NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
जी.डी.पी. बढ़ोतरी दर: एक काँटों का ताज
नौकरियां नहीं हैं, श्रमिको की मज़दूरी ठहरी हुई है और किसान कृषि उत्पाद की बेहतर कीमतों की माँग कर रहे हैं फिर भी अजीब बात है कि जीडीपी की बढ़ी दर को सराहा जा रहा हैI
सुबोध वर्मा
03 Sep 2018
Translated by महेश कुमार
GDP Growth

सरकारी हलकों में उत्सव मनाया जा रहा है और ज़ाहिर है मुख्यधारा के मीडिया में भी कि 2018-19 (अप्रैल से जून 2018) की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में 8.2 प्रतिशत तक पहुँच गई है (अप्रैल से जून 2017)। "मोदी जी के दक्ष नेतृत्व" पर बातचीत और ट्वीट्स जारी है और भारत को "अद्वितीय विकास के मार्ग" (जो भी इसका मतलब हो) पर पहुँचाया जा रहा है। एक वही पुरानी बात सुनाई जा रही है कि भारत 'सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था' आदि है।

इस असाधारण रूप से प्रचारित उत्साह के बीच दो चीज़ों को ध्यान में रखना आवश्यक है। पहला सांख्यिकीय बिंदु का क्रम, दूसरा इन संख्याओं का एक और अधिक गंभीर संदर्भ।

सबसे पहले, नीचे दिए गए चार्ट पर एक नज़र डालें जो 2016-17 की शुरुआत से तिमाही वृद्धि दर्शाती है। वर्तमान 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर पिछले वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के संबंध में है, जैसा कि आप चार्ट में सकते हैं एक गिरावट का समय था। उस तिमाही में विकास दर 5.6 प्रतिशत तक पहुँच गई थी। जैसा कि संख्याओं की प्राथमिक जानकारी रखने वाले किसी को भी इसका एहसास होगा, कम प्रारंभिक बिंदु की तुलना में विकास हमेशा उच्च होगा। अर्थशास्त्री इसे आधार प्रभाव कहते हैं।

GDP growth table 1_0.jpg

तो, ख़ुशी मनाने का मौका नहीं है। आखिरकार, जैसा कि चार्ट भी दिखाता है कि जीडीपी वृद्धि दर फिर वहीं आ पहुँची है जहाँ दो साल पहले थी। मोदी जी की सशक्तता और अजीब अर्थशास्त्र देश को नीचे ले गया है और अब जब अर्थव्यवस्था अपनी मूल स्थिति में वापस आ रही है, तो क्या यह ख़ुशी मनाने की बात है?

लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वास्तविक अर्थव्यवस्था से जीडीपी संख्याओं का रिश्ता क्या है? जब यह सवाल पूछा जायेगा तो यह ताश का महल गिर जायेगा। इसलिए 'सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ' की यह उपाधि एक कांटों के ताज के आलावा और कुछ नहीं।

ऐसा ही यू.पी.ए.-द्वितीय के समय में हुआ था नौकरियों के सबसे गंभीर संकट के बावजूद उच्च वृद्धि दर्ज़ हुई थी। दुर्भाग्यपूर्ण और सरकार के नये रोज़गार पैदा होने के लुभावने प्रचार के बावजूद, वास्तविकता यह है कि भारत के कर्मचारियों की संख्या में कमी आई है, बेरोज़गारी बहुत अधिक है और नौकरियों की तत्काल संभावनाएँ दिखाई नहीं दे रहींI जबकि 1 करोड़ 20 लाख लोग निरंतर नौकरी की दौड़ मैं हर साल शामिल होते हैं।

ऐसा क्यों है कि नौकरियाँ घट रही हैं, जबकि सकल घरेलू उत्पाद की दर बढ़ रही है? संक्षेप में, इसका जवाब जीडीपी विस्तार की प्रकृति में निहित है। इसका विस्तार विनिर्माण क्षेत्र पर निर्भर नहीं और न ही आमतौर पर सुस्त रहने वाले कृषि क्षेत्र परI यह एक ‘चिंतित’ सरकार के ख़र्चे से भी नहीं बढ़ती। जबकि नौकरियाँ इन्हीं सब से अधिक नौकरियाँ पैदा हो गयी होती।

 

इस पहली तिमाही में 8.6 प्रतिशत दिखने वाला जीडीपी मुख्य रूप से निजी खपत व्यय से प्रेरित है, जबकि इस अन्तराल में सरकारी खपत-व्यय में सिर्फ 7.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस तिमाही में स्थिर  कीमतों में जीडीपी में सरकारी खर्च की हिस्सेदारी 11.8 प्रतिशत पर ही स्थिर रही। यह पिछले वर्ष की क्यू 1 में भी वही था। सकल घरेलू उत्पाद में निजी खर्च हिस्सेदारी पिछले वर्ष की तिमाही में 54.7 प्रतिशत से बढ़कर 54.9 प्रतिशत हो गई है। इस अंतराल के साथ, सरकार के आभासी पक्षाघात को स्पष्ट रूप से पकड़ लिया लगता है।

लेकिन वास्तविक अर्थव्यवस्था सिर्फ नौकरियों के बारे में नहीं है। आय का क्या? श्रमिकों की मज़दूरी स्थिर हो रही है और ज्यादातर राज्यों में स्वीकार किए गए मानक मानदंडों से कम है। यहाँ तक कि सरकार कर्मचारियों की आय भी न्यूनतम मज़दूरी से ही शुरू होती है, हालांकि सामान्य तौर पर मिलने वाली मज़दूरी से ऊँची होती है। यही कारण है कि 2 करोड़ 80 लाख लोगों ने 1,00,000 रेलवे नौकरियों के लिए आवेदन किया।

कृषि मज़दूरी बहुत मामूली बढ़ रही है या बढ़ी है। याद रखें, कृषि श्रमिकों की संख्या 15 करोड़ से अधिक है – जोकि कुछ 55 प्रतिशत ग्रामीण श्रमिक हैं। 2014-15 और 2016-17 के बीच, कृषि श्रमिकों की वास्तविक (मुद्रास्फीति समायोजित) मज़दूरी में केवल 1.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, बुआई के लिए 3.1 प्रतिशत, प्रत्यारोपण और खरपतवार, कटाई के लिए 0.5 प्रतिशत, भूसी निकालने साफ करने के लिए, और अकुशल के लिए 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

खेती के संबंध में, हाल के वर्षों में सबसे गंभीर आर्थिक संकट देखा गया है क्योंकि एक दर्जन से अधिक राज्यों के किसान उच्च इनपुट लागत और कम रिटर्न के विरोध में सड़कों पर आ गए हैं, जिनकी अपनी शुद्ध आय में कमी आयी है।

इन्हीं कई संकटों के कारण ही देश के कामकाजी लोग विरोध में खड़े हैं, जिसके लिए इस हफ्ते (5 सितंबर को) श्रमिकों और किसानों द्वारा दिल्ली में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। वे मोदी सरकार की नवउदारवादी नीतियों का अंत करने की माँग कर रहे हैं - वही नीतियां जो उच्च सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि पैदा करती हैं लेकिन रोज़गार पैदा नहीं करतीं, आय में कोई वृद्धि नहीं होती है और लोगों दरिद्र हो रहे हैं।

GDP
GDP growth
जीडीपी
जादुई आँकडें
मोदी सरकार

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

जब तक भारत समावेशी रास्ता नहीं अपनाएगा तब तक आर्थिक रिकवरी एक मिथक बनी रहेगी

देश पर लगातार बढ़ रहा कर्ज का बोझ, मोदी राज में कर्जे में 123 फ़ीसदी की बढ़ोतरी 

अंतर्राष्ट्रीय वित्त और 2022-23 के केंद्रीय बजट का संकुचनकारी समष्टि अर्थशास्त्र

इस बजट की चुप्पियां और भी डरावनी हैं

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22: क्या महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था के संकटों पर नज़र डालता है  

जलवायु परिवर्तन के कारण भारत ने गंवाए 259 अरब श्रम घंटे- स्टडी

2021-22 में आर्थिक बहाली सुस्त रही, आने वाले केंद्रीय बजट से क्या उम्मीदें रखें?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License