NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
सोशल मीडिया
भारत
ज़ोरों से हांफ रहा है भारतीय मीडिया। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पहुंचा 150वें नंबर पर
भारतीय मीडिया का स्तर लगातार नीचे गिर रहा है, वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 150वें नंबर पर पहुंच गया है।
कुश अंबेडकरवादी
23 May 2022
media

वैश्विक मिडिया निगरानीकर्ता की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय मीडिया का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। जनता की नज़र में पहले से नीचे गिरी हुई मीडिया को वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों की मीडिया की सूची में 150वें नंबर पर रखा है। इससे पहले भी भारतीय मीडिया की स्थिति अच्छी नहीं थी। 2014 में भाजपा की सरकार आने से पहले 2012 में नंबर 131 था यानि की भारतीय मिडिया पहले घुटनों पर था और अब सीधा जमीन पर पेट के बल लेट गया है। भारतीय मीडिया के 150 नंबर पर आने पर काफी हाय तौबा मचाई जा रही है, काफी पत्रकार कह रहे है की 2014 के बाद मीडिया का गला घोंटा जा रहा है। पत्रकारों का कहना है कि साल 2014 से पहले 131 नंबर पर हांफ तो रहा ही था, हकीकत में समस्या वो नहीं होती जो बताई जाती है समस्या वो होती है जो छिपाई जाती है। सत्तापक्ष को दोष देकर आप अपने जातिवादी चरित्र को छिपा नहीं सकते हो, मीडिया के गिरते स्तर में समस्या ये नहीं है की भारतीय मीडिया 150 नंबर तक कैसे गिरा। समस्या ये है की आप पहले भी 131 नंबर पर ही क्यों थे?

स्कूली बच्चों का भी परीक्षा लेते समय एक पास होने का मानक तय होता है कि यदि आपके एग्जाम में 35 नंबर है तो आप पास है यदि इससे कम है तो आप फेल हैं। अब फेल होने के बाद इसपर क्या जिरह करनी कि नंबर 10 आये या 15 आये, यदि चर्चा करनी है तो इस बात पर करनी चाहिए की फ़ेल क्यों हुए न की इस बात पर की 131 नंबर पर आकर फ़ेल हुए या 150 नंबर पर आकर फ़ेल हुए। यदि आप सिर्फ 131 से 150 पर आने की समस्या पर ही चर्चा करना चाहते हो तो इसका मतलब है आप अपनी बीमारी को ठीक नहीं करना चाहते बल्कि उसे छिपाना चाहते हो, लेकिन याद रखिये छिपाने से बीमारी कभी ठीक नहीं होती बल्कि और बढ़ती है।

चलिए भारतीय मीडिया पर भारत के संविधान निर्माता डॉ बी आर आंबेडकर की राय पढ़ लेते है डॉ आंबेडकर कहते है "भारत में पत्रकारिता पहले एक पेशा थी। अब वह एक व्यापार बन गई है। अख़बार चलाने वालों को नैतिकता से उतना ही मतलब रहता है जितना कि किसी साबुन बनाने वाले को। पत्रकारिता स्वयं को जनता के जिम्मेदार सलाहकार के रूप में नहीं देखती। भारत में पत्रकार यह नहीं मानते कि बिना किसी प्रयोजन के समाचार देना, निर्भयतापूर्वक उन लोगों की निंदा करना जो गलत रास्ते पर जा रहे हों– फिर चाहे वे कितने ही शक्तिशाली क्यों न हों, पूरे समुदाय के हितों की रक्षा करने वाली नीति को प्रतिपादित करना उनका पहला और प्राथमिक कर्तव्य है। व्यक्ति पूजा उनका मुख्य कर्तव्य बन गया है। भारतीय प्रेस में समाचार को सनसनीखेज बनाना, तार्किक विचारों के स्थान पर अतार्किक जुनूनी बातें लिखना और जिम्मेदार लोगों की बुद्धि को जाग्रत करने के बजाय गैर–जिम्मेदार लोगों की भावनाएं भड़काना आम बात हैं। व्यक्ति पूजा की खातिर देश के हितों की इतनी विवेकहीन बलि इसके पहले कभी नहीं दी गई। व्यक्ति पूजा कभी इतनी अंधी नहीं थी जितनी कि वह आज के भारत में है।

मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि इसके कुछ सम्मानित अपवाद हैं, परंतु उनकी संख्या बहुत कम है और उनकी आवाज़ कभी सुनी नहीं जाती" यानि की जिन्हे आज भारतीय मीडिया में व्यक्ति पूजा चरम पर लग रही है तो उन्हें ये समझ लेना चाहिए की ये समस्या कोई नई नहीं है। बाबा साहेब आंबेडकर ने 1951 में संसद से दिए अपने इस्तीफे के कारणों में भारतीय मीडिया को भी दोषी ठहराया था। भारतीय मीडिया को बाबा साहेब आंबेडकर ब्राह्मणों के वर्चस्व वाला मीडिया कहते थे जो की पूर्वाग्रह से ग्रसित और पक्षपाती,जातिवादी है। ये सब वो बाते है जिनसे भारत के संविधान निर्माता भारत की आज़ादी के तुरंत बाद आगाह कर रहे थे, जिस मीडिया पर डॉ आंबेडकर आज से 100 साल पहले जातिवादी, ब्राह्मणवादी होने का आरोप लगा रहे थे क्या वो भारतीय मीडिया आज बदल गया है? क्या उसने विविधिताओं को अपना लिया है समाज के विभिन्न वर्गों को प्रतिनिधित्व दे दिया है या वही लोग आज भी मीडिया को चला रहे है जिनका वर्चस्व सदियों से चलता आ रहा है? इसके लिए आप तमाम मीडिया में जाति भागीदारी को लेकर हुए तमाम सर्वे देख सकते है जो बताते है की भारतीय मीडिया में आज भी 90 प्रतिशत सवर्ण जाति के लोग है जो इसको चला रहे है। देश के 7.5 प्रतिशत आदिवासी, 16 प्रतिशत दलित और 44 से 50 प्रतिशत के बीच ओबीसी समाज को आप प्रतिनिधित्व ही देना नहीं चाहते। टीवी डिबेट चाहे किसी भी मुद्दें की हो राजनीती,आर्थिक,सामाजिक या अंतरिक्ष की उसमे भी पुरे पैनल में सवर्ण जाति के लोग ही बैठते है और ये मैं नहीं आक्सफैम का 2018 का सर्वे बताता है यूपी चुनाव के दौरान मैं स्वयं टीवी डिबेट देखकर हैरान था की दलितों के मुद्दे, दलितों के वोट किधर जायेंगे जैसे विषयों पर भी पुरे पैनल में दलित नहीं होते थे।

एक ही खास वर्ग के लोग सबका प्रतिनिधित्व करते दिखते थे। मीडिया के इसी जातिवादी चरित्र को लेकर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ट्वीट के माध्यम से लिखते है की "अगर मीडिया में एक खास तबके के लोग रहेंगे तो खास तरह का नजरिया ही चलेगा" जब पुरे मीडिया को एक ही प्रकार के लोग चला रहे हो तो उनसे आप नैतिकता, वैचारिक स्वतन्त्रता,विविधता, पत्रकारिता के मापदंडों की उम्मीद कैसे कर सकते हो? डॉ आंबेडकर की उस दौर में कही गयी बाते आज के मीडिया पर भी हूबहू लागु होती है यानि की भारतीय मीडिया ने देश की आज़ादी से लेकर अब तक अपने चरित्र में कभी सुधार किया ही नहीं इसलिए आज आज़ादी के 70 साल बाद भी हम इस पर चर्चा कर रहे है की हम 131 से 150 पर कैसे आ गए क्या ये हास्यास्पद नहीं है? इसलिए उचित गोदी में चढ़ने को आतुर 131 नंबर वाले पत्रकारों को दूसरी तरफ की गोदी में चढ़े पत्रकारों को मीडिया के गिरते स्तर का दोषी ठहराना ठीक नहीं है क्योंकि यहाँ हमाम में सब नंगे है यहाँ हर कोई किसी न किसी की गोदी में चढ़ा हुआ है. इसलिए जिस स्वतन्त्र और निष्पक्ष मीडिया की हवाई बातें की जा रही है वो गधे के सींगों की तरह है जो कभी रही ही नहीं. आदर्शवादी पत्रकारिता जैसी कोई चीज भारत ने कभी नहीं रही।

ये बात साल 1920 में लगभग आज से 100 साल से भी पहले बाबा साहेब आंबेडकर ने जान ली थी कि भारतीय मीडिया अगर किसी के इर्द गिर्द घूमता हैं या घूमेगा तो वो सवर्ण और पूंजीपति ही होंगे।

अपने निजी हितों की खातिर खास तबके के एंकर से लेकर खास तबके के संपादक तक हर कोई अपने अपने खास नजरियों को लेकर झूठ परोसने में लगा हुआ हैं।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं बहुजन आंदोलनों के जानकार हैं)

Godi Media
India press freedom

Related Stories

ज़ी न्यूज़ के एडिटर इन चीफ चार साल पुराने वीडियो से पाकिस्तान को ललकार रहे हैं!


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License