NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
हिमाचल किसान सभा की बड़ी जीत, भूमिहीन और छोटे किसानों को मिलेगी उनकी जमीन
हिमाचल में भूमिहीन किसानों और छोटे कब्जे धारकों को उजाड़ा नहीं जाएगा गुरुवार के अपने निर्णय में हिमाचल हाईकोर्ट ने कहा कि इसको लेकर सरकार एक नीति बनाए जिससे इन किसानों के कब्जे को नियमित किया जा सके।
मुकुंद झा
28 Dec 2018
किसान आन्दोलन

हिमाचल हाईकोर्ट ने भूमिहीनों व छोटे कब्जे धारकों को नियमित करने के लिए सरकार से नीति बनाने के  लिए कहा है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भूमिहीन और छोटे किसानों को कब्जा की गई सरकारी भूमि से बेदखल करने के बजाय सरकार इस पर विचार करे कि उनके कब्जे की जमीन को क़ानूनी रूप से उन्हें कैसे दिया जा सकता है. इसे लेकर सरकार ने एक ड्राफ्ट रूल्स 31 मार्च, 2019 तक अंतिम रूप से देने को कहा है.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कोर्ट के इस निर्णय को किसान आन्दोलन कि बड़ी जीत बतया और यह कहा कि सरकार का यह झुकाव हिमाचल किसान सभा और हमारे संघर्ष का परिणाम है. यह फैसला  गरीब किसानो के हक़ में है. सरकार को स्पष्ट आदेश है कि वो किसानो के लिए  पॉलिसी बनाए। अब तो सरकार को समझना ही होगा कि किसानों का संघर्ष सही था.

कोर्ट  के निर्णय के महत्वपूर्ण बिन्दु :

प्रदेश में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जो को हटाये जाने के मामले में प्रदेश हाई कोर्ट ने यथा स्थिति बनाए रखने के आदेश दिए है. न्यायधीश सूर्या कान्त और अजय मोहन गोएल की खंडपीठ ने उन सभी मामलो का निपटारा करते हुए यह आदेश पारित किया जिनमे लैंड रेवन्यू अधिनियम की धारा 163 के तहत सरकारी भूमि से बेदखली के आदेश पारित किए थे.

हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह आगामी 31 मार्च तक सरकारी भूमि पर अवैध कब्जाधारियो के लिए पॉलिसी तैयार करे और तब तक अवैध कब्जों को हटाये जाने के बारे में यथा स्थिति बनाए रखने को कहा है.

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित मामलों का निपटारा करते हुए कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अगर कब्जे वाली जमीन सड़क के किनारे है तो व्यक्तिगत हित के बजाय जनहित को प्राथमिकता दी जाए.

 कई ऐसे भी लोग है जिन्होंने सत्ता के सरक्षण से सैकड़ो बीघा जमीनी कब्ज़ा कर रखी है. इसपर कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि पहले से ही जिनके पास अपनी जमीन है उसके बाबजूद भी जिन्होंने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर रखा है, उन लोगों को इस पॉलिसी का लाभ न दिया जाए.

 कोर्ट ने साफ किया कि अगर इस पॉलिसी का दुरुपयोग होता है और यह कानून तोड़ने वालो के संरक्षण का माध्यम बनता है तो सरकार इस पॉलिसी को रद्द कर सकती है. इसके अलावा कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार की नई नीति बनाते समय यह ध्यान रखने को कहा कि यह कानून के दायरे में हो और  वन संरक्षण अधिनियम 1980 के विपरीत न हो.

पूरा मामला क्या था ?

इस साल की शुरुआत में अदालत ने शिमला के कोटखाई के चैथला गांव के एक निवासी द्वारा तत्कालीन मुख्य न्यायधीश संजय करोल को लिखे गए पत्र के आधार पर कोर्ट ने इस मामले का खुद ही संज्ञान लिया था.

पत्र में आरोप लगाया गया था कि शिमला के कई इलाकों  के तकरीबन 40 निवासियों ने तकरीबन 500 बीघा सरकारी जमीन पर सेब के बगीचे उगाए है. बगीचे लगाने के लिए उन्होंने देवर के पेड़ों को काटा था।

हाई कोर्ट ने इस पर जाँच करने के लिए एक कमेटी बनाया था. जिसमें  देबश्वेता (आईएएस), सौम्या (आईपीएस) और आलोक नगर के मुख्य वन संरक्षक  शामिल थे. इस कमेटी को उन 13 लोगों पर जांच करनी थी, जिन्होंने लगभग 280 एकड़ वन भूमि का क्रमण किया था.

9 मई को अतिरिक्त डीसी (शिमला) देबश्वेता की अगुवाई वाली एसआईटी ने उच्च न्यायलय में अपनी रिपोर्ट पेश की थी जिसमें बताया गया था कि 13 लोगों में से आठ लोगों द्वारा किए गए सेब क्षेत्र के अतिक्रमण को पहले ही हटा दिया गया है.

 उच्च न्यायालय के आदेशों को लागू करने के लिए शिमला के रोहड़ू उप-प्रभाग में वन और राजस्व विभाग की संयुक्त टीमों द्वारा सैकड़ों सेब के पौधों को काटकर अवैध वन अतिक्रमणों को हटाने के लिए अभियान चलाया गया  था.

वन अतिक्रमणों को गंभीरता से लेते हुए, अदालत ने 21 जुलाई को कहा था, “यह अत्यंत खेदजनक है कि इस न्यायालय द्वारा बार-बार आदेश और गंभीर अभियोग के बावजूद, राज्य के अधिकारियों ने इसे लागू करने की परवाह नहीं की है। यह अदालत केवल आदेश पारित कर सकती है और अधिकारियों पर जिम्मेदारी है कि वह उच्च न्यायालय के आदेशों का  पालन करवाए. यदि आदेश का पालन नहीं किया जाता है, तो सरकार को इसके खिलाफ कोई ठोस कदम उठाना चाहिए |

इसके बाद शिमला जिले के कई गाँव में जंगलों या सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण हटाने के लिए कुफरी (शिमला) में स्थित भारतीय सेना द्वारा स्थापित इको-टास्क फोर्स को शामिल किया गया. जिसको लेकर कई लोगो ने कई सवाल उठाए थे.

कई पर्यावरणविदों ने इस आदेश को "बचकाना" करार दिया था, क्योंकि उन्हें लगा कि फल देने वाले पेड़ों को नहीं काटा जाना चाहिए। उनके अनुसार, पेड़ों की रक्षा की जा सकती थी और अतिक्रमणों को हटाकर वन विभाग को सौंप दिया जा सकता था। उनका मानना था कि पेड़ों को काटना अवैज्ञानिक और पर्यावरण विरोधी है। हिमाचल किसान सभा (HKS) ने भी इस फैसले पर नाराजगी जताई थी और सरकार से सेब के पेड़ों की सुरक्षा का वैकल्पिक रास्ता खोजने को कहा था।

किसान सभा और माकपा ने कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया  
किसान सभा और माकपा  शुरू से ही सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रहे थे उन्होंने इसको लेकर कई दिनों तक लगातार विरोध प्रदर्शन किये  थे. किसान सभा का कहना था सरकार बड़े कब्जेदारों को बचा रही है और छोटे किसान जो वन कि जमीन पर बागबानी कर अपना जीवनयापन कर रहे है उनको उजड़ा रही है. इस दौरान माकपा और किसान सभा के नेताओ पर सरकारी काम में बाधा पहुँचाने को लेकर मुकदमे भी दर्ज कराए गए फिर भी वो अपने बातो पर कायम रहे.

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, गुरुवार को आए महत्वपूर्ण फैसले से लगता है कि कई लोग खुश हुए हैं जिन्होंने पहले फल देने वाले पेड़ों को काटने पर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी। हिमाचल किसान सभा के सदस्य और शिमला के पूर्व मेयर संजय चौहान ने न्यूज़क्लिक को बताया , “यह निर्णय हमारे पक्ष में है, और हम इसका स्वागत करते हैं। हम मांग कर रहे थे कि गरीब किसानों को पांच बीघा तक का जमीन दिया जाए, और बड़े अतिक्रमणों को हटाकर वन विभाग को सौंप दिया जाए। सरकार को कोर्ट के इस फैसले के बाद ऐसी नीतियों को बनाकर जल्द लागू करना चाहिए और हमें खुशी है कि माननीय उच्च न्यायालय ने हमारे रुख को सही माना  है और उसको लागू करने के लिए निति बनाने के लिए कहा है.

 

Himachal Pradesh
AIKS
himachal kisan SBHA
farmers protest

Related Stories

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 

छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस

डीवाईएफ़आई ने भारत में धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए संयुक्त संघर्ष का आह्वान किया

लखीमपुर खीरी हत्याकांड: आशीष मिश्रा के साथियों की ज़मानत ख़ारिज, मंत्री टेनी के आचरण पर कोर्ट की तीखी टिप्पणी

युद्ध, खाद्यान्न और औपनिवेशीकरण

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

हिमाचल: प्राइवेट स्कूलों में फ़ीस वृद्धि के विरुद्ध अभिभावकों का ज़ोरदार प्रदर्शन, मिला आश्वासन 

‘तमिलनाडु सरकार मंदिर की ज़मीन पर रहने वाले लोगों पर हमले बंद करे’

विभाजनकारी चंडीगढ़ मुद्दे का सच और केंद्र की विनाशकारी मंशा


बाकी खबरें

  • उपेंद्र स्वामी
    दुनिया भर की: गर्मी व सूखे से मचेगा हाहाकार
    29 Apr 2022
    जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के कई इलाके इस समय भीषण सूखे की चपेट में हैं। सूखे के कारण लोगों के पलायन में 200 फीसदी वृद्धि होने का अनुमान है।
  • भाषा
    दिल्ली दंगा : अदालत ने ख़ालिद की ज़मानत पर सुनवाई टाली, इमाम की याचिका पर पुलिस का रुख़ पूछा
    29 Apr 2022
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने देशद्रोह के कानून की संवैधानिक वैधता पर उच्चतम न्यायालय के समक्ष आगामी सुनवाई के मद्देनजर सुनवाई टाल दी और इसी मामले में शरजील इमाम की जमानत अर्जी पर दिल्ली पुलिस का रुख पूछा।
  • विजय विनीत
    इफ़्तार को मुद्दा बनाने वाले बीएचयू को क्यों बनाना चाहते हैं सांप्रदायिकता की फैक्ट्री?
    29 Apr 2022
    "बवाल उस समय नहीं मचा जब बीएचयू के कुलपति ने परिसर स्थित विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन और अनुष्ठान किया। उस समय उन पर हिन्दूवाद के आरोप चस्पा नहीं हुए। आज वो सामाजिक समरसता के लिए आयोजित इफ़्तार…
  • अब्दुल अलीम जाफ़री
    उत्तर प्रदेश: बुद्धिजीवियों का आरोप राज्य में धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने का फ़ैसला मुसलमानों पर हमला है
    29 Apr 2022
    राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों द्वारा धार्मिक उत्सवों का राजनीतिकरण देश के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देगा।
  • कुमुदिनी पति
    नई शिक्षा नीति से सधेगा काॅरपोरेट हित
    29 Apr 2022
    दरअसल शिक्षा के क्षेत्र में जिस तरह से सरकार द्वारा बिना संसद में बहस कराए ताबड़तोड़ काॅरपोरेटाइज़ेशन और निजीकरण किया जा रहा है, उससे पूरे शैक्षणिक जगत में असंतोष व्याप्त है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License