैं। हिंदुओं और ईसाइयों के बीच होने वाले विवाह को भी इस अधिनियम के लक्ष्य के दायरे में रखा गया है।

यह संशोधन किसी भी "पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन या ख़ून के रिश्ते वाले रिश्तेदारों, विवाह या गोद लेने से सम्बन्धित किसी अन्य व्यक्ति" को धर्मांतरण से जुड़े विवाह के दोषी व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की इजाज़त देता है। इस अधिनियम में तीन साल के कारावास, जिसे बढ़ाकर पांच तक किया जा सकता है, उसके साथ-साथ न्यूनतम 2,00,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. इसके साथ ही पारिवारिक न्यायालयों या किसी अन्य न्यायालय को इस तरह के विवाह को "निरस्त" करने का अधिकार देता है और उस व्यक्ति पर शादी के पीछे के मक़सद के सिलसिले में सबूत पेश करने का भी बोझ डाल देता है, जिसने धर्मांतरण करवाया है।

यह गुजरात अधिनियम पहली ही नज़र में साफ़ तौर पर कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उनमें से धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (संविधान का अनुच्छेद 25) और निजता का अधिकार (अगस्त 2017 में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा बरक़रार रखा गया और ख़ास तौर पर अनुच्छेद 14, 19 और 21 से लिया गया अधिकार) शामिल हैं। निजता का अधिकार नागरिकों के व्यक्तिगत जीवन में राज्य की ओर से किसी भी तरह की दखलंदाज़ी को खारिज करता है, जब तक कि उसमे सार्वजनिक सुरक्षा या अवैध गतिविधियों के सवाल शामिल न हों।

दरअसल, इससे पहले 6 अगस्त को हुई सुनवाई में पीठ ने गुजरात सरकार और राज्य के महाधिवक्ता को नोटिस जारी करते हुए कहा कि धर्म और निजता की स्वतंत्रता का अधिकार की बुनियाद पर शादीशुदा जोड़े को यह तय करने में सक्षम होना चाहिए कि उन्हें किस धर्म का पालन करना चाहिए।

भाजपा द्वारा बहिष्कार के ज़हरीले एजेंडे को ही इस गुजरात संशोधन अधिनियम से आगे बढ़ाया गया है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने भी इसी तरह के अधिनियम पारित किये हैं। असम, हरियाणा और कर्नाटक में तो और भी बहुत कुछ किया जा रहा है। वे 2019 के चुनाव में भाजपा की जीत और 2018 में उत्तराखंड की तरफ़ से पारित एक अधिनियम से प्रेरित थे।

इस तरह के अधिनियमों का प्राथमिक उद्देश्य मुसलमानों और ईसाईयों को एक हद तक बुरे शख़्स के तौर पर पेश करना है। ईसाई धार्मिक प्रतिष्ठान के अलग-अलग संप्रदायों पर लंबे समय से हिंदुओं और आदिवासियों (हिंदुत्व के दुष्प्रचारक इन्हें हिंदू मानते हैं, हालांकि इनमें ज़्यादातर हिंदू नहीं हैं) को प्रेरणा और प्रलोभन के ज़रिये धर्मांतरित करने का आरोप लगाया जाता रहा है और इस आधार पर उनपर हमले भी किये जाते रहे हैं, जैसा कि 1998-99 में गुजरात के डांग ज़िले में हुआ था।

लेकिन, दकियानूसियों के गिरोह की ओर से नौजवान मुसलमान पुरुषों पर धर्मांतरण के लिए शादी को बतौर हथियार इस्तेमाल किये जाने का आरोप इतना अकल्पनीय है कि इस पर तो अदालत के बाहर हंसा जाना चाहिए। हालांकि,नागरिकों के पर्याप्त हिस्सों में, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो कथित तौर पर शिक्षित हैं, उनके बीच यह खोखला तर्क हमेशा भ्रामक नहीं माना जाता है।, मूढ़ता से गढ़े गये मुहावरे "लव जिहाद" में निहित तर्क का भ्रम इसके बुनियादी शीर्षक से ही दूर हो जाता है।

भारत के जनसांख्यिकीय संतुलन को बदलने के पीछे के मक़सद से हिंदू महिलाओं का धर्म परिवर्तन और विवाह (या शादी और धर्मांतरण) करने वाला तर्क एक ऐसा बेतुका षड्यंत्रकारी सिद्धांत है, जिसे लेकर एक स्पष्ट निष्कर्ष सामने आता है और वह यह है कि जो लोग इस अभियान को चलाते हैं, वे ख़ुद ही इस पर यक़ीन नहीं करते हैं। इस अभियान की शुरुआत ही मुसलमानों पर हमला करने और उन्हें असंतुलित करने के लिए की गयी है, जबकि इस अभियान के ज़रिये संघ परिवार के हिंदू राष्ट्र की लगभग असंभव धारणा को संभव करने की कोशिश की जा रही है। दूसरे शब्दों में, यह एक सत्तावादी और बहुसंख्यकवादी पैंतरेबाज़ी है।

संयोग से फिलहाल के लिए गुजरात हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। इस असंवैधानिक क़ानून के तहत अभी तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकी है, किसी निर्दोष को सताया नहीं गया है। निःसंदेह यह अंतरिम आदेश है। उम्मीद की जा सकती है कि जैसे-जैसे सुनवाई आगे बढ़ेगी, यह भावना और मज़बूत होती जायेगी। अगर चीज़ें गुजरात सरकार के हिसाब से आगे नहीं बढ़ती हैं, तो गुजरात सरकार इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है।

हालांकि, अभी कुछ साफ़ नहीं है, मगर यह अंतरिम आदेश इस मामले से जुड़े नागरिकों या संगठनों के लिए एक मज़बूत मिसाल पेश करते हुए एक रास्ता देता है। उत्तर प्रदेश के क़ानून को इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है, जबकि उत्तराखंड के उस क़ानून को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गयी है। शीर्ष अदालत इस साल की शुरुआत में दोनों क़ानूनों की जांच को लेकर सहमत हुई थी।

इस समय दोनों पर रोक है, हालांकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वयस्कों को अपने साथी चुनने के लिए स्वतंत्र होने और कई याचिकाओं को स्वीकार करते समय की गयी शुरुआती टिप्पणियों में ऐसे व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने के पक्ष में बात की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी कई अंतर्धार्मिक जोड़ों को राहत दी है। मध्य प्रदेश अधिनियम के ख़िलाफ़ भी चुनौती दी जा सकती है और दी जानी चाहिए।

गुजरात हाई कोर्ट संवैधानिक अधिकारों की हिफ़ाज़त को लेकर आगे आया है। इससे इस बात की उम्मीद जगी है कि इस तरह का क़ानून बनाने वाले राज्य इस तरह के विभेदकारी कानून लाने से बचेंगे।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। ऊपर लिखे विचार उनके व्यक्तिगत हैं। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Gujarat Anti-Conversion Law Takes Hit: Are UP, MP Next?

anti-conversion laws
Gujarat HC conversion
freedom of conscience
Religion in India
Supreme Court

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License