NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
हरियाणा: महापंचायतों तले प्रगतिशील सामाजिक बदलाव की तैयार होती 'ज़मीन'
राज्य में कई जगहों पर बड़ी महापंचायतें आयोजित की जा रही हैं जो गणतंत्र दिवस के विवाद के बाद किसानों के आंदोलन को नया जीवन दे रही हैं।
रौनक छाबड़ा
13 Feb 2021
Translated by महेश कुमार
हरियाणा
7 फरवरी को, भिवानी के पास चरखी-दादरी राष्ट्रीय राजमार्ग के कितलाना टोल प्लाजा में आयोजित महापंचायत में किसानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। चित्र सौजन्य–फेसबुक

नई दिल्ली: तीन कृषि कानूनों के खिलाफ उठा आंदोलन अब हरियाणा में एक बड़े पैमाने के जन आंदोलन तब्दील होता नज़र आ रहा है, जमीन पर हो रहे इस तरह के बदलाव ने सामाजिक और राजनीतिक नेताओं को राज्य में संभावित प्रगतिशील बदलाव के रूप में देखने के लिए प्रेरित किया है जिस राज्य पर अन्यथा दमनकारी सामाजिक व्यवस्था का आरोप रहा है।

राष्ट्रीय राजधानी में गणतंत्र दिवस पर हुए विवाद के बाद, जब किसानों की एक टुकड़ी लाल किले में घुस गई थी, जिससे दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन के समाप्त होने का डर पैदा हो गया था, तब उत्तर भारत की समुदाय आधारित गाँवों की खाप, किसान आंदोलन को जीवित रखने के लिए उसमें कूद गई थी। उन्होंने दिल्ली की सीमा पर चल रहे आंदोलन- सिंघू, टिकरी, गाजीपुर-में राशन और दैनिक जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति के साथ संगठित रूप से बड़ी भीड़ के साथ आन्दोलन को ज़िंदा कर दिया। 

आंदोलन के केंद्र में अब वे बड़ी महापंचायतें हैं जो विशेष रूप से हरियाणा और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में आयोजित की जा रही हैं।

अखिल भारतीय किसान सभा, हरियाणा के उपाध्यक्ष इंद्रजीत सिंह ने समझाया कि क्यों उनके द्वारा आयोजित खाप और महापंचायतें "मोदी सरकार के हमले" के खिलाफ किसानों में "भरे गुस्से" को संगठित करने का माध्यम बनी हैं, वह इसलिए क्योंकि "कृषि संकट गहरा" गया है।

उन्होंने कहा कि "हमें यह समझने की ज़रूरत है कि किसानों का एक बड़ा हिस्सा यूनियनों की पकड़ से बाहर है और ऐसे समय में जब एक जन आंदोलन का निर्माण हो रहा है, तो केवल सामाजिक संगठन ही वे मंच हैं, विशेष रूप से हरियाणा ग्रामीण इलाकों में, जिन्हे खाप और पंचायत कहा जाता है ”।

हरियाणा में अब तक चार बड़ी सभाएँ या महापंचायतें हो चुकी हैं, जिसमें सिर्फ किसानों ने नहीं बल्कि अन्य आर्थिक समूहों ने भी हिस्सा लिया है।

एक किसान महापंचायत, जिसमें भारतीय किसान यूनियन (BKU) - यूपी के नेता राकेश टिकैत भी शामिल थे, का आयोजन 3 फरवरी को जींद जिले के गाँव कंडेला में किया गया था; उसी दिन जींद-पटियाला राजमार्ग पर खटकर टोल प्लाजा में महापंचायत का आयोजन किया गया था। इसी तरह, चार दिन बाद 7 फरवरी को, किसानों ने भिवानी के निकट चरखी दादरी-भिवानी राष्ट्रीय राजमार्ग पर कितलाना टोल प्लाजा पर महापंचायत में भाग लिया और मेवात इलाके के सुनहेड़ा में भी बड़ी सभा का आयोजन हुआ था।

इसी सप्ताह कुरुक्षेत्र जिले में मंगलवार को एक किसानों की सभा का आयोजन किया गया था, जबकि एक अन्य महापंचायत शुक्रवार को बहादुरगढ़ में की गई जो टीकरी सीमा से बहुत दूर नहीं है।

भौगोलिक स्थानों की दूरियों के बावजूद, महापंचायतों में भारी भीड़ नज़र आई। अपने समुदाय की  खाप के प्रमुख सोमवीर सांगवान ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “अब तक आयोजित सभी  महापंचायतों ने काले कनून के विरोध में उठे आंदोलन को एक जन-आंदोलन में तब्दील करने का अहद उठाया है। जब भी और कहीं भी, कोई सभा बुलाई जाती है, इन महापंचायतों में भीड़ 20,000 से 30,000 की संख्या को आसानी से छू जाती है।”

चरखी दादरी विधानसभा सीट के एक विधायक ने विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए हरियाणा पशुधन बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। सांगवान ने कहा कि 7 फरवरी को कितलाना टोल प्लाजा में "50,000" की भीड़ थी। उन्होंने कहा, "हरियाणा की 36 बिरादरी का बच्चा-बच्चा आंदोलन में शमिल हो गया है"।

हरियाणा की महिला आंदोलन की नेता जगमती सांगवान ने इसकी पुष्टि की कि “किसानों की समस्याओं पर आयोजित होने वाली महापंचायतों में बड़ी संख्या में महिलाएँ भी भाग ले रही हैं। इसी तरह, दिल्ली की सीमाओं पर जारी आंदोलन में शामिल होने वाली महिलाओं की संख्या भी हाल के दिनों में बढ़ी है, ”उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया।

यह पूछे जाने पर कि इतने बड़े पैमाने पर महिलाओं की भागीदारी कैसे संभव हो पाई, यह जानते हुए कि राज्य में पितृसत्तात्मक व्यवस्था प्रबल है- और खापों ने इस व्यवस्था को और अधिक प्रबल बनाया है, उन्होंने इसके जवाब में कहा कि, "ऐसा इसलिए है क्योंकि हरियाणा में महिलाएं खेती के साथ आर्थिक रूप से अधिक जुड़ी हुई हैं और इसलिए एक ऐसी भावना काम कर रही है कि महिलाओं को अपना गुस्सा व्यक्त करने के मामले में पीछे नहीं छोड़ा जा सकता है।”

उनके अनुसार, यही कारण है कि जो दो समूह-यानि महिलाएं और खाप–हमेशा पारंपरिक रूप से अधिक सामाजिक स्वतंत्रता के लिए एक-दूसरे के अंतरर्विरोधी रहे हैं, अब मंच साझा करने के लिए एक साथ आ रहे हैं।

उन्होंने बताया कि "किसान आंदोलन एक ऐसी उपजाऊ भूमि तैयार कर रहा है, जो आने वाले समय में हरियाणा के समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को एक प्रगतिशील मोड़ देगा," उन्होंने आगे कहा कि विरोध स्थलों पर बदलते सामाजिक व्यवहार इसके उदाहरण हैं जहां महिलाएं "गरिमा के साथ अपनी आवाज़ बुलंद कर रही हैं।"

लिंग विभाजन के साथ आर्थिक विभाजन भी क्षीण होते दिख रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन (चादुनी) के संगठन सचिव हरपाल सिंह ने बताया कि “हरियाणा की महापंचायतों में सिर्फ किसान ही नहीं बल्कि भूमिहीन मजदूर और वेतनभोगी लोग भी शामिल हो रहे हैं। क्योंकि वे सभी महसूस कर रहे हैं कि उनकी आजीविका भी-किसी न किसी तरह से-इन कृषि-कानूनों से प्रभावित होगी।”

सिंह के मुताबिक, यह केवल विभिन्न तबकों की भागीदारी है जो हरियाणा के गांवों में बड़ी भीड़ का कारण है क्योंकि वे जान गए हैं कि इन क़ानूनों का असर केवल किसानों पर ही नहीं बल्कि  उपभोक्ताओं पर भी नकारात्मक होगा।

महापंचायतों में भीड़ की सामाजिक संरचना के बारे में पूछे जाने पर, इंद्रजीत सिंह ने बताया कि "भीड़ जिसे दशकों बाद देखा जा रहा है" वह किसी विशेष समुदाय से नहीं हैं, इसलिए इस तरह की भीड़ विभिन्न समूहों के बीच विरोधाभास के समाधान का काम कर रही हैं- हालांकि वह "केवल अस्थायी है।”

उन्होंने बताया, ''अगर आंदोलन चलता रहा तो निश्चित रूप से हरियाणा के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में बदलाव आएगा। जन-आंदोलन ऐसे ही काम करता है-वे विभिन्न वर्गों को एक साथ लाते हैं और इस तरह की प्रक्रिया हमेशा कुछ नया बनाने में मदद करती हैं।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट यहां नीचे क्लिक कर पढ़ी जा सकती है-

Haryana: Underneath Mahapanchayats, a ‘Fertile Land’ for Bringing Progressive Social Change

Haryana
Mahapanchayat
farmers protest
Khaps
Bharatiya Kisan Union Chaduni
All India Kisan Sabha
Bharatiya Kisan Union
farmers movement
Haryana Farmers
rakesh tikait
Farm Laws
Kisan Mahapanchayat

Related Stories

हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

हड़ताल के कारण हरियाणा में सार्वजनिक बस सेवा ठप, पंजाब में बैंक सेवाएं प्रभावित

झारखंड: नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी जन सत्याग्रह जारी, संकल्प दिवस में शामिल हुए राकेश टिकैत

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

हरियाणा: आंगनबाड़ी कर्मियों का विधानसभा मार्च, पुलिस ने किया बलप्रयोग, कई जगह पुलिस और कार्यकर्ता हुए आमने-सामने

हरियाणा : आंगनवाड़ी कर्मचारियों की हड़ताल 3 महीने से जारी, संगठनों ने सरकार से की बातचीत शुरू करने की मांग

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

यूपी चुनाव में भाजपा विपक्ष से नहीं, हारेगी तो सिर्फ जनता से!


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा
    27 May 2022
    सेक्स वर्कर्स को ज़्यादातर अपराधियों के रूप में देखा जाता है। समाज और पुलिस उनके साथ असंवेदशील व्यवहार करती है, उन्हें तिरस्कार तक का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लाखों सेक्स…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    अब अजमेर शरीफ निशाने पर! खुदाई कब तक मोदी जी?
    27 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं हिंदुत्ववादी संगठन महाराणा प्रताप सेना के दावे की जिसमे उन्होंने कहा है कि अजमेर शरीफ भगवान शिव को समर्पित मंदिर…
  • पीपल्स डिस्पैच
    जॉर्ज फ्लॉय्ड की मौत के 2 साल बाद क्या अमेरिका में कुछ बदलाव आया?
    27 May 2022
    ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में प्राप्त हुई, फिर गवाईं गईं चीज़ें बताती हैं कि पूंजीवाद और अमेरिकी समाज के ताने-बाने में कितनी गहराई से नस्लभेद घुसा हुआ है।
  • सौम्यदीप चटर्जी
    भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन
    27 May 2022
    चूंकि भारत ‘अमृत महोत्सव' के साथ स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है, ऐसे में एक निष्क्रिय संसद की स्पष्ट विडंबना को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पूर्वोत्तर के 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए गैजेट उपलब्ध नहीं रहा
    27 May 2022
    ये डिजिटल डिवाइड सबसे ज़्यादा असम, मणिपुर और मेघालय में रहा है, जहां 48 फ़ीसदी छात्रों के घर में कोई डिजिटल डिवाइस नहीं था। एनएएस 2021 का सर्वे तीसरी, पांचवीं, आठवीं व दसवीं कक्षा के लिए किया गया था।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License